नई दिल्ली। रीढ़ की हड्डी में चोट, पार्किंसंस डिजीज, सेरेब्रल पाल्सी, हृदय रोग, किडनी विकार, नहीं भरने वाले घाव आदि बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को भी थैरेपी से फायदा हुआ है।

इस थैरेपी से किस तरह के मरीजों का इलाज संभव है ?

इस तकनीक से 1400 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। वे सभी अलग-अलग परेशानियों जैसे  मस्कुलोस्केलेटल, न्यूरोलॉजिकल, ऑर्गन डिस्फंक्शन और जेनेटिक डिसऑर्डर से ग्रस्त थे। ये सभी स्थितियां लाइलाज मानी जाती हैं। इस थैरेपी से मरीजों की स्थिति और उनके जीवन में काफी सुधार देखा गया है। रीढ़ की हड्डी में चोट, पार्किंसंस डिजीज, सेरेब्रल पाल्सी, हृदय रोग, किडनी विकार, नहीं भरने वाले घाव आदि बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को भी थैरेपी से फायदा हुआ है।

क्या निकट भविष्य में लाइलाज बीमारियों का इलाज स्टेम सेल थैरेपी से संभव होगा?

स्टेम सेल इलाज के महत्त्व को आज पूरी दुनिया स्वीकार रही है। देश और संस्थान इस अनुसंधान में जुटे हैं। कई शोधकर्ता शोध के आधार पर इलाज कर रहे हैं। आज जो बीमारी लाइलाज मानी जा रही है, स्टेम सेल थैरेपी से उसका इलाज संभव है।

स्टेम सेल किस तरह से लाइलाज बीमारियों या विकारों का इलाज करता है?

स्टेम सेल अनेक रूप में खुद को ढाल सकता है। इसकी यही खासियत शरीर के प्राकृतिक घाव भरने की कार्य प्रणाली का आधार है। एम्ब्रियोनिक स्टेम सेल के साथ लाइलाज बीमारियों या विकारों का उपचार करते हुए इसी सिद्धांत का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें रोगी के शरीर में सुई के जरिए स्टेम सेल प्रत्यारोपित किए जाते हैं। ये कोशिकाएं क्षतिग्रस्त या सही काम न करने वाले अंगों या स्थान में गहराई से अपनी पकड़ बना लेती हैं ताकि क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत की जा सके।

स्टेम सेल थैरेपी को कहां-कहां इस्तेमाल किया जा रहा है और भारत या अमरीका में पेटेंट दिलवाने में सफल हो पाएंगी?

इस थैरेपी को भारत सहित यूएस, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कोरिया सहित 66 देशों में प्रयोग में लिया जा रहा है। भारत और अमरीका में इसके पेटेंट को लेकर काम जारी है।