हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में होने वाले चुनाव के लिए प्रत्याशियों क फैसला आज हो जाएगा। भाजपा ने संघर्ष को त्रिकोणीय नहीं बनने देने की रणनीति के चलते बहुत सारे निर्दलीय प्रत्याशियों को साधने की जुगत बिठाई है तो दूसरी ओर कांग्रेस त्रिकोणीय मुकाबले में निकलने के लिए कई निर्दलीय प्रत्याशियों को मैदान में रहने के लिए प्रेरित किया है।

लोकसभा के इन चुनावों से पहले ही टिकटों के वितरण में जिस तरह की अफरा-तफरी देखने को मिली है, वह भी अप्रत्याशित है। प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद भी चुनाव लडऩे से इंकार करने वाले नेताओं को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं तो निर्मला सीतारमण का यह कहते हुए चुनावी राजनीति से किनारा कर लेना कि उनके पास चुनाव लडऩे जितने पैसे नहीं है, इस बात को भी भी इंगित कर रहा है कि भाजपा अपने प्रत्याशियों को अपने ही पैसे पर चुनाव लडऩे के लिए तैयार कर रही है।

सामान्यतौर पर यह व्यवस्था होती है कि पार्टी फंड से प्रत्याशियों को पैसा दिया जा रहा है। अगर निर्मला सीतारमण जैसी नेता यह कहती है कि उनके पास चुनाव लडऩे के लिए पैसा नहीं है तो यह नहीं भूलना चाहिए कि वे उस भाजपा की नेता हैं, जिसके पास आज सबसे अधिक पैसा है। साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि जब निर्मला सीतारमण को चुनाव-फंड नहीं मिल रहा है तो दूसरे टिकट धारकों को क्या मिला होगा।

लेकिन यह तो साफ है कि इन परिस्थितियों के बाद भी जहां भाजपा की टिकट पर कई सारे चुनाव लडऩे को तैयार हैं तो कांग्रेस के पास प्रत्याशियों की कमी साफ नजर आ रही है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सी.पी.जोशी को जितनी मुश्किल से चुनाव लडऩे के लिए तैयार किया गया है, वह कांग्रेस के नेताओं का जी-जानता है। सी.पी.जोशी का यह तर्क अंतत: अस्वीकार ही कर दिया गया कि जब अशोक गहलोत या सचिन पायलट चुनाव नहीं लड़ रहे तो फिर मुझे चुनाव लडऩे के लिए दबाव में क्यों लिया जा रहा है।

यह सच भी है कि इन विषम परिस्थितियों में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को चुनाव लडऩे के लिए मैदान में उतरना चाहिए था। हारते भी तो उनकी विधायकी तो रह ही जाती। जैसे, हनुमान बेनीवाल या रवींद्रसिंह भाटी ने अपने आपको चुनावी-समर में उतार दिया है। कांग्रेस के दिग्गजों को भी आजमाइश में उतरना चाहिए था, लेकिन ये बड़े नेता ऐसा हौसला नहीं दिखा पाए।
ऐसे में कई टिकटों की घोषणा प्रत्याशियों को पूछे बगैर ही कर दी गई। ऐन मौके पर टिकट बदलने पड़े। ऐसे लोगों को देने पड़े, जिन्होंने लोकसभा चुनाव लडऩे से पूरी तरह से मना कर दिया था। लेकिन अब पहले चरण के चुनाव के लिए स्थितियां साफ होने वाली है। 19 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए स्थितियां साफ हो जाएंगी। यह सामने आ जाएगा कि समीकरण क्या बनेेंगे। वैसे भी कांगे्रेस सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही है, ऐसे में अगर दो-तीन सीटें छोडऩी भी पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन जिन सीटों पर प्रत्याशियों को खड़ा करती है, वहां बेहतर तरीके से चुनाव लड़े तो संभव है कि बहुत ही कम वोटों से हारे। ऐसे हालात में कई बार जीत भी हो जाती है। अगर नहीं भी जीते तो कांग्रेस को चाहिए कि अपने लिए मतदान प्रतिशत तो सम्मान जनक रखवा पाए। इसके लिए बहुत ज्यादा जरूरी है कि कांग्रेस के पारंपरिक वोट-बैंक को मतदान केंद्रों तक पहुंचाने के लिए वातावरण बनाए।

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