हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
विधानसभा चुनावों में वसुंधरराजे की वापसी को लेकर जितनी बड़ी-बड़ी संभावनाएं व्यक्त की जा रही थी बल्कि ऐन मौके तक जिस तरह का माहौल बनाया गया था कि राजे को ही प्रदेश की कमान मिलेगी, वैसा कुछ भी नहीं हुआ और लोकसभा चुनाव के आते-आते हालात ऐसे हो गए हैं कि वसुंधराराजे राजे के पुत्र दुष््रयंतसिंह को तो खैर टिकट मिल गया, लेकिन राजे के कट्टर समर्थक माने जाने वाले सीटिंग एमपी को दरकिनार कर दिया गया। पहले जहां राहुल कस्वां का टिकट कटा। कल भाजपा की पांचवी सूची में निहालचंद का टिकट भी कट गया। निहालचंद भाजपा के पुराने चेहरे हैं। केंद्र सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया, लेकिन फिर विवादों के चलते उन्हें हटाया गया और फिर अर्जुन मेघवाल ने केंद्र सरकार में अपनी जगह बनाई।

निहालचंद को टिकट नहीं मिलने के बाद सियासत इसलिए भी गरमाई है, क्योंकि राहुल कस्वां अब कांग्रेस के टिकट पर चूरू लोकसभा से चुनाव लड़ रहे हैं तो भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए प्र्रहलाद गुंजल को कांग्रेस ओम बिरला के सामने चुनाव लड़ा रही है। सीधा-सा संकेत है कि राजे गुट के दो नेताओं ने कांग्रेस में एंट्री कर ली है। इस बीच निहालचंद को भाजपा का टिकट नहीं मिला है। भाजपा ने श्रीगंगानगर सीट पर प्रियंका बालन को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी कुलदीप इंदौरा  का नाम घोषित हुआ है, ऐसे में कयासों का बाजार गर्म है कि आखिर निहालचंद का अगला कदम क्या होगा।
क्या वे निर्दलीय चुनाव लड़कर प्रियंका बालन के लिए समस्या खड़ी करेंगे या शांत रहेंगे? जिस तरह से राजे गुट के माने जाने वाले राहुल कस्वां और प्रहलाद गुंजल ने कदम उठाए हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि राजे गुट से जुड़े सभी नेताओं को यह पता चल गया है कि भले ही राजे के पुत्र होने की वजह से दुष्यंत सिंह को अवसर मिल जाए, लेकिन राजे के करीबी होने का खामियाजा उन सभी नेताओं को भुगतना होगा, जिन्होंने पिछले पांच साल में पार्टी से अधिक वसुंधराराजे को तवज्जो दी है।

राहुल कस्वां, प्रहलाद गुंजल और फिर निहालचंद के साथ जो हुआ वह सभी के सामने है ही। इससे पहले विधानसभा चुनाव में राजे गुट के माने जाने वाले अनेक नेताओं को टिकट नहीं मिला, फिर चाहे वे सीटिंग एमएलए भी क्यों न हो। इससे साफ लगता है कि भाजपा के पास एक लाइन का आदेश है कि राजे की जयकार करने वालों को टिकट नहीं दिया जाए। प्रकारांतर से इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि व्यक्तिनिष्ठ लोगों को टिकट नहीं दिया जाना चाहिए।

हालांकि, चुनाव के दौरान इस तरह के आदर्श और सिद्धांत टूटते भी देखे गए हैं, लेकिन राजनीति में जो लोग फॉलोअर्स होते हैं, उनके लिए यह एक सबक है कि लड़ाइयों में प्यादे ही पीटे जाते हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में न तो वसुंधराराजे का टिकट काटा और न लोकसभा चुनाव में दुष्यंत के टिकट से छेड़छाड़ की। टिकट उन लोगों के कटे जो वसुंधराराजे के कुछ भी नहीं लगते थे, लेकिन उन्होंने राजे की जय-जयकार की। पार्टी से बड़ा राजे को बनाने के लिए हर हद लांधी और आज वे ही किनारे लगा दिए गए हैं। राहुल कस्वां और प्रहलाद गुंजल कांग्रेसी हो चुके हैं। निहालचंद के पास तो निर्दलीय चुनाव लडऩे के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। अगर वे पार्टी के निर्णय को स्वीकार करते हैं तो निश्चित नहीं है कि वे राजे का खास होने का टैग कभी अपने पर से हटा पाएंगे भी या नहीं।

‘लॉयन एक्सप्रेसÓ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।