अरज
‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। ‘कथारंग’ नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां

बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…

घणी जाणकारी वास्ते कथारंग रा समन्वय-संपादक संजय शर्मा सूं कानाबाती कर सकौ। नंबर है… 9414958700

लॉयन एक्सप्रेस री खबरां सूं जुडऩ वास्ते म्हारै वाट्सअप ग्रुप सूं जुड़ सकौ

मेल आइडी – कथारंग – : [email protected]

Telegram         : https://t.me/lionexpressbkn

Facebook Link   : https://www.facebook.com/LionExpress/

Twitter Link       : https://twitter.com/lionexpressnews?s=09

Whatsapp Link    : https://chat.whatsapp.com/JaKMxUp9MDPHuR3imDZ2j1

Youtube Link      : https://www.youtube.com/channel/UCWbBQs2IhE9lmUhezHe58PQ

Katharang page    : https://www.facebook.com/pages/?category=your_pages&ref=bookmarks

 

 

 

 

12 अगस्त पुण्यतिथि पर स्मरण

कागद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित वृत्तचित्र

ओम से व्योम होने तक….

प्रस्तुति : हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’

विडियो देखें :

 

 

मोबाइल 9460905951

जलम–चेत शुक्ला तेरस-संवत 2015

    लारला चाळीस बरसां सूं हिन्दी अर राजस्थानी मांय लेखण करता रैया है। घणी हतोटी कविता लिखण में। राजस्थानी मांय कहाणी मांडण रो पैलो ई मौको। लाक डाउन रै मौकै दस कहाणियां लिख दिन्ही। अब्र तांई च्यार पोथ्यां दोय हिन्दी दोय राजस्थानी में छपी। एक खंडकाव्य एक बूंद आंसू रो तरपण माथै अंतरराष्ट्रिय पुरस्कार  अर सर्रड़कां रै सैईके राजस्थानी कविता संग्रै माथै इकतीस हजार रो पुरस्कार मिलियो। राष्ट्रीय सेमिनारां में  भागीदारी। मोकळी संस्थावां सूं सम्मान। सामाजिक संस्था राजस्थान प्रांतीय शाकद्वीपीय ब्राह्मण महासभा राजस्थान का अबार अध्यक्ष । राजस्थान साहित्य अकादमी व राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी में राजकीय प्रतिनिधि रेया। कृषि उपज मंडी समिति सेवा सूं सेवा निवृति। 

पूरापूर बासठ बरसां पछै गांव रो मूंहडो

देखणो है। गाडी में म्है, ड्राइवर अर खास चैलो नीलकंठ है। परसूं ही हवाई जहाज सूं दिल्ली पुग्या हा। दिल्ली सूं गांव जावणो हो आगलै दिन, जठै एक अस्पताळ गांव सारू बणी, बिनै जनता नै भुळावणी ही। गांव! जीवड़ा गांव सारू सिरजाम सगळो आगूंच आज री तारीख में। छोड्यो हो जद भूंसता गिंडक हा गैल। सिरेजाम भी तो गोलो हुवै लिछमी रो। कैबत में भी केयो है, “सांई सबळ हुवै तो धूड़ ही सोनों, नीं हुयां सोनै री धूड़ होंवता किसी जेज लागै।

दिल्ली पुग परो प्रेम जी नै फोन कर दियो हो, भाई म्है पूग रिया हां।

“ठीक गुरूजी म्है बडोड़ै नै थारै सामी भेजूं।”

“नहीं भाई रस्तो ध्यान में है, मतै पूग जा सूं। ”

छोरै नै फोड़ा क्यूं घालै।

“ठीक गुरूजी” प्रेम पाछो केयो।

       हवाई अडै सूं सीधा प्रेम जी रै घरां, पांचवै मालै प्रेम जी रो बंगलो, पूरो ठाडो, मझ दिल्ली में। अडै सूं चालां तो घंटा भर में  पूगल्यां। शांति बिहार कालोनी में हो, प्रेम जी रो ओ बंगलो। कालोनी रै मेन गेट पर दरबान गाडी नै थामणै रो इसारो दियो,इतै ही प्रेम जी आय दरबान ने बता दियो जद बो गाडी नै आगै जावणै री जाग्या कर दी। आगै प्रेम जी लारै म्है तीनू लिफ्ट हुय परा बांरै बंगलै चढ्या। सामी प्रेम जी री जोड़ायत, छोटियो अंशुल अर मुनकी प्रीत सामै खड़ी अडीकै ही। ज्यूं ही म्है पूग्यो सामी आयनै झुक्या अर प्रणाम कर मांयनै आवणै सारू केयो।

म्है पूछ्यो” बडोड़ो अनुज! “बो तो गुरूजी बंगलोर है। फैक्टरी री मसीन नंवी लगाई है, बीं रा कयी पुरजा लावणा हा। आछो हुयो थै आग्या, अब तो लगते हाथ थै इनै चलाय परी मोहरत भी कर जासो। म्है केयो “प्रेम जी कोई भलै मिनख सूं चालू करावो “मोडा मलंगा सूं किसी मशीन।

ना गुरूजी आयोड़ा हो, ओ तो थै ही करस्यो। म्है बो दिन को भूलूं नी जद थै म्हारै सिर हाथ फेर आसीस दियो। बो दिन आज रो दिन म्हारा तो दीन ही फोर दिया। भूख सूं गैल छुटाई, ओ एसान कद भूल सकूं। पेमलै नै प्रेम जी आखै मतळबी जगत में थां ही थरपायो। प्रेम जी गळगळा सा हुग्या हा।

“नां रै बावळा आ तो थारी मैनत अर आछै बिचारा रो ही फळ है  क तूं फळाप्यो है, छोरै री बुधी अर लगन ही इन सगळै सरजाम नै आगै बधायो भाई। म्हारा कनै के फगत डंडो अर लंगोट”म्है हंस परो बात टाळी। खैर पूजा पाठ करना हा, बार लो कमरो म्हां सारू खोल दियो हो। म्है कमरै में  जाय न्हावा -धोयी कर परी पूजा-पाठ कर लिया हा इतै में ही टाबरिया दूध-टिकड़ा, अर छूंक्योड़ा चावळ ल्या दिया हा। प्रेम जी री बीनणी नै ठा हो क छूंक्योड़ा चावळ म्हारी कमजोरी है,घणो ही साधू हूं पण आ जीभ तो है जिकी है। खैर दो दिन अठै थमणों पछै गांव जावणो है।

  प्रेम जी अबार एक ठावो नाम, मनगर अर काम रा गारड़ू। दो फैक्टरी दिल्ली में, बारै भी अठै रा मसीनी पुरजा बेचणा अर बठै रै माल री सपलायां भी सामणी। दोन्यू छोरा काम नै आछो साम लियो हो। दोन्यू इंजीनियर पर नौकरी कानी को फाब्या नीं आपरो खुदो -खुद काम पोळायो, पापा रै बिणज रा गुर आंख मींच सिकार परा आगै बधता गया।

दान-धरम करता तो संको दर ही नीं पण नाम सूं बचणो सुभाव। चौतरफो आणंद- उछाळ, लिछमी जाणै आंगणै पीढो ढाळ मायतां रै मन री गळाई ही बेठी। थिरगस थाणा री जी में धार परी। प्रेम जी सूं म्हारो हेत आ भी गाथा जोर गी।

            एकर सी साल सात एक पैल्यां म्है गोरखपुर गोरख गादी जावै हो, बियां जावणो तो म्हनै म्हारी आस्रम री गादी नेपाळ जावणो हो, जठै रो म्है गादीपत हो पण बिचाळै एक दिन मूळ गादी गोरखपुर दरसण कर पछै नेपाल जावणो हो। रिजरवेसन में  म्हारी सामी जिका मुसाफिर हा, प्रेम जी। बै च्यार जणा हा। प्रेम जी, साथै बांरा जोड़ायत  कांता, दो टाबर। दिल्ली  सूं गाडी ब्हीर हुई सीटां संभाळ समान जचाईज्यो, बाणियो हा प्रेम जी, सफर में  तो बाणियां आपरी गुवाड़ी सी लाद चालै। दो कार्टून ,तीन अटैची,दो थैला मोटै पेट रा अर दो आदत जीमणै रा, साथै खाटा-चूरी री छोटी आदत। आपणै राम कनै तो बस एक झोळी जिणमें पोथ्यां अर एक बेग जिणमें चार जोड़ी चादर अर तैमद हा।

एक बागळी ही जिणमें चस्मा घर अर एक सोटो हो। मोडां कनै तो बस इतो समान ही हुवै। गाडी आपरी चाल पकड़गी ही। म्है बागळी सूं पोथी लेय पढणै बेठग्यो। सामला पाड़ोसी भी जाचो जचा परा जमग्या हा। हा म्है दोन्यू अब तांई साव अबोला। हां छोटियो जरूर म्हा कानी एक दो बार देख्यो हो, पण बोल्यो कीं कोनी। बै आपरी घर बिद री बातां टोर राखी ही अर म्है म्हारी पोथी पढूं। दोन्यां बिचै संकै री पतळी भींत खड़ी ही। बां री बात्यां में काम री निमळाई अर पड़तै फोड़ां रो गिंगरथ हो, अब कान

पापी हुवै नीं चांवता ही ध्यान भटक परो बां री बात्यां पासी भटकै। पोथी बापड़ी बिचाळै छूटै।। म्है पोथी पसवाड़ै राखी, चादर सावळ करी अर उबासी पाड़तो चुटकी बजाई अर “संभो दीन  दयालु” रो उच्चारण करियो। ओ दीनदयालु कीं जोर सूं मुंहडै सूं निसरग्यो हो। मन ही मन संकग्यो हो म्है।

         ओ थारो आस्रम थोड़ी है डोफा, रेल रो सफर है ध्यान राखो रामजी। म्है खुद नै ही समझायो। म्हारै बोलणै स्यूं ही प्रेम जी। म्हारै सामी देख बोल पड़या हा।

“प्रणाम बाबोजी “

” सदा सुखी रेवो खुस रेवो “

” सुख कठै बाबाजी” प्रेम जी एक सुळझ्योड़ै साधु दांई पड़ूतर प्रश्न कर दियो। म्है थोड़ो सो मुळक्यो पछै बोल्यो ” सिस्टी सुख ही तो है  म्हारा भाई बस देखणै सारू आंख कै देखै”आ बात तो काळजै नै तै करणी है।

      बात रो सिगौ बधणै री सरूवात हू ली ही। इण बीचै लाग्यो जाणै कोई बडो स्टेसन आयो है। गाडी कीं बगत अठै ज्यादा ठैर सी। भखावटै री चाल्योड़ी रेल अब ही ढबी है। अठै स्यात कीं खावा-पीवो करसी, प्रेम जी अर बडोड़ो टाबर नीचै उतर परा पाणी री केतल्या भरी, चाय रो केय परा कीं ओर चीजां ही ली। पछै पाछा डब्बै में। प्रेम जी थेलै सूं एक कटोर-दान काढ्यो, खोल्यो अर दूजो छोटो कटोर -दान जिणमे बघारियोड़ा चावळ लपटां मारै हा। रामजी राम म्हनै भी म्हारो टाबरपणो चितार चढग्यो हो। बीं टैम रोज दीनूगै, रात रो बच्यो खिचड़ी -खिचड़ो तेल में बघार परो राखता सगळा रात री रोट्यां साथै खांवता। म्है टाबरपणै में बघारियोड़ी खिचड़ी झापा-पती में  खोस परो कीं बती खांवतो साथै साथै गदीड़ भी। म्हारै चैहरै माथै मुळक पसरगी लारली याद फिरोळतां।

      प्रेम री बीनणी म्हनै भी पूछ्यो, पण म्है नटग्यो। मन चंचळ हुवै चायै गिरस्त, चायै साधु। जीभ री कुमाणसी छमक्या चावळ फिरोळै तो भेख मन नै बांधै मन अर जीभ रो जिको महाभारत मच्यो सो मच्यो, म्है पाछी पोथी खोल बांचणी पोळा ली ही।। प्रेम जी एक पलेट में थोड़ा चावळ अर पापड़ म्हा सामी जिद कर राख्या तो भाई साधु हारग्यो, सुवाद जीतग्यो हो। म्है नखरा नीं कर भगवान रो नाम लैय खाणो सरू कर दियो। पछै तो एक एक करनै देस री घणकरी चीजां चाखणै रै मिस प्रेम जी देता रेया म्है जीमतो रेयो। गांव रो सुवाद, बठै री सुगंध बरसां पछै आज लाधी सो लाधी। जाणै भो-भो रा पातक धुप्या है। छैवट पेट भरग्यो हो पण मन नी। आज साधु सुवाद सामी हारग्यो हो। हाथ धोयां पछै म्है पूछ्यो आपां किसै मुकाम जास्या, बे बतायो नेपाल रै बीरगंज। बियां मूळ ठिकाणो किसो आपरो, म्है फेरू पूछ्यो। पड़िहारो

    पड़िहारो? म्हारै डील में  सी कंपो आ चढ्यो। बियाळीस बरस पैली रा चितराम एकर सी आंख्यां भूंवीज्या। पण जी डाट लियो। पड़िहारै रो तो म्है भी जायो जाम्यो, पण आज तो नासकेत। म्है ही बात रो आंटो पाछो फोर परो पूछ्यो कोई काम धाम।

काम धाम तो अबार कीं कोनी, ठाला ही हां पण बियां बाणियै रा बेटा, बेचा तुड़को तो कर धाको सो धिकावां। बीरगंज जाय बठै म्हारा रिश्तेदार है  बां कनै कोई कामड़ो ढब बेठास्यां। अछ्यां बीरगंज, म्हारो भी बठै आस्रम है। म्है दो दिन गोरखपुर ठैर सूं पछै बठै ही आस्यूं। बीरगंज सूं तीन कोस आथूणै  आपणो आस्रम है। सगळा जाणै चेतन कुटिया गोरख कुंड। थै जै आवो तो थांरो स्वागत है।

                छोटियो पूछ्यो ओ आथूणो के हुवै अ..ना बेटा अंकल ना केयी म्हनै म्है तो रिस्तो जी घुळै बो चावूं भलेस म्हनै मोडो ही केय दै बेटा पण ओ नीं सींग पूंछ बायरो। रिस्तो बो ही जिकै नै धरम साख भरै अर मन धार निभाईजै।

                पण बाबा धरम री के जरुरत हुवै। जरुरत तो कर्म री हुवै। धरम तो एक सांकळ हुवै जिकी मिनखां नै न्यारा न्यारा खूंटां बांध राख्या है, जै छूटै सांड बांथैड़ो। म्है भी लखग्यो हो, लालो नूंवी पोथ्यां घणी फिरोळ ली लागै फेर आखै रस्तै म्हा दोन्यां रे घणी घुटी। दो तीन बार बीं री मां टोक्यो भी हो क बडा सामी झूठी बहस नीं करणी, म्है ही बां नै केयो नीं इसी कोई बात कोनी।थै चिंत्या ना करो म्है इण री  किणी बात रो दोरो को मानू नी ।म्है आछी तरियां धरम कर्म रा झींणा अरथाव बताया। कुल मिलाय बात  आ हुई क प्रेम जी अर म्है गैलै री अपणायत घर री सी मांड ली। मोडां रो मन भी तो अपणायत सारू अडीकै। मोडा किसा मूसळ थोड़ी हुवै जिका मेह में भी भीजै कोनी। नेह बिरखा बै भी तो आपरै सारू उळीचणी चावै है।

       रात री एक बज्यां गोरखपुर आयो, म्है उतरग्यो

हो। बां नै एक बार फेरू आस्रम आवणै रो नूतो दे परो। पांचवै दिन आया हा पांचू जणा म्हारै आस्रम।

केई देर घूम्या फिरी करी पछै आ परा म्हारै कनै बेठ्या। म्हारी संगत भी अचरज में  ही ए खोड़ीला ई गिरस्ती नै इंया लडावै सूरज तो आथूणो नीं आज दिखणादो उगतो लखावै। पण पूछणो? कुण हिम्मत करै। बातां बातां में  म्है अब परकास दियो क म्हारो गांव भी पड़िहारो ही हो। दूध म्हारो हो जाट, घर म्हारो गढ रै चिपतो। खैर बै को जाण सक्या नीं। बस इतो जाण लियो क हेत अर मिनख रळै तो है पाछा इण गोळ भुंवती जमी पर।

म्है प्रेम जी नै काम री जुगत बेठणै री पूछी तो बै सिसकारो सो न्हाक दियो। गुरू महाराज री  किरपा

म्है नीलकंठ नै हेलो देय बुलायो गादी पर पड़ी हथौड़ी मगाय छोरै रै हाथ में  देय केय दियो जा थारै पिताजी नै लेज्या हथोड़ी मार, खा कमा र। बो दिन आज रो दिन प्रेम जी पाछो मुड़ को देख्यो नीं। आगो दियो पाछो घिरै। पण आव आदर में  भी बे पग पिता नीं दिया। जद सूं लेयनै अबार तांई दिल्ली मतळब प्रेम जी रो घर। नेपाल राज री तरफ सूं म्हनै राज संत री उपाधि ही। पण म्है महारो न्यारो निऱवाळो ही भलो। बिंया देस परदेस सिस्यां री कोई चांको नीं पण लाडेसरां में प्रेम जी अर बां रो परवार

ःःःःःःः

                म्है गांव में बठै री अस्पताळ रो निरमाण आस्रम कानी सूं करवायो हो। उदघाटण री सरत आ ही क फितो कोई नेता नीं गांव रा ही लिखमो जी काट सी। गांव रा कारण पूछणै री खैचळ भी करी पण म्है दो टूक बानै आ म्हारी सरत सामी करी ही बै मान भी ली पछै काम सरू करीज्यो हो। गांव रा अचूंभो भी कर परा धाप लिया हा।पण बात मांयली मांयनै।

                प्रेम जी रे कमरै में  सोचे हो, गांव जाणैला गुणियो  ओ है तो पछै के दिस्टांत हुसी। गांव में गुणियो, यादां रो किनो हवा रै गड़कै चढ बगत री डोर लियां मन री ठिमक्यां बधै हो। एक एक चितराम बंद आंख्यां में मंडै डुईजै हा। गांव, गांव री गळ्यां। धोरै पर दो साळ अर तीन झूंपड़त्यां रो घरियो। काम खेती, जै हुगी तो ठीक नीं तो सेठां री हेल्यां अर गोलीपो। घसीजो। ब्याज पेटै। घुड़क्यां खावो गिटणै पेटै ,कयी पीढ्यां हाथ जोड़ भोड झुका बगत लेय पार पड़ी म्हार ली। सेठां री हेली पर माळिया चीणीजै। म्हारला काठड़यां ढोवै टुकड़ा सटै बे भी लुखा पाखा जिंदगी सांवरियै री दियोड़ी मान धाको धिखाणै री बाण में  जूण पूरी हुवणी। सिकायत तो सांवरै नै ही को करां नी तो दूजै नै के हुवै। एक दिन सेठां री हेली बापू साथै म्है गयो हो। ठाडी हेली, ऊंची पेड़ियां अर ठाडा आसरा दरवाजा, छिकळीगम म्है। एकै साथै जाणै सांसां ताळवै चढग्या। बापू काम लागग्या म्है ईनै बिनै चकरी देवूं। गाणी माणी हुयो फिरू। सामी एक आसरो देख्यो धोळी धप चादर बिछायो गिदरो सारै बडै पाटियै पर एक डबियो बाजै हो। म्हनै इचरज उपड़यो डबियै में मिनख गीत किंया गावै। डरू फरू सो बींनै हाथ लगायो क पाछै सूं एक जोर की दाकल अर झापड़ एकै साथै गूदी में। डरतै रै हाथ सूं डबड़ी फटाक पड़ी दो टुकड़ा उपरला खिंडग्या। नीचै डरतै राकमरै में  सर्रर करता मूतिया भी। हाको हुयो लारै एक तुंदल सो सेठ बरड़ावै हो। कारू सगळा एकठा। सेठ पूछ्यो कुण है रै ओ कर दियो उजाड़, बिलायती रेडियै रो धैलो पट दियो। दो हजार रो हो। एक जणो बोल्यो ओ तो लिखमै रो गुणियो है। म्हारा बापू हांफता सा आया, देखतां ही समझग्या हा आग्यो सेखै नै नूंवो भातो। सेठ बकै राफां मांय झागूंड उपड़ै ।बापू नाड़ नीची कर परा चुपचाप सुणै। सुणता सुणता म्हारी बांवड़ी झाल दस एक गदका जचा र सिरकाया म्हारै।म्है गरळायो। सेठ रो बकणो, म्हारो गरळाणो एक अजब सो कारो रच दियो हो। दो एक जणा हाथ झाल म्हनै छुडायो। बापू हाथा जोड़ी करै हा रीपीया भरणै री बात कर केयर सेठां म्है पिसा तो के खार चुकावूं थै इंया करो इं कुमाणस  नै दिसावर लेज्यावो। पिसा बीड़ लिया। काम नीं करै तो छेत्या। हूं तो गळै आग्यो इं रांत सूं। खा पूरा दिया म्हने आज सूं ओ अरे सूं ही थारै दिसावर खाट लेसी। अर म्हनै देय धको सेठां नै सूंप दियो। सेठां रै के चोपड़ी पछै दोय। फोगट रो हाळी। म्हारा राम नै तो पाछा घरां ही को जाण दिया।

         गुणियो गुणियै में पज परो सेठां रै दिसावर। बठै मुटिया गिरी करतो धाप्यो तो रातो रात गंडक भुसावतो दिया तैतीसा। बठे सूं दोड़तो हांफतो,,गु

गुड़तो पड़तो आ जातरा गोरखपुर आंवती ढबी। मंहत जी री चाकरी झाली। रोटी सोरे सांस। मंहत जी री किरपा सूं ग्यान भी म्हनै दिराईज्यो। म्हारी पकङ काम रे साथै ग्यान में  भी ही।बधतां बधतां आज इस मुकाम तांई रो सफर।मींची आंख में  झिलोरां लेवै हो। अचाणक नीलकंठ  आय सोच नै झिकोळ केयो, बठै रो फोन है। म्है फोन झाल बात करी बै सगळी त्यारी री बिगत वार बात म्हनै बता दी। म्है केयो अठै सूं म्है प्रेम जी साथै बां री गाडी में  बगत सर पूगस्यू। थै लिखमो जी ने त्यार राख्या अर ध्यान भी राख्या बे बडेरा हैं। गांव आळा म्हनै धिरोज दियो चिंत्या नीं करणै री। आगलै दिन म्है प्रेम जी री फैक्टरी गया, बठै नूंवी मसीन चालू करी सगळा मजूरां नै नगद भेंट भी खुसी में  प्रेम जी म्हारे हाथां दिरायी। आगलै दिन बगत सारू पुगणो हो तो म्है, प्रेम जी अर बां रो छोटियो बेटो,पछै महै तीन रात नै ही रवाना हुग्या हा। बगत सूं दो घंटा पैली पुग परा पूरो सरजाम निगै कर गाडी लिखमो जी नै ल्यावण भेज दी। पंडतां होम सळटा दियोहो।  मोहरत मुजब बात सर फीतो काटणै सारू लिखमो जी पूग्या। म्है हाथ झाल बानै करतणी पकड़ाई। बै आपरै इतै आदर नै संभाळ को पावै हा नीं। साथै ओ भी क इतो ठाडो नेपाल राज रो मंहत इं गांव में, अर पांच मंजली अस्पताळ लिखमों जी रै हाथ। गताघम आखै गांव में भी पसरी ही।

           धूजतै हाथां, फीतों काटतां म्है बापू नै तकावै हो, बापू म्हनै। दोन्यां रा हाथ धूजै हा। म्है बोल्यो बापू म्है नासकेत थारो गुणियो। आज पाछो आयो हूं म्हारी माटी कनै, थारै कनै। थै भेज्यो म्है गयो। गांव बुलायो, म्है आयो। दोन्यू एक दूजै नै तकावां, बे साधू रै पगां पड़नो चावै तो बाप अड़ै। म्है पग पकड़ना चावूं पण विरागी रै रिस्तै सूं किसी राग। राग देस सूं परै गुरूगादी रो पण अड़ै। दोन्यां री आंख्यां टळक टळक झरै ही। गांव रै अब समझ आयी, आ अस्पताळ बणनै री राग। सगळा री आंख्यां री कोरां भीजै ही। प्रेम जी अर बां रो बेटो छोटियो बस मुळकै हा। प्रेम जी नै करम अर छोटियै  चौसरा चालती आंख्यां चिलकतो धरम भी निगै आग्यो हो।

 

 

 

 

 

मोबाइल: 8387987499

गद्य और पद्य मे लिखते हैं। पत्रकार भी हैं तो मुंबई फिल्म राइटर्स एसोसिएषन के सदस्य भी। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे रचनाओं का निरन्तर प्रकाशन।

लय

नीं मिळी कदै

फगत करी अनुभव

जींवतौ रैयो अनुभूति मांय

ही थारै

अर म्हारै बीच

अेक लय

जकी जद-जद मिळी

खिलिया पुसप

जकी जद-जद टूटी

टूटी जियां सांसां री लड़ी

 चितराम

केवण नैं हां तो माटी रा पूतळा ई

कदै बिखर सकां

पण बिखरण सूं पैली

खेचळ करता संवरीजण री

संवारता खुद नैं

हजारूं बार हारय हारयां हां

संवार नीं पाया खुद नैं

जूण री जातरा रा अे ई है चितराम

कदै नीं जाण सक्या क

किण रे खातर है संवरणौ!

 

मोबाइल:- 7597562867

राजस्थानी और हिंदी मे कहानिया और कविता लिखते हैं। चित्रकार भी हैं। पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाषन और और आकाषवाणी से भी नियमित प्रसारण। इन दिनों अपने पिता स्व. भगवान दास किराडू़ के साहित्य को आम-जन तक पहंुचाने के लक्ष्य की ओर अग्रसर। रोजगार विभाग मे कलाकार के पद पर कार्यरत ।

पोथी रो नाम : हूं गोरी किण पीव री

रचनाकार  : यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र

रचना : उपन्यास

भाषा: राजस्थानी

वर्ष : 2004

प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, सोजती गेट, जोधपुर

सामाजिक समस्यां नै दूर करणै रो दस्तावेज है उपन्यास : हूं गोरी किण पीव री

       यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ हिंदी अर राजस्थानी रा अेडा रचनाकार है जिनाणि रचनावां पाठकां रै मनां पर अेक अमिट छाप छोड़ै। बीकानेर में जाया जळमा यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ आप री अेक अलग ही ओलखण राखै। आप हिंदी अर राजस्थानी मांय लेखनी चलाय बीकानेर ही नहीं पूरै भारत रै मांय आखो जस कमायो है। आप बीकानेर रा अेडा साहित्यकार हो जिकै री कहाणी माथै राजस्थानी फिल्म बणी ‘लाज राखो राणी सती’,  टीवी सीरियल ‘हजार घोड़ों का सवार’। इरै अळावा गुलाबड़ी चकवै री बात अर विडंबना माथै टेलीफिल्म भी बणी। आपनै साहित्य अकादमी नई दिल्ली रो पुरस्कार, आपरो कहाणी संग्रै ‘जमारे’ पर 1989 में मिळ्यो। आप राजस्थानी भासा में रचनावां रच राजस्थानी माथै उपकार कर्यो। आप राजस्थानी भासा में उपन्यास ‘हूं गौरी किण पीव री’, ‘जोग संजोग’ जेड़ा सातरां उपन्यास लिख्या है। आप आधुनिक राजस्थानी रै लिखारा रै मायां हमेसा आगिवाण रैया हो। आप ग्रामीण परिवेस ने उकेरण में सिद्धहस्त हो। आप रो लिख्योड़ो उपन्यास ‘हूं गौरी किण पीव री’ घणखर सामाजिक बुराईयां ने उजागर करै। ‘हूं गौरी किण पीव री’ उपन्यास स्त्री-विमर्स रो अेक लूठों दस्तावेज रै सागै-सागै अेक मार्मिक उपन्यास है। इरै मांय बालपणै रै मायं हुयोड़ो ब्यांव री कुरीति नै सामै लावै। विधवा समस्यावां, वैश्यावृत्ति, अशिक्षा, अर धन रै लोभ रै मांय सगले नाता रिस्ता ने बेच खाणै री प्रवृत्ति उजागर हुई है।

‘हूं गौरी किण पीव री’ रो कथानक बीकानेर रै ग्रामीण परिवेस ने लेय’र लिख्योड़ो है। सागै-ही-सागै दारू पीणै री ऊंधी आदत, अर जुओ खेलण री लत आदमी नै कइै रो ही नई राखै। यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ आपरै समय रा अेक ऐड़ा रचनाकार हा जिका समय रै मर्म ने जाणता हा। बियां नै अेक लोक रचनाकार कैवां तो अश्यिोक्ति कोनी हुवै। लोक रो रंग बियां रै उपन्यासां में खूब रमयोड़ो हो। बियां आपरै उपन्यास रै मांय भाग्य री विडंबना नै भी प्रदर्सित करी है। सूरजड़ी जद आपरै पति री म्रत्यु रै समाचार रै बाद आपरै पीरै रैवण लाग जावै पण बीरै भाई री नीयत ठीक कोणी हुवै। बो पिसां रै लोभ में आपरी बैण नै बेचणो चावै पण बा आपरै देवर साथै नातो जोड़ लेवै। बा घणैई दोरै मन सूं नातो जोड़ै। पण थोड़ै साळां बाद भाने घणी-घणी दौळत रै पूठो गांव आ जावै। बो आपरै मरणै री खबर झूठी बतावै ताकि जिका सूं बियै करजो लियोड़ो हुवै बै बीरै घर आळो ने तंग नीं करै। पर विधाता रै लेख ने कूण टाळ सकै।

‘हूं गौरी किण पीव री’ उपन्यास ई सांच ने साची तर्या सूं उजागर कर्यो है कि मिनख आपरै मतै घणाई सुपना संजोवै पण भाग में लिख्या बिणा अेक पतो भी नीं हिल सकै। भाणै जेड़ै युवक रो भटकणो, बुरी संगत मे ंपडणो, असामाजिक कामां नै करणो, तसकरां सूं सांठ-गांठ, हत्या करणो, अर पूंठो घरै आणो, सूरजड़ी रो माधै साथै नातो करणे री घटना सूं खिन्न होय, भाणै रो पाछो संयासी बण जाणो, भाग्य री अटलता नै दरसावै।

‘हूं गौरी किण पीव री’ उपन्यास अेड़ो उपन्यास है जिण मांय यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ ठेठ ग्रामीण सब्दां रो प्ररयोग कर्यो है। बै सब्द आज री टैम् लोग भूळग्या है। पण जद ई उपन्यास नै पढ़ां बै सब्द पाछा मारै सामै आ जावै। बसका फाटणो, चिनीसीक घिसाट, कुचमादि, हंसाळू, घाबा, पैलीपोत, सुनवाड़, पुचकारणो, पथरणो, कूड़ी, मसखरी, भूंगली, चतर, इको, आदि अेडा सब्द है जिका रै मांय आपां री माटी री गंध है। ई उपन्यास रै मांय यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ घणखर लोकोक्तियां अर मुहावरां रो प्रयोग कर्यो है। जियां बोलो तो मोती जड़ै, रूं-रूं खड़ा होव जाणा, उंदरै रै जायड़ा बिल ही खोदै ला, नींद बेच’र ओचको लेणो, धोती सूं बांडै आय जावणो, जींवती माखी गिटणी, दाल में कई कालो, अेक ही सुपातर घर री सात पीढिय़ां णै पार लगा देवै, माथै रो भार पगां नै, जठै दांत है बठै चिणा कोनी, बुकिए री कमाई, कबूतर ने कूओ ही दिखै, कालो मूंडो लीला पग, पेट में उंदरा कूदणा, सौ दिन सुनार रा अेक दिन लुहार रा, बकरे री मां किता दिन खैर मनावै आद। ईसा अर घणाई लोकोक्तियां ई उपन्यास रै मांय भरयोड़ा है जिकै सूं ओ उपन्यास जिको पढै है फिर बो पढ़तो ही जावै। यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ ई उपन्यास रै माय स्त्री जीवन री विडंबना ने बोत ही मार्मिक ढंग सूं चित्रित करी है। स्त्री ने आप रै जीवण रै मांय सगळां ने राजी राखणौ पड़ै। पण बीं रै मन री कोय नहीं सोचै। ओ आखो मानखो स्त्री माथै जुळम करतो ही आयो है। ई उपन्यास रै मांय उपन्यासकार राजस्थानी भासा ने अेकरूपता देणै रो प्रयास कर्यो है। हालांकि कई सब्द ईसा भी है जिका बीकानेरी ठेठ मारवाड़ी सब्द लागै। पण बियां रो अर्थ घटना ने पढ़ते ही समझ आ जावै। यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ राजस्थानी भासा रा अेक ईसा चंद्रमा है जिका रै सब्दां रो उजास आखै भारत में फैल्योड़ो है। ईयां रो लिख्योड़ो उपन्यास, उपन्यास विधाओ री सागै तत्वां मे खरो उतरै, कथावस्तु, पात्र, चरित्र-चित्रण, देशकाल अर वातावरण, संवाद, उद्देश्य, भाव, शीर्षक सौई कुछ ई उपन्यास में सांतरो रूप लियोड़ो है। आत्मकथात्मक शैली रो ओ उपन्यास पढण सारू तो है ही पर आपां नै शिक्षा देणै रो भी काम करै। सामाजिक कुरीतियां ने दूर करणै रो काम भी करै। यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ ई उपन्यास ने लिख’र राजस्थानी भासा माथै उपकार कर्यो है।

यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ आपरै आखै जीवण मांय सादगी अर ईमानदारी सूं रचनाकर्म कर्यो अर बीकानेर रै सागै-सागै भारत रो भी मान बधायो।