हस्तक्षेप,
– हरीश बी. शर्मा
पाकिस्तान में लोकतंत्र खतरे में है। अफगानिस्तान में तो लोकतंत्र बचा ही नहीं है। श्रीलंका के राजनीतिक हालात भी बिगड़े हुए हैं। दुनिया को कोरोना देने वाला चीन इन दिनों खुद की क्वारंटाइन हो चुका है। लेकिन भारत बोल रहा है। बात कर रहा है। कभी कहीं से खबर आती है कि रूस और यूक्रेन विवाद का हल भी भारत से निकलेगा तो कभी यह भी खबर आती है कि राजनीतिक और आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका और अफगानिस्तान में भारत मदद भेज रहा है। यह सामान्य बात नहीं है। इतिहास में देखें कि हम कभी इतने भी शक्तिशाली रहे क्या। भले ही हम महाशक्ति बनने की दिशा में नहीं हैं, लेकिन आजादी के इस अमृत महोत्सव के दौरान इन स्थितियों में आ जाना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

इससे भी महत्वपूर्ण है कि यह हमारे यहां आजादी बहाल है। हम कह सकते हैं। लिख सकते हैं। आलोचना ही नहीं चाहें तो बुराई भी कर सकते हैं। इसके लिए भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ नहीं की जाए, लेकिन उस संकल्पना पर तो बात होनी ही चाहिए जिसके लिए हर नागरिक जिम्मेदार है और जिम्मेदारी से अपनी भूमिका निभा रहा है। जाहिराना तौर पर यह सरकार की वजह से ही संभव हुआ है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन अगर महाशक्ति होता तो वह अभी तक कोविड से पिंड छुड़ा चुका होता। भारत में मास्क की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। बूस्टर डोज के बाद भी एक और डोज देने की तैयारी है। चीन के सारे राज्य लॉकडाउन से जूझ रहे हैं। फिर भी अगर हमें भारत के प्रबंधन में सूराख दिखते हैं। मीन-मेख नजर आती है तो मान लीजिये कि हम पूर्वाग्रहों से लबरेज हैं। इतनी बायस्डनेस क्या काम की। कुछ दूर धारा के साथ चलकर भी देखना चाहिए।

एक विद्वान ने कहा है कि अगर आपको इस बात का घमंड हो जाए तो अपने आगे वालों को देखिये। अगर हताशा हो जाए तो अपने पीछे देखिये। एक पूरा वर्ग जो वस्तुत: परेशान तो नरेंद्र मोदी से है, लेकिन दिखावा ऐसे कर रहा है कि व्यवस्था से नाराज है। इस तरह हताशा का प्रकटीकरण कर रहा है कि देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है। उन्हें एक बार अफगानिस्तान, पाकिस्तान और श्रीलंका के हालात समझने की कोशिश करनी चाहिए।

कौनसी बड़ी बात है कि अगर इस देश के किसी प्रधानमंत्री के साथ भी इमरान खान जैसे हालात पेश आते। आए भी हैं। लेकिन फिर जनता ने सबक लिया और केंद्र में स्थिर सरकार दी। हमारे देश में भी खिचड़ी सरकारों का इतिहास रहा है, लेकिन पाकिस्तान के हालात तो कुछ और ही संकेत कर रहे हैँ। श्रीलंका के राजनीतिक हालात भी संभाले नहीं संभल रहे हैं। फिर भी हमें अपने अंदर कसर नजर आ रही है। कोई तो ऐसा काम होगा, जो अच्छा होगा। चलिये माना कि अच्छा नहीं होगा, लेकिन आप जो कर रहे हैं वह अच्छा है? कहीं बेगार तो नहीं कर रहे हैं। यह बेगार किसी भारतीय राजनीति में सक्रिय नेता या पार्टी की कर रहे हैं तो फिर भी सहानुभूति हो सकती है, लेकिन विदेशियों की जय-जय करते हुए बरामद होने वालों के लिए जरा भी सहानुभूति नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोग हर हाल में देशद्रोही ही हैं। अगर किसी को लगता है कि देशभक्त होने का अर्थ नरेंद्र मोदी या भाजपा वादी हो जाना है तो मत मानें खुद को देशभक्त, लेकिन नागरिक तो मानें। लोकतंत्र तो मानें। हमेशा हम ही समझदार नहीं हो सकते और हमेशा सारे के सारे बेवकूफ नहीं हो सकते। कुछ उदार बनें। यह देश हमारा है। कहीं ऐसा न हो कि कल जब आपको देश के लिए कुछ करने का मौका मिले तो आप ही के हाथों किये गए नुकसान की सबसे पहले क्षतिपूर्ति करनी पड़े।

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