कोटा।   पुलिस की लापरवाही बीटी गैंग की ताकत बन चुकी है। आपराधिक मामलों में पकड़े जाने वाले कोचिंग छात्रों को पुलिस सीधे तौर पर नाबालिग मानकर किशोर न्यायालय में पेश कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। मामला गंभीर होता है तो गैंग के गुर्गे फर्जी अंकतालिका पेश कर छात्रों को छुड़ाने की कोशिश में जुट जाते हैं। जबकि इनकी उम्र जानने के लिए कभी भी उनका मेडिकल टेस्ट नहीं कराया जाता।पांच साल पहले बिहार माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से बारहवीं कक्षा पास करने के बाद मंजेश कोचिंग करने  कोटा आया था।  कोचिंग में प्रवेश लेते समय उसकी उम्र 16 साल थी। दो साल तक तो उसने कोचिंग में पढ़ाई की, लेकिन बीटी ग्रुप का मुखिया बनने के बाद उसने लूटपाट और वसूली शुरू कर दी। इन तीन सालों में उसके खिलाफ मुकदमों की संख्या तो बढ़ती गई, लेकिन पुलिस के रिकॉर्ड में उसकी उम्र 16 साल ही बनी रही। पुलिस ने भी कभी उसकी उम्र जानने की कोशिश तक नहीं की। यह तो महज बानगी भर है। अपराध की राह पर कदम रख चुके कोचिंग छात्रों की असली उम्र पता करने में पुलिस ने हर बार चूक की है। जिसे अब बीटी ग्रुप ने अपनी ताकत बना लिया है।

नहीं होती उम्र की जांच 

पुलिस के एक आला अफसर के अनुसार  जवाहर नगर, महावीर नगर और विज्ञान नगर  थाना क्षेत्रों में कोचिंग के छात्रों के खिलाफ आए दिन मारपीट, झगड़े व  छीना झपटी के मामले सामने आते हैं, लेकिन पुलिस पृथम दृष्टया छात्रों को नाबालिग करार दे या तो भगा देती है या फिर किशोर न्यायालय में पेश कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। कभी मामला ऊंची पहुंच या सिफारिश का होता है तो बीटी ग्रुप के सदस्य फर्जी अंकतालिका तक पेश कर देते हैं। जबकि वारदातों में शामिल लड़के हट्टे-कट्टे नौजवान होते हैं। जिन्हें देखकर कोई भी 20-22 साल से कम नहीं बताएगा, लेकिन सब देखने के बावजूद पुलिस कभी भी इन लड़कों की उम्र पता करने के लिए मेडिकल टेस्ट नहीं कराती।
 पुलिस ने जताई मजबूरी 
एसपी कोटा शहर सवाई सिंह गोदारा कहते हैं कि नाबालिगों के पकड़े जाने पर उनके उम्र संबंधी दस्तावेज नहीं होने पर ही मेडिकल कराया जाता है। हाईकोर्ट के आदेशानुसार यदि नाबालिग के पास कक्षा दसवीं की अंकतालिका है तो मेडिकल की जगह वहीं मान्य होगी। अधिकतर मामलों में दस्तावेज होने पर पुलिस  मेडिकल नहीं कराती। प्रिंस हत्याकांड मामले में  दोनों ग्रुपों से जुड़े अधिकतर छात्रों की पहचान हो चुकी है। इनकी तलाश कर उन्हें दस्तयाब करने की कार्यवाही की जा रही है।
कहां से आती हैं महंगी गाड़ियां
यहां कोचिंग छात्रों में से अधिकतर के पास महंगी बाइक व चौपहिया वाहन हैं। इनके बारे में उनके परिजनों को भनक तक नहीं है। छात्र जब उन गाडि़यों में घूमते हुए मिलते हैं तो पूछताछ करने पर  परिजनों को अपने मित्र की गाड़ी होना बताकर अंधेरे में रखते हैं। प्रिंस हत्याकांड मामले में भी कुछ संदिग्ध छात्रों के पास जो वाहन मिले हैं, उनकी परिजनों को जानकारी नहीं है।