• देश में बोतलबंद पानी का व्यापार काफी फल-फूल रहा है। पानी को फिल्टर करने में काफी प्रतिशत में पानी व्यर्थ चला जाता है और इसका कोई उपयोग नहीं हो पाता है।

    नई दिल्ली। देश में पानी के हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि अगर हम इसी तरह पानी खर्च करते रहे और पानी का मोल समझना शुरू नहीं किया तो हो सकता है कि हमें 2050 तक पानी विदेशों से खरीदना पड़े। अगर ऐसा हुआ तो पेट्रोल के बाद सबसे ज्यादा मूल्य हमें पानी के लिए ही चुकाना पड़ेगा।

    दिन प्रतिदिन गिर रही है पानी की उपलब्धता

    देश में आजादी के समय भूमिगत जल की उपलब्ध प्रति व्यक्ति 14,180 लीटर थी, जो 2001 एक आते—आते केवल 5,120 लीटर प्रति व्यक्ति रह गई। एक अनुमान के मुताबिक 2025 तक हर व्यक्ति के लिए प्रति दिन के हिसाब से 1951 की तुलना में केवल 25 फीसदी भूमिगत जल ही शेष बचेगा। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार साल 2050 तक यह उपलब्धता घटकर केवल 22 फीसदी रह जाएगी। इसका मतलब यह होगा कि 2050 में प्रति व्यक्ति पानी का औसत केवल 3120 लीटर होगा।

    विकास के नाम पर पानी का अंधाधुंध दोहन

    देश में विकास के नाम पर पानी का अंधाधुंध दोहन किया जाता है। इस कारण कई क्षेत्रों को डार्क जोन घोषित करना पड़ा। इन क्षेत्रों में पानी खतरनाक स्तर से नीचे जा चुका है। कई स्थानों जमीन में पानी ही नहीं बचा, वहां जमीन केवल बंजर है।

    बोतलबंद पानी ने बढ़ाई समस्या

    देश में बोतलबंद पानी का व्यापार काफी फल-फूल रहा है। पानी को फिल्टर करने में काफी प्रतिशत में पानी व्यर्थ चला जाता है और इसका कोई उपयोग नहीं हो पाता है। ऐसे में लगातार घटते भूमिजल से मजबूरन स्वच्छ व साफ पानी पीने के लिए बोतल बंद पानी या आरओ प्लांट का पानी खरीदना पड़ रहा है।

    12 राज्य सूखे की चपेट में

    आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत के 29 में से 12 राज्य सूखे की चपेट में है। सूखे की मार झेल रहे इन राज्यों में महिलाएं और बच्चे कोसों दूर से पानी लाने को विवश हैं। किसान फसलों की सिचाईं करने में असमर्थ हैं और फसल खराब होने से आत्महत्याएं कर रह हैं।

    कटते पेड़ों ने बढ़ाया संकट

    देश में तेजी से कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं। विकास के नाम पर हरियाली व पेड़ों को काटा जा रहा है, जो पेड़ बरसाती पानी को रोक कर भूजल स्तर बढ़ाने में सहायक होते थे, उनकी जगह सीमेंट ने ली। इसलिए बारिश में जो पानी बरसता भी है वो व्यर्थ चला जाता है।