नई दिल्ली। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार जारी गिरावट से खाड़ी देशों में काम कर रहे भारतीयों के रोजगार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसका बड़ा नुकसान सऊदी अरब एवं अन्य तेल उत्पादक देशों में काम करने वाले प्रवासी भारतीय मजदूरों को उठाना पड़ सकता है, क्योंकि कच्चे तेल की घटती कीमतों के चलते ओपेक देश अपनी अन्तरराष्ट्रीय संपत्ति को बेचने को मजबूर हो रहे हैं।

वे तेल उत्पादन घटाने और अन्य उद्यम में गतिविधियां कम करने की तैयारी कर रहे हैं। इससे इन उद्यमों में रोजगार कर रहे अप्रवासी भारतीयों के रोजगार छिन सकता है। अकेले सऊदी अरब में 30 लाख भारतीय विभिन्न उद्योगों में कार्यरत हैं। एक अनुमान के मुताबिक ओपेक देश 240 अरब डॉलर यानी करीब 16,23,992 करोड़ रुपए की संपत्ति को बेच कर अपनी स्थिति को सुधारने की कोशिश मेें जुटे हैं।

कच्चे तेल के कारोबार की वजह से ही सऊदी अरब और खाड़ी देशों में मध्य पूर्व, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के लोग रोजगार के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। सऊदी अरब में प्रवासी मजदूरों की संख्या वर्ष 2000 की तुलना में वर्ष 2015 तक दोगुनी हो चुकी है। 2000 में सऊदी अरब में 53 लाख लोग बाहरी थे, लेकिन 2015 में यह आंकड़ा एक करोड़, 25 लाख के करीब पहुंच चुका है। सऊदी अरब की कुल आबादी में प्रवासी लोगों की संख्या 30 प्रतिशत से ज्यादा है। सऊदी अरब में भारत के लगभग 30 लाख लोग रहते हैं। तेल की गिरावट के कारण इन भारतीय लोगों के नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है।

260 बिलियन डॉलर के नुकसान का अनुमान

जेपी मार्गन की कुछ समय पहले जारी रिपोर्ट का आकलन है कि तेल उत्पादक देश अपने फॉरेन रिजर्व एक्सचेंज और वेल्थ फंड आदि में कमी करके तेल बिक्री में होने वाले नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर सकते हैं। यह देश अपने सरकारी बॉन्ड्स को बेचकर 20 बिलियन डॉलर की राशि जुटा सकते हैं। कच्चे तेल की लगातार गिरती कीमतों के कारण 260 बिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

निवेश होगा प्रभावित

मॉर्गन स्टेनली के अनुमान के मुताबिक तेल के गिरते बाजार के चलतें अमरीका समेत दुनिया के अन्य महत्वपूर्ण देशों के निवेशकों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है और जितने अधिक समय तक तेल की कीमते गिरती रहेगी, उतना ही निवेशक इन देशों से दूरी बनाकर रहेंगे।

मंदी की आहट

ओपेक देशों की ज्यादातर संपत्ति स्टाक्स और बॉन्ड्स के तौर पर ही है। 110 बिलियन डॅालर की अमेरिकी ट्रेजरीज और 75 बिलियन डॅालर के इक्विटी निवेश को भी यह देश बेच कर पेसा जुटा सकते हैं। इसके बाद भी जरूरत पडऩे पर अन्य संसाधनों से भी पैसा जुटाने में पीछे नहीं हटेंगे।

तेल के दामों में भारी गिरावट से पूरी दुनिया में मंदी का खतरा उत्पन्न होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। सऊदी अरब की करंसी रियाल और रूस की करंसी रूबल में डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड गिरावट दर्ज हो रही है। तेल की कीमतों में गिरावट के चलते इन देशों के स्टॉक मार्केट भी निचले स्तर पर गोता लगा रहे हैं।