हाड़ौती अंचल रा लूंठा कहाणीकार गिरधारीलाल मालव रो राजस्थानी साहित में महताऊ योगदान है। आप गीत-गजल भी लिखता। 24 अक्टूबर 1937 में जलम्यां मालवजी 4 सितंबर 2016 में परलोक सिधारिया। 

बडी ज्याग

             नांव तो भूरा जी छो पण रंग सांवळो छो। छोटो भाई लालो गोरो गट्ट छो। सौ बीघा जमीं मं भूरा जी बड़ा बेटा संकरा ई लारां लेर दो हाळी अर दो ग्वाळां सूं नंदी कराड़ै का गांव रूघनाथपरा मं आठ बैलां की आछी भरपूर खेती करै छा। गायां भैस्यां का टाणा सूं दो मण दूध नजीक का कसबा मं बस स्टेण्ड का होटलां पै संकरो मोटर साइकल सूं जार नपायावै छो। छोटो भाई लालो घणो लाड को छो जे गोरा डील ईं सरस्यूं का तेल मं गळगचां रखाण तो अर अणनाप्या दूध की डकारां ले-लेर डंड पेलबू करै छो।

              काचा पण ऊंचा सराड़ा का घेरा मं दो बीघा का आंगणा की दहलाण ज्याग घणी अदबदार छी।

              गांव का लोग ईं ज्याग सूं बड़ी ज्याग क्है छा। भूरा जी संकरा ईं ज्यात का सम्मेलण मं परणा’र लाया छा। भूरा जी की बू नै लाडी को मूंडो देख्यो। फेर भूरा जी की आडी मूंडो मरोड़’र बोली- या आणी कीं थानै पदम देस की पदमणी। गत की न्ह भैंत की। सतरा बार बूझो जद जार ज्वाब दे छै।

              घरहाळी की बात सुणर भूराजी गंगा-जमनी मूंछ्या कै पाछै सूं मुळक’र बोल्या- बीण लै। बीण लै। टापरी न्ह बंटै जीं कै पहली। वां कोयलां का तीनूं ढ़ीमड़ा कै दस-दस बीघा पाती आती देख’र बेटी का जीं बाप कै बी बारणै जाऊंगो, सतरा सुणावैगो। भैंस्या का रंग की होड़ करता हालतो भैंस्या का गॅभारा मं नगै न्ह आवै हालतो। पण तू बी थोड़ी धीरप रखाण’र जणती। असी कांई की धाका-धीकी लागरी छी। जे तोब का सा गोळा फांक द्या।

              भूरा जी की बात सुण’र घरहाळी तरणागी। अबार बगत दूसरी छी। लाडा-लाडी ईं घर मं लेबा लेखै गांव की बायरां सूं ज्याग भरगी छी। न्ह तो भूरा जी ईं अेक की सात सुणाती। भूरा जी का घर मं अब तो सालूं साल चहचका-बहचका होबा लागग्या छा। दो साल मं ईं संकरा की कोराणी नै दो नील मण्यां गळक-गळक उगल दी छी। भूरा जी तीनूं छोटा बेटां का गरण गटेरां मं उळझ ग्या छा। लोगां नै ओळमो द्यो- थांबी भूरा जी मोट्यार भाई नै तो न्ह परणावो अर यो कांई करबा लागग्या?

              भूरा जी बोल्या- म्हारा भाई कै अस्यां की लाडी लाऊंगो की काळी कबरणी। लाडी लेर जद आऊंगो अर गांव की बायरां जद मूंडो देखबा आवैगी तो देखती ई रै ज्यागी। अेक दन भूरा जी स्याम की घर नै आया तो संकरो लाला ई बुलाबा खनायो। जा काका जी ई बला ला।

       लालो आर छानमून बैठग्यो। भूरा जी बना भूमक्या कै क्हैबा लाग्या- आज म्हूं गोलाणै ग्यो छो छोरी देखबा। खातो-पीतो टापरो छै। छोरी दसवीं तांई पढ़ी छै गांव का इस्कूल मं। गोरी गट्ट असी कै आपणा गांव मं असी कोराणी कोई कै बी कोई न्ह। थं सूं बी बीस छै। तू क्हां न क्हां देखल्यो होगो। जे क्हतांई छोरी का बाप कै आसै आगी। वै तो दस्तूर का दो टका बी देबा पै ई त्यार छा पण म्हनै क्ह दी- देख ले छां हाल। दो दन आगा ई आवै छै। भाया कै बात जमैगी अर यां देखबा आबो चावैगो तो म्हूं ऊंनै खना द्यूंगो। आप तरकीब सूं दखा दीज्यो। न्ह तो सरम्या मरैगी हुस्यार बच्ची छै। जे तू होया जे। उस्यां म्हूं बारा म्हीना रूकबा की क्हर आयो छूं।

       उमंग सूं सुणता लाला को उंणग्यारो मोळो पड़तो देख’र भूरा जी लाला की आडी झाक्या – फेर मुळकतां ईं लाला सूं बूझी- बारा म्हीना रूकबा की बात को कळेस आयो कीं? फेर भूरा जी उंणग्यारा पै गंभीर भाव समेट’र बोल्या- कळेस अस्यां मत अणावै कै म्हूं थारै तांई असी छटा सूं परणाबो चाऊं छूं कै सारो गांव ई न्ह पूरा परगणा की बरादरी बरसां तांई याद रखाणै। लोग या क्है कै अस्यो होणो चाइजे ब्याव। तू आधी को हकदार छै अर बाप-दादा को नांव बी तो आरा-ओसरां मं ऊंचा आरण-कारण करबा सूं ई तो आज तांई बरादरी मं जीवतो छै। कांई देव पुरस छा? थंनै तो वांकी सूरत बी न्ह देखी। या क्हर भूरा जी नै नतरती बाफण्यां आंगळी सूं पूंछ’र दूरै छटका दी।

       दादा भाई आप रो र्या छो? लाला नै भूरा जी की आडी झांकर बूझी।

       हां रै लाला! भाई जी की मरती टैम की कोई बात याद आगी छी।

       असी कसी बात छै दादा भाई? लाला नै जोर द्यो। जे भाई जी मरती बेरां क्हग्या छा।

       ऊं साल ई परण्यो छो म्हूं। म्हारी माई तो पहल्यां ई बैकुण्ठां बासी होगी छी। थारी मां कै तांई आयां तीन साल होग्या छा। बरखा को नतार आतां-आतां काचा झूंपड़ा की पोल्यां बूजरी छी। वा कांई जाणै छी कै ईं पोल मं काळो बैठ्यो छै। आंगळी ईं मंूडा मं पकड्य़ा ईं पोल बारै आग्यो। भाई जी मां की बाऽरां सुण भाग्या आया अर हीमत अणार काळो पूंछड़ो पकड़’र फांक द्यो। पण काळा नै भाईजी की पींडी आण पकड़ी।

       म्हूं माळ मं खेतां की बाह देखबा ग्यो छो। गांव भेळो होग्यो। गांव का लोगां नै अेक मनख दुराण्यो। लोगां नै समझा द्यो छो। भूरा सूं याई क्ही जे कै दा भूरा बेगो चाल कोई लड़ाई-झगड़ो होग्यो दीखै। पांच आदमी थंई बलार्या छै। म्हूं भाग्यो ई आयो तो ज्याग कै बारै का चोक मं दो ल्हासां पसरी मली। लोग सनेसी बांधतां ई भाग्या अर म्हूं न्ह समझूं जींकै पहली ई च्यार मोट्यारां नै म्हारी बांबट्यां पकड़ ली। सारी बात समझ मं आगी। थारी भाभी बेहोस पड़ी छी। दो बायरां ऊं ई समाळ री छी। गांव की स्याणी बड़ी बायरां वांका बखाण करती ऊंकारा कर री छी।

       म्हीं दो दन पहली की बात याद आगी छी। जद वां दोनी जणां नै म्हारै तांई बलार थंई म्हां दोनी जणा की गोदी मं बठाण’र क्ही छी- अब थां दोनी जणा ई छो ईं का माई-बाप। ईं सूं मत पांतरज्यो। भगवान थांकै आणंद कर देगो।

       म्हं नै बछक’र बैठ्यां होतां अर थारै तांई थारी भाभी की गोदी मं बठाणतां दोनी सूं बूझी – थां दोनी जणा कै मन मं कांई आरी छै जे अस्यां बावळी-बावळी बातां कर र्या छो।

       भाया ये बातां बावळी कोई न्ह। जमादारी की बातां छै। थां अबार न्ह समझ र्या पण दो-च्यार दन मं सब समझ मं आज्यागी। म्हारी सुण लै लाला नै बाप बण’र पाळजे अर बेटो गणर मानजे।

       पण दादा भाई वां दोनी जणा नै आगली बात कस्यां सूझ्याई?

       जदी तो म्हूं थंसूं अबार दादा जी जीजी कै लेखै देव पुरस क्हर नमट्यो छूं। वां नै कदीं कोई को बरो न्ह कर्यो। कर्यो कांई करबा की सोची बी कोई न्ह। परोपकारी अर बचन का सांचा छा। वां नै क्यूं न्ह दीखैगी आगली पाछली?

       खैर अब तू गांव गरू जी सूं मंदर का डोबा को अर नीव भराई को म्हूरत बूझ्या। थारा फेरा अर भगवान संकर माता पारबती का फेरा अेक ई म्हूरत मं देणा छै। काम अतनी दमा-दमी सूं चालै कै आरण-कारण कै अेक म्हीना पहली रंग-रोगन सूं तगात मंदर नमट ज्या। फेर भगवान अर थारा ब्याव का सराजाम को ई काम रै ज्या म्हारै।

       काती सरै मन्दर की छत ई बाकी रै गी छी। छत का ठेकादार सूं बलार क्ही- ईं म्हीना मं छत न्ह पड़ी तो म्हारै दूसरो त्यार छै। हाल तो छत कै पाछै चूना की ल्हसाई, फेर रंग-रोगन करता-करतां म्हारै ब्याव को काम आज्यागो। थारै कांई छै? म्हारो भाई क्वांरो रोतो फरै तो फरै। अर महादेव जी को बी काम छै। नाराज होग्या छै नै तो वां का डील की सारी भसमी थपै न्ह खरा दे। जीं सूं बचाबा मं  ईं तंत छै। म्हारी मान न्ह तो रोड़ पै आज्यागो।

       ठेकादार का कांटा पाती मलार भूरा जी गोलाणै चली ग्या। ब्याई जी माळ मं जाबा ई हाळा छा। भूरा जी आता देख’र बोल्या- पधारो-पधारो। लेरै छोरा घोड़ी ई ठाण कै बांध’र चणा पटक दै।

       अजी मारा पधारो कांई? मंदर की छत को काम सरू न्हो होयो जे ठेकादार का दोनी काना का कुलाबा मलार आयो छूं। भूरा जी ब्याई जी सूं क्हर्या छा। धाका-धीकी न्ह करां तो टैम पै काम थोड़ो ई नमटावै छै ठेकदार। यांकी तो आदतां पडऱी छै। ब्याई जी बरो न्ह मानो तो अेक अरज करूं? बेटी का बाप की नरमळता मंूडा मं सूं जीभ पै रपट’र होटां बारै बखरगी।

       अरै आप अस्यां म्हंसूं अरज-बरज मत करो। आप तो म्हंसूं उस्यां बी बड़ा छो। म्हनै सरम्या मत मारो। आपकै सामै म्हूं कांई छूं? पगतळी की धूळ।

       ब्याई जी ओर बी सट्टार बोल्या- अरै या कांई फरमार्या छो आप?

       भूरा जी गम्भीर होर बोल्या- देखो पहली म्हारी सुण ल्यो। आप तो उस्यां ईं म्हंसूं सब तरै सूं बड़ा छो। न्ह मानो तो ओरां सूं बूझ ल्यो। पण अब तो आप ओर चोगणा बड़ा होग्या। भूरा जी सामै झांकर बोल्या।

       अजी पण कस्यां? ब्याई सगोस में सांकड़ो होग्यो।

       अस्यां ! आपनै म्हांई बेटी देबा को बच्यार कर्यो कै न्ह कर्यो?

       बच्यार कांई दो टका को लेण-देण ई न्ह होयो न्ह तो मन में तो आप ई बेटी दे चुक्या।

       बैस, बैस अस्यां ई क्हर्यो छूं। आप बेटी देर ओर बड़ा होग्या।

       कस्यां? ब्याई जी भावांजोळ मं पड़ता बोल्या।

       म्हारो हाथ मांगबा की हालत मं आपका हाथ कै नीचै हथेळी चोड़ी कर फैलग्यो अर आपका हाथ की आंगळ्यां का टपेर्या देबा की मुदरा मं म्हारी हथेळी पै खुलग्या। देबा हाळो बड़ो होवै छै। म्हनै आपकी बेटी को दान मांग्यो। मांगबा हाळो कतनो बी बड़ो क्यूं नै होवो। मांगतां ऊ छोटो हो जावै छै।

       ब्याई नरमळता सूं हाथ जोड़’र बोल्यो – चोखा मारा म्हां आपनै बड़ा मान ल्या तो बड़ा होग्या। पण यो बी आपको बड़पण ई तो छै।

       खैर जस्यां बी आप समझो पण म्हारा मन मं अेक समस्या चालरी छै। यूं देखो तो आपकै लेखै घणी बड़ी कोई न्ह अर समाधान बी आप ई काढ़ैगा। ई लेखै ई भाग’र काती सरै का सारा काम छोड़’र आयो छूं मारा भूरा जी नै नरमळ भाव दरसायो।

       अरै न्ह-न्ह अतनी नरमळता मत फरमावो। जे बी समस्या होगी मल बैठ’र सूंळी पटकैगां।

       समस्या या छै मारा कै दादा जी मरती बेरां क्हग्या छा कै भूरा लालो परणै जीं कै पहली म्हारा महादेव को देवरो बणा दीजे। थारै अबार बी कोई कमी कोई न्ह अर थोड़ी घणी छै बी तो माता अन्नपूरणा समाळ लेगी।

       ईं समस्या की मारी ई म्हनै पाछला ऊंदाळा मं आपसूं गाढ़ी-पाकी न्ह करी छी। पण अब तो आपकै बी अखीर आगी। आपनै बी भोळा मं क्हां तांई रखाणू अर म्हारै बी अखीर ई समझो। जे म्हनै सोची आप जस्या मनख अर बाळकां की असी जोड़ी को मलाण घणो कठण छै।

       अब म्हूं आपसूं हाथ जोड़’र या अरज करूं छूं पण म्हूं जाणूं छूं आरी भरबा मं आप कै बी घणो पाण आवैगो अर आपका सगा-सगपणी बी बिरोध कर सकै छै पण मन की बात तो क्हणी ई पड़ैगी। बात या छै कै म्हूं बी दोनी बाळकां का गरण-गटेरा म्हादेव-गोरां पारबती माता का फेरां की लारां ई होवै। अर ईं बात ईं साधबा लेखै आपनै सारो परवार अर सगा-सगपण का लोग वां ई लेर आणी पड़ैगो।

       भूरा जी की बात सुण’र ब्याई जी नमून खींचग्या। घणी देर मं जार धीरां सेक बोल्या – समस्या तो दारी नरी बड़ी लागै छै। पण सुळझावां तो घणी बड़ी बी कोई न्ह।

       भूरा जी समझ ग्या, समाधान कढैगो। न्ह कढ़णो होतो तो ब्याई जी स्याफ-स्याफ नट जाता। क्ह देता- देखो मारा वां आबा को तो नांव बी मत ल्यो। म्हारी बी ज्यात समाज मं इज्जत छै। लोग कांई क्हैगा? पण गैंठ ढीली पडग़ी। अब तो खोलणी ई छै। खूटै ई गी।

       भूरा जी नै ब्याई का मन की बात करी- हां मारा कुटम-कबीला की अर सगपण हाळां की बी राखणी पड़ै छै। यो काम अस्यो ई छै। सादी-ब्याव, आरा ओसर अर रसोई रसाण मं सब का वार असी बगत मं ई लागै छै। कै तो कोई रूस ज्या, कै सारा भेळाई न्ह होवै। भूरा जी ब्याई जी का मन पै मंूठ फांकर्या छा। आज्या तान तो घर की बायरां ई रूस र थेर-बेर की होज्या। भूरा जी नै या क्हर ब्याई जी ईं याद अणाई कै घर की बायरां नै बस मं करो पहली। ओर तो सब लार लग्या छै।

       ब्याई जी सगपण मटारबो तो चावै ई न्ह छा। वांई भूरा जी की बात सूं मन मं उजाळो सोक आंऽऽठ्यो।

       भूरा जी फेर सरू होया- असल बात ब्याई सा हाल म्हनै क्हां बताई। समस्या ई गणाई। अब बताऊं छूं असली बात वा या बात छै कै भाई जीनै ऊं दन ई क्ही छी जीं दन लालो म्हारी गोदी मं बठाण्यो छो। भूरा म्हारी बात हळकी मत समझजे। जद तांई तू म्हारी मनसा पूरी न्ह करैगो म्हां दोनी जणा का जीव यां आस-पास ई फरैगां। भोळानाथ की पधरावणी होज्यागी जद म्हांकी मोकस मान। अर थारा माथा सूं म्हांको करज बी उतर ज्यागो। यां दोनी बाळकां को भविस्य बी ऊजळो छै। यो लालो अर ईं की लाडी भोळानाथ की करपा सूं परवार कै लेखै अणूतो करैगा। म्हां समेत सारा परवार कै तांई देव जूण मं ले जावैगा। खुद तो जावैगा ई जावैगा। या बात म्हूं क्हबो न्ह चावै छो यो म्हारा बड़ा बूढ़ां को मामलो छै पण खुलासा करणी पड़्यो ब्याई साब।

       बायरां तो आपका घर की ई छै मान जावैगी। आपको परवार वां आबा कै लेखै त्यार होयो देख सब लारा आजावैगा। लगन, बंद्याक, तेल, बासण, फेरा सब वां ई कर लेगां। पांच दन आप वां ई बराजज्यो। यां सूं कोरी लाडी लाणी छै ओर सब वां ई होज्यागा। आपकी सेवा करबा को ओसर मलैगो तो म्हां बी धन्न हो जावैगां।

       भूरा जी नै घरनै आर वै सारी बातां घर हाळां ईं हांस-हांस सुणाई जे ब्याई जी सूं होई छी। लाला का मन मं बच्यार आयो- दादा भाई जी की आडी सूं तो कोई रोक छै ई न्ह तो आपण बी होबा हाळी पतनी को रूपाळो उणग्यारो देख बा को सुख क्यूं छोड़ां? रूघनाथपरा मं अेक परवार जाटां को बी छो। वीरसिंह ऊंको खास भायलो गोलाणै ई परण्यो छो। लालो वीरसिंह कै अड़वां बैठ’र स्यांणपत दरसातो बोल्यो- दा’भाई गोलाणा को परोगराम कदेक बणैगो? भाभी सा ई पी’र नै ग्यां नरा दन होग्या। कांन्कांई खटपट तो न्ह चालरी नै?

       वीरसिंह समझग्यो- भाइला कै मंगेतड़ को उणग्यारो देखबा की ताण’र जंचरी छै। वीरसिंह नै उतना ई भोळापण सूं ज्वाब द्यो- उस्यां तू चालै तो आज ई होयावां। स्याम की पाछा आजावैगा। ऊंनै आणो होगो तो लेता आवैगां न्ह तो नुई लाडी तो नगै मं काढय़ावैगां। कुण जाणै कसीक छै? काळी कबरणी होगी तो आपण तो न्ह परणां देख।

       दोनी भायलां मं दो-तीन साल की ल्होड़ बड़ाई छी। दोनी अेक-दूजा की चाल बाजी समझ’र जोर सूं हांस्या। फेर वीरसिंह बोल्यो- तो फेर सुभ काम मं देरी क्यूं?

       वीरसिंह की रोयल अेन फील्ड घग्घा गी। दोनी भायला कै गेला मं सल्ला होई वीरसिंह बोल्यो – पहली आपण म्हारै सासरै चालैगां। वां थारी भोजाई थां दोनी कै मलबा को सतूनो बठाण देगी। फेर वा क्हैगी ज्यां, अर जस्यां थां मल लीज्यो। फेर म्हारै सासरै होता स्याम तांई आपण गांव नै आजावैगा।

       रोयल अेन फील्ड को साई लेंसर बन्द होतां, न्ह होतां वीरसिंह की बीनणी भाग’र डोढ़ी कै बारै आगी। फेर वां की अगवाणी मं हांसती मुळकती नरी देर तांई ऊभी री। वीरसिंह नै बी आंख्यां मं हांस’र क्ही – पाणी-वाणी की मनवार करो। भाई आज थांका पीहर का होबा हाळा नुवा ज्वांई पावणा बण’र आया छै। ये थांका सासरा मं थांकी बदगोयां न्ह कर दे। अर कै नुई लाडी ईं थां सूं रूसा दे।

       जाणै छां, जाणै छां। ठेठ सूं ई पाटी पढार आण्या दीखै। फेर मुळकती ई पाछी फर र क्हती कढगी। बैठक खुलरी छै बराजो। अतनै म्हूं सूचनक्या कर र पाछी आऊं छूं। वीरसिंह कै सासरै आज कोई बी न्ह छो। सारा ई दूसरै गांव कोई गोठ-ओठ मं ग्या छा। वा पगां मं चप्पल वाळ’र कांधा को डुपट्टो समाळती हेली कै बारै कढगी।

       लाला कै सासरै ऊंकी सासू हालण्यां सूं गैहूं सळ्या करवा री छी। कसन कंवर ई आती देख’र बरधी समझगी कोई गहरी बात छै। बरधी भाग’र पोळ मं आतां ईं कसन कंवर आंख्यां मं हांस’र बोली- पावणा आया छै।

       अंठी बी आवैगा कीं? यां तो भाई जी बी कोई न्ह। जीजी ईं जीजी छै।

       तू चंता मत करै। म्हूं री नै। सब समाळ ल्यूंगी। फेर जोर सूं बोली- काकी म्हां कै आज हेली मं कोई बी कोई न्ह। अर पावणा आग्या म्हूं बरधी नै ले जाऊं कीं? चाय-पाणी प्वाबा मं म्हारै सायरो लगा देगी।

       ले जावो बाई सा। यां बी या ठाली ई तो बैठी छै। फेर बरधी सूं बोली- बरधी ये लत्ता तो चोखा पहर जा। मनमान सळ पडऱ्या छै सलवार कमीज कै। काणा के दन का पहर्या छै।

       क्हाल ई तो पहर्या छै।

       न्ह पण थारै पहरबा मं ई न्ह होवै तो भाई कांई पहरै। अब पावणा छै तो काणा कुण छै? काणा क्हां का छै? अर फेर अब तो ब्याव हाळी ऊमर छै। पहर ओड’र चोखी रै बू कर। फेर मन मं बोली- अबार दो दन पहली थारा जेठ जी होर ग्या छै। कांई तोल अब कै खुद लाडा जी ई न्ह आग्या होवै। फेर भावना मं बहती  का मूंडा सूं उघाडिय़ां सबद कढग्या- ओऽऽऽ गुड़ होगो तो चींटा तो फरैगा ई।

       हालण बछक’र बोली- चींटा फरैगा? क्हां छै चींटा? क्हर अगल-बगल झांकी।

       हेली मं आर कसन कंवर बोली – बरधी पहली आपण खाबा को सारो सामान अर पाणी को जग ला’र बैठक मं धर द्यां। फेर बीचा मं उठणी न्ह पड़ैगो। हेली की बैठक मं च्यांरूं मनख बैठ्या छा। वीरसिंह की आडी कसन कंवर अर बरधी को उणग्यारो छो पण लाला की आडी बरधी की पूठ छी।

       लालो उठ’र बैठक कै बारै आग्यो। बारै सूं ईं हांको पाड़’र वीरसिंह सूं बोल्यो- ल्यों चालां नै दादा भाई जी मोड़ा होर्यां छां। सब कै तांई तोल छो पण वै समझ्या कै पेसाब-वेसाब करबा जार्या होगा। जे कोई नै बी न्ह रोक्यो। पण लाला को हांको सुण’र दोनी जणा भाग’र बारै आग्या। कसन कंवर उतावळ सूं बोली- क्हां कै लेखै मोड़ा होर्या छो लाला?

       लालो बोल्यो- पाछा घरां न्ह जाणो कीं? यां रात रै’बा थोड़ा ई आया छां?

       हाल तो चोखी तणा बैठ’र बात बी न्ह होई अर थां जाबा की क्ह र्या छो।

       होगी नै। सगती की तो पूठ बी पुजावै छै जे पाछै सूं नवण करल्यो। म्हांको काम तो होग्यो। जीं काम सूं आया छा। अब जार्या छां। म्हांई आग्या बगसावो भाभी सा0।

       क्हतां-क्हतां लाला की आंख्यां मं लाल डोरा दरसबा लागग्या। लाला ईं आस छी कै आंख सूं आंख मल तांई दोनी आडी का मन को भाव आमो-सामो दीख्यावैगा। बना अेक सबद बोल्यां आंख्यां बातां करलेगी। पण ईं नै तो पूठ फेरी जे फेरी ई फेरी। उस्यां पूठ फेर्यां की खुसी परगट करबा का कोई ढावला अर हांसबा को आंठ सब गायब छै। अब आगला मनख सूं कांईं उम्मीद करां? फेर लालो उघाडिय़ा बोल्यो- मनवार तो अणबोली पूठ नै कर ई दी। अब वारणा आप लेल्यो। कसन कंवर ओळमो सुण’र घबरागी। फेर खजर बारै सूं ईं बरधी दरबड़ाई- यो कस्यो तरीको छै बरधी आया ग्या की मनवार को? कुण सूं सीख्यो? कोई मनख तो दसकोस चाल’र उमंग सूं परथम बार मलबा आवै अर आपण चाय-पाणी की मनवार बी न्ह करां। या सिक्सा दसवीं तांई कस्या अध्यापक नै दी। यां कांई थारा घर का मनख छा कीं जे वांई दखाबा कै लेखै स्याणी बणबा को नाटक करणी पडऱ्यो छो।

       फेर लाला सूं बोली- थां बी जावो लाला थांकै घरां। देस मं छोर्यां को काळ न्ह पडऱ्यो। अेक हेरैगा च्यार मलैगी। म्हांकी बरधी ईं तो नरवर गढ़ सूं ढोलो आवैगो परणबा। ऊंका समचार आया छै काल्ह।

       दोनी भायला मोटर साईकल कै किक लगार जाबा पै त्यार होग्या। बरधी भाग’र आई अर मोटर साईकल कै आगै पसरगी। फेर वा उठी अर वीरसिंह का पगां कै लूमगी। कसन कंवर नै बरधी हाथ पकड़’र खींची। अर बोली- मरै ई गी कीं? तो बरधी कसन कंवर की बाथ भर’र डीडागी। यांई रोकल्यो जीजी म्हं सूं झिझक ई झिझक मं बड़ो भारी अपराध होग्यो। आप समाळ ल्यो। न्ह तो अब म्हूं मर जाऊंगी। म्हारी जीजी ईं बी कांई ज्वाब द्यूंगी? सब दुदकारा देगा।

       च्यारूं मनख पाछा बैठक मं आग्या। चाय-पाणी नास्ता सब कर्या पण मलबा की उमंग को रस पाछो न्ह बावड्यो। बरधी की आंख्यां की बाफण्ण्यां भीजी की भीजी ई री। वा दोनी पावणा की आडी जाचना भरी मनवार करती आंख्यां सूं झांकती री पण दोनी भाव ज्यूं को ज्यूं र्यो पण वा कसन कंवर की आडी आंख्यां मं गळेड़ू भर्यां झांकती तो कसन कंवर ऊंको कांधो थेप’र बसवासती। ऊं ईं साल म्हादेव गोरां पारबती का फेरां की लारां लाला-बरधी का गरण गटेरा बी होग्या।

       अेक दन भूरा जी मंदर मं भगवान संकर पै जळ चढ़ा र्या छा। लाला जी की घरहाळी को जोर को बोलारो काना मं पड़्यो। न्ह रहणो म्हनै भेळै। अस्या सूगला मनख्यां सूं तो नाळा ई भला। भेजो सड़ग्यो म्हारो। क्हां तांई भगतूं?

       लालो दब्यो-दब्यो क्हर्यो छो- बाप छै म्हारा। वांसूं नाळो होबा की कस्यां क्हूं?  कांई कारण बताऊं? तू भेळै रै’बा सूं जादा ई परेसान छै तो थीं थारा पी’र नै छोड़्याऊं।

       ऊं ई दन भूरा जी नै बड़ी ज्याग का चोड़ा आंगणा मं बैठ’र लालो, संकर अर तीनूं छोटा बेटा बी हांका पाड़-पाड़’र बलाल्या। लुगायां सारी की सारी डरपी-डरपी चड़ी-चप्प होई बैठी छी।

       सबी आग्या नै? कै कोई रै’ग्यो? भूरा जी की बू ईं अणाचूक होया कारण सूं घबरा री छी। वा बीचा-बीचा मं कांप जावै छी। कांई जणा, कांई होवैगो। सारा ई काणां क्यूं बलाया?

       सारा ई अणजाण संक्या सूं चड़ी-चप्प छा। सरणाटो तोड़’र भूरा जी अकसमचै बोल्या – आज आपण सब नाळा होवैगां। या जायदाद म्हारी मरी देही समान छै। थां भेळा मं ईं कै तांई क्हां तांई घींसैगा?

       कोई बी न्ह बोल्यो।

       लालो आधी को हकदार छै। पचास बीघा लेगो। खेतां का टूकड़ा न्ह होवैगा। भलाई दो पांच बीघा ईं कै जादा पड़ी चलीज्या। जठी यो चावै उंठी नाज का भर्या भंडार खाली करवाले हाळ्यां सूं। बैलां मं सूं चोखा छांट’र ईंका। घोड़ी चावै मोटर साईकल जे बी यो लेबो चावै ले-ले। दोनी चावै तो दोनी ले-ले। लाग्या-लूग्या हाळी यो रखाणै तो रखाण लेगो। …………….।

       सुणतां-सुणतां लालो डीडार बड़ा भाई का पगां मं पड़ग्यो। फेर उठ’र बरधी सूं बोल्यो – पडग़ी नै पांती? लै उठ थीं थारा बाप कै पुगायाऊं। अर तू अब ईं घर की आस मत करजे।

       फेर भूरा जी आपणा च्यारूं बेटां सूं बोल्या – थांबी पूछल्यो थांकी लुगायां सूं। नाळी होवै तो पांच पांत्यां पड़ैगी। दस-दस बीघा आवैगी। म्हारी पांती की दस बीघा संकर का दस बीघा कै सायरै रैगी। दूसरै दन तडक़ा सूं सारा मनख भाग-भाग’र काम करबा लागग्या।

       संकर नै आपणो काम समाळ ल्यो छो। ओर भायां सूं दूणी जमी अर दोनी जवान छोरा समेत छै मनख्यां की रात-दन की करत सूं संकर दन दूणो अर रात चोगुणो होतो जार्यो छो अर या ई बात लाला की लुगाई कै सोड़ मं सळी की नांई गडै छी। जीं मं संकर का दोनी छोरा तो ऊंनै मर्या ई भावै छा।

       दो ज्याग्यां का दो बारणा अड़वां ई छा। पाकी ज्याग को पाको बारणो अर काची ज्याग को काचो बारणो। पाको बारणो काचा सूं ऊंचो छो अर दोनी बारणा की बीचै की काची पाकी डोळ्यां उस्यां ई बारणा सूं आगै बधती अड़वां ई छी। पण काची डोळी पाकी सूं नीची ई छी। कोई बी कोई चीज वां पै बैठ’र खावै-प्ये तो खाबा हाळा का पगां ईं काची डोळी पै झुलार पाकी डोळी पै बैठ जावै छो।

       दोनी बारणा मं सूं दो लुगायां सूरज की चलकी की लारां हाथां मं बुवारा ल्यां रोज बारै आती। काचा बारणा मं सूं आबा हाळी सूगलो घाघरो लूगड़ो पहर्यां लाज पल्ला सूं चोखी ढक़ी-ढक़ी पण  पाका बारणा सूं आबा हाळी बायर ऊजळी साड़ी कांधा पै पटक्या धन को गरूर बखेरती सी उघाड़ै माथै होती। दोनी बायरां चूतर्यां का बुवारा काढ़बा लाग जाती।

       काचा बारणा सूं कढ़बा हाळी बायर को भाव लागतो कै ऊंनै तो बुवारा को यो काम नमटा’र ज्याग मं ओर बी काम करणा छै। पण साड़ी हाळी बायर बुवारो लेर बारणा कै बारै ईं लेखै आती कै ऊंनै आज ओर दनां सूं कतनी जादा संकरा का दोनी छोरां मं गाळ्यां काढ़णी छै।

       दम कर म्हली छै तियो म्हलावणां नै म्हारा नांक मं। जे तो म्हूं यांकी हरी खाऊ न्ह फळी तोडूं पण म्हारा कुर चावण्यां कर्यां बना बाटी सकावणा कै जाणै रोटी बी न्ह पचै। पाद सूं सड़्या सूगर्ला ंगोटां मं सेर-सेर धूळ भरी रै छै। चाय बी यां पटैला कै म्हारी चूंतरी पै बैठ’र प्यां बना कंठ कै नीचै न्ह उतरै। दो-दो बार बुवारो काढूं़, तडक़ै भाग फाट्यां की अर फेर ये चाय पीर पधार जावै जद। पाव-पाव धूळ अर सौ-सौ गराम पसीना को खार म्हारी चूंतरी पै न्ह खरादे ज्यां तांईं यांई जक ई न्ह पड़ै। पहली तो तीन्दू का लाम्बा तड़्याक काळा बळींडां की नाईं बळै छा पण अब तो ये कोयलां का गल्लां की नांई फैल-फैल’र चोड़ा बी होता जार्या छै। अस्या मनख्यां ई मोत बी न्ह आवै बळै? मोत की क्हो छो कदीं माथो बी न्ह भडक़ै कूंचै दावणां को। पगां मं गोडां कै पाछै पींडळ्यां पै अर मोरां पै राखोयां कै पसीना का धोळाखार का मांडण्यां मंड्यारै छै। पण न्ह तो यां सूं कोई न्हाबा की क्ह अर न्ह यांकै तांई सूझै।

       छोरां की माई अर संकरा की बू भाटो होई रै ती। कुण मूंडै लागै? अेक तो पद मं बड़ी अर दूसरकी धनवंता धणी की घरहाळी। आपण छां तांतळ्या भगतता गरीब। ऊस्यांदेखी जावै तो म्हां गरीब बी कोई न्ह पण छानो रै जेई बड़ो। ज्यूं-ज्यूं संकरा की बू छानी रैती लाला की बू का रोस कै उतनो ई पळीतो लागतो।

       उस्यां वां ऊंकी गाळ्यां सुणबा हाळा ओर बी छा। ज्यागां का बारणां सूं लेर नंदी की रळक तांई उग्या बूळ्या, खैंजड़ा, नीमड़ा जै हालतो ज्या छा पण पाछो ज्वाब न्ह दे छा। पेड़ां का झंवरां मं बैठ्या सुवा कबूतरा डेकडय़ां, गुरगलां अर नीचै छाया मं चुगता मोर बुवारा का फटकारा सूं भर्ड देणी उड़तो जाता पण पाछो ज्वाब न्ह देता। वां पेड़ां की छाया मं बागोलां सूं सूगल वाड़ो फैलाती भैस्यां गायां कानां सूं अर पूंछड़ी सूं मांख्यां तो उड़ा लेती पण लाला की बू की गाळ्यां को ज्वाब न्ह देती। लाला की बू नै असी लागती कै जस्यां सारो जड़ चेतन संकरा की बू की आडी फरग्या होवै अर वा ईं लड़ाई मं अेकली पडग़ी होवै। वा मन ई मन बळ’र भसम हो जाती। अर दूसरै दन ओर जादा जोस द्वाणी गाळ्यां काढ़ती। सारा घर का ऊंनै गहली समझै छा अर ऊंपै हांसै छा। संकरा का छोरा काकी नै ओर जादा खजार भैंस्यां ईं नंदी पै ले जाती बगत हांसता। लाला की घरहाळी कोई-कोई बार घरधणी सूं भड़ जाती। सारो जमारो होग्यो थांनै चन्दण घस-घस’र यां लोड़्यां कै चोपड़तां। कांई पाधरा पाड़्या थांका म्हादेवजी नै? कोई दन म्हारै जमज्यागी तो सारी लोड़्यां टगारी मं भर’र नंदी मं फांक्याऊंगी।

       लालो क्हतो- न्ह, न्ह अस्यां की बावळकांई मत कर घालजे। झांकैगो ई सणी कोई दन म्हारो म्हादेव। अर सांच्यांई अेक दन लाला को बसवास बी फळ्यो। लाला की घरहाळी की गोद हरी होगी। बाळक होयो छो। राजू नांव रखाण्यो। सारा गांव नै राजू पैदा होयो जनाड़ै खूब फटाका फोड़्या। उच्छब मनायो दोनी भायां का परवार उमग्या-उमग्या फरै छा। अब लाला की घरहाळी गाळ्यां देबो भूलगी छी। नीमड़ा का रस सा लाला की बू का कड़ा जहर जस्या मन मं ममता की मठास घुळगी छी। वा जद कोई दन ब्वारो काढ़बा बारै कढ़ती तो ब्वारो कढय़ो कढ़ाया मलतो। अर वा समझ जाती कै ब्वारो कुण नै काढ़्यो होगो।

       काळी सींध नंदी की दस बीघा तळ्यां मं सूं पांच बीघा लाला की अर पांच बीघा भूरा जी समेत च्यारूं भायां की। यां पांच बीघा तळ्यां ई संकरो करै छो पांती मं। ऊंदाळा मं जद काळी सींध बांई कळोट मं ऊंचा कराड़ा कै सायरै सरक जावै छी तो जीवणी आडी को आधा सूं जादा भाग गोडा-गोडा बाळू रेत सूं भर्यो स्यार को थळ उघाड़ो हो जावै छो। ऊ थळ उघाड़ो होतां ईं लालो अर संकरो दोनी काका भतीजा खड़बूजा, कांकड़्या लगा दे छा। तावड़ा सूं बचबा कै लेखै झाऊ की टापर्यां बणा ले छा। यूं तो बैसाख को तावड़ो दन मं रेत ईं तपा दे छो पण रात मं अंदरूणी ठंडक रात की सीम मं मल’र रेत ईं ओर गळतान कर दे छी। वां सोबा हाळा रेत ईं हाथ सूं स्यार की कर’र सौ जावै छा। वां मं सूं अेक दो जणा डोडा साई गांव मं ज्याग बी समाळयावै छा। लाला की घरहाळी अेक हाथ मं रोटी की छाक झुलार दूसरा हाथ की आडी की कांख मं राजू ई समाळ्या दन सतां ई टापर्यां पै आजावै छी पण लालो मंदर पै म्हादेव जी की आरती कर’र मंदर का पट बंद कर’र टापर्यां पै रोटी आण खावै छो।

       अैस बी ओर सालां की नांई सारा ई मनख रात मं ठंडी रेत मं बे-अजक सूता छा।

       संकरा की कोराणी नै आपण पग पाणी मं डूबता सा आंऽऽठ्यां। वा बछक’र बैठी होई तो घाघरो पाणी मं भीज्यो मल्यो। सामै झांकी तो चांदणी का उजाळा मं नंदी पाणी सूं थबोळा खारी छी। नंदी का माथासरा सूं पाणी को अेक ऊंचो पड़ेल जोर को घर्राटो करतो आतो दीख्यो। वा उठ’र भागी अर गोपालो सोपालो हांका पाड़’र अर हनेड़’र जगाया। हांका सुण’र संकरो सबसूं पहली जाग्यो। ऊंनै बूझी- कांई होयो?

       उठो-उठो नंदी मं पाणी आग्यो। संकरा की कोराणी घबरा’र क्हरी छी- हालतो टकूण्या डूब ई छै। काकाजी अर काकीजी कै तांई बी तो जगावो। छोरा नै उठावो सबसूं प्हली।

       दोनी छोरां नै काका काकी समाळ्या। दोनी जणा कै बार-बार सांस भर’र घबराट होज्या छी। अेक तो मोटा अर दूसर कां नंदी का पाणी को बधतो चढ़ाव दोनी जणा कै घबराट बधा दे छो।

       गोपालो-सोपालो थोड़ी-थोड़ी देर मं हांका पाड़ता। अरै दोड़ ज्यो रै गांव का ओ। नंदी मं पाणी का पड़ेल आर्या छै रै। अरै म्हां की लारां बायरां बी छै रैऽऽऽ। अरै  म्हां सारा घर का ई बह जावैगां रै। अरै म्हांकी मजद करज्यो रै।

       ये तीनूं बाप-बेटा सब कै तांई समाळ’र कराड़ै लाबा की कोसिस बी करर्या छा अर गांव कां नै हांका बी पाड़ता जार्या छा।

       जेठ-बैसाख की गरमी सूं तपती रातां अेक-डोड बज्यां नीठ जार ठंडी होवै छै जद जार रात मं सोबा हाळा कै साता आवै छै ऊं टैम नींद कांई आवै छै जाणै सांप का काट्याई महड़ां आवै छै। सब मोट्यार बेअजक सूता छा पण अेक डोकरो जागर्यो छो। ऊंनै नजीक सूता मोट्यार ईं जगार क्ही- सुण-सुण कोई हांका पाडऱ्यो छै। नंदी मं पाणी आबा की क्हर्यो छै। अतना मं ऊंडो-ऊंडो हांको फेर काना मं पड़्यो- अरै म्हांई बचावो रै। म्हां बह जावैगा रै।

       दो मोट्यारडां नै यां कै तांई हांका पाड़्या- अरै थां मत घबराज्यो रै। म्हां आर्या छां।

       गोपाला नै क्ही- सोपाला भाई जी सूं छोरो लेलै। म्हारा कांधा पै बठाण दै। तू भाई जी जीजी नै समाळ म्हूं काका जी होणू नै समाळूं छूं।

       सोपालो बोल्यो – काकी की तो घिग्घी बंधरी छै।

       लाला नै बूझी – गोपाल कराड़ो कतनैक दूरै छै। पाणी गोडां-गोडां होग्यो।

       आधै सूं जादा आग्या काका जी। कराड़ो यो दीखर्यो चांदणी मं ज्यूं को ज्यूं। थां मत घबराओ। भलाई थोड़ी सी देर रूक जावां।

       छोरो कुण कै गोडै छै?

       यो र्यो म्हारै गोडै। आप छोरा अर दोनी जणा की चंता ई मत करो। सोपालो बोल्यो।

       संकरो बोल्यो- थां दोनी जण्यां घाघरां नै पगां कै मत लपटबा दीज्यो। ज्यूं-ज्यूं पाणी चढ़ै घाघराऊंचा करती चली जाज्यो। फेर घर हाळी सूं बूझी- थारै घबराट तो न्ह आरी नै, आरी होवै तो गोपालो-सोपालो कांधा पै बठाण लेगो। म्हूं काकी जी नै कांधा पै बठाण ल्यूंगो।

       संकरा नै फेर क्ही -देखो आपण सूंळा-सूंळा हो जावां। गोपाल तू पैला खूंट पै रै। थारै सायरै बीचा मं काका जी, फेर बीचा मं काकी जी। काकी जी कै सायरै सोपालो। तू जा। फेर थारै अड़वां थारी जीजी फेर खूंट पै म्हूं। सब आमा-सामा गाढ़ा पकड़्या रो। बना घबराट अणायां बहती धार नै धीरां-धीरां काटता रो पगां ई बना उठायां सरकाता रो।

       गांव मं अेक मोट्यार को हेलो ऊंडो-ऊंडो सुणबा मं आयो – अरै म्हां आर्यां छां रै। थां मत घबराज्यो।

       अंठी सूं संकरा नै सूचनक्या दी – थोड़ी सी उतावळ सूं आज्यो रै। म्हांकी लारां की बायरां घबरारी छै रैऽऽऽ।

       संकरा को बोलारो पछाण’र ऊई मोट्यार नै क्ही – आंऽऽऽ दा संकरा घबराज्यो मत रै। सारो गांव ई भाग’र आर्यो छै रै। मनख्यां को हलबलो सुण्यो। फेर हीमत बंधाबा का हांका सुण्या। च्यार-पांच मोट्यारां को धैं-धैं पाणी मं डांकबा को आंठ आयो। वां मं सूं अेक मोट्यार नै संकरा सूं क्ही – दा’ संकरा म्हां पांच-छ: मोट्यार तो पाणी मं डांक पड़्या अब नांव बी चंता मत करजे। दो-च्यार मिनट मं थांनै आण समाळैगां।

       मनख आबा सूं यां सारा मनख्यां कै साता आगी। बोल बतलावण मं ऊ फरक दीख्यायो। पाणी घणो जादा न्ह छो जांघ-जांघ छो। आबा हाळा मोट्यारां नै दोनी बायरां तोकली। वां मं सूं अेक जणो बोल्यो – घबरावै मत काकी अब थारा पग कराड़ा पै जार ई टकैगा। काकी का दोनी हाथ दो मोट्यारां नै आपणा कांधा पै धरवार आपणा हाथां सूं गाढ़ा पकड़ ल्या अर अेक-अेक हाथ सूं काकी को ढंडेर उठाल्यो। अेक मोट्यार फेर बोल्यो म्हां का गळां कै लूमजा काकी यो आयो कराड़ो।

       संकरा की बीनणी अर लालो बी दो-दो मोट्यारां नै उस्यां ई तोक ल्यो जस्या काकी तोकी छी। नंदी की गांव आडी की कराड़ पै सारो गांव आण भेळो होयो। च्यार-पांच मोट्यार ओर डांक्या अर वां नै तीनूं बाप-बेटा का हाथ आण पकड्या अतनै तो पहली हाळा मोट्यार कराड़ा पै पूग’र काका-काकी अर संकरा की घरहाळी ई कराड़ा पै बठाण’र सास ख्वार्या छा। जद सारा मनख नंदी मं सूं बारै आग्या तो लोगां नै सायरो लगा-लगा’र म्हादेव का चोक मं आण बठाण्या। काको अर काकी गोपाला-सोपाला कै गळै लूमर डीडाग्या। नरी देर पाछै आंख्यां पूंछ’र काकी बोली- अजी म्हारा माथा मं बाळ कोई न्ह अतनी गाळ्यां काढ़ी छी जी म्हूं पापण नै या छोरां मं पण यां नै कै यां का माई-बाप नै कदीं होट को उल्टो फटकारो बी न्ह द्यो जी। आज ये च्यांरू मनख न्ह होता तो म्हारो बंस ई डूब जातो।

       लाला नै गोपालो बलार क्ही- भाया थारी मम्मी सूं क्ह- दसेक किलो दूध पड़छला मं पटकर चाय चढ़ा देगी। अर सोयेक बढिय़ा डिसपोजल ल्या बजार सूं। अबार सारो गांव मलबा आवैगो। जे यां छै वां सूं बी चाय पीर जाबा की क्हतो जा।

       सोपाला तू दो भायला लारां लेर टीणसेड हाळा होल मं सारा मं फरस बछवा लै। लालो फेर भूरा जी सूं बोल्यो-दादा भाई आपणा परवार कै बारै आपणी बरादरी मं कतनाक मनख हो ज्यागा? नाई, खमार, धोबी, दरजी अर दाई-माई नै जोड़’र देखल्यां। सूत आजावै तो अबार तडक़ै ई लाग जावैगां तो बारा-अेक बजयां तांई रसोई त्यार हो ज्यागी।         म्हूं अबार नाई सूं सारा बामणा की संख्या मंगवाऊं छूं अर नूतो बी द्वाद्यूं छूं। सोपाला तू फरस बछवार भोजन बणाबा हाळा पंडजी कै तांई बुला लाजे। भूरा जी बोल्या – ओ आपणा परवार कै बारै तो सो-सवा सो मनख ई होवैगा। छै-अेक पसेरी चून तोल लेगां। नाई आतां ई तडक़ा को नूतो द्वा द्यां छां। पांच-सात मोट्यार जुड़ ज्यागा तो जादा टैम थोड़ी ई लागै छै।

       लालो बोल्यो – बायरां सूं क्हवा द्यां जे न्हा धोर नमट्यां पाछै दो-च्यार छोटा-मोटा छोरां नै लारां लेर बील पत्तर, फूल लार माळा गूंथबा लाग ज्यागी। फूल अैन मंगवाणा छै मंदर की सजावट बी फूलां की माळा लटकार करणी छै। हां केळा का पेड़ मत भूल ज्यो। म्हूं आबा-जाबा हाळा गांव का मनख्यां ईं चाय प्वार न्हाया धोई कर ल्यूं छूं। म्हीं पूजा मं बी तो बैठणो छै।

       दन की अेक बजतां-बजतां सब जीम चूंट’र नमटग्या छा। टीणसेड हाळा होल मं सब आडा ऊंळा पसरग्या छा। अेक तो सारी रात की जाग अर भागम-भाग सूं थकर्या छा अर ऊपर सूं गरिस्ट भोजन की गहळ का असर मं छा। भूरा जी नै आपणा छोटा पोता सूं क्ही – सोपाला जे पाणी पीबो चावै वां नै पाणी प्वा दै। पाणी पीता ई सब मं ज्यान बावड्याई। कोई नै बैठ्या होर बीड़ी सळगाली तो कोई नै जरदो रगड़’र फांक्या मार ली। ज्यां कै घरां की चंता छी वै धोवती का दोनी पायचां का खूंट पकड़’र जूत्यां पहरबा लाग ग्या। घर-घर का रैग्या।

       लाला जी बड़ा भाई की आडी थोड़ा सा सरक्या फेर रात की घटणा कै पाछै मन मं घुमड़-घुमड़’र बारै कढऱ पड़ती बात उघाड़ता बोल्या- थां सूं अेक बात क्हूं दादा भाई जी? म्हारै रात सूं ईं होटां बारै बखरी पड़ती नै क्हां तांई समेटूं?

       भूरा जी लाला का उणग्यारा पै आंख्यां ठहरार ऊं बात नै हेरताझांक्या। पण लाला का मन की ऊंडी पड़तां मं भूर्यां खाती वा बात कस्या पकड़ता? कांणां कांई छै ईंका मन मं? कांणां कांई क्हबो चावै छै? फेर ऊंई गम्भीरता सूं बोल्या – क्है नै?

       सारी रात सोचतां-सोचता ईं मुकाम पै पूग्यो छूं कै वां तीनूं छोटा छोरां की तो म्हूं न्ह क्हूं पण संकर अर म्हूं पाछा ई भेळा हो जावां। मतलब छ: मनख तो थां अर तीन मनख म्हां।

       बात नै सुण’र संकर बी बैठ्यो होर ध्यान सूं काका की बात सुणबा लागग्यो। बीचा मं पड़तां बोल्यो – पण या कस्यां होवैगी काकाजी? थां म्हां सूं काणां कांईं चावो छो।

       देखो ! अब थां म्हारी पूरी बात सुण ल्यो पहली दोनी बाप-बेटा। जद म्हारी बात पूरी हो जावै जद थांनै ज्यां संक्या होवै वां बूझ लीज्यो।

       संकरो बोल्यो – तो फेर थांकी बात पूरी कर ल्यो।

       हां ! लालो ओर नजीक सरक्यायो। छानै की बात होवै उस्यां मंदरो-मंदरो बोल्यो। भेळै होबा को मतलब म्हारा मन मं अेक बच्यार छै। बीस बीघा जमीन थांकी अर पचास बीघा म्हारी टेक्टर सूं सामळ मं हंकै। टेक्टर को तेल पाणी मरम्मत म्हारा खाता मं। थांकी जमीन की फसल बना खरचा कै पूरी थांकी। ऊपर सूं गोपाला-सोपाला अर थारा खाता मं अेक-अेक लाख की अेफ0डी0। नो का नो मनख्यां को खाणो-पाणी रसोवड़ा मं। सारो खरचो म्हारा खाता मं।

       भूरा जी चंता करता संकर की आडी झांक्या। फेर बात पल्लै न्ह पड़बा का भाव सूं लाला की आडी झांक्या।

       म्हूं जाण र्यो छूं कै थां दोनी ईं बात पै बसवास न्ह होर्यो। न्ह होर्यो नै?

       दोनी बाप-बेटा अेक साथ बोल्या – हां न्ह होर्यो। या बात गुडै़ कोई न्ह। म्हां तो फेरूबी गुड़ा द्यां। बना अेफड्यां करायां बी साल दो साल गुड़ा द्यां पण काकी अर भाया को कांई भरोसो? फेर बी थां की बात नै नीचै न्ह पड़बा द्यां काकाजी।

       तो तू अब ध्यान सूं सुण म्हारी बात। पाछै बोलजे।

       कारै भाया गी रात आपण वां अेकठा न्ह रै ता तो म्हारो तो बंस ई उगट जातो न्ह। म्हां तो तीनूं मनख ई ग्या छा नै? जे थां च्यारूं मनख न्ह बचाता तो?

       हे राम म्हां क्यूं नै बचाता? असी बगत पै तो पैला-पराया ई काम आज्या छै जीं मं आपणो तो हाल दूध ई अेक छै। अेक ई माई का चूंख्या छै।

       वाई बात संकर अब म्हूं थंई समझार्यो छो भाया। पण या बात पराणी होतां सतां बी थंई नुई लागैगी।

       संकर लाला का मंूडा पै आंख्यां गड़ायां झांकर्यो छो- हां बोलो।

       दस बरस पहली थारी काकी नाळी होबा की जुद्दी न्ह करती छावै म्हूं ऊंकी बात न्ह मानतो अर राजू बी होया तो तो आपण भेळा छा कै न्ह छा?

       हां जद तो छा। रैता बी सणी।

       तो अब वा नुई अबार लागरी छै। पण बात पराणी ई छै।

       संकर नमून खींचग्यो।

       अब आगै सुण- अैस म्हूं दो कमरा पन्दरा बाई तीस फुट थांकी ठाम मं म्हारी आडी पछ्योकड़ो करर बणाऊंगो। ज्यां कै आगै दस फुट की चोड़ाई मं तीस फुट को बरामदो दोनी कमरां कै आगै रैगो। अस्या ईं काची पोळ अर सायरै को आगलो सराड़ो ढसा’र पन्दरा बाई बीस को बारणो ऊंकै अड़वां पन्दरा बाई बीस को कमरो बारणा मं खुलता क्वांड को अर ऊंकै अड़वां ऊंई लैण मं पन्दरा बाई बीस को अेक कमरो अर दस बाई बीस मं ऊंकै आगै बरामदो बणाऊंगो।

       अब थां सोचर्या छो। थांकी सकलां क्हरी छै कै ईंनै तो सारी ज्याग पै कबजो करल्यो। याई बात ध्यान मं आई नै?  हां !ओर कांई?

       सुणो दरवाजा कै सामै का दोनी कमरा गोपाला-सोपाला का। दरवाजा कै सायरै को कमरो दादा भाई-भाभी को अर अड़वां को दूसरो कमरो बरामदा हाळो थारो।

       अैस म्हूं दोनी भायां ई परणाऊंगो। आगला साल का सम्मेलण मं। भाभी थां दोनी सासू-बू सूण ल्यो। छोर्यां हेरबो सरू कर द्यो। न्ह तो फेर म्हूं काळी कबरणी जसी बी पानै पड़ैगी ले आऊंगो। म्हनै तो छोरां का घर बांधणा छै।

       संकरा नींव खोद’र भरबा हाळा आज स्याम तांई थै-पाई करलै। क्हाल सूं नींवां को काम सरू करां। भाटां का ठेकादारां सूं बात करलै। रेत की टरोल्यां खाली करवालै दसेक। काचा झूंपड़ां नै खोद’र फांकबा हाळो करलै। दमादमी सूं मकान को काम चालू करदै। आपण ईं दो म्हीनां की बरसात कै पहली का सम्या मं काचो-काचो काम समेट’र दासा लेवल तांई करणो छै। काती सरै दो म्हीना मं झूंपड़ो त्यार हो ज्यागो। थांका गबूल्या अेक साल अंठी पटक लीज्यो।

       यो तो करलेंगा काकाजी पण वा बात जमीं भेळै हांकबो अेफड्यां कराबो या समझ मं कम आई।

       देख संकर थोड़ो सो दिमाग खुलासा रखाणणी पड़ैगो तो बात सोळा आना कांई बीस आना समझ मं आज्यागी। सुण- अब तांई दो हाळी अेक डलेवर लगावै छो म्हूं। तोबी काम बगड़ै छो क्यूं कै वै पराया छा। तू जाणै छै अेक क्हणावत छै-पैला कै लागै परावंडा कै लागै। घरका मनख मं अर पराया मनख मं योई तो फरक रै छै। घर को अेक मनख पराया तीन मनख्यां जतनो काम करै छै। हाळी कांई करै छै। अेक, दो कै तीन पाणी दे छै खेत मं। फेर सारै साल तेजाजी गावै छै। खुद का सांदरा अर ब्वार साधता फरै छै। आपणै दोनी भाई मलर डोडासाई रात-दन टेक्टर चलावैंगां। जमीं हांकी ओरी अर पाणी ठेका सूं प्वालेगा। फेर तो खेती को काम मशीना करै छै। कंबाइन काट जावै छै टेक्टर घरनै पटक दे छै। आपणा छोरा सारा साल मं मलार घणो मानै तो पन्दरा दन काम करैगा जीं मं हाळी को बोथ बचालेगां। अेक-अेक लाख तो मान हाळ्यां का जे आपणा छोरां कै बचैगा। नन्दवाणा को धन ननवाणा मं। तू खेत बाड़ी समाळ जे, जे अेक लाख थारा। खाण-पीण भेळै रसोवड़ा मं। घर खरचां व्हाला मं सूं। थांका नाज पाणी जे थारै जचै जद बेच। अब बता थारी कोई संक्या होवै वा बता?

       काकाजी की सुण’र संकर की बाफण्या नतरगी। अतनी करपा काकाजीऽऽऽ?

       अरै घणी कोई नै रै संकर? जतनी करपा थनै अर थारा बेटां नै म्हां दोनी मनख्यां पै करी छै। भाया ऊं की तो या पीसा बर्योबर बी कोई न्ह। धन सांपत हाथ को मैल छै पण बंस ई उगटबा सूं बचाबो कतनी बड़ी करपा छै। तू थारा मन की सारी संक्या बारै काढ़ दै।

       संकरा सूं छोटा तीनूं भाई काका की बात नै मोइत भाव सूं सुणर्या छा। तीना मं सबसूं बड़ो अर संकरा सूं छोटो जे तीनू छोटा भायां मं नेतो छो बोल्यो- म्हांकी आडी बी तो झांको काकाजी। दादा पै सारा ई बरस ग्या। थोड़ा घणा छांटा अंठी बी उछाळो।

       म्हां तो भाया मरं्या पाछै बी काका जी ई रैता पण थंनै या चोखी करी जे मन की बात उजागर कर दी। म्हंूं तो छांटा कांई थीं अबार परेम भाव सूं बी गळगचां कर देतो पण मन तो थंनै ई स्वारथ अर टुच्चापणा की कोर तांई सकड़ा ल्यो। जे राजनीति आज तू गांव मं चलार्यो छै वा थंनै थारा कुटम मं ई चला’र थारा अर थारी पीढ़ी का पग थंनै ई काटल्या।

       नेतो बोल्यो – कस्यां?

       कारै भाया गी रात मं तू यां गांव मं ई छो नै? म्हाकी बार्या पीपटी सुण’र सारो गांव उलटग्यो। जीं सूूं जे बणी म्हां की मजद करी पण तू जाग बी र्यो छो तो बी म्हांई च्यार तो थारा सगा भाई-भोजाई भतीजा तीनू मनख म्हां ज्यां सूं पाणी का छांटा को छडक़ाव मांग र्यो छै वां मं सूं कोई को हाथ पकड़’र पाणी बारै काढ़बा को सायरो बी लगायो छो कीं? बोल? फेर कस्या सगपण की बात क्हर्यो छै। फेर बी थारा मन मं सगा को भाव जाग्यायो तो भलांई स्वारथ को ई सई। ये ओर बी थारा छोटा भाई जे थारा राजनीति का चेला बी छै थांकी लाड़्यां सूं सल्ला कर-कर’र तडक़ा सूं आजाज्यो रसोवड़ा को काम करबा। वां सूं चून सामान ले लीज्यो, बणाओ सबनै बना दुबात कै ख्वावो अर खावो। पण थांकी सासूं सूं बूझ लीज्यो कै मासा थां थांकी जवानी मं कतनी रात की उठै छा रात मं चून पीसबा?

       उतनी बेगी ई उठ’र घांटा, पणघट अर न्हाबा-धोबा सूं नमट’र बाबा का मंदर पै मंगळा-आरती मं उजाळो होतां-होतां भेळै हो जाज्यो न्ह तो थांका महलां मं सूती रीज्यो। अंठी झांकबा को काम कोई न्ह।

       दन मं सब आदमी-बायरां घर को मतलब सामलात को सारी जमीं को सारा घर को रोटी खार काम लाग जाज्यो। थांकी पांती की जमीं बी उस्यां ई हंकैगी-उरैगी फसल होवैगी। पण खाद अर बीज को खर्चो काढ्या पाछै थांकी फसल थां ले जाज्यो। सारा मनख्यां को खाबा पहरबा को अर दूसरो खरचो यां सूं ई होवैगो। लसण काटबा सूं लेर फसल नींदबा खोदबा तांई दूसरा मज्यूरां ई लारा लेर काम करैगी साल का अन्त मं च्यारू कै पचास-पचास हजार की कोई सूना की चीज बण ज्यागी। पण नकदी न्ह मलै। घर नै घर, आपणा नै आपणा मानज्यो। कोई की आडी सूं कोई ऊंच-नीच दीखैगी, दुबांत आंठैगी तो आगला साल मं नाळो कर द्यो जावैगो। थांको न्याव संकरा की घर हाळी म्हारी घरहाळी अर भाभी करैगी। म्हां दोनी भाई न्याव पै मोहर लगा देगां।

 

मोबाइल नम्बर : 9414264880

हिन्दी,उर्दू अर राजस्थानी मे बराबर लिखण आळा, गद्य अर पद्य में बराबर सक्रिय। रेल्वे रे मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, राव बीकाजी संस्थान रे राजकुमार भीमराज अवार्ड और घणां ही पुरस्कारां सूं सम्मानित,देश प्रदेश में हूवण वाळे मुशायरां में खूब पिछाण, रेल सेवा में काम करै।

 

म्हैं मरुधर री जायी हूं

बगत री लूवां रा

थपेड़ा खावती

म्हारी मायड़ भासा

थूं हिम्मत मत हारजै

बताय दै आं मौकापरस्त लुटेरां नैं

अर कैय आंनै कै

लगावो थांरो जोर

बतावो थांरी औकात

म्हैं मरुधर री जायी हूं

काचरियां री कुचमाद सूं

कदैई नीं डरूं

म्हारै खांडां री धार

अजै तांई कुंध नीं पड़ी

माथो देवां तो लेवणो भी जाणां

पीठ दिखावणो म्हैं नीं जाणां

साच नैं आंच नीं हुया करै

जे देखणो चावो

तो देखो इतियास नैं

देवो जबाब जे थंारै कनै हुवै

कांई हुयो? गिणती नीं हुवै!

म्हे चुप हां, इणरो मतलब समझो

थे ई जाणो हो कै

हर सरणाटै रै बाद

तूफान आवै

अर जद बो आवै

तो कांई छोडै है लारै!

उडीक

बादळां नैं कैवो

बरसणो है तो

बरसो चुपचाप

मरुधर री तिरस

अबार सूती है

थांरी ई उडीक में

खोई है थंारै ई सुपनै में

आया हो तो बरस ई जावो

इणरै सुपनै रै साच हुवण सारू।

 

नगेन्द्र नारायण किराड़ू   (मोबाइल नम्बर :  9460890205)
राजस्थानी अर हिन्दी में कवितावां-कहाणियां लिखै साथै चित्रकार भी है। कईं पत्र-पत्रिका में लेखनी प्रकाशित हुवै। अबार आपरे पिताजी स्व. भगवान दास किराड़ू रे साहित्य ने आम-जन तकां पहुचाणें रो लक्ष्य हाथ में ले राख्यो है। रोजगार विभाग में काम करै है।

सीमा भाटी  (मोबाइल नम्बर :  9414020707)
हिन्दी उर्दू में कहाणियां,नज्म अर गजल लिखै, साथे-साथे उर्दू पढ़ावै भी है। मंच रे संचालण में, गायण में और पर्वतारोहण में रुचि है। कर्णधार सम्मान, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान साथै कईं संस्थावां सू सम्मानित।

पाठक नै बांधण री घणी खिमता राखै उपन्यास : हेत री हूंस

राजस्थान अेक इस्सो सहर है जिकै रै हरेक सहर रै मांय राजस्थानी रा लिखारा आपरी लेखणी सूं राजस्थानी भासा रो मान बढायो है। इणी कड़ी रै मांय आधुनिक राजस्थानी लिखण आळा नै सिरीमती सीमा भाटी अेक खिमतावान रचनाकार रै रूप में साम्ही आवै। आप हिंदी अर राजस्थानी दोनूं भासा में लगोलग लिखर्या हो। आप रो हिंदी कहाणी संग्रै ‘महीन धागे से बुना रिश्ता’ आपरौ राजस्थानी कविता संग्रै ‘पैल दूज’ अर आपरौ राजस्थानी उपन्यास ‘हेत री हूंस’ राजस्थानी रो लूठो उपन्यास है, आप हिंदी, राजस्थानी  अर ऊर्द तीनूं भासाओं माथै सांतरो अधिकार राखौ। आप अेक अनुवादक अर समालोचक रै रूप में भी अलायदी पैचाण राखौ।

‘हेत री हूंस’ उपन्यास आरौ आत्मकथात्मक शैली रो अेक लूंठो उपन्यास है। अर उपन्यास रै तत्वां माथै खरौ उतरण आळौ उपन्यास है। ई उपन्यास रै मांय संस्कारां री बात बड़े लूठे ढंग सूं कैई है। सागै-सागै आ बात भी बताई है कि शराब आखै कुटुम्ब नै डूबोय देवै।

लेखिका ई बात नै भी बड़ै आछै ढंग सूं राखीी है कि औलाद कोई भी हुवो बिनै घणी छूट नीं देवणी चाईजै। उपन्यास रा ज्यादातर पात्रां नैं आप रो प्रेम मिले कोयनी। निस्ठा रै जीवन रै मांय ‘हेत री हूंस’ री पूर्ति खाली दिग्गविजय करै बाकी सैन तो बिनै दोस्ती री आड में लूटणो चावै। राजवीर नै ब्यांव रै मांय रेवती री कोख सूं बेटो ही जळम लेवै ईरी घणी हूंस रैवै पण रेवती रै बेटी हुवै अर बो बी बेटी नै बेटै जियां राखै। बाळपणै सूं लेय’र जवाणी ताईं बीनैं आ महसूस ही कोयनी होवण दै कि बा छोरो है क छोरी। आ बात सई है कि टाबरां नै जै घणै माथै चढ़ावां तो हाथै-बाथै कोयनी रैवै अर बै आपरां मायतां खातर जी रो जंझाळ बण जावै। ई खातर कैयो है कि संतान नै संस्कारां री सीख मां अर बाप दोनूं देवै जद बा संतान मायतां रै कैणै में रेवै अर आप री संस्कृति नै आगे बधावै। पण निस्ठा नै निशूसिंह बणार बिनै काठी बिगाड़ दी। दारू पीवणो अर ड्रग्स लेवणे री बिरी आदत में सुमार हुयग्यो। ई खातर ही बैरै भोळेपणै रो फायदो उठा’र आकाश बीनैं कुंवारी मां बणाय देवै। जबकि निस्ठा तो अपणे आप ने छोरो मानती ही पर सुगना अर रेवती री सीख सूं बीनै ठा लागै कि बा छोरो नीं छोरी है। उपन्यास रै मांय अेक बात आ भी साम्हीं आवै कि आ बात जरूरी कोयनी कि कुल अर वंस रो नांव राखण वास्तै छोरो होवणो चाईजै। कुल रो नांव तो सुपातर संतान सूं रैवै। छोरै सूं नीं रैवै। भारत रै मांय अैड़ी घणी लुगायां है जिकी आपरै कुळ रो नांव रोसन कर्यो है। उपन्यासकार उपन्यास में उण बखत री ‘लिव एण्ड रिलेशनशिप’, ‘फ्रेंडशिप सूं कांई-कांई हांण हु य जावै आ बात भी साम्हीं आवै है। ‘हेत री हूंस’ उपन्यास आपां नै आ सीख देवै कै आपां नै समै रै सागै बदळ जावणो चाइजै। समय रै सागै ठाठ-बाठ, रीति-रिवाज सैं बदळ जावै तो मिनख नै भी समै रै सागै-सागै बदळ जावणो चाईजै नीं जणै समै जद बदळै तो मिनख री सगळी हेकड़ी निकळ जावै। उपन्यास रै मांय सीमा भाटी तैईस भाग राख्या है जिकैरै कारण उपन्यास पढ़तां थकां पाठकां रो मन भटकै कौयनी। पाठक रो मन उपन्यास नै जद अेक बार पढणो सरू करै जणै ईयां लागै कै बिनै अेक ही बैठक में पूरा कर देय। सीमा भाटी जी उपन्यास रै मांय राजस्थानी रै सागै-सागै उर्दू अर अंग्रेजी रो भी बड़ो सांतरो परयोग कर्यो है। लेखिका री सैली सूं ई बात रो बेरोई नीं पड़ै कि राजस्थानी भासा रै मांय लिख्योड़ै ई उपन्यास में दूजी भासा रा सब्द भी आयोड़ा है। हालांकि लोकोक्तियां अर मुहावरां रो घणो तो परयोग कोयनी पण ठावी-ठावी जगै बड़ै सांतरै ढंग सूं परयोग कर्यो है जिण रै मांय अंग्रेजी सब्दां रै मांय, लेडिज काउण्टर, सूट, मैडम, अटैंड, लिव इन रिलेशन, पार्टी, वॉटमिन, यू मेरी, हिम, नो। सुपर-मोम, बाय, गारंटी, लिमिट, ऑर्बोशन, डॉक्टर, प्लाजों, जिंस, हटिंग शर्ट, हैलो, मॉल, विंडो शॉपिंग, वाट डू यू मिन, मिस्टर, आय एम ऑल रेडी कमिटेड माय फ्रैंड, सॉरी, फाइनल, अंकल, आंटी, कॉलेज, इंटीरियर, वेलकम टू रजवादि कोठी, मिस्टर जय, मम्मी, स्योर, कॉफी, जस्ट फ्रैंड, डेशबोर्ड, ड्राइवर, हैंडसम, शट अप, रूल्स रोस्टेड काजू, चियर्स, ड्रग्स, रिर्पोटिंग टाइम, ऑफिस लोकेशन, वाट्सअप, लंच, फील, वर्जिन, ड्यूटी, रनिंग पोईंट, रेस्टोरेंट, ए.सी., ज्यूस, मोटिवेशन स्पीच, सिगरेट, टयूमर आदि सब्दां रो बड़ो सांत रो परयोग कर्यो है। इणी तरै सूं कैई अेक सब्द उर्दू रा भी है जियां सलिको, जमीन-जायदाद, गजब, फर्क, नाराज, दफ्तर, अखबार आदि उर्द भासा माथै सीमा भाटी रो सांतरो अधिकार है। उर्द भासा रा भी चावा-ठावा रचनाकार है। सीमा भाटी जी राजस्थानी रै अैड़े सब्दां रो परयोग कर्यो है जिका उपन्यास रै मांय कैई बार आया है जियां सैंग-मैंग, अणमाप, मुगत आभो, गत्ता-गम, चेताचूक, आपो-मत्तो, झिंझोड़तो ईयां में कइै अेक सब्द तो ईस्या है जिका कई समै बाद परयोग में लिया है। उपन्यास रै मायं सीमा भाटी जी केई लोकोक्तियां अर मुहावरां रो परयोग कर्यो है जिया – मन मसोस रैवणो, कूंकूं कन्या चाईजै, दूध रा धोयाड़ा नीं है, बैई घोड़ा अर बैई मैदान, बीज बारस रो मेळ, पगा हैठे सूं जमीन गायब हुयगी, बीति ताहि बिसार दे, आयगे की सुध लैई आदि।

सीमा भाटी रो ओ उपन्यास भासा अर सैली री नूंवी संरचना करै जिकै लेखक रो भासा माथै जित्तो जियादा अधिकार हुसी बो आपरी बात बित्ते ही प्रभावी ढंग सूं मांड सकसी। कम सूं कम सब्दां में बात कैवण री लियाकत अर पात्रां रै अनिरूप भासा रो परयोग करण री खिमता रै पाण ही रचनाकार सफळ रचनाकार बण सकै अर ई ठौड़ सीमा भाठी जी पूरा खरा उतर्या है बियां री भासा अर सैली पाठकां रै अनुरूप तो है ही सागै-सागै कथा रै मांय रस राखण री थोड भी ई उपन्यास में साम्हीं आवै। सीमा भाटी जी आज रै बगत री बात नै आपरै उपन्यास रै मांय राखी है जिणसूं पाठक नै पढतै टैम अबखाई नीं आवै। उपन्यास रो प्रकासन गायत्री प्रकासन कर्यो है अर अेक सौ पचास रिपिया ईरो मोल है। इत्तै कम रिपिया रै मांय अगर ईती सांतरी चीज आपंा नै पढण नै मिलै तो आ बात बड़ी सरावण जोग है। उपन्यास नै पढण सूं आपां नै अेक नूंवी जातरा रो आनंद मिलै। सीमा भाटी जी रो ओ उपन्यास साच में ही हेत री हूंस राखै।