अरज लॉयन एक्सप्रेसलगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है।कथारंगनांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांतभांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां

घणी जाणकारी वास्ते कथारंग रा समन्वयसंपादक संजय शर्मा सूं कानाबाती कर सकौ। नंबर है… 9414958700

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ऋतु शर्मा    (मोबाइल:9950264350)

साहित्य सर्जण रे साथे समाज रे काम में भी सक्रिय, राजस्थानी-हिन्दी में बरोबर कहाणी कविता लिखै। लोक संस्कृति री चेतना जगावण वास्ते बणायोड़ी गणगौर समिति रा अध्यक्ष, युवा उद्यमी। सरला देवी स्मृति अर कर्णधार सम्मान सूं सम्मानित 

कहाणी  : सुपनो

‘अरे शोभना जी, कांई बात है। आज इण ब्लॉक में कियां?’

शोभना ने लारै सूं भरत सर टोक्यो तो वा घूम’र देख्यो। शोभना उण ने कीं कहती, वीं सूं पैला ई भरत रो दूजो सवाल हो, ‘सब ठीक तो है शोभना मैडम…’

शोभना सवाल रो अरथ नीं समझती आपरी आंख्यां सिकोड़ती भरत ने देख्यो जाणै भरत उण रा तेवर समझग्यौ होवै। शोभना कीं पड़ुत्तर देंवती, उण सूं पैली ई भरत आप रे केबिन में दाखल हुयग्यौ।

 शोभना जल्दी-जल्दी लिफ्ट कांनी बधी अर खटको दबायनै लिफ्ट रो फाटक खुलण री उडीक करण लागी। थोड़ी ताळ में शोभना आपरे ब्लॉक में ही। पण बार-बार भरत रो सवाल उण ने परेशान करै हो। इणी बीचै चपरासी आयो अर शोभना ने एक पर्ची देंवतो बोल्यो, ‘इण फाइल सागै साब बुलावै।’

शोभना आपरे च्यारूंमेर देख्यो तो सगळां री निजरां उणी पर ही। मिस्टर कुमार बोलण सूं कठै चूकता, वे बोल्या, ‘क्या बात है, गुडमोर्निंग-टी रो समै हुयग्यो लागै।’ शोभना उणां कांनी देख्यो तो सैं आप-आपरी बातां में लागग्या। शोभना पर्ची में लिखी फाइल रो नांव देख्यो अर उण ने लेयनै ऑफिस में पूगी। थोड़ी देर पछै जद पाछी आई तो स्टाफ में खुसर-फुसर चालै ही। शोभना ने आंवता देख’र पल्लवी बोली, ‘आज फेर कोई नूंवो फरमान लाया हो कांई?…जद सूं शोभना जी आया है, रोजीना कीं न कीं नूंवा फरमान आवणा सरू हुयग्या है।’

अमित पल्लवी री बातां सूं हांमी जतांवतो बोल्यौ, ‘भाई हैड इंचार्ज है, जो कहसी करणो पड़सी।’ श्याम बोल्यो।

  शोभना अेक नोटिस बणायो अर चपरासी ने बुलाय’र दे दियो क इण माथै सगळां रा साइन करा लावै। चपरासी भी समझदार हो। सै सूं पैली उणी तरै रा लोगां कनै गयो जका सीधा-सादा हा। आप रे काम सूं काम राखता। दफ्तरां में इण तरै रा लोग घणां हुवै जकां आप रे काम सूं काम राखै, पण कीं हुवै जका ने अठीनेउठीने री बात करण में मजो आवै। काम करे ना करे पण पंचायत रा पाटा हुवै। इणां रो काम बस हलचल मचावणो रेवै। कीं न कीं सुरखी इसी छोडे क बात रो बतंगड़ बण जावै। केई बार तो आ पंचायत मूंगी पड़ जावै अर महाभारत बण जावै।

 चपरासी जियां ही नोटिस लेय’र अकरम कनै गयो, अकरम मना कर दियो क अब आ काल री आयोड़ी म्हारो शैड्यूल बणासी, इयां नीं चालै। अकरम सूं आगे रजिस्टर वैदिक कनै पूग्यो तो वैदिक अकरम री बातां सूं सैमत हुंवतो बोल्यो, ‘अे बातां तो रेवण दो। शोभना मैडम, म्हां सगळा तो शेड्यूल में ही हां… शेड्यूल तो थे अर कपूर साब फिक्स करो।’ आ केंवता वैदिक जोर सूं हंसियो अर फेर बोल्यो, ‘अर आ देखो सुहानी मैडम आ तो वा ईज प्रजेंटेशन है जकी थां नै देवणी है। ‘प्रमोशन ऑफ कंपनी प्रोडक्ट्स इन रिमोट एरिया’, आ प्रजेंटेशन आपने अब शोभना सागै देवणी है।’ आ सुण परी राधिका बोली, मेन रोल तो शोभना रो ई हुवैला।’

सुहानी रजिस्टर लेय’र बांचते बोली, ‘आप त्यारी करो शोभना मैम, पूरी प्रजेंटेशन थांनै ही बणावणी है, म्हैं सागै हूं।’ शोभना सुहानी री बात रा अरथ नीं समझ पाई। कीं भी हुवो। आदेशां पर सब ने साइन तो करणां ही पडिय़ा। पण लोगां री बातां सूं शोभना ने घणी पीड़ा हुई।

शोभना ने आपरो काम करणो हो, वा तो आपरे बडेरां सूं अेक ई बात सीखी ही क जिके री खावां बाजरी, उण री भरणी हाजरी। दियोड़े काम ने पूरे मन सूं करणो ही हो। दफ्तर रो माहौल भी चाले जियां ही चाले हो। दो दिनां में शोभना प्रजेंटेशन भी त्यार कर ली ही। पण, जद  ठाह लागी क सुहानी दिखावै खातर ही सागौ देवण री बात करी, तो उण री पीड़ बधगी। दुनिया वा समझे जिसी नीं ही। उण ने घणो हुसियार हुवणो हो। सुहानी रो साच जाण्यां रे बाद वा प्रजेंटेशन री बात ई नीं करी। दिन भर ऑफिस में बैठ’र काम करण रे बाद जद शोभना निकळण लागी तो उण रे कानां में ओबेरॉय री आवाज पड़ी, ‘अरे साब री मेहरबानी है…पतो नीं कांई जादू करियो है…’

शोभना ओबेरॉय रे केबिन आगेकर निकळती ठिठकी। उण ने लाग्यो जियां बात उणी री हुय रैयी है। वा ओट में खड़ी हुयगी। दूजी आवाज अशोक री ही, ‘शोभना जी रो कामण पूरण हुयग्यो लागे…’ इण रे बाद तो जियां शोभना रूक ई नीं सकी।

पैली भी शोभना रे कानां में दफ्तर में उण रे लारै सूं हुवण आळी बातां भी आई ही, पण आज तो हद ई हुयगी। घरां आई तो उण ने ऑबेराय अर अशोक री बातां परेसान करण लागी। उण रो मन नीं लागे हो। पण वा जांवती भी कठै। घरां आवण रे बाद तो वा साव अेकली ही। वा सोचण लागी, ‘लोग इत्ता नीचे भी गिर सके, अेक छोरी री इज्जत री भी परवा नीं है। इसी नौकरी कांई तो करणी। वा तो आप रे काम सूं काम करे ही। किण पर कामण करती अर क्यूं करती। दफ्तर रा लोग उण ने इसी छोरी क्यूं समझ ली…वा तो इसी नीं है…इण सूं तो ठीक है क सै कीं छोड-छाड’र पाछी गांव चली जावे। कर ले ब्यांव और बसाय ले गिरस्थी।’

सोचतां-सोचतां वा आप री जग्यां सूं उठ परी कमरे में घूमण लागी। बारी खोल’र देख्यो तो रात हुवण आई ही। बरामदे में ऊभी शोभना अपणे बॉस ने प्रजेंटेशन रो मेल करण खातर मोबाइल हाथ में लियो, एक गहरी सांस लेवती आभै कांनी देख्या आभै में तारा टिमटिम करण लाग्या। तारां ने देखतां मन ई मन फेर सोच्यो, ‘फेर उण सपनां रो कांई हुयसी जका सजाया हा। काबिल बणबा रे बाद लोगों की इमदाद करणी, टाबरां री भणाई सारू सैयोग करणो अर आप रे गांव में अेक अस्पताळ बणावणे री उणरी इंच्छा रो कांई हुवैला।’ उण रे मन में कसक फेर उठी, ‘ हां, पापा ने बचायो जा सकतो, जे गांव में छोटी सी अस्पताळ हुंवती।’
आ सोचता अेक’र फेर वा त्यार हुयगी। सोचतां-सोचतां काम करण लागी। आप रे खातर दो रोटी बणाय’र फेर उण ने प्रजेंटेशन पर काम करणो हो। आगले दिन मीटिंग ही। प्रजेंटेशन देवणी ही।

दिनूगे त्यार हुवण रे बाद अेक बार फेर शोभना प्रजेंटेशन दियो। प्रजेंटेशन में बतायो हो क कियां अेक कंपनी सेवा रा काम कर सके। आप रे फायदे रो अेक बडो भाग जन-कल्याण में कंपनियां ने खरच करणो चाइजै, जिके सूं नीं फगत उण री ब्रांड वैल्यू बधै, लोगो ने भी फायदो मिळे। शोभना आप री सारी सोच प्रजेंटेशन में बताय दीन्हीं। चल-अस्पताळ सूं लेय’र, किताबां री चलती-फिरती गाडी री योजनावां उण में सामल करी।

सारी चीजां ने देख’र शोभना आपरे लैपटॉप सागे दफ्तर पूगी तो दस बज चुक्या हा। इग्यारह बजी बॉस सागै सारे स्टाफ री मीटिंग ही। आज माहौल में गरमी घणी लखावे ही। सारा आप-आप रे काम सूं काम करता दिखे हा। शोभना ने ठाह पड़ी क इण बात री चर्चा है क आज कॉस्ट-कटिंग भी हुय सके। कंपनियां में अे आम बातां है कि काम करे जकां ने पइसा बचावण रे चक्करां में हटाय देवे। शोभना सोच्यो, जे उण ने हटा दियो तो कांई हुयसी। मन में आयो क जदतांई उण ने ठाह नीं लागे क उण रो नांव कॉस्ट-कटिंग आळां में है क नीं, तदतांई वा प्रजेंटेशन रोक ले। पण, फेर सोच्यो आ तो गळत बात है। बडेरां री सीख रे खिलाफ है।

थोड़ी ताण में सगळा कांफ्रेंस हॉल में हा। बॉस रे आवण सूं पैली सगळां रे साम्हीं मीटिंग रा मिनिट्स आय चुक्या हा। वैम हो जिको जिको साच हुयो। सै सूं पैली कॉस्ट-कटिंग रो बिंदु हो। सै री जियां सांसा ठम चुकी ही। सब ने आपरो ई नंबर लागतो दीसै हो। शोभना ने लाग्यो जियां सिंझ्या री गाडी सूं ई उण ने गांव जावणो है। मां तो आ ई चावै ही क शोभना ब्यांव खातर हां कर दे।
मीटिंग सरू हुयगी। बॉस पैली आपरी बात केयी। कंपनी रा घाटा, दफ्तर में राजनीति अर काम में कमी जिसी बातां रो अेक ही सार हो कि लोग काम करे नीं तो घाटे री जिम्मेदारी भी उणां री अर इण खातर कीं लोगां ने जावण वास्ते त्यार रेवणो है।
धणी रो धणी कुण? आप री एक बात केवण पछै दूजे बिंदु पर बात हुई। प्रजेंटेसन वास्ते शोभना त्यार ही। बॉस केयो क सुहानी भी सागै आय जावै। शोभना सुहानी साम्हीं देख्यो अर बोली, ‘नीं, पैली सूं ई कॉस्ट कटिंग रो डर है, अर ओ प्रजेंटेसन म्हैं इज त्यार करियो है। आप रे आदेश रे मुजब इण रा सारा फोर-सार म्हारा है। जे इण खातर सुहानी रे मैम सागै कीं गळत हुयो तो मैं खुद ने माफ नीं कर सकूंला…इण खातर इण प्रजेंटेसन री म्हैं अेकली जिम्मेवार हूं। जे कीं गळती हुवै तो म्हनै ई सजा मिळै…आपने जे म्हारो काम क ओ प्रजेंटेसन दाय नीं आवै तो सै सूं पैली म्हारी छुट्टी…’ आ केवतां शोभना रो गळो भरग्यौ।
सुहानी रे तो जिणै काटो तो खून नीं। वा बगनी सी देखे ही। बाकी रा भी शोभना री बात सुण्यां पछै सून में हा। शोभना तो भोळेपण में आप री बात कही, पण इण बात रो असर ऊंडौ हुयो। आ बात स्यात शोभना ने ठाह नीं ही, पण वा समझाय चुकी ही क इण दफ्तर में वा समझदार तो है ई भावां-भरी भी है।
‘ओके, कैरी ऑन’ बॉस बोल्या।
‘…सर, कंपनी रो प्रॉडक्ट खासकर गांव रा लोगां खातर है। अर गांव रा लोग टीवी तो कांई देखे, उणां ने तो अखबार ई नीं मिळै। आ देखो, म्हारी रिपोर्ट, जिण में किण गांव में कित्ता टीवी है अर कित्ता अखबार जावै, उण री जाणकारी है…’ शोभना रो प्रजेंटेसन सरू हुय चुक्या हो। शोभना ओबेरॉय रे केबिन आगेकर निकळती ठिठकी। उण ने लाग्यो जियां बात उणी री हुय रैयी है। वा ओट में खड़ी हुयगी। दूजी आवाज अशोक री ही, ‘शोभना जी रो कामण पूरण हुयग्यो लागे…’ इण रे बाद तो जियां शोभना रूक ई नीं सकी।
पैली भी शोभना रे कानां में दफ्तर में उण रे लारै सूं हुवण आळी बातां भी आई ही, पण आज तो हद ई हुयगी। घरां आई तो उण ने ऑबेराय अर अशोक री बातां परेसान करण लागी। उण रो मन नीं लागे हो। पण वा जांवती भी कठै। घरां आवण रे बाद तो वा साव अेकली ही। वा सोचण लागी, ‘लोग इत्ता नीचे भी गिर सके, अेक छोरी री इज्जत री भी परवा नीं है। इसी नौकरी कांई तो करणी। वा तो आप रे काम सूं काम करे ही। किण पर कामण करती अर क्यूं करती। दफ्तर रा लोग उण ने इसी छोरी क्यूं समझ ली…वा तो इसी नीं है…इण सूं तो ठीक है क सै कीं छोड-छाड’र पाछी गांव चली जावे। कर ले ब्यांव और बसाय ले गिरस्थी।’
सोचतां-सोचतां वा आप री जग्यां सूं उठ परी कमरे में घूमण लागी। बारी खोल’र देख्यो तो रात हुवण आई ही। बरामदे में ऊभी शोभना अपणे बॉस ने प्रजेंटेशन रो मेल करण खातर मोबाइल हाथ में लियो, एक गहरी सांस लेवती आभै कांनी देख्या आभै में तारा टिमटिम करण लाग्या। तारां ने देखतां मन ई मन फेर सोच्यो, ‘फेर उण सपनां रो कांई हुयसी जका सजाया हा। काबिल बणबा रे बाद लोगों की इमदाद करणी, टाबरां री भणाई सारू सैयोग करणो अर आप रे गांव में अेक अस्पताळ बणावणे री उणरी इंच्छा रो कांई हुवैला।’ उण रे मन में कसक फेर उठी, ‘ हां, पापा ने बचायो जा सकतो, जे गांव में छोटी सी अस्पताळ हुंवती।’
आ सोचता अेक’र फेर वा त्यार हुयगी। सोचतां-सोचतां काम करण लागी। आप रे खातर दो रोटी बणाय’र फेर उण ने प्रजेंटेशन पर काम करणो हो। आगले दिन मीटिंग ही। प्रजेंटेशन देवणी ही।
दिनूगे त्यार हुवण रे बाद अेक बार फेर शोभना प्रजेंटेशन दियो। प्रजेंटेशन में बतायो हो क कियां अेक कंपनी सेवा रा काम कर सके। आप रे फायदे रो अेक बडो भाग जन-कल्याण में कंपनियां ने खरच करणो चाइजै, जिके सूं नीं फगत उण री ब्रांड वैल्यू बधै, लोगो ने भी फायदो मिळे। शोभना आप री सारी सोच प्रजेंटेशन में बताय दीन्हीं। चल-अस्पताळ सूं लेय’र, किताबां री चलती-फिरती गाडी री योजनावां उण में सामल करी।

सारी चीजां ने देख’र शोभना आपरे लैपटॉप सागे दफ्तर पूगी तो दस बज चुक्या हा। इग्यारह बजी बॉस सागै सारे स्टाफ री मीटिंग ही। आज माहौल में गरमी घणी लखावे ही। सारा आप-आप रे काम सूं काम करता दिखे हा। शोभना ने ठाह पड़ी क इण बात री चर्चा है क आज कॉस्ट-कटिंग भी हुय सके। कंपनियां में अे आम बातां है कि काम करे जकां ने पइसा बचावण रे चक्करां में हटाय देवे। शोभना सोच्यो, जे उण ने हटा दियो तो कांई हुयसी। मन में आयो क जदतांई उण ने ठाह नीं लागे क उण रो नांव कॉस्ट-कटिंग आळां में है क नीं, तदतांई वा प्रजेंटेशन रोक ले। पण, फेर सोच्यो आ तो गळत बात है। बडेरां री सीख रे खिलाफ है।
थोड़ी ताण में सगळा कांफ्रेंस हॉल में हा। बॉस रे आवण सूं पैली सगळां रे साम्हीं मीटिंग रा मिनिट्स आय चुक्या हा। वैम हो जिको जिको साच हुयो। सै सूं पैली कॉस्ट-कटिंग रो बिंदु हो। सै री जियां सांसा ठम चुकी ही। सब ने आपरो ई नंबर लागतो दीसै हो। शोभना ने लाग्यो जियां सिंझ्या री गाडी सूं ई उण ने गांव जावणो है। मां तो आ ई चावै ही क शोभना ब्यांव खातर हां कर दे।
मीटिंग सरू हुयगी। बॉस पैली आपरी बात केयी। कंपनी रा घाटा, दफ्तर में राजनीति अर काम में कमी जिसी बातां रो अेक ही सार हो कि लोग काम करे नीं तो घाटे री जिम्मेदारी भी उणां री अर इण खातर कीं लोगां ने जावण वास्ते त्यार रेवणो है।

धणी रो धणी कुण? आप री एक बात केवण पछै दूजे बिंदु पर बात हुई। प्रजेंटेसन वास्ते शोभना त्यार ही। बॉस केयो क सुहानी भी सागै आय जावै। शोभना सुहानी साम्हीं देख्यो अर बोली, ‘नीं, पैली सूं ई कॉस्ट कटिंग रो डर है, अर ओ प्रजेंटेसन म्हैं इज त्यार करियो है। आप रे आदेश रे मुजब इण रा सारा फोर-सार म्हारा है। जे इण खातर सुहानी रे मैम सागै कीं गळत हुयो तो मैं खुद ने माफ नीं कर सकूंला…इण खातर इण प्रजेंटेसन री म्हैं अेकली जिम्मेवार हूं। जे कीं गळती हुवै तो म्हनै ई सजा मिळै…आपने जे म्हारो काम क ओ प्रजेंटेसन दाय नीं आवै तो सै सूं पैली म्हारी छुट्टी…’ आ केवतां शोभना रो गळो भरग्यौ।
सुहानी रे तो जिणै काटो तो खून नीं। वा बगनी सी देखे ही। बाकी रा भी शोभना री बात सुण्यां पछै सून में हा। शोभना तो भोळेपण में आप री बात कही, पण इण बात रो असर ऊंडौ हुयो। आ बात स्यात शोभना ने ठाह नीं ही, पण वा समझाय चुकी ही क इण दफ्तर में वा समझदार तो है ई भावां-भरी भी है।
‘ओके, कैरी ऑन’ बॉस बोल्या।

‘…सर, कंपनी रो प्रॉडक्ट खासकर गांव रा लोगां खातर है। अर गांव रा लोग टीवी तो कांई देखे, उणां ने तो अखबार ई नीं मिळै। आ देखो, म्हारी रिपोर्ट, जिण में किण गांव में कित्ता टीवी है अर कित्ता अखबार जावै, उण री जाणकारी है…’ शोभना रो प्रजेंटेसन सरू हुय चुक्या हो।

‘…म्हारी आ राय है क कंपनी ने छोटा-छोटा बीस-बीस गांवां रा ब्लॉक बणाय’र, उणां में अेक इसी गाडी भेजणी सरू करां जिकी में चिकित्सा अर शिक्षा री वैवस्था हुवै। टाबरां ने किताबां अर इणी तरै री दूजी चीजां। एक डॉक्टर साब भी सागै हुवै, जका लोगां में बीमारी री जांच करे अर दवाई देवे। समै-समै माथै आपां मेडिकल कैंप भी लगावां अर टाबरां रे माइतां ने भी उणां री भणाई खातर राजी करां…’
प्रजेंटेसन पूरो हुवण रे बाद शोभना बोली, ‘इण खातर सरकार अर समाजसेवी संस्थावां भी आपां रे सागे हुय जासी।’
‘इण सूं कंपनी ने फायदो?’

‘सरकार रो भरोसो अर समाजसेवा करण आळां रो सागो। …लोगां ने जियां जियां ठाह पड़सी क इण कामां रे लारै आपरी कंपनी रो हाथ है तो आपूं-आप ही ब्रांडिंग हुयसी। आपां रो प्रोडक्ट लेंवता लोगां ने लागसी क उणां रे इणी पइसां सूं पुन्न रा काम भी हुवैला। …सर, आज रे टैम में हर आदमी आप री जरूरतां ने पूरी करतो थको पुन्न कमावणो चावै…इण सोच रो आपांनै फायदो मिळै ला…’
‘अर बजट?’
‘नथिंग सर, अखबारां में आ टीवी पर विज्ञापन बंद कराय दो अर कंपनी री जित्ती भी गाडियां है, उणां में सूं दो गाडिय़ां इण काम वास्ते…बाकी काम तो स्टाफ में जको खाली हुवै, वो करण खातर त्यार ई है…’
‘आ कियां हुय सकै…’ ‘सर, हर आदमी पुन्न कमावणो चावै अर फेर नौकरी भी बचे अर पुन भी मिळै तो कुण नीं करै…’ शोभना मुळकी… ‘वाह!’ बॉस आपरी सीट सूं उठता बोल्या अर ताळी बजायनै शोभना रो हौसलो बधायो। बॉस ने देख’र सगळा ताळियां बजाई। शोभना बॉस साम्हीं हाथ जोड़ दिया।  शोभना री आंख्यां में आंसू हा पण मन में उमाव भी हो। लैपटॉप ने बंद करता थकां स्क्रीन पर पापाजी रो फोटू हो, वा मनोमन निवण करती बोली, ‘पापाजी, अब गांव में कोई बिना इलाज नीं रेवैला…’

 

रोशन बाफना  (मोबाइल नम्बर 8387987499)

गद्य-पद्य में बरोबर लिखता रेवै, मुम्बई फिल्म ऐशोसिएशन रा सदस्य है, कई पत्र-पत्रिकावां में रचना लगोलग छपै है, साथै-साथै पत्रकार भी है।

कविता 1 : रळ-मिळ’र

कदै नीं हुयौ
क छात नैं केवूं कीं
अर
वा फाट जावै
नींवां धिसक जावै
भींता फाट जावै
इयां ई नीं हुवै रैवास
रैवास तद तांणी नीं बणै
जद तांणी कोई नीं तपै
सहै नीं कोई
फेर भलांई हुवै ई चाहै झूंपड़ी
अर बणां लो चायै म्हैल
रैवास नीं बजै
जद तांणी रैवणौ नीं आवै रळ-मिळ’र

 

कविता 2 : रमतिया

अचाणचक निकळ आई म्हारी वा संदूक
जिण में हा म्हारा रमतिया
गुड्डा-गुड्डी, बांदरौ अर चाबी आळी बस
आज भी मुळकै ही गुड्डी
अकडियोड़ौ हो गुड्डो
बांदरै रा भूर खिंडग्या हा
पण फेर भी संचळौ नीं हो वो
चाबी आळी बस ठस ही
अर म्हारी जिनगाणी
चालै ही
जिया-जूण में इसा कित्ता ई रमतिया
संदूक में घाल’र भूल जावां हां
अर दावा करां
निभावां हां म्हैं

 

नगेन्द्र नारायण किराड़ू   (मोबाइल नम्बर 9460890205)

राजस्थानी अर हिन्दी में कवितावां-कहाणियां लिखै साथै चोखा चित्रकार भी है। कई पत्र-पत्रिकावां में लेखनी प्रकाशित हूवै। अबार आपरे पिताजी स्व. भगवान दास किराड़ू रे साहित्य ने आम जन तक पहुचाणें रा लक्ष्य हाथां मे ले राख्यो है। रोजगार विभाग में काम करै है।

पोथी समीक्षा :  गुल्लू री गुल्लक

मधु आचार्य ‘आशावादी’ राजस्थानी और हिन्दी के बड़े ही ख्यातनाम और ऊर्जावान रचयिता है। पिछले कई वर्षों से वे हिन्दी और राजस्थानी में पचास से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं।
मधु आचार्य ‘आशावादी’ को साहित्य अकादमी दिल्ली व राजस्थानी के उपन्यास ‘गवाड़’ पर सर्वोच्च पुरस्कार अर्पित किया जो राजस्थानी का पहला उत्तर आधुनिक उपन्यास माना गया है। इस उपन्यास पर आपने खूब नाम कमाया है। हिन्दी और राजस्थानी की लगभग सभी विधाओं पर आपने लेखनी चलाई है। अनेक विधाओं में नित नवीन सृजन किया है। आपने बड़ों के लिए तो सृजन किया ही है साथ-ही-साथ बच्चों के लिए भी सरस भाषा में सृजन किया है। राजस्थान बाल उपन्यास ‘गुल्लू री गुल्लक’ बच्चों के अन्दर बचत की भावना को उत्पन्न करने वाला एक प्रेरणादायी उपन्यास कहा जा सकता है। इस उपन्यास में यह सन्देश दिया गया है कि इस समय पर की गई बचत कब काम आ जाए इस बात का किसी को भी अन्दाजा नहीं होता। इस उपन्यास में उपन्यासकार केवल उपदेश ही नहीं देता बल्कि गुल्लू जैसे पात्रों से सच्ची दोस्ती, भाई-चारा और एक-दूसरे की मदद करने की हिम्मत रखने वाले पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण करता है। गुल्लू पढऩे में होशियार है साथ-ही-साथ वह अपने मित्रों से प्रेम रखने वाला है। उसको यह पता है कि बचत का क्या महत्त्व है। इस उपन्यास में गुल्लू एक आदर्शवादी पात्र है जो यह सन्देश देता है कि अभी बचत नहीं करोगे तो आगे अपने काम कैसे करोगे। इस पुस्तक में मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने नाटकीय क्षमता का भरपूर प्रयोग किया है। छोटे-छोटे संवादों और छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से बड़ी-बड़ी सीख दी है। गुल्लू में बचपना होते हुए भी अपनी मां, अपने खेत और अपने दोस्तों आदि से बहुत लगाव तो है ही, साथ-ही-साथ कर्ज में डूबे अपने परिवार के बारे में सोच है। गुल्लू अपनी बचत के बलबूते पर अपने गिरवी रखे हुए खेत को छुड़वाने की बात सोचता है। यहां पर अपने दोस्तों की सच्ची दोस्ती का उसे पता चलता है।
उसने गिरवी रखे हुए खेत को छुड़वाने के लिए उसके साथ उसका दोस्त रामू ही नहीं उस सेठ का बेटा भी साथ हो जाता है जिसके पास गुल्लू के खेत गिरवी पड़े हैं। लेकिन उनके गुल्लक में इतने पैसे नहीं निकले जिनसे सेठजी का कर्जा उतर सके। परन्तु सेठ जी उदारता का परिचय देते हैं। बच्चों के इस अपनत्व से उनका दिल पसीज जाता है और सेठजी पैसे लिए बिना ही गुल्लू को खेत के कागज वापस दे देता है जिससे गुल्लू के घर की हालत बहुत अच्छी हो जाती है। उसके घर वाले गुल्लू की इतनी बड़ी सोच के आगे नतमस्तक हो जाते हैं।
इस उपन्यास में बालकों की भावनाओं के साथ-साथ सेठ की मानवता और छोटे बालकों की बड़ी सोच का पता चलता है। बच्चों के लिए लिखा गया यह उपन्यास बहुत कुछ सीख देने वाला है। इस उपन्यास में हम एक छोटे से बच्चे को सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में बदलते हुए देख सकते हैं।
मधु आचार्य ‘आशावादी’ का यह उपन्यास समाज में समरसता का सन्देश देता है। साधारण बोलचाल की भाषा में लिखा हुआ यह सचित्र उपन्यास अपनी भाषा और शैली की दृष्टि से काफी प्रभावी है और हृदय की आंतरिक गहराई तक असर देने वाला उपन्यास है। ऐसा लगता है कि इस उपन्यास को लिखते समय मधु आचार्य ‘आशावादी’ स्वयं बाल रूप में ढल गए हैं। इस प्रेरणादायी पुस्तक को लिखने के लिए लेखक को हृदय तल से बधाई।