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ऋतु शर्मा मोबाइल 9950264350

साहित्य सर्जण रे साथे समाज रे काम में भी सक्रिय, राजस्थानी-हिन्दी में बरोबर कहाणी कविता लिखै। हिंदी अर राजस्थानी में च्यार पोथ्यां छपियोड़ी है। मंच संचालण रो खासो अनुभव, लोक संस्कृति री चेतना जगावण वास्ते बणायोड़ी गणगौर समिति रा अध्यक्ष, युवा उद्यमी। सरला देवी स्मृति अर कर्णधार सम्मान सूं सम्मानित।

कहाणी : फैसलो

मेळा चौक में हाको मच्यो हो। कीं लोग अेक छोरी ने चोरी करतां सबूतां रे सागे पकड़ी ही। सरकारी बगीचे री पेडिय़ां माथै लुगायां री बंतळ में भी आ ईज बात ही। लोग कौतक देखण खातर मेळा चौक में भेळा हुवण लाग्या। सुरजू लोगों ने खाथा-खाथा मेळा चौक कांनी जावतां देख’र सोच्यो क कीं तो रासौ है। हुयो कांई है, इत्तो रोळो क्यों है। कांई फेर कोई तळाव में डूब मरियो। क भैरिये री भैंस्या फेर धनजी रै बैरे में तो नीं बडग़ी। पण जे इण तरै री कोई बात हुंवती तो इत्ता मिनख नीं भेळा हुंवता। अठै तो लुगायां भी भेळी हुयोड़ी है। आ सोचता-सोचता सुरजू जद मेळा चौक में लागी भीड़ तांई पूग्यो तो नजारो कीं ओर ही हो।
लोगां रे टोळां रे बीचै अेक छोरी खड़ी ही। सतरे-अठारे साल री सांवळे बरण री छोरी। नैनां-नक्स अर कपड़ा सूं चोर तो नीं लागती। लोगां सूं सुणी क चोरी करतां पकड़ीजी। चैरे माथै कोई पिछतावो नीं हो। लोग उण ने जाणबा री खेचळ में उण रे कनै जाय’र देखणो चांवता हा। इणी वेळा पुलिस री गाडी रो सायरन सुणीज्यो। लोग अेके पासी हुयग्या। जीप में सूं दरोगा अर सिपाही उतरिया अर मौके पर पूग’र लोगां सूं माजरो जाण्यो। रोळो देख’र मीडिया आळा भी पूगग्या हा।
छोरी उण वेळा भी चुपचाप खड़ी ही। वण अेक-दो बार निजरां उठाय’र देखी, फेर नाड़ नीची कर लीन्ही। गैणां री दुकान आळो राधेश्याम सोनी पुलिस ने देखतां ही आगे आयो अर बोल्यो, ‘साब, पैली भी आ हाथ साफ करिया है, पण आज झाल ली…म्हानै तो कदै अनेसो ई नीं हुयौ क आ चोर भी हुय सके। दो-तीन गिरायकां सागै आंवती तो म्हांनै लागतो क इणां रे सागै री हुवैली…आज बींटी उठाय नै जेब में घालण लागी तो गिरायक ई बतायौ…।’
राधेश्याम री बातां सुण’र इंस्पेक्टर छोरी कांनी गयो अर उण नै पूछियो, ‘कांई नांव है थारो…’
‘बेबी…’
‘चोरी करी?’
बेबी कीं नीं बोली। जमीन ने अंगूठे सूं कुचरण लागी। सुरजू देख्यो, छोरी कीं जाणी-पिछाणी लागे ही। पण कुण है आ।
कुणसो गांव? इंस्पेक्टर रो सवाल हो।
‘लाडसर…’
‘बाप रो नांव…’
‘चंपारामजी…’
‘कांई करे ?’
बेबी फेर चुप हुयगी। सुरजू आप री यादां पर जोर घाल्यौ तो सारो माजरो समझ आयग्यौ। लाडसर रा चंपारामजी पिंडत हा। पूजा-पाठ रा काम करता। लारले चैत में चालता रैया। सुरजू ने लाग्यौ क वो उण छोरी वास्ते कीं कर सकै। सगळां रे बीचै अेक वो ईज हो, जको उण छोरी ने जाणतो हो।
इण करतां इंस्पेक्टर छोरी ने थाणे ले जावण रो हुकम देय दियौ। थोड़ी ताळ में मेळा चौक में भी छीड़ हुयगी। लोग आप-आपरे काम में लागग्या। सुरजू रे मन में आस रो अेक बीज ऊगण लाग्यौ। उण ने चंपारामजी पिंडत री बातां याद आवण लागी। वे जद भी गांव सूं आंवता, उणरी दुकान माथे ही बैठता। मालिक उण रा जजमान हा। जजमान सूं बात करतां सुरजू ने भी कीं टोटका बतावंता। चंपाराम जी री बातां सोचतो-सोचतो वो थाणे तांई पूगग्यौ।
बारे कोई नीं हो। मेळा चौक में पूगी पुलिस री गाडी खाली ही। डरतो मांय गयो तो कोई नीं रोकियो। थाणे में आवणियो कोई सैलाणी तो हुवै नीं है। किणी न किणी पीड़ रो निवेड़ो करण नै ही आवै। आवै जकां ने ठाह हुवै क किण सूं मिळणो है तो फेर कुण किण नै पूछे। मांय जावतां ई देख्यो, एक लुगाई सागै बेबी खड़ी ही। इंस्पेक्टर सूं बात करपरी लुगाई बेबी ने लेय’र अेक कमरे कांनी गई।
सुरजू रे कीं समझ नीं आयो। वो भी लारे-लारे व्हीर हुयग्यो। सुरजू देख्यो, लुगाई बेबी ने लेय’र जिण कमरे में गई, उण कमरे रे बारे काउंसलिंग-रूम लिख्योड़ो हो। सुरजू पढ़ तो लियो पण समझ नीं आयो। कमरे के फाटक पर पड़दो लाग्योड़ो हो। मांयनै बेबी ही अर बारै लाग्योड़ी बेंच माथे सुरजू बैठियो हो। ‘तो बेबी बेटा, म्हारो नांव जानकी है, जानकी वर्मा…म्हांसू थांनै डरण री कीं जरूरत नीं है…बस म्हैं चावूं थांरै जिस्या टाबर इण नरग में खराब नीं हुवै…अबार कांई तो उमर है था री…पढ़ बेटा…’
‘पढ़ती मैडम, पापा रे जावण रे बाद पढ़ाई छोडणी पड़ी।’
‘ओह, तो घर में और कोई नीं है?’
‘है मैडम, मां है…जकी पापा रे जावण रे बाद सेंग-मेंग हुयगी है…’
‘हे भगवान…पण बेटा चोरी करणो जुलम है…’
‘जाणूं हूं मैडम जी, पण कांई करती…पाप करण सूं तो ठीक है…’
‘पाप….’
‘छोडो मैडम जी, लांबी कहाणी है…’
‘बता बेटा, म्हारो काम ही ओ है। कांई ठाह थांरी कहाणी सूं आणे वाळी छोरियां री जिनगांणी बच जावै…म्हां थांरै जिसी छोरियां री असली कहाणी पर केस-स्टडी कर’र सरकार ने भेजूं, फेर सरकार सर्वे करावे अर आपरी नीतियां बणावै…’
कमरे में कीं ताळ एक मूंन वापरगी। सुरजू ने बारै कीं नीं सुणीज्यो तो वो कीं नेड़ो गयो। परदे रे पार देख्यो, बेबी री आंख्यां में आंसू हा।
‘रो मत बेटी…’ जानकी मैडम उणनैं समझावंती आपरी कुर्सी सूं उठी अर उण रे कनै आयनै बैठगी। पाणी रो गिलास देंवती बोली, ‘चाय मंगाऊं…’
बेबी नाड़ हिलायनै मना कर दियो। जानकी मैडम उणरे माथे पर हाथ फेरती बोली, ‘तूं कीं बतावे ही…’
‘…हां, मैडमजी…आप री सरकार कीं नीं कर सके, पण म्हैं आप ने बताऊंली। …पापा रे जावण रे बाद म्हां अनाथ हुयग्या। पापा पूजा-पाठ करता। दान-दखणा सूं घर चालतो। वे गयापरा तो मां भाटो हुयगी। मूंन धार लियो जियां। कीं दिन तो लोग आया, फेर सै आप-आप रे कामां में लागग्या। काकोसा घणो ध्यान राख्यो, पण उणां री निजरां में खोट ही। उणां री बात नीं मानी तो वे मां रा कान भरण लाग्या…म्हारे चरितर में दोस गिणावण लाग्या…मां बापड़ी पैली सूं ई दुखी…कांई करती…अेक दिन रीस में आय नै म्हनै घणी ठोकी…चाचा आय नै बचाई…वे बचावण ने नीं आया हा मैडम…वे कीं पावण ने आया हा…मां केय दियो, अब थे ही सांभो इण ने देवरजी…काका ने जिकौ चांवता वो मिळग्यो…वे म्हनै लेय ग्याबोल्या, देख ले…कांई चावै…म्हारो सागो क बदनामी…’
बोलती-बोलती बेबी चुप व्हेगी।
‘फेर कांई हुयो…काको जोरामरदी…’ जानकी मैडम रे सवाल में एक चिंत्या ही।
‘नीं मैडमजी, उण रे कीं नीं करणो हो। उण रो काम दूजो हो। नेता अर अफसरां सूं कांम करावण ने उण ने म्हारी…’
‘ओह…’ अठीने जानकी बोली अर सुरजू भी सुण’र सकपके में आय ग्यौ।
‘…काका बोल्या, म्हारी बात मान ले…पइसे री कमी नीं रेवेली…नीं जणै रोटी ने तरस जाओला मां-बेटी दोनूं…पण म्हैं हां नीं करी मैडम जी…वे रिसाणा हुया…पण म्हारी मरजी रे बिना कांई करता…’
‘इस्या मिनख भी इण संसार में हुवै…’ सुरजू सोच्यो।
‘तो चोरी कियां करण लागी?’ जानकी रो सवाल हो।
‘काको ही मारग बतायो हो। बोल्या, जै पेट भरणो है तो या तो करले धन्धो या कर ले चोरी, म्हने चोरी करणो ठीक लाग्यो।’
‘पण तू तो इण उमर में घणी हुसियार चोरनी बणगी…’ जानकी हंसती बोली।
‘अेक साथी मिळग्यो। वण सिखाई…’ सुणतां जियां सुरजू ने धक्को लाग्यो। जानकी पूछे ही, ‘कुण है वो…’
‘वो भी चोर है…चोरी रो माल वो ई धंधे लगावै…’
‘ओ जीवण इसो इज है, एक हो जिण म्हारी देह चाइजती ही अर एक ओ है जिकै ने म्हारी देह नी चाइजे बस पइंसा चाइजे।’
‘सुधरणो चावै…?’ जानकी रो सवाल सपाट हो।
‘किण रे वास्ते…’ बेबी मुळकती बोली।
जानकी वर्मा कीं कहणो चांवती पण बोल नीं सकी। दोयां रे बीचां कीं ताळ फेर मूंन पसरगी। जानकी आप री कुर्सी माथै बैठ’र कीं लिखण लागी। बारे सुरजू रे मन में घांण-मथांण तेज ही।
वो देख्यो सांम्हीं सूं अेक पुलिस आळो खाता-खाता पगां सूं आयो। काउंसलिंग रूम में जांवतो इण सूं पैली सुरजू ने देख’र थम्यो अर पूछयो, ‘किण सूं मिळनो है…’
‘ब…ब…बे जानकी मैडम…’
‘ओह, जानकी मैडम रा ड्राइवर हो…ठीक….’ केंवतो कमरे में गयो अर बोल्यो, ‘जानकी मैडम, इण छोरी रो कोई रिस्तेदार वकील सागै आयो है…ले जाय सकूं हूं कांई…’
जानकी मैडम बेबी कांनी देख्यो, बेबी चुप ही। बारै सुरजू री आस रो बिरवो जमीन सूं बारै निकळणे सूं पैली ई मुरझाइजग्यो हो।

 

 

इरशाद अजीज  मोबइल  9414264880
हिन्दी उर्दू अर राजस्थानी में बराबर रूप सूं गद्य अर पद्य लिखण में सक्रिय। देश-प्रदेश में हूवण आळा मुशायरां में बीकानेर री खुशबू रे रूप में पिछाणां जावे। रेल्वे रे मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, राव बीकाजी संस्थान रे राजकुमार भीमराज अवार्ड अर नगर विकास न्यास रे अन्य भाषा पुरस्कार साथै जवाहर कला केन्द्र अर उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला री ओर सूं भी पुरस्कृत ।

 

कविता : नीं करूं मुजरो

बांनै कैय दो कै म्हैं नीं आवूं
बांरी ड्योढी माथै
नीं झुकावूं माथो
नीं करूं मुजरो

मिलता हुवैला थांरी हेली मांय
जीवण सारू सगळा ठाठ-बाट
खावता हुवैला बै लोग भरपेट रोटी
जकी राख दी हुवैला
आपरै बडेरां री पागड़ी थंारै पगां मांय

म्हैं सबदां रो लिखारो हूं
साच नैं साच
अर झूठ नैं झूठ कैवण रो हौसलो राखूं
गोलीपो करणिया करसी
थारी हां में हां भरणिया भरसी
इज्जत सूं जीवणिया
सै कीं सह सकै पण
आतमा कदैई नीं बेच सकै।

 

डॉ.गौरीशंकर प्रजापत   मो.9414582385

 राजस्थानी अर हिन्दी साहित्य में अेम.अे., यूजीसी री नेट परीक्षा दो वेळा पास। पीएच.डी. (राजस्थानी)।राजस्थानी में ‘साहित्य-शास्त्र री ओळखाण’ निबन्ध संग्रै छप्योड़ौ। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय री राजस्थानी पाठ्यक्रम समिति रा सदस्य।  नगर विकास न्यास सूं एल.पी. टैस्सीटोरी गद्य पुरस्कार (2007), विजेता स्टार आर्गेनाईजेषन, मिमझर संस्थान, संस्कार संस्थान सूं राजस्थानी में सिरै लेखन सारू सम्मान। स्व. भीम पांडिया री जयंती उच्छब टाणै ‘राजस्थानी भासा सेवा सम्मान समेत केई इनाम-इकराम। 

 

कविता : थू म्हारै 

हियै में इत्ती हिम्मत

माथै मांय इत्ती माथापच्ची

भरी।

पण नीं दी,

म्हारै हाथां नैं मजबूती,

पगा नैं ताकत,

भागण सारू

परिवार खातर।

थू म्हारै

जज्बातां नै तो गैराकरिया

विचारां नै ऊंचा करिया,

पण ,

म्हारी हसरतां नैं

दिसा नीं दी।

थू म्हनैं,

नाकाबिल,

नाकामयाब,

बणावण रा घणा जतन करिया,

पण,थू म्हारी ,

फितरत पर भूल सूं,

रोक लगावणो भूलग्यो।

औ ईज कारण है,

आज म्हैं जमीं माथै ऊभो,

आसमा सूं राड़ करण री हिम्मत राखूं।

 

हरीश बी.शर्मा मो.9672912603

नाटक कविता, कहाणी, गीत अर इण रे सागे पत्रकारिता करे। साहित्य अकादमी रे बाल साहित्य पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी रे देवीलाल सामर पुरस्कार रे साथे साहित्य कला परिषद नई दिल्ली रो मोहन राकेश सम्मान भी मिल्योड़ो है। राजस्थानी में नाटक भी लिखै है, इण री रचनावां में थम पंछीड़ा अर फिर मैं फिर से फिरकर आता, गोपीचन्द की नाव अर देवता, अैसो चतुर सुजान, सतोळियो अर साक्षात्कार संकलन हुनर हौंसले की कहानियां जिसी घणी किताबां है।

 

कहाणी संग्रै  :  जुम्मे री नमाज 
जथारथ नैं अरथावंती जुगबोध री कहाणियां
साच रा उतरा रूप-सरूप, जित्ती दुनिया में दीठ। फैर कईं दफै तो म्हनैं लागै साच अर कूड़ जिसी कोई चीज ई नीं है, है जकी दीठ है। अठै अेकार फेर उळझूं अर सुळझावण री खतावळ में पजतो पाऊं। सवाल साम्हीं आवै क किसी आ दीठ भी आखरी है? म्हारौ साच। थांरौ साच। म्हारी दीठ। थांरी दीठ। दीठ ई दीठ। साच ई साच। अर इणी बगत जद हूं निकळूं ‘जुम्मै री नमाज’ सूं तो कह सकूं कि इण संग्रै री कहाणियां दीठ रो कोलाज है। साच इण खातर नीं केय सकूृं क साच में कीं तरयां रो रोमांच नीं हुवै। बात हुवै, जस री तस। जथारथ केवणौ सोरो, झेलना दोरो। दीठ में अेक खास तरयां री ग्राह्ता हुवै। जुगबोध हुवै। साच री नागाई पल्लौ लेवण री आफळ नीं करै। दीठ मुलम्मा लगावै। कारण रे सवालां सूं लड़त मांडै, पड़तां खोलै अर भणनियै ने कीं नुवों देवण री चुणौती पूरै। पण कोरी दीठ तो आम लोगां खातर भारी हुय सकै। कहाणियां तो जन-रंजन री विधा है। बातपोश रात-रातभर कहाणी कहता, हुंकारा देंवता-देंवता झांझरका हुय जांवतौ। हर रात नुवीं कहाणी कथता। कथता ई रेंवता। रात भलां ई बाकी ना रो, बात तो बाकी रेंवती ईज ही। तो फगत दीठ सूं कियां काम चालै। सागौ-साग नदी री कळकळ भी हुवै। एक पतियारौ हुवै अर सैं सूं बडी बात कहण रो जादू हुवै। जे कहण रौ जादू नीं हुवै। वा युक्ति नीं हुवै तो फेर कठै कहाणी? वेदव्यास जी तो पांच हजार साल पैली ईज केय ग्या, है जको ‘जय’ में है। फेर कांई तो कहणौ-सुणनौ?
पण, वेद व्यासजी रे पछै भी लेखक चावा हुया है तो कांई कूड़ बोल्या हा वेद व्यास जी? इतरो कांय रौ गुमेज? जवाब मिळै, गुमेज हो, ना हो कूड़। आज भी टकराय लो, नित री घटनावां। सैं रा तागा महाभारत में लाधसी। महाभारत सूं परबार स्यात ही आणै वाळै समै में भी कीं घटै।
अर स्यात तो म्हारै जिस्यौ मांदै ज्ञान आळौ कैय सकै, लांठा कवि तो मान चुक्या है क कविता नै जकौ केवणो हो, कह चुकी। अब तो केवण रौ फगत सलीको बाकी रैयो है। देखण रौ तरीकौ बाकी रैयो है। अर महाभारत सूं लेय नैं आज तांई ओ ईज जो हुय रियौ है। कवि-कथाकार अरथावण में लाग्यौ है। देख्यै, भणियै क सुणियै जथारथ रे इरप्रिटेशन में नुवो-साहित्य निकळ रियौ है। एक्सपायरीमेंट अर ट्रीटमेंट सूं रोमांच पैदा करण री खेचळ हुवै। सबदां नैं बरतण मेें कीं इसी कवायद हुवै क नुवौ अरथ, गूंज अर चितराम बरामद हुवण री गुंजाइस निकळै।
हूं कैय सकूं क आ ईज है ‘जुम्मै री नमाज’। कथाकार-कवि राजेंद्र जोशी इण सूं पैली ‘अगाड़ी’ लावै अर पाठकां नै ओ भरोसो दिरावै क राजस्थानी कहाणी पेट अठै कीं नुवो है। जोशी री कहाणियां में बोदोपण नीं है। हर कहाणी कीं नुवी बात खड़ी करै अर पाठक नै सोचण वास्ते मजबूर करै। दूसरो कहाणी संग्रै इण नुवैपण रौ एक और पांवडौ है। एक गुंजाइस है। नुवी तरयां सूं आप री बात केवण री खेचळ है।
सरू सूं सरू नीं करता ई जे बात जुम्मै री नमाज सूं सरू करुं तो इण कहाणी में भारत सूं पाकिस्तान अर फेर भारत आवण आळै एक छोरे री कहाणी है। लारलै दिनां इस्या दोय मामला सांम्हीं आया जिकेमें दो लोगां रै पाकिस्तान री जेल में है। अेक तो गजानन शर्मा ३५ साल सूं है, दूजो, जुगराज भील पांच साल सूं। ओ संयोग ही है क इण समै में जद राजेंद्र जोशी ‘जुम्मै री नमाज’ लिखै, तो दोय प्रकरण सांम्हीं आवै अर इण संग्रै में भी दोय कहाणियां रा कथानक इणी तरयां रा है। ‘जुम्मै री नमाज’ रो किरदार दीनदयाल उर्फ रईस पाछौ भारत आय जावै पण ‘सायरौ’ कहाणी रो विजय री तो कोई खोज-खबर पण ना मिळै। इण कहाणियां सूं लागै क एक लेखक आज रै समै में हुंवता बदळावां सूं कित्तो गैरो जुडिय़ोड़ो है।
‘जुम्मै री नमाज’ फगत कहाणी नीं है। लारलै सित्तर साल में बंटियै मन में भरियौ ज्हैर दरसाव है। इण कहाणी में पाकिस्तानी सेना रे अफसरां में भारत खातर नफरत, कमीणपणौ अर बदळे री भावना जैड़ी घणखरी पड़तां है। अेे चितराम एक संवेदनशील लेखक बणाय रियौ है, तो तय है कि इण में किणी तरयां री कूटनीति नीं हुय परी, साव-साची बातां हैं। संवेदना है। बोर्डर रा चितराम उकेरता जोशी इयां लखावै जाणै बोर्डर रै ऐड़ै-गैड़े री जिनगाणी नै घणै नेड़ै सूं देखियो है।
सब सूं सांतरी बात आ है कि जोशी रे मन में बैठ्यो कथाकार किसी तरयां रा चमत्कारां में भरोसो नीं करै। जकौ जथारथ है, उण रो अतिक्रमण नीं है पण हदबंदी नै भी नीं मानै। जकी बात है, उण में कीं छमकौ नीं है। भारत-पाकिस्तान रै बीच रिस्तां री गरमास रै कारण सीमा नै पार करणौ अबखो है तो है। जे किणी तरयां सूं एक भारतीय पाकिस्तान जाय परौ पाछौ आय भी जावै तो उण खातर कानून एक सरीसो है। फिल्म्यां आळै ज्यूं उण नै पनाह देवण खातर नां तो वठै कोई फरिस्तो है अर नां पाछौ आप रै देस में आवै जद कोई रियायत। लारलै दिनां सलमान खान री फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ में जियां फैंटेसी देखी, बिसी बातां अठै नीं है। किणी तरयां रौ संयोग अठै नीं है। कोई हीरोइज्म नीं है। अठै तो दुख है, भूख है अर भेडिय़ा है, जका दीनदयाल रे बूढ़े बाप नै भगा दे। मां सागै जोरामरदी करै अर सागै लाई रेवड़ री भूख-तिस री परवाह करतौ दीनदयाल रईस बण’र भीख मांगै। ई भीख सारू ‘जुम्मै री नमाज’ में आया लोगों सूं जकात री उम्मेद में आवै, जकौ कहाणी रो टर्निंग-प्वाइंट है।
म्हनैं लागै इण कहाणी में दीनदयाल उर्फ रईस रौ पात्र ई जरूरी हो। बाकी सैं भरती रा पात्र है। मां, बाप, बकलडिय़ां आद सूं कहाणी उपन्यास री जात्रा पर निकळती दिसै। हुय सकै, आ कहाणी लिखतां थकां राजेंद्र जोशी रे अवचेतन मन में उपन्यास की परिकल्पना रैयी हुवै। पाना री दीठ भी आ कहाणी ११ पेज री है, पाना रै मुजब इण जोड़ री बीजी कहाणी ‘पैलां कुण’ है, जकेरौ कथाणौ भी ११ पानां में फैलियोड़ौ है।
संग्रै री पैली कहाणी ‘हत्यारो’ अेक जुदा रंग लियां है। आस अर निरास रै बीच चालती इण कहाणी में बात तो इत्ती ईज है क जरूरी नीं है क सारी चावना पूरी ईज हुवै, पण चावना पूरी नीं हुवण पर मन मांय सूं तिड़क जावै अर फैर कदै नीं जुड़ै। जिकौ चावना राखै, उण नै यूं लागै क सामलौ इत्ती बात तो मान ई जासी, पण सामलै री भी आपरी ‘पैल-दूज’ हुवै। इण ‘पैल-दूज’ रे खेल में चावना करणियै री ठौड़ फैसला करै। कैवत है नीं आदमी रो हुवणौ महताऊ नीं, वो किण ठौड़ खडिय़ौ है, महताऊ है। इण कहाणी रै मनोविज्ञान नैं की और टंटोळन री आफळ करी जाणी चाइजती। इण आफळ री कमतरी रै कारणै कहाणी री हथाळी माथै कीं रंग रचीजणा रैयग्या।
‘कूख’ कहाणी तो सीधी महाभारत रै काळ में लेय जावै। कुंती अर द्रोपदी जे दो पात्र है तो कांई दुनिया में इणां रै अलावा इसी नियति भोगतां बीजा किरदार नीं है? नीं है? समाज में कित्ती-कित्ती लुगायां हैं जकी जाणै-अणजाणै कुंती अर द्रोपदी री नियति भोगण खातर परवस है। फेर हर कुंती अर द्रोपदी ने वेदव्यास थोड़ां ई मिळै। साच तो आ है कि इसी घणखरी कहाणियां ने तो सबद ई नीं मिळै। पण, आ कहाणी दो पावंडा बेसी है। मरद चावै ज्यूं कर ले। लुगाई री कूख भी बेच दे। अर इण सरत सारू क वा इण कूख सूं उण मिनख रा टाबर पैदा करसी, जकै रे हाथ बिकी है। अर बिकै भी एक नीं, तीन-तीन मिनखा सूं। मिनख भी उण रै भरतार रा भायला! पैली पोत इण कहाणी नैं पढ़तां लागै क इयां नीं हुय सकै। फेर, जियां ई पोथी नै सिरांथै राख’र सोचूं, अणगिणत अखाणा सांम्हीं आवै। फेर जियां-जियां म्हें आधुनिक हुवंता जा रिया हां, सत रो पत ई तो चूक्यौ है। कूख एक इसी कहाणी जकी रूं-रूं खड़ा कर दे। लखदाद है राजेंद्र जोशी ने। आ कहाणी स्त्री री भोग्या हुवण री नियति सूं भी आगै जायनै उण नै कारखानौ बणाय देणी री त्रासदी रौ चितराम खड़ौ करै। आज रै दौर में जद आधी दुनिया आपरी निरवाळी पिछाण जतावण री आफळ करै, उणी समै में आ कहाणी आंख्या खोलण जैड़ी है।
‘विदाई’ कहाणी में जोशी दादी रो जकौ किरदार खड़ौ करयौ है, लाजवाब! परंपरा अर संस्कृति री विरासत सूंप नैं विदा लेंवती दादी रो जथारथ देखतां ई बणै। खासतौर सूं तद, जद दादी हिम्मत नीं हारै। आप रौ कांम खुद करै अर चावै के मिरतु सूं पैली भुतनणौ नीं पड़ै। फेर, जद अंतकाळ आय जावै तो खुसी-खुसी जावण खातर त्यार रैवे। कहाणी री बुणगट सांतरी। प्रेरक अर संवेदना सूं भरियोड़ी। इण में धींगा-गवर रो अेक अखाणौ तो जियां समचै नारी-लोक रौ बयान है। धींगा-गवर री कथा मरद नीं सुण सकै। इण कायदै नै लेखक इत्ते नफीस तरीके सूं कहाणी में पिरोयो है क कीं नीं केवण रै बाद भी सैं कीं कह जावै।
लेखक धींगा-गवर री कथा सूं पड़दौ हटावै नीं, पण गैरो इसारौ करै क लुगायां रा आपसी कमिटमेंट में कित्ती पक्की हुवै। इण कहाणी में जे लुगायां रे बीच रे नितुके झोड़ अर इसके रे बीच सूं एक कथा-सूत्र लुगायां रे आपसी लगाव अर मरदां सूं लुकायोड़ी किणी बात कांनी इसारौ हुंवतौ तो कहाणी रो आभौ कीं घणां बादळां सूं भरियौ निजर आंवतौ। फेर धींगा-गवर री कहाणी मरदां नैं नीं सुणानी री प्रतीकात्मका आधुनिक संदर्भ से रळ-मिळ’र समझ रे ढाळै लुगाई नै मिनखां सूं चार पावंडा बेसी साबित करती। बरसां सूं लुगाई पर लागी मांदी-बुद्धि रे टैग सांमी आ कहाणी अेक नजीर बण सकती।
पण स्यात, राजेंद्र जोशी री कहाणी लिखतां थकां ‘दादी-रूपाय नम:’ जैड़ी किणी भावानात्मकता रा सिकार हुयग्या। ‘विदाई’ कहाणी री दादी आज भी मिळ सकै, पण आ दुर्लभ प्रजाति हुय चुकी है। इण कहाणी रै मारफत दादी री इण पीढ़ी नै श्रद्धांजलि है लेखक री। लेखक रे इण कहाणी संग्रै में एक सुर बार-बार बाजै, अर वो है नियति रौ। लेखक बार-बार केवणौ चावै क नियति सूं बचियौ नीं जाय सकै। दूसरी बात, जियां करसौ-बिसा ईज भरसो। बावजूद, कहण रौ तरीको जसजोग है।
‘सजा’ कहाणी री नायिका रौ बालपणै में तय ब्यांव टूटै अर वा दूजै सूं परणीजै तो कहाणी रे छेकड़ में ठाह पड़ै कि जकौ उण रौ बींद है, वो भी पैली सूं विदेस में परणिज्यौड़ौ है। इण तरयां री स्थितियां नै रचतौ लेखक आप री कांनी सूं कोई नरेसन नीं देवै, पण पाठक जियां ई सारी बातां नैं समझै, उण नै लागै क लेखक कीं भी नीं छोडियौ है। श्याम री दो लुगायां लीली अर सरिता कहाणी रै छेकड़ में सागै रेवण री बात स्वीकारै। इण बात सूं इंकार नीं है कि इस्या त्रिकोण जगां-जगां देख्या जाय सकै। सवाल ओ है क कांई इण तरयां री परिस्थितियां में किणीं नुवै क्लाईमैक्स री गुंजाइस नीं हुय सकै ही।
‘भरोसो’ कहाणी एलोपैथ री विरोधी लखावै। कहाणी में एक चिंतन है। परंपरा, प्रकृति अर देसी जीवन पद्धत्ति नै अपणावण री सीख है। सबसूं बडी खासियत आ है क जोशी री कहाणियां में पखा-पखी नीं है। स्थितियां है। वे आपरी कहाणी में उपदेस नीं देवै, बात जरूर केवै अर बात केवण रौ आप रौ अेक अंदाज है। उणां री कहाणियां में आप विमर्स नीं सोध सकौ। वाद नीं मिळै। वै कठै लूंठा प्रगतिशील है तो कठै हजार फीसदी परंपरावादी। ना तो वै भगवान सूं काल्पनिक लड़त मांडै अर ना सरधा में लुळ जावै। उणां री कहाणी वैचारिक आग्रह माथे नीं चालै। वे तो आप री बात कैवे।
उणां री आप री चिंतावां है तो समाधान भी। वे आप रै उठाया मुद्दां नैं पाठकां री मरसी या मरजी पर नीं छोडै। वे आप रे मुजब अेक समाधान देवै। तेजी सूं बदळते समाज में परिवार रो बंटाधार हुयग्यौ है। सब नै आप-आपरी पड़ी है। किणीं नै किणी री परवाह नीं है। बेटी नै सुख है ना बेटे ने। घरजंवाई बणियै बेटे री गधे जिसी कद्र है तो सुलखणी बेटी सागै अमानवीयता। ‘अेकलो नीं’ अर ‘कैदी’ कहाणी एक जिसी भाव-भूमि माथै लिखिजियोड़ी कहाणियां है। अेक में ब्यांव रै बाद बेटी सागै हुवण आळौ अन्याव पाती में लिखिज्यौ है तो दूजै में घर-जंवाई बणियौ बेटो आपरै घर-आळा नै पाती लिख’र हकीकत बतावण री चेस्टा करै। ऐ दोनूं पातियां काळजै ने चीरण आळी है।
खासतौर सूं ‘कैदी’ कहाणी में तो उण समै पाठक सरनाटै में रैय जावै जद घर-जंवाई राहुल जकी पाती लिखै, अर लिफाफै में घालै। अेन उणी वेळा, उण री जोड़ायत सीमा आवै अर लिफाफो खोस ले।
ऑनर-किलिंग अर खांप पंचायतां पर राजेंद्र जोशी री कहाणी ‘पैलां कुण’ समूची व्यवस्था ने कठघरे में राखै। अेक बुनियादी सवाल सांम्ही खड़ौ करै क जे आदिम अवस्था में ईज राखणौ हो तो फैरुं क्यूं दीन्हीं आगे बधण री छूट? रेवण देंवता नाजोगा, अनपढ़ अर बेकार! समाज, पंचायत अर पंच चावै ज्यूं ई हुंवतौ। आ केंवता बेटी सैं सूं पैली आपरै बाप नै ईज मारण ढूकै, क्योंके पैलो गुनैगार तो वो है जको बेटी ने पढ़ाई खातर दिल्ली भेजी। दीठ रो ओ अेक अलायदौ चितराम है। इण कहाणी में खांप-पंचायत रै फैसलां री खिल्ली उडावण आळा दरसाव रोचक बणिया है। पण इण कहाणी नैं भी छोटी करी जा सकती।
‘सायरो’ कहाणी में भी पाकिस्तान है। अपहरण है। जिम्मेदारी है। प्रेम है। अर सैं सूं बडी बात मिनखपणौ है। लेखक बतावणौ चावै क प्रेम कोई खटकौ करतां ई जगणियौ लट्टू नीं है। एक थ्यावस है। एक उडीक है। एक सत पण है। इण कहाणी री सरुआत मनोरम वातावरण में हुवै। लेखक कीं दरसाव रचै अर अचाणचक अेक किरदार विजय रौ एक नाटकीय स्थिति में अपहरण हुय जावै। विजय री बीनणी सुशीला अेकली अर उण पर बेटी नताशा री परवरिस रो भार। कहाणी आगै बधै जद एक और विजय नांव रौ जवान हल्कै रो थाणैदार बण परौ आवै। बेटी री जिम्मेदारी उठावै। पाठक आप रै मन में कहाणी रौ क्लाईमैक्स जोवण लागै। वो बार-बार ‘संगम’ जेड़ी फिल्मां में गुचळका खावै अर आवै, पण उण नै एक बार फैर अठै कीं नीं लाधै। पूरी कहाणी बेटी नताशा री जिम्मेदारी अर गुमियोड़ै विजय री खोज रे ऐड़ेगेड़े चालै। छेकड़ में जद तय हुय जावै क विजय नीं मिळनौ है तो पुलिस रे जवान विजय सूं सुशीला रौ हथलेवो जुड़ै। अठै, फेर पाठक जाणनौ चावै के जद ओ ईज अंत बतावणौ हो तो फेर इत्ती देर ‘हेस-पेस’ क्यों खेली। कहाणी री बुणगट कीं नुवै री उम्मीद करै, पण क्लाईमैक्स पाठकां री सोच जिस्यौ ई हुवै। इण जग्यां जे लेखक री दीठ सोचां तो पावां क इण कहाणी रे मारफत लेखक बतावै क समाज चावै ज्यूं कहै, प्रेम रौ बीज इयां ई नीं निपजै। दोयां रै काळजै में जद अेक जिस्यौ हिलोर उठै तद बीज अंकुरित हुवै। सवाल फेर खड़ौ हुवै क ओ समै जद म्हें ‘सिंगल-मदर’ रौ विचार चावौ हुय रैयो है। कांई जरूरत है कहाणी रै अंत में लुगाई खातर अेक मरद री? बात तो सिंगल-मदर सूं भी आगै री हुवणी चाइजती। पण, अे एक पाठक रा विचार हुय सकै। अर इण बात रौ म्हारै कांनी कोई प्रमाण नीं है कि लेखक इण तरयां रे आधुनिक संदर्भां सूं अणजाण है। इसै में कहाणी री वन-लाइण प्रेम री प्रक्रिया ही समझ आवै। विजय भलां ई सुशीला नै चावै पण वो मिनखाचारौ जाणै। समै देवै आपरी भावना नै। प्रेम नैं।
‘फूलां भ टक्यौ मन’ मन री आकुलता रा ऐनाण है। कदै किणी बात पर किणी नै केयोड़ा दो अकरा बोल खुद री ई गळफांस बण जावै। इण वन-लाइण रो विगसाव कहाणी में मिळै। आ कहाणी एक मनोवैज्ञानिक कहाणी है। ‘दल्लौ’ कहाणी आंख्या खोलण आळी है। आज रै जुग में भी गरीब रो सोसण कम नीं हुयौ है। अर हुवै भी कियां, जद गरीब ने रुजगार देवण आळा ई, उणरी ध्याड़ी में आपरौ कमीसन लेवण लागै।
आ बात साच है क लेखक आप रै किरदारां रौ आगीवाण हुवै। पण लेवै तो समाज सूं ही है। अर आ भी साव साच है कि कोई जरूरी नीं है कि कोई किरदार बिसो रो बिसो समाज में भी हुवै। लेखक प्रवृत्तियां उठावै, मिनख नीं। किरदार बणन री आ ईज प्रक्रिया है। म्हनैं लागै क कहाणियां पढ़ण रै बाद समाज कांनी सूं अेक मासूम सवाल लेखक नै पूछियौ जासी क ये किरदार क कथ्य कियां माथै में आया?
म्हनैं लागै आ ईज एक लेखक री सफलता है क उण रा किरदार क कथानक आम-जन कठै न कठै बरामद कर चुक्या है अर इणी खातर वो चकरायौ सो पूछै क जिकै नें म्हें देख्यौ, वो थां तांई कियां पूगियौ। इण तरयां कैयो जा सकै क बारै कहाणियां रौ ओ संग्रै एक समचे जुग रो कहन है।

आवणियै समै में अे कहाणियां किरदारां री अलायदी छिब, नुवै ट्रीटमेंट अर निरवाळी रोचकता रे कारणै चावी हुवैली। राजेंद्र जोशी रा विषय किणी सींव में नीं बंध्या है। आ ईज वा चीज है जकेरी राजस्थानी कथा-साहित्य नै दरकार है। इसी ईज कहाणियां सूं राजस्थानी कथा-साहित्य धोरा, पनघट अर रीत-रीवाज सूं निकळनै दुनियां सांम्हीं आय सी। आज अेक कांनी जद राजस्थानी नें बीजी भारतीय भासावां सांम्हीं खड़ौ हुवण री चुणौती है तो अंतरराष्ट्रीय मंच माथै भी राजस्थानी कहाणी नै आपरी सबळी, सांवठी अर सांतरी पिछाण बणावण री दरकार है। इण खातर इणी तरयां री कहाणियां री जरूरत है। कहाणियां, जकी आप री बुणगट अर कथ्य ई नीं कहण री कळा में भी दो पावंडा आगे हुवै। जुम्मै री नमाज इसी कहाणियां रो ई संग्रै है। पूठै रो चितराम गौरीशंकर आचार्य संवारियौ है। पोथी रो सिरैनांव सोच-समझ’र राखियोड़ौ है। ९६ पाना री इण पोथी रा प्रकाशक ऋचा इंडिया पब्लिशर है, जका प्रकाशन री दुनिया में अेक भरोसे रो नांव है। आधुनिक राजस्थानी कथा साहित्य में ओ संग्रै नजीर बणै। आ कामना करूं…

– हरीश बी. शर्मा