अरज ‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। ‘कथारंग’ नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…

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बुलाकी शर्मा

बुलाकी शर्मा व्यंग्यकार, कहानीकार, नाटककार, सम्पादक स्तम्भ लेखक अर बाल साहित्यकार। हिन्दी अर राजस्थानी में लगोलग लिखै। साहित्य अकादमी नई दिल्ली रो सबसूं लूंठो राजस्थानी परस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी रे कन्हैयालाल सहल अर राजस्थानी भाषा, साहित्य संस्कृति अकादमी रे शिवचन्द भरतिया पुरस्कार सूं भी सम्मानित।

बाल कहाणी : चौकीदार

मोहल्लै रै बिचाळै पींपळ रै गट्टै कनै गाडी आय’र ठमगी। बठै टाबर खेल रैया हा। बै ई बीं गाडी कनै पूगग्या। गाडी रै लारै मोटोजूर पींजरो हो। गोपी नै अचंभो हुयो। बीं गाडीआळा नै पूछ्यो— ओ पींजरो कां खातर है?
— गळी में जिका कुत्ता घूमै है नीं, बां नै पकड़ण खातर आया हां। गाडीआळो बतावण लाग्यो— बां नै पकडऱ ई पींजरै में घाल र लेय जासां।
— पछै बांनै छोडसो कठै अंकल। कार्तिक पूछ्यो।
— बां नै दूर जंगळ में छोड देसां। गाड़ीआळो कैयो— थांरै मोहल्लै में ई कुत्ता हुवैला नीं टाबरां।

भरत हाथां रा लटका करतो बोल्यो— घणाई है अठै तो…. नाळियां में बैठा रैवै… च्यारूं कानी गंदगी फैलावता रैवै।
— बै भूंकैई घणा है। गोपी बात आगै बधायी— रात नै इत्ती जोर सूं भूंकै कै नींद जाग जावै म्हारी तो।
मोहल्लै रा दो-तीन लोग ई बठै आयग्या।
कुत्ता पकड़णआळा बां सूं बात करण लाग्या। टाबर टोळी किनारै ऊभी हुय र आपस में बातां करण लागी।
— अरे यार कार्तिक, शेरियो तो सोन भुआ री गळी में लुक्योड़ो बैठï्यो हुवैला। चालो, देखर आवां।
गोपी री बात सुण र कार्तिक कैयो— काळियो भासा रै घर री चौकी नीचै आराम कर रैयो हुसी। आळसी कठैई रो। जीभ काढ र राळ टपकावतो रैवै। रोटी मिल्यां खाय लेवै अर पाछो कठैई बैठर सुस्तावण लागै।
इत्ती देर सूं सगळां री बातां सुण रैयो भव्य बोल्यो— अरे यार थे शेरियै, काळियै नै पकड़ावणा क्यूं चावो हो?
— बे भूंकता रैवै है नीं भौं….भौं….। भरत अर गोपी सागै ई बोल्या— बां नै पकड़ावणो ई ठीक है।
भव्य फैरूं सवाल कर्यो— कार्तिक रो डॉगी ई तो दिनभर भूंकतो रैवै, फैर बीं नै ई पकड़ाय देवां।
कार्तिक रीसां बळतो बोल्यो— ओये भवि, म्हारै रोमी रो नांव कियां लेय रैयो है। वो म्हारो डॉगी है। म्हारै घर में रैवै। बीं रो नांव लियो तो म्हैं कटी हुय जाऊंला।
— पण बो भूंकै तो घणो ई है यार कार्तिक। गोपी बोल्यो— थारै घरै आंवता म्हांनै डर लागतो रैवै कै कणैई थारो रोमी बटको नीं भर लेवै।
कार्तिक हंसण लाग्यो। बोल्यो— अरे यार, बो खाली भूं कै ई है, आज तक किनै ई खायो कोनी।
— पण भंूकै तो है नीं। भरत बोल्यो।
कार्तिक कीं रौब में जवाब दियो— बो म्हारो चौकीदार है। म्हांरै घर री रूखाळी करै। रात नै म्हैं बीं रै गळै रो पट्टो खोल देवां अर बो सगळै घर में घूमतो रैवै। कठै ई खुडक़ो हुवतै ई भूंकण लागै अर म्हैं जाग जावां।
गोपी माथो कुचरतो बोल्यो— हां, जणैई थारै घर री भींत माथै लाग्योड़ी प्लेट माथै लिख्योडो है कुत्ते से सावधान!
कार्तिक अकड़धज हुवतो बोल्यो— हुंअ… म्हारो रोमी विदेसी है….पापा लेयर आया हा… थां रै घरै है कांई म्हारै रोमी जिसो डॉगी।
दूजा भायला आपरी नाड़ नीची करली। जवाब कांई देंवता। बांरै घरै डॉगी हो ही कोनी। कार्तिक रा पापा सरकारी दफ्तर में अफसर है। मोहल्लै में ई बां रो घणो आव-आदर है। कार्तिक रै घरै अेक नौकर काम करण नै राख्योड़ो है। डॉगी पाळ राख्यो है। कार्तिक नै ई बीं रा पापा-मम्मी थोड़ी ताळ ई खेळण नै भेजै। कार्तिक जिद करण लागै जणै घंटा-आधी घंटा मोहल्लै में खेलण नै भेजै।
भायलां नै चुप देख र कार्तिक मजो लेवतो बोल्यो— भरत, गोपी चुप कियां हो, बताओ थां रै म्हारै जिसो रोमी है कांई?
गोपी बिचार करतो बोल्यो— अबार तो कोनी पण पापा नै कैयर म्हैं था रै रोमी सूं ई फूटरो डॉगी मंगा सूं।
भव्य मुळकतो बोल्यो— अरे यार गोपी, आपां रै डॉगी है नीं…. तू भूलग्यो कांई?
गोपी भव्य कानी देखण लाग्यो।
भरत बिचाळै ई पूछ्यो— क्यूं कूड़ बोलै भव्य, थारै घरै म्हैं रोजीनां आऊं… म्हंै तो डॉगी कोनी देख्यो।
भव्य बोल्यो— कार्तिक रै तो अेक डॉगी है रोमी पण आपां कनै तो तीन-तीन डॉगी है।
कार्तिक नै रीस आयगी। बोल्यो— है जणै बता…। म्हारै रोमी जिसो है तो बता देखाण।

भव्य हंसतो बतावण लाग्यो— म्हां सगळां रा डॉगी है— शेरू, काळियो अर सींकियो।
भरत कान कुचरतो बोल्यो—पण अे तो आपां री गळी रा कुत्ता है..डॉगी कठै है।
कार्तिक नै भरत री बात ठीक लागी। कैयो— हां, गळी रा कुत्ता नै डॉगी कियां कैवै तू भवि!
भव्य पूछ्यो— दोनां में फरक कांई है, बता कार्तिक? थारो डॉगी थारै घर री रूखाळी करै। बीं नै आपांरी गळी-मोहल्लै सूं कोई मतलब कोनी। पण शेरू, काळियो अर सींकियो आपां रै पूरै मोहल्लै री रूखाळी करै। थारै घर री ई रूखाळी करै। रात नै कोई अणजाण मिनख आय जावै तो भौं-भौं कर सगळां नै जगाय देवै।
—पण बे गळी रा आवारा कुत्ता है। म्हारै रोमी जियां पाळतू अर समझदार कोनी। म्हारै रोमी सूं बांरी बराबरी कियां कर रैयो है तू?
भव्य कार्तिक री बात सुणर बोल्यो— आं सगळां रो काम तो अेक ही है नीं चौकीदारी करणो। कार्तिक थारो रोमी तो थारै घर रो ध्यान राखै पण म्हांरा तीनूं डॉगी आपां सगळा रो ध्यान राखै। जणै बां नै पकड़ावणो गलत है नीं।
— पण काळियो, शेरू, सींकियो रोळा घणा करै यार। भरत कैयो —हर टैम भूंकता रैवै है नीं।
भव्य हंस्यो— जिकै नै आपां भूंकणो कैवां वो बां रै सारू बोलणो हुवै…. अबार आपां बोल रैया हां नीं। बै आपां रा चौकीदार है नीं, जणै बै भूंकर आपां नै सचेत करता रैवै। बै कैवता रैवै- जागता रैवो…. जागता रैवो।
सगळा भायला हंसण लाग्या। कार्तिक नै ई भव्य री बात चोखी लागी। बोल्यो— हां यार कार्तिक आपां आपां रै चौकीदारां नै खुला राखसां… पकड़ावां कोनी।
भव्य च्यारूं कानी देखतो बोल्यो— आपां बातां करण लागग्या… कुत्ता पकड़णआळां नै तो अबै देखां।
कुत्ता पकड़णआळी गाडी जाय चुकी ही।
गट्टेमाथै बैठा मोती काका सूं कार्तिक पूछ्यो— बा गाडी गयी परी कांई काका? शेरू, काळियो कठै है? बै बां नै पकड’र लेयग्या कांई?
मोती काका हंसर बोल्या— म्हैं बां नै कैय दियो कै अठै कोई आवारा गंडक कोनी। अठै म्हारै गळी रा डॉगी है, जिका अठै री रूखाळी करै।
भव्य राजी हुवतो बोल्यो— बै पाछा तो कोनी आवैनी काका?
मोती काका लाड सूं बोल्या— म्हैं थां री बातां सुणली ही। अे अठै ई जलम्या अर अठै ई पळ्या, मोटा हुया। अे कुत्ता आवारा कियां है, आपां रा चौकीदार है। अे आपां रो ध्यान राखै जणै आपां नै ई आं रो ध्यान राखणो चाइजै।
सगळा भायला राजी हुय र आपरा तीनूं कुत्ता, कुत्ता नीं डॉगी नै सोधण लाग्या। शेरू सोन भुआ रै घर कनै बैठ्यो हो। काळू भासा रै घर री चौकी हेठै। सींकू गोपी रै घर रै पिछाड़ै। शेरू, काळू अर सींकू बां सगळां नै देखर नसड़ी ऊंची करी, होळैसीक भूंउउ करियो अर पाछा आंख्यां मीच र सांती सूं सुस्तावण लाग्या।

कार्तिक बोल्यो— देख्यो, आज तीनूं ई भूंक्या कोनी। अे आपां नै कैय रैया है—थैंक्यू।
सगळा भायला हंसण लाग्या।

 

 

– रामकंवार पारासरिया

रामकंवार पारासरिया (राजस्थानी,हिंदी के लेखक और गीतकार ) दयानंद महाविद्यालय से हिंदी और राजस्थानी साहित्य में प्रथम श्रेणी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। दीपावली 2019 को इनकी एक पुस्तक “जिंदगी उधार न लेना का विमोचन हुआ। वर्तमान में पारासरिया मायड़ भासा राजस्थानी छात्र मोर्चा, राजस्थान के अजमेर संभाग अध्यक्ष पद पर कार्यरत है।

 आम आदमी
आम आदमी कैवण में तो आम हुवे पण बिरे माई रस कोनी रैवे न खाटो, न मिटो। पण आम आदमी रे जीवण में गणाई रस हुया करें। उण रसां ने चाखतो चाखतो आदमी बैकुण्ठ जातो रैवे अर लारे उणरी यादां ई रेज्यावे अर यादां मेई बिरा दुःख । लारलै दिना म्हे सोचियो कई करां बैठा बैठा काया हुग्या चालो आपरौ नित रोज वाळो काम ई करला। म्हारे जेड़ा लिखारा रो काम ई कई है या तो फोन माथै साथीड़ा सु  गप्पा लगावणी या पछे कलम हाथ में लेर दूजा री प्रीत री कहानी लिखणी। पानो अर कलम लेर बेठियो तो मन में कीं उबजी कोनी जणे होचियो के साथीड़ा सु गप्पा ई लगाई लेवां । फोन लगार बात करी हाल चाल पूछियो के बठिने सु आवाज आई “लॉक डाउन में आम आदमी कई कर सके या तो घरां माई पड़ियो रे सके या पछे बारे जार पुलिस वाळा सु दो च्यार लठ खा सके”। सही  किवी, आम आदमी कठे जा सके बा केणात है के “मुल्ला री दौड़ मस्जिद ताई”। आम आदमी री जलम सु लेर बैकुंठपुर पूग्या ताई समस्या सु लार नी छूटे। 

         समस्या तो माँ रा पेट मेई शुरू होज्यावै बापडो नौ मिना उँदो लटकयोडो रैवे । पछे जलमताई सुइयां दिराणी पड़े। अबे बी टाबर रो तो मन कोनी रैवे पण टाबरां री माँ डाक्टरां लारे गेली रेज्यावे अर दे भचिड़ दे भचिड़ सुरु हुजयावे। टाबर ई होचे भगवान इरे भिचे तो उँदो लटकयोडो ई सही हो कमु कम………। आ तो समस्या री शुरुआत है जद टाबर छोटो रैवे जद तो उणरे बाप रे गणी मोटी समस्या होज्यावै। आज काल री लुगायां “पपुड़िया रा पापा म्हे थोड़ी पड़ोस में जार आउ थे पपुड़िया रो ध्यान राखज्यो”। पछे पपुड़ियो समस्या करें आली गीली अर पपुड़िया रे बापू रो बो दिन तो खराब जावे। बात अठे ताई कोनी रुके । लुगाई पाछि आर “घंटो काण बारे कई गिपरी थे टाबर रो धियान ई नी राख सकिया कई काम रा थे”। आदमी बेचारो होचे ” आ कियानकी लुगाई है इरो एक घंटो पांच घंटा रे बराबर हुवे”। अर रोज रोज इयां होचतो होचतो खुद समस्या बण ज्यावै।

          आदमी रे टाबर पणे मेई घणी गिर रैवे सबसूं मोटी तो आई गिर है के स्कूल जाणो पड़सी। लारलै बरस री बात है एक टाबर रो बाप उणने स्कूल लिज़्यावतो गेला माई एक डोकरो पूछ लियो “बेटा स्कूल लिज़्यावे”। टाबर रो बाप बोले बिरे सु पैली टाबर खुद बोलगो अर ऐड़ो बोल्यो “नी थारे बाप रे ब्याव में जाऊ तुई आउरो, दिखे कोनी के स्कूल ड्रेस पेरियोड़ी है पछे। एक तो म्हारौ बाप मन्हे माडा स्कूल लिज़्यावे औरु बुढो चांचड़ मन्हे चिड़ावे”। अबे तो डोकरा रे समस्या हुयगी मन में तो गनोई रिसिया बले पण बारले मन सु मूळक परो हा बेटा। स्कूल गिया पछे फेर मोटी गिर हुज्यावे अबे सवाल कुण करें जणे नुवा नुवा ओटा लेवै। मास्टर जी पूछे बेटा सवाल कियूं कोनी करिया तो जवाब सुणो “मासा मन्हे तो ताव आयगो अर म्हारे जका सवाल करियोडा कॉपी रा पन्ना म्हारा पापा फाड़ दिया”। मासा ई होचे ऐड़ो कुणसो बाप है जको आजकाल कॉपियां सु पन्ना फाड़बा लागो। मिलायो छोरे रे बाप ने फोन अर बात बताई तो छोरे रो बाप बोल्यो “म्हारी कोई सटकियोडी थोड़ी है थेई टाबर री बाता में आयगा”। बाकी तो मरुधर रा टाबर कियानका हुवे शैलेष जी लोढ़ा कवि सम्मेलण में बताई देवे।

          टाबर पणे सु जवानी में पग मेलबो सीखे जद तो सबसु ज्यादा समस्या आवै। उमर दाढ़ी मूछ री रेज्यावे, मन में भेम रैवे के मूचिया कोनी उगेली जणे साथिडा रे सागे अंगोर में जार बिड़िया पिवणी पड़े, फेर पछे कदैई बाप बठिने सु निकळतो देख लेवै अर पछे शरीर में जठै बाल नी आवै बैठेई उगाई देवे। थोड़ा दिनां पछे उमर स्कूल छोड़ कॉलेज जावण री रेज्यावै, तावड़किया में रूम होदनो, सामान लावनो, गेहू लावना, कदैई कदैई गवां रो कटो बस मेई भूल ज्याणो, रूम आया पछे ध्यान आवै “आपां गांव सु भीर हुया जणे तो भारी भारी सामान हो अबे सामान इतो हल्को कीकर रेगो पछे याद आवै गवां रो कटो बस में भूल गा”, रोटियां बणाणी, बर्तन धोवना घणी समस्या है। हेन ब्याव रे सीजन में जीमण ने जाणो, पछे बठे पकडीज ज्याणो।  आई उमर प्रीत री रैवे, राजनीति, इज उमर में आवै। पण कॉलेज रा दिन जीवण में रंग भर देवे।

          कॉलेज छुटिया पछे तो बस जीवण पूरा माथै पड़ ज्यावै जिम्मेदारियां रो बोझ लेर जीनो पड़े। आज काल रा मोट्यारां रे तो बेरोजगारी सबसूं मोटी समस्या है छोरो जद शहर सु गांव जावे तो जको गेला में मिले बोई कठे रैवे? कई करें? हलताई नौकरी कोनी लागी थारी? इयानका टोसा सुण सुण मोट्यार रो गांव जावण सु मन फाट ज्यावै।शादी ब्याव नी हुवे तो पडोसियां रा बोल काळजै लागे। फलाना रो छोरो इतो मोटो हुयग्यौ हलताई ब्याव रो की बेरो ई कोनी इरा घरां ने। पण कई करा जका परणीज्योडा है बे लुगायां मुंडाक काम कर कर दिन काढ़े अर कुंवारा ब्याव रा सपणा लेर दिन काढ़े। एक कोई म्हारे जियानको ई भई सुभे सुभे घर में ऊबो ऊबो गावतो गोविंद बोलो हरी गोपाल बोलो, जेडेक उणरी जोड़ायत बोल पड़ी गोविंद बोलो छाए गोपाल बोलो रोटी खाणी वे तो पैली लषन छोलों। ई समस्या ने लेर आदमी जीवतो रैवे। थोड़ा दिनां पछे टाबर हुजयावे पछे तो टाबरां री परवरिश ने लेर चिंता हुवण लागजयावे। टाबरां ने पढावना, छोखो ग्यान देवणो, उणरो छोको संबंध करणो अर टाबरां ने कमावन खातर आपरी जमी रा भंट ई करणो घणी मोटी समस्या है।

           थोड़ा दिनां पछे तो खेंखार पढ़बा लागजयावे जणे घर री बिंदनीया ई कैवण लागजयावे ” ओ बाबो कद मरी इरा सु पापो कद कटसी। डोकरो ई सोचे के राम अबे तो लेज्या अबे म्हारी जगा कोनी ई घर में अर इयूँ होचतो एक दिन आपरा पुर पलिया सुवट अर बैकुंठपुर जातो रैवे। लारे बिंदनीया अर बेटा गणाई रोवे। टोकरों होचे अबे रोवे इता दिन तो मारता अबे लारे बोबाड़ा करे। पण है तो म्हारी ई औलाद राम थाने निरोगा राखे। मरिया पछे पंच भेळा हुवे अर डोकरा रे लारे शिरो पूड़ी करो कोई कैवे नुक्ती चक्की करो अर कोई म्हारौ साथी पांचू पकवान रो टिपो मेल देवे। अबे डोकरा रो काळजो बले के म्हारे मरिया पछे पांचू पकवान इयां सोच डोकरा रे समस्या हुजयावे अर बो बापडो पांचू पकवान रे चकरा में ई धरती माथै ई भटकतो फिरे। पछे बो कणाई बेटा में आवै, कणाई बेटी में आवै कईठा पांचू पकवान मिलइ ज्यावै।

 आदमी तो जग सु छूट ज्यावै पण उणरी समस्या कोनी छूटे।

 

पवन राजपुरोहित
BSc. Bed. M. A. Rajsthani
बिणजारौ, राजस्थली, रूड़ो राजस्थान, मरू नवकिरण आद पोथ्यां मांय कवितावां रो छापण।

कविता : मायड़ भाषा

जकां मायड़ भासा सूं अंजाण

फीको  उणारौ सैंग जगत ज्ञान।

 

आपणी भासा सूं राखां पिछाण

केंवटा इणनै अर इणरा निसाण।

 

निज भासा रौ करां घणौ गुमान

करां खैचल बधावां इणरौ मान।

 

अणमानैतण हुयोड़ी अडीकै मानितां

किया मौन बैठ्या आपां होय नचितां।

 

नीं करां आपणी बोली सूं खिलवाड़

देखां इणमें मां सरिखा ऐलांण।

 

हरमेस गावां इणरां जस गाण

आपां अवेंरा भासा मूंगी खाण।

 

नगेन्द्र नारायण किराड़ू  
राजस्थानी अर हिन्दी में कवितावां-कहाणियां लिखै साथै चोखा चित्रकार भी है। कई पत्र-पत्रिकावां में लेखनी 
प्रकाशित हूवै। अबार आपरे पिताजी स्व. भगवान दास किराड़ू रे साहित्य ने आम जन तक पहुचाणें रा लक्ष्य 
हाथां मे ले राख्यो है। रोजगार विभाग में काम करै है

‘‘आभै सूं भी ऊपर ऊभी नारी बीती री हिमायतण किसना’’

श्रीलाल नथमल जोशी राजस्थानी रा अेड़ा सपूत हा जिकां री राजस्थानी ने बड़ी जरूरत ही आप आजादी सूं पैला जनमिया अर देस री मांडी-ताती सगली बात्या ने आपरी आँख्या सूं देंखी। आपरो जनम 1922 में बीकानेर में हुओ। आप राजस्थानी पोथ्या लिखण सागै-सागै संपादन रो काम भी बडो सातंरै ढंग सूं करियो, आपरी आभै पटकी, धौरां री धौरी, अेक बींनणी दो बीन, सबड़का, परणियोड़ी कंवारी, आद पोथ्या राजस्थानी रो घणौ मान बढ़ायो। इरै अलावा आप राजस्थानी मणिमाला, हिवड़े रो उजास, राजस्थानी बात संग्रै आठ पोथ्यारो संपादन भी करियो। आपनै घणा ही पुरस्कार अर सम्मान प्राप्त हुयोड़ा है जिकै में फूलचंद बांठिया पुरस्कार, एलपीटेसीटोरी गद्य पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, अनुवाद पुरस्कार आद और भी घणा ही पुरस्कार है जिका आपरै सिरजण रै पेटै मांडिज्योड़ा है।

‘‘आभै पटकी’’ आपरो 1956 में प्रकाशित पैलो उपन्यास है। ई उपन्यास ने सिरिसादुल राजस्थानी रिर्सच इंस्टीट्यूट प्रकाशित करियो। 1956 में प्रकाशित ओ उपन्यास राजस्थानी रो पैला उपन्यास मानीजै। ई उपन्यास रे मांय किसना रै विधवा जीवन री मार्मिक कहाणी है। इरै मांय विधवा जीवन अर अशिक्षा रे कारण औरत ने किता-किता कस्ट झेलना पड़ै बि सब रो भांवा सूं रंगिज्योडौ अर आँसूवा सूं भरियोड़ा उपन्यास है।

श्रीलाल नाथमल जोशी आपरै समैरी ग्रामीण संस्कृति अर सैर री संस्कृति रो मेल बतायो है। बी समै रे मांय विधवा रो ब्याव करनो खांडै री धार पर चालानो हो। विधवा लुगाई रो जीवन बोत ही कस्टा सूं भरिज्योड़ो हो। जिकै में बाल-विधवा होनो तो अेक अभिषाप हो। केबत कैई है नी कि ‘‘रांड तो रंडापो काढ़ लै पण लूंगाड़ काढण दे कोइनी।’’ विधवा औरत ने लोग भेड़िये री निजर सूं देखता। बारला तो बारला घर आळा भी कोनी छोड़ता। पण गांव रे मांय किसन गोलाळ अर सिरी बल्लभ जेड़ा और भी समाज सुधारक समाज रे मांय अेक नूंवी अलख जगावै अर डाॅक्टर मोवन अर किसना रो दूजौ ब्याव करा देवै। पंचायत बियांरो हुक्का-पाणी बंद करवा दे। पण बै हिम्मत कोनी हारे। किसना अर मोहन आपरै सूज-बूझ सूं गाँव रे मांय ‘रामचंद्र धर्माथ चिकित्सालय’ भी बणावै अर् बिरै मांय सगळा रो निशुल्क इलाज सुरू हु जावै। अस्पताल रे सागै-सागै किसना औरता ने पढ़ावण खातर गाँव वाला रे सहयोग सूं अेक नारी साला भी खाले। किसना अर मोवन री गाँव वासते इती बड़ी भलाई देख पंड़ित रामलाल जी अर भतमाल जी भी किसना रै सागै हु जावै जिका पैला बिरे विरोध में है बै भी बिरी सहायत करण लाग जावै। कुळ मिलार श्रीलाल नथमल जोशी आपरै उपन्यास में आ बात घणै लूंठै ढ़ंग सूं राखी है कि विधवा ने भी ब्यांव करने रो पूरो अधिकार है जद मिनख दो-चार ब्यांव कर सकै है तो लुगाई क्यूं नी कर सकै। लेखक ई उपन्यास रे मांय राजस्थानी भाशा रो अेक नूंवो प्रयोग करियो है। समाज रे पतन माथै अेक लूंठी दृश्टि डाली है। ओ उपन्यास राजस्थानी भाशा रो जुगा-जुगा तक सेवा करसी। श्रीलाल नथमल जोशी ई उपन्यास रे मांय ऐड़ी उपमावां दी है कि इनै पढ़ते थका कठै भी अबखांई नी आवै। किसना रो वर्णन उपन्यासकार बड़ी सांतरी उपमावां सूं करी है जियां ‘‘पिलंग ऊपर सुत्ति ही, सिराणै पासी टेबल पंखो धर्योड़ो हो जिठा सूं केसां री लट्यां उड-उड’र, भंवरा कमल माथै मंडरावै ज्यूं, मूंढै ऊपर आंवती ही। धोती फरफर उडती जिकै सूं पल्लौ आधो पाछे हुयोड़ो हो सिणगार नईं हुंवतै थकां भी रामचंदजी ने किसना सरग लोग री देवी दीसी। किसना सूं बेसी फूटरी कोई और कांई हुसी? पण इत्तो हुंवते थकां भी, सेठ जी बीरै चैरे ऊपर उदासी रो असर साफ-साफ देख्यो, जाणै कोई जोड़ो खंडत हुयोड़ी हिरणी काळजे री चोट धाए पड़ी हुवै।’’

इण तरह री भासा जद उपन्यास में आवै है तो उपन्यासकार बी भासा रा मान बढ़ावै। श्रीलाल नथमल जोशी री भासा बड़ी मीठी अर मुळकणी है। मुहावरा सूं जड़याड़ी भासा अर बिता ही लूंठा अर पाप धोवणा भाव जै पैले उपन्यास में हुवै तो राजस्थानी भासा अर भासा ने पढ़ण आला लेखक माथै अपने आप गरब करण लाग जावै। उपन्यास रे मांय जिका मुहावरा अर लोकोक्तियां आई है बै राजस्थान री संस्कृति अर भाशा र मांय रचियौड़ा-बसियोड़ा है। जियां ‘‘चूंच दी है जिको चूण भी दैसी, लाडू री कोर में किसी खारी अर किसी मीठी तेल सूं खळ उतरी हुई बळीते जोग, चैपड़िये धरे ऊपर किसी छांट ठैरे, पगा हेंठै सूं धरती सरकगी, बुरयौड़ा मतिरा जिकै गांव नी जावै बिरो रासतो ही क्यूं पुछणो, किसी सांभर सुनौ हुवै दियाळी रा दीया चाट परी जासी, धौळा मं धूड़, धीरज रा फल मीठा हुवै, कठै अमावस रो अंधेरौ कठे पूनम री चांनणी, समुंदर में रैर मगरमच्छ सू बैर करनो, दाल में काळो, आपरी गरज गधे ने बाप करनो पड़े, बुरयौड़ा मुर्दा काढ़ै, बलियोड़ी बाटी उथळीजै नई, गोथळी में तो गुड़ भांगी जैई कोनी, आ बळध म्हनै मार’’ आद ई मुहावरा रे मांय श्रीलाल नथमल जोशी आपारी भासा रो अेक चमत्कारी रूप साम्हीं आयो है। ईणी तरह सूं ई उपन्यास रे मांय श्रीलाल नथमल जोशी युग्म सबदा रो भी प्रयोग करियो है। जियां भरियो-तरियो, रोटी-बाटी, तांव-तप, राती-माती, मेला-खेला, नौकर-चाकर, जोत-धोत, काळी-बाळी, अठीनै-बठीनै, आखर-फर्क, मैणा-मोसा, मांदी-ताती, बोदा-सोदा, आकळ-बांकळ, डरूं-फरूं, लच्चो-खुच्चो, छोरा-छापरा, बूढ़ा-बडेरा, सैंतरी-बैंतरी, खावणौ-पीवणौ, गाल-गुपत, ब्यांव-सावै, सोवणै-उठणौ, भाईयो-बाईयो आद सबद लिख परा राजस्थानी भासा रो भंडार भरियो है। जोशी जी रो ओ उपन्यास राजस्थानी रो पैलो उपन्यास थरपीज्यौ है। अर राजस्थानी भासा रे प्रेमी पाठका रै खातर ओ ‘‘आभै पटकी’’ उपन्यास सोने में सुहागो है। ई उपन्यास रे ऊपर परख करता समै म्हनै भी बड़ो गुमेज हुयो कि राजस्थानी भासा रो पैलड़ो उपन्यास ने पढ़न रो म्हनै मौको मिलियो अर बियांरी मखमळी भासा रो आनंद मिलियो। बियां रो ओ राजस्थानी भासा माथै ओ बोत बड़ो अेसाण है। ‘‘आभै पटकी’’ अेक अमर अर लूंठो उपन्यास है।