अरज
‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। ‘कथारंग’ नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…

घणी जाणकारी वास्ते कथारंग रा समन्वय-संपादक संजय शर्मा सूं कानाबाती कर सकौ। नंबर है. 9414958700

लॉयन एक्सप्रेस री खबरां सूं जुडऩ वास्ते म्हारै वाट्सअप ग्रुप सूं जुड़ सकौ

मेल आइडी – कथारंग – : [email protected]

Telegram         : https://t.me/lionexpressbkn

Facebook Link   : https://www.facebook.com/LionExpress/

Twitter Link       : https://twitter.com/lionexpressnews?s=09

Whatsapp Link    : https://chat.whatsapp.com/JaKMxUp9MDPHuR3imDZ2j1

Youtube Link      : https://www.youtube.com/channel/UCWbBQs2IhE9lmUhezHe58PQ

Katharang page    : https://www.facebook.com/pages/category=your_pages&ref=bookmarks

 

 

मोबाइल :9672869385

देश री आजादी रे वास्ते बीकानेर में हुयोड़े स्वाधीनता आन्दोलन रे मांय सबसूं पैली सामने लावण आळा पत्रकार। अबार तक २०० से ज्यादा नाटकों में अभिनय अर निर्देशन कर चुक्या हैं। नाटक, कहाणी, कविता और जीवनानुभव रे उपर ७२ किताबां हिन्दी और राजस्थानी में लिखी हैं। साहित्य अकादमी,नई दिल्ली रे सर्वोच्च राजस्थानी पुरस्कार, संगीत नाट्य अकादमी का निर्देशन पुरस्कार, शम्भु शेखर सक्सैना, नगर विकास न्यास रो टैस्सीटोरी रे अवार्ड सूं सम्मानित

सलवार सूट आळी छोरी

विमला री उमर फगत सत्तरै साल ही। घर मांय मां-बाप सागै चार छोर्यां ही। विमला च्यार मांय सबसूं बडी। पापा अेक छोटी परचूण री दुकान चलांवता। आराम री रोटी मिलती। उण मांय टोटो नीं हो पण दूजै कामां खातर पईसा नीं हा। इणी खातर छोर्यां सरकारी स्कूल मांय पढ़ती। प्राइवेट स्कूल मांय फीस घणी लागती।

मां घर मांय छोर्यां नै संभाळती। छोरे री उम्मीद मांय च्यार छोर्यां  हुयगी ही। छोरो नीं हुयो। सबसूं छोटी छोरी री उमर पांच साल ही। इण खातर मां रो टैम तो घणकरो घर मांय ई लाग जांवतो।

विमला घणी दुखी ही। घर माथै विचार करती रैंवती। उणनै घर री हालत ठा ही पण कांई करै, इण सारु उणनै रास्तो नीं मिळतो। काम कर’र पापा रो हाथ बंटावण री घणी मन मांय ही, पण कर नीं पावती मदद। पण मां रो हाथ बंटावती।

उण दिन मां-बेटी बैठा हा। विमला स्कूल सूं आई ही कपड़ा बदळ’र मा कन्नै आयगी। सब सूं मोटी ही इण खातर मां मन री बात उण सूं ई करती। उण दिन विमला आपरी बात मां सामीं राखी।

– मां।

– हां बेटा।

– म्हारै मन मांय अेक बात आई।

– मन है, चालतो रैवै। कांई सोच्यो थारो मन।

– पापा अेक कमाऊ है अर आपां पांच खाऊ हां।

– अबै दूजो कोई सायरो नीं है।

– भाई नीं है तो पापा नै ही घर चालवणो है।

– आ बात तो साच है।

– म्हे च्यार बहनां हां।

– म्हैं मानूं च्यार बेटा हो।

– मानणो अलग बात है। हां तो छोर्यां ही।

– साच कैवै।

– म्हारै सूं पापा कोई उम्मीद नीं कर सकै।

– छोरी रो धन हो, काम री उम्मीद कियां करां।

– आ आपणै समाज री बोदी सोच है। छोरी नै फगत घर मांय रैवण आळो जीव मानै। घर रो काम करो, मिनखां री सेवा करो अर जूण पूरी कर लो। आई सोचै, इण सूं आगै। छोर्यां नै लेय’र समाज कीं नीं सोचै।

– बात खरी कैयी। म्हैं अर थारा पापा तो थां च्यारूं नै छोरा ही मानां।

– साच कैवै नीं।

– इण मांय रत्ती भर झूठ नीं है।

– इणी खातर म्हैं अेक बात सोची है।

– कांई।

– थूं म्हारै सागै रैवैला। पैला इणरी साख भर।

– बात सुणिया बिना कियां साख भरूं।

– म्हारै माथै भरोसो कर।

– घणो ही भरोसो है। थूं सब सूं मोटी है।

– इणी खातर कैवूं साख भर।

– म्हारी हां मान।

विमला थोड़ी ताळ थमी। उणनै लाग्यो मां बात सुणण सारू त्यार है। उणरै बाद आपरै मन री बात बतावणी सरू करी।

– म्हैं पापा रो हाथ बंटावणो चावूं।

– कियां।

– कमावण रो काम सरू करण री मन मांय है। कीं तो मदद हुयसी।

– थूं कांई काम कर सी। छोरी री जात है।

– कर ली नीं जूनी बातां। छोरी हूं ना कैव, छोरो मानै थूं।

– पण साच तो नीं बदळै। काम कांई करसी।

– म्हैं सोच राख्यो है। उण मांय कीं रिस्क नीं है।

– म्हनै बताव।

– म्हैं ड्राइविंग स्कूल खोलणो चावूं।

– ओ कांई हुवै।

– लोगां नै कार चलावणी सिखावण रो स्कूल।

– मिनखां नै सिखासी।

– नीं मां। आजकाल लुगायां कार चलावै। उणां नै चलावणी सिखावण रौ स्कूल खोलण री मन मांय है।

– पण थारै कन्नै नीं तो कार है, अर नीं थन्नै कार चलावणी आवै। जद चलावणी ही नीं आवै तो थूं सिखासी कियां। – थारी आ बात सई है।

– आई तो।

– पैला म्हैं कार चलावणी सीखसूं।

– सीख लेसी कांई?

– हां, जद धारी है तो सीखसूं ही।

– पण पैला थारै पापा नै पूछ लै।

– थूं तो हां कर मां। थारी हां हुयां हूंस बधसी।

– म्हारै कानीं सूं तो हां है।

– आ हुई नीं बात। अबै पापा नै म्हैं राजी कर लेसूं।

– वाह। थूं जाणो अर थारो राम।

– म्हारो तो राम थूं है अर सीता भी थूं है।

      मां बेटी हंसण ढूकग्या।

विमला ऊपर सूं हंसती ही पण मन मांय घणी राजी ही। उण सूं बड़ी बात नीं ही कै वा पापा रो घर चलावण मांय हाथ बंटासी। उणर रो सुपनो हो कै बेटी है पण बेटे दाईं घर री मदद करसी। सुपनो पूरो हुणव रो हरख घणो हो। मिनख रो जद सुपनो पूरो हुवै तो उणनै मांय रो मांय गुमेज हुवै। उणी गुमेज सूं भरियोड़ी ही आज विमला। अबै उडीक पापा री ही। पापा रो उण सूं घणो लाड हो इण खातर ना री तो उम्मीद ही नीं है। उणनै ठा हो कै पापा आपरी बेट्यां नै बेटा सूं कम नीं मानै, इण खातर हरेक काम मांय आगै बधर मदद करै। इणी भरोसै विमला पैला मा सूं हामळ भराई ही, मां री हामळ घणी दोरी ही। बा हां तो हुयगी, अबै सुपणो जरूर पूरो हुवैला।

रात पडिय़ां पापा दुकान बधार घरां आया। हाथ मूंडो धोय जमीण बैठा। आज मां उणां रै कन्नै बैठी ही अर रोटी विमला बणावती ही।

– कांई बात है, आज म्हारै बेटै नै घर रै काम मांय लगाय दियो थूं।

– इण रो मन हो। कैयो, आज रोटी बणार पापा नै म्हैं जिमा सूं।

– वाह। जणै ही आज रोटी मांय कीं मिठास घणो लागै।

– म्हैं खारी रोटी बणाऊं हूं कांई। बरसां सूं तो म्हैं ही बणावूं।

– थूं समझी नीं। बेटे जियांकळी बेटी जद रोटी बणाय देवै तो उण मांय मिठास अपणै आप आय जावै। रोटी आटै अर घी सूं आछी नीं बणै, बणावण आळै रै हाथां सूं आछी बणै। आपरै हाथां रै सागै बणावणियो उण मांय मन रा भाव मिलावै, उण सूं ई रोटी मीठी बणै। मन रंग जावै। इण रंजण सारू ई तो मिनख जीवै।

– वाह, वाह। इणनै कैवै बातां बणावणी।

– आ बात नीं बणाई ही, साच कैई है।

– म्हैं सब समझूं।

– बेटी नै राजी करणी है, इणी खातर मोटी-मोटी बातां कैई।

– बेटी म्हासूं कदैई बेराजी नीं रैवै। म्हारी बेटी है, हमेस राजी रैवै।

      मां कीं नीं बोली अर चुप हुयगी। पापा खाणो खाय’र हाथ धो लिया। आंगण मांय बैठ्या, मां कन्नै ही। छोटी दो बहनां बठै बैठी ही, अेक मांय पढती ही। रसोई रो काम पूरो कर्यां पछै विमला भी आंगण मांय आयगी। आय’र पापा कन्नै बैठगी।

– कोई खास बात है कांई बेटा।

– नीं तो।

–  है तो सई, नीं तो इयां कन्नै आय’र नीं बैठै।

– म्हारी तो थै रग-रग जाणो हो।

– थूं म्हारै काळजै री कोर है नीं।

– ठा है म्हनै।

– साबास।

– थै म्हनै बेटो मानो, आ भी ठा है।

– बेटो ही कैवूं।

– इणी खातर म्हैं अबै बेटो बण’र जीवणो चावूं।

– जीवै है नीं, कोई कमी है।

– है, इणी खातर कैयो।

– म्हनैं तो कमी नीं लागी। थन्नै लागी है तो बता।

– बेटो हमेस आपरै पापा रै काम मांय हाथ बंटावै।

      पापा हंसण ढूकग्या।

– अजै म्हारा हाड काम करै।

– ठा है।

– था सगळां नै रोटी घाल सकूं।

– घालो ई हो।

– फैरूं कांई बात हुयगी।

– म्हैं बेटो बण’र थांरो हाथ बंटावणो चावूं।

– कांई बात करै है, थूं दुकान मांय कियां बैठ सकै। थारो काम पढणो है, थूं पढाई कर। दुकान म्हैं अेकलो संभाळ लेस्यूं।

– पढाई तो करूं ई हूं।

– दूजी बातां कानी ध्यान ना दै, पढ। म्हारी  चिंता ना कर, अजै अेकलो ई दुकान संभाळ सकूं। थानै रोटी घाल सकूं।

– कित्ती बार कैवूं , रोटी घालो हो। उण मांय किणी तरै री कमी नीं है।

– म्हारी समझ मांय थारी बातां नीं आवै।

– थै समझसो तद समझ आसी नीं।

– थूं ई समझाय दै।

– इणी खातर तो बात सरू करी।

– तो बताव।

विमला री हिम्मत बधगी। पापा नै आपरै मोटर ड्राइंविंग स्कूल खोलण री बात बताई। थोड़ी ताळ तो पापा ना नुकर करी, पण बेटी री बात मान ली। उणरी बात कदैई खाली नीं ही।

– म्हैं तो थारै सागै हूं पाण।

– पण कांई।

– थारी मां।

– हां, म्हारी मां।

– आ चुप बैठी है। इणरी हां लैवणी जरूरी है।

– थे म्हनै कम समझो हो कांई।

– कियां।

– अबकी म्हैं मां री हां पैला ली है।

– वाह। जद थारी मां हां कर दी तद म्हैं ना कियां देय सकूं।

– इणी खातर पैला मां नै बात बताई।

– वाह बेटा, थूं तो हुसियार हुयगी।

– थांरी बेटी हूं नी।

दोनूं हंसण लागग्या।

– पण कार चलावणी कियां सीखैला।

– कोई आछी ड्राइविंग स्कूल मांय एडमिसन लेसूं।

– ठा करी कांई।

– हां।

– कुण सी।

– पवन ड्राइविंग स्कूल है।

– पण स्कूल खोलसी तद थन्नै भी कार चाइजसी।

– बस, उण रो खरचो थांनै उठावणो है।

– ठीक है, म्हनैं मंजूर है।  थूं पवन स्कूल बात करी कांई।

– थे अर मां हामळ भरो पछै ई तो बात करणी ही। अबै थां हामळ भर दी तो काल ही बात कर लेस्यूं।

– पढाई भी सागै चालती रैवै, इणरो ध्यान राख्यै।

– आई कोसिस है। जे काम घणो हुयो तो पछै प्राइवेट पढाई कर लेस्यूं। थे चिंता ना करो, उण मांय कमी नीं आवण दूं।

– म्हनै थारै माथै भरोसो है बेटा।

– उणनै कदैई नीं टूटण दूं। ठावस राख्या थे।

 दूजै दिन विमला पवन ड्राइविंग स्कूल पूगगी। ऑफिस मांय गई तो ठा पड़ी उणरो मालिक रौनक अेक जणै नै कार चलावणी सिखावण सारू गयोड़ो है। उणरी उडीक सारू विमला वेटिंग रूम मांय बैठगी। उणरी निजरां स्कूल रै दफ्तर मांय च्यारूं कांनी घूमण लागगी। उण नै इणी तरै रो स्कूल बणावणो हो। मन ई मन वा सुपनो सजावण लागगी। छोटे सूं सरूं कर’र मोटे स्कूल रो सुपनो उणी ठौड़ बैठी बैठी देख लियो।

आध घंटा बाद वेटिंग रूम मांय अेक इक्कीसेक साल रो छोरो आयो। गजब रो हैंडसम। घूघराळा केस। आछी लंबाई। रंग गोरो। डील-डॉल मांय सांतरो। नूंवै रंग रा कपड़ा पैर्योड़ो। अेक निजर मांय ई हरेक रो ध्यान आप कानीं खींच लेवै, इण तरै रो। वेटिंग रूम मांय अेक निजर घाली अर ऑफिस कांनी मुड़ग्यो। विमला नै लाग्यो कोई कार चलावणी सीखण सारू आयो हुवैला।

थोड़ी ताळ पछै चपरासी आयो अर विमला नै मिलण सारू आवाज लगाई। विमला उठी अर ऑफिस मांय गई।

मांय कुर्सी माथै बैठै मिनख नै देख’र चकरी बम हुयगी। सुंदर सो वो छोरो उण माथै बैठो हो। विमला उणनै देखती ई रैयगी। इणी छोटी सी उमर मांय स्कूल चलांवतो, आ घणै इचरज री बात ही। उणरी मेहनत उणरै फुटरापै लारै साफ निजर आवती। विमला कीं नीें बोली, उणनै देखती रैई।

उणरो ध्यान अेक मीठी आवाज स्यूं टूट्यो।

–  आप बिराजो नीं।

आ बात उण छोरै कैई ही, जिण रो नांव रौनक हो। विमला री सिट्टी-पिट्टी गुम हुयगी। हड़बड़ार खाली पड़ी कुर्सी माथै बैठगी।

– बताओ, कियां पधारणो हुयो।

– म्हनैं ड्राइविंग सीखणी है।

– कांई चलावणो चावो।

– कार।

– थांरै कन्नै कार है कांई?

– ना।

– फैरूंं कार चलावणी कांई खातर सीखो।

– म्हैं भी थां दाईं म्हारो ड्राइविंग स्कूल खोलणो चावूं।

बो मुळक्यो। विमला बोली।

– कांई ओ खराब काम है ?

– ना। खराब हुंवतो तो म्हैं कियां करतो।

– म्हैं खाली महिलावां नै ड्राइविंग सिखावण री स्कूल खोलणी चावूं।

– आ बात ठीक है।

– इण खातर ई पैला म्हैं ड्राइविंग सीखण सारू आई हूं।

– जबर। म्हैं थांनै कार चलावणी सिखासूं।

                विमला पाछी बात सरू करी।

– तो कद सूं सरू करासो ड्राइविंग सिखावणो।

– नेक काम मांय देरी किण बात री। आज ही सरू करदां।

– आज तो नीं।

– तो कद।

– म्हारी कॉलेज हुवै दिनुगै इग्यारै बज्यां सूं। उण सूं पैला अभ्यास कर सकां।

– आ बात ठीक है। दिनुगै-दिनुगै सीखण मांय आसानी रैवै।

– काल सूं ई सरू करां।

– हां।

– आवणो कठै है।

– आप घर बताय दो म्हैं लेवण आय जासूं अर अभ्यास रै बाद पाछो छोड़ देस्यूं। दिनुगै म्हारी स्कूल नीं चालै, इण खातर किणी तरै री अबखाई नीं आवै।

विमला नसड़ी हिलाय’र हां भरी। घर रो पतो बताय दियो। हाथ जोड़ खड़ी हुयगी अर चालण रो कैयो।

– चालो, म्हैं आपनै बारै तांई छोड’र आऊं।

दोनूं बारै आया। जांवती बेळा दोनूं अेक दूसरै नै देख्यो अर हाथ जोड्य़ा।

घरै आय’र विमला मां-पापा नै सगळी बात बताई। घरआळा राजी हा। दूजै दिन दिनुगै रौनक कार लेय’र उणरै घरै आयग्यो। विमला तैयार ही। दोनूं निकळग्या। कार सीखण नै।

अेक महीने तांई कार सीखी अर विमला कार चलावण में पारंगत हुयगी। वादे मुजब उणरी महिलावां री विंग अलग  खुलगी। पैलै दिन सूं ई कैई लुगायां कार सीखण सारू आयगी।

घर घणो बदळ्यो तो सागै-सागै विमला अर रौनक मांय भी बदळाव आयग्यो। दोनूं अेक-दूजै रै नेड़ा आयग्या। प्यार करण लागग्या। ब्यांव करण री तेवड़ली।

अेक दिन रौनक आपरी मा नै विमला रै घरै लायो। विमला रो हाथ मांग्यो। घर आळा राजी हा। दोनां रो ब्यांव हुयग्यो।

ब्याव रै पछै जद सीख दिरीजी उण बगत पापा री आंख्यां भरीजगी। बहनां कन्नै ऊभी ही। वां आपरी घरआळी नै कैयो – देख इण तरै सूं अेक बेटी कियां आखै घर रो भाग बदळदै। आ म्हारी बेटी नीं साच में बेटो है।

 

 

मोबाइल :9166178407

हिन्दी अर राजस्थानी में कवितावां और कहाणी लिखे। आकाशवाणी सूं भी जुडिय़ोड़ा हैं, साथे शिक्षिका भी है।

भूरण हत्या

कूटळे रे कूढ मांय कै कदैई नाळी रै पसवाड़ै

या जद कदैई नोचते देखूं गंड़कड़ै ने

नवजात कन्या रो भूरण

या कोई छाती पर भाटो राख’र

कोई जनम देवाळ मां छोड़ जावै

कन्या ने जींवती अकूड़ी माथै

आंख्यां रे सागै हियो भी भरीज जावै टीस सूं

साचूं अणखांवती जिके गरभ में मां इने राखी नफ मईना

सींची आपरै लोई सूं

बेटी देखतां ही अणभागण

नीं धारीजणी हुई खुद री ही जामण रै

कैवे है क जामण रो हियो पिरथवी सूं भी बड़ो हुवै

इरी मां तो बांदरी सूं भी गई बीती निकळी

जिनावर हुर भी चिपायां आपरी छाती रै

कूदती इन्नै-बिन्ने कळपती मन रै मांय

आवै म्हनें विचार

आभरै अर धरती सरीखी मायड़

क्यूं हार मानगी ई निरदई जमाने सूं।

 

 

बेटी पढाओ

सुगणा एक छोरी ही सांतरी

पढणो चांवती ही

जद-जद देखती पंछीड़ा नै

तो उडणो चांवती ही

पण मां-बाप रै भूत सवा हो

बेटी रै ब्यांव रो लोकाचार रो

बेगा-बेगा उऋण होवणा चांवता

बाळपणै ही बेटी रो ब्यांव चोखो

छोटी उमर में परणा’र सुगणा ने

भेज दीनी परके गांव

पण देख्यो विधि रो विधान

छऊ मईना ही नीं जिओ

सुगणा रो बीन

ताड़ दीनी चुड़ियां मिटा दिनों सिंदुर

बिठा दीनीं खुणे मांय अपराधी जियां

रोवंती सुगणा हिचकियां भरती कैवै

ए जळम देवाळ मां-बाप ही बैरी हुवै

अणपढ्योड़ी बेटी ने परणावै

उमर भर खींचती रैवै

अणपढ्या री खाळ

भायां बेटी पढाओ

बेटी बचाओ

सगळां ने ओ सनेसा पहुंचावो।

नाम सीमा पारीक

 

 

बाबूलाल छंगाणी मंच रा ख्यात नांव कवि है। ‘बाबू बमचकरी’ नांव सूं हास्य-व्यंग्य री कवितावां लिखणिया बाबूलाल छंगाणी मंच रा चावा कवि है। आप री कवितावां री एक पोथी भी ‘केवे जिकनै केवण दो’ भी प्रकाशित है।

ध्याड़ी तो मिलै

रेलगाड़ी में एक युवा,

खासे बगत सूं

मोबाईल में डूब्योड़ो हो॥

सामी कुर्सी माथै,

बैठो ताऊ अक्कल में

मतीरो बुरोड़ो हो॥

छोरे रे मूण्डे माथै,

कदैई तो उदासी,

अर कदैई खुशी छा री ही॥

गाड़ी आपरी काछबे री

चाल में धड़धड़ करती,

बुई जा रैयी ही॥

छैकड़ ताऊ सूं

रैइज्यो कोनी तो बोल्यो,

छोरा तूं थाक्यो कोनी

ई रे मांय कै देखे

बता, मेरी तो

समझ में आयो कोनी।

काका फेसबुक चला रैयो हूँ,

जिके सूं देस, दुनिया,

रो घर बैठां ठा पड़े है॥

पूठो बोल्यो सभ्यता संस्कार,

गया चूक इब बेमाता हमें

टींगर ऐड़ा ही घड़ै है।

म्हारी मान एक काम कर

इन्नै चलाया थनै

कै मिले है?

चलावे तो ऑटो चला

डफोळ आथण नैं

ध्याड़ी तो मिले है!

मोबाइल : 9460890205

नगेन्द्र नारायण किराड़ू     
राजस्थानी अर हिन्दी में कवितावां-कहाणियां लिखै साथै चित्रकार भी है। कईं पत्र-पत्रिका में लेखनी प्रकाशित हुवै। अबार आपरे पिताजी स्व. भगवान दास किराड़ू रे साहित्य ने आम-जन तकां पहुचाणें रो लक्ष्य हाथ में ले राख्यो है। रोजगार विभाग में काम करै है।

नारी जीवन री भावुकता अर विडम्बना रो चितराम है-

उपन्यास  ‘मैकतीं काया मुळकती धरती’
अन्नाराम सुदामा बीकानेर रा इसा चावा ठावा राजस्थानी रा हितालू हा जिकां आपरौ सारौ जीवण राजस्थानी नै समर्पित कर दियो। अन्नाराम सुदामा राजस्थानी री संस्कृति अर जलमभोम में ईण तरह सू रल्यौडा हा जियां दूध अर पाणी रल्यौडो हुवै। अन्नाराम सुदामा लगोलग पच्चीस पोथ्या लिखी जिमै उपन्यास, कहाणी संग्रै, नाटक, यात्रा संस्मरण, कविता, निबंध, बाल साहित्य आदि रचनावां लिख राजस्थानी भाषा रो भण्डार भरयौ। इयां रौ उपन्यास ‘मैकतीं काया मुळकती धरती’, मेवे रा रूंख (केंद्रीय साहित्य अकादमी सूं पुरस्कार प्राप्त), आंधै ने आँख्या, इसा उपन्यास है जिका लोक रै मांय आपरी अमिट छाप छोडी है। धणखर साहित्य रा पारखी अन्नाराम सुदामा नै राजस्थानी रो प्रेमचंद री उपमा देवै अर आ बात सही भी है इयां रा लिख्यौड़ा उपन्यास राजस्थानी री सामाजिक, सांस्कृतिक अर राजनीतिक चितराम में पाठक रे साम्हीं आवै। जै आपा ने राजस्थान रै रीति-रिवाजा री निगै करणी हुवै तो अन्नाराम सुदामा रै उपन्यास नेे पढण सूं ठाह लाग जावै कि राजस्थान री संस्कृति, मेला-मगरिया, राजस्थान रा रण-बांकुर सोई-कोई इयां रै उपन्यासा में अेक-अेक दृश्य आंपारी आँख्या रै साम्हीं आवै। इयां रो लिख्योड़ौ उपन्यास ‘मैकतीं काया मुळकती धरती’ बड़ो ही लूंठो उपन्यास है। ई उपन्यास रै मांय ओ अेक ऐड़ो उपन्यास है जिकै रे मांय भावना रो समुंदर लैरा लेवे। ‘मैकतीं काया मुळकती धरती’ री नायका सुथारी नानी (सुगनी) है। जिकी आपरै मन मानीजतै दोहिते गोरधन रै सामने आपरै जीवन में बितौडी घटनावां रो बखान करै। सुथारी नानी रै माध्यम सूं उपन्यास कार आ बात साम्हीं राखी है। कि नारी रै दुःखा री जड़ रै मांय नारी रो हाथ घणो हुवै। ई उपन्यास रै मांय सुथारी नानी ने भारत री जलमभोम सूं बड़ो लगाव है। सुथारी नानी हर बार भारत री जलमभोम में हर बार जनम लैणो चावै। उपन्यास में अेक जगह पर बा कैवे कि ‘‘ऐ रजवाड़ा ऐ ठाकुरां रा ठाठ बाठ के ठाह रैसी कै नी रैसी पण आ धरती आपणी कठैई कोनी जावै। आपारौ प्रेम तो धरती रै सागैही है तू देख आ धरती किती पवितर है जिण रै माथै गंगा अर जमना हमेस बैबती रैवे।’’ ‘मैकतीं काया मुळकती धरती’ ग्रामीण जीवन ने आधार बनाण लिख्यौड़ो ऐड़ो उपन्यास है जिकै रो कनक सुदंरी रै बाद सबसू ज्यादा संस्करण निकल्या है। छोटे-छोटे गांवा रै मांय बसयोड़ी सामान्य जन-जीवन रो प्रामाणिक चितराम इयां बडे सजीव ढ़ंग सू उकेरयो है। ई उपन्यास रै मांय सामाजिक आदर्स अर नारी रै जीवन री विडम्बनाओ ने सिरजण कर कथाकार उपन्यास नै बड़ो ही भावात्मक अर मार्मिक बणा दियो है। ई उपन्यास रै मांय सुथारी नानी रो धरती रो प्रेम अर जातीय अेकता रो अमिट संदेश है। लेखक आपरै ई उपन्यास में सत अर असत वृत्तियाँ आळा लोगा ने बियां री वृत्तिया रै अनुसार ही दंड दियौ है। छोटे-छोटे संवादा में समेटिजोड़ो उपन्यास अेक बंतल रै साथै शुरू हुवै अर् बंतल में ही खत्म हुवै। ई उपन्यास रै मांय अन्नाराम सुदामा बड़ो सांतरो वर्णन करियो है। राष्ट्रीय प्रेम, सांप्रदायिक भावना अर जातिगत अेकता रै साथै-साथै गांधीवादी चेतना रो भी दर्शन हुवै। उपन्यासकार हिंसा नी चावै पण ई उपन्यास रै मांय अेक बात आभी साम्हीं आई है। कि ‘‘डांगर नी डल्क्या जावै जद लाठी सूं खेत रूखाळी जै। ’’उपन्यास में घटनावां अपने आप क्रमवार साम्हीं आंती रैवे जिकै सूं पाठक ने घणौ आनंद आवै। ‘मैकतीं काया मुळकती धरती’ में प्रकृति रा बड़ा लूंठो चितराभ उकेरिया है अर बीच-बीच में मीरा बाई रा भजन धार्मिक आस्था अर विश्वास निर्गुण भक्ति रै सागै सगुण भक्ति री वकालत भी करी है। सागै-सागै खेजड़ी रो आपा रै जीवन मै क्या महत्त्व है। अर खेजड़ी ने आसारूडियो नाम दियौ है। खेजड़ी ने अेक लोक देवता रै रूप में थरपी है। सिरी अन्नाराम सुदामा भावां रै सागै-सागै शिल्पकला मै भी घणा पारखी हां । ई उपन्यास रै मांय मुहावरा, लोकोक्तियां अर् उपमावां रे सागै-सागै अछूती कल्पना रो प्रयोग भी करियो है। जियां लोकोक्ति अर मुहावरा रै मांय ‘‘बाढ़ी आंगली पर नी मूतै, रोया राज कूण दैसी, काटै तो खून नी, कबूतर ने कंुओ ही दिसै, अर लोकोक्तियां में सरायौड़ी खिचडी दांता चढै, कालो मूंडो लीला पग, धोलौ-धलौ सगलो दूध, भोलो मीत दुसमन री गरज पालै, तैली सू खल उतरी हुई बळीते जोग, भुआ जी जांऊ-जांऊ हा फूंफा जी लेवण ही आयग्या, कुत्ता ही खीर नी खावैला, बैई घोड़ा अर बैई मैदान, राजा जोगी अगन जल आंरी उलटी रीत, गई बात ने घोड़ा ही नी नावड़े, लाडू री कोर में किसो खारो किसो मीठो ईण तरह सूं ई उपन्यास रै मांय सिरी अन्नाराम सुदामा उपमावां भी बडी सांतरी दी है। जियां आक सूं ही खारी अर कादै संू ही कोजी, नींद ईसी आई जणै समाधि लागगी, दाढ़ी तिल चावल मल्यौडी सी कटड काबरी, नाक आगै सू मोटी छावलिया सुपारी सी, माँ री सीप्या मोत्या सूं छिलिजगी, ठोडी दसैरी आम री गुठली सी, केस सी महीन काछी गंवार री फळिया रो साग केसर सी पीली, बाजरी री रोटी, नाक छोटी टिंडसी-सी पगा में किड़ीनगरी सी लट्ट किलबिले, गलयोडे़ काकड़ियै रै मांय लटां बेझ करदै जियां डील हुग्यो, गुलाब रै गुच्छै जियो नानी झड़गी जैड़ी उपमावां रो प्रयोग ई उपन्यास रै मांय करियो है। अन्नाराम सुदामा आप रै ई उपन्यास रै मांय युग्म शब्द रो ईत्तो सांतरो प्रयोग करियो है जिकै सूं उपन्यास री कथा आगै सूं आगै चालती रैवे जियां संकळप-विकळप ईन्नै-बिन्नै, पढ्यौ-लिखयौ, कूट-काट, चूकी-ढूकी, रास-बास, नावो-लेखो, राता-माता, गाय-धाय, सैंतरौ-बैंतरौ, सुख-दुःख, पढ़ाई-लिखाई, डरा-धमका, ऊँची-नीची ई रै सागै-सागै अन्नाराम सुदामा राजस्थानी भाषा रै ई उपन्यास मैं राजस्थानी री संस्कृति अर प्रकृति दोनू आँख्या रै साम्हीं आवै। जियां बसबसिजणे दूघडचिंता, कुण्डालियो, लिकलिका, उजळोबध, खोळियो, कालमिस, रिंधारोही, कुमाणस, छकडीकम, खेलरा, फोफळिया, बचकूकड, गूदडी, फन्नैखां, उकील, बडघडो, पगोथियै, बुचकारयां, हिरावड़ी आद इसा घणखरा सबद है जिका राजस्थानी रै मांय लोग कम ही प्रयाग करै।
‘मैकतीं काया मुळकती धरती’ उपन्यास रै तत्वा माथै खरौ उतरे। लेखक जिकै उद्देश्य ने लेर उपन्यास री सिरजणा करी है बिमै बो खरो उतरै। ई उपन्यास रो प्रकाशन धरती प्रकाशन करियो है। अर ई उपन्यास रा कित्ता ही संस्करण भी निकल्या है। इयां लागै जाणै उपन्यासकार ई उपन्यास नै भावां रै कागद माथै मरम री लेखनी चलाई है। ईने पढता थका आ लागै जाणै आपां आखै गांव रो चितराम ने बाई सकोप दाई देखलियो। ‘मैकतीं काया मुळकती धरती’ राजस्थानी रो अेक लूंठो उपन्यास है।