हस्तक्षेप/- हरीश बी. शर्मा

स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए संकल्पित शिक्षा मंत्री मदन दिलावर एक बार फिर अपने फरमान को लेकर चर्चा में हैं। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया है कि स्कूल में आते समय शिक्षक अपना मोबाइल नहीं लेकर आए। अगर आए तो अपना मोबाइल प्रिंसीपल के पास जमा कराए। कोई कॉल आने पर प्रिंसीवल बात करा देंगे। शिक्षकों के लिए पहला आदेश जहां परेशानी का सबब है तो दूसरा आदेश जी का जंजाल, क्योंकि आज के समय में किसी को अपना मोबाइल देने का अर्थ कई मायनों में बड़ा रिस्की होता है।

इससे पहले नमाज या पूजा-दर्शन के लिए जाने वाले शिक्षकों से छुट्टी लिखवाने, स्कूलों में शुभ्र-वेश में आने जैसे आदेशों की वजह से मदन दिलावर चर्चा में रहे हैं, लेकिन यह तो ऐसा आदेश है, जो न सिर्फ शिक्षकों पर भारी पड़ेगा बल्कि इससे शिक्षकों के कई विभागीय कार्य भी बाधित होंगे। शिक्षकों  की शाला-दर्पण से जुड़ी तमाम सूचनाएं पाने का एक बड़ा साधन मोबाइल ही है, लेकिन जब मोबाइल ही नहीं रहेगा तो शिक्षक अपडेट कैसे रहेंगे, लेकिन लगता है कि इन सभी से अधिक शिक्षा मंत्री उन शिकायतों से खफा हैं, जिसकी वजह से स्कूली शिक्षकों की शिकायते बढ़ती जा रही हैं कि शिक्षक अधिकांश समय में चैटिंग में लगे रहते हैं। स्टॉक मार्केट के रुझाने में उलझे रहते हैं या बातों में अपना समय निकाल देते हैं।

हो सकता है कि स्कूलों की पढ़ाई में मोबाइल एक बड़ी बाधा हो, वैसे भी मोबाइल हमारे जीवन का जितना अपरिहार्य हिस्सा होता जाता रहा है, उतना ही इसे गरियाने वालों की भी तादाद बढ़ती जा रही है। पिछडऩे, असफल रहने या कि समय खराब होने की वजह चाहे कुछ भी हो, अधिकांश लोग मोबाइल और सोशल मीडिया को ही इसका बड़ा कारण मानते हैं, लेकिन इसे छोडऩा किसी के लिए भी मुमकिन नहीं है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि मदन दिलावर स्कूलों में शिक्षकों को मोबाइल ले जाना बंद करवा पाते हैं या नहीं। मदन दिलावर स्कूलों में शिक्षा का वातावरण बने, इसके लिए जिस तरह से सोच रहे हैं, उस पर सहमति-असहमति हो सकती है, लेकिन इस बात से सभी सहमत हैं कि स्कूलों का एक ही काम होना चाहिए कि किस तरह से अध्ययन-अध्यापन का वातावरण बने।

इस दिशा में अगर शिक्षा मंत्री गंभीरता से काम करते हैं तो सबसे पहले उन्हें स्कूल में शिक्षा का माहौल बनाने के लिए काम करना होगा। हकीकत यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के अनुकूल माहौल ही नहीं बन रहा है। अध्यापकों  पर पाबंदियां लगाना दूसरी बात है, अध्यापकों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करना दूसरी बात है, जिसके लिए सरकार को गंभीरता से प्रयास करना चाहिए। कोई भी सरकार अगर ऐसा सोचती है कि मोबाइल आदि छीन लेने से शिक्षक पढ़ाना शुरू कर देंगे तो यह न्यायसंगत नहीं कही जा सकती।
इससे तो बेहतर यह है कि स्कूली-शिक्षकों को रचनात्मक बनाने की दिशा में कार्य किया जाए। स्कूल में आने वाली छात्र-छात्राओं के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाए। स्कूली बच्चे, अभिभावक और शिक्षक के बीच समन्वय होने पर ही संभव है कि स्कूलों की दशा सुधरे, मोबाइल पर प्रतिबंध का नियम अव्वल तो सफल ही नहीं होगा। अगर यह सफल हो भी गया तो इससे स्कूलों के परिणाम पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।