हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
भारतीय जनता पार्टी ने भले ही चार सौ पार का नारा देकर एक माहौल बनाया हो, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि भाजपा का यह लक्ष्य ठीक उसी तरह मुश्किल में है, जैसे राजस्थान में शत-प्रतिशत सीटों का लक्ष्य। चुनाव के पहले चरण में ही जिस तरह भाजपा को चुनौती मिली है, उससे यह जाहिर हो रहा है कि अगर भाजपा 22 सीटें भी जीत लेती है तो बड़ी बात होगी। मतदान का जो प्रतिशत गिरा है, वैसे ही हालात अगर 26 अप्रैल को भी राजस्थान में रहते हैं तो सीटों का और भी हेर-फेर हो सकता है।

लेकिन सिर्फ राजस्थान में ही ऐसे हालात हो, ऐसा नहीं है। भले ही कांग्रेस का नेतृत्त्व कमजोर होने की वजह से प्रथम दृष्टया यह नजर आ रहा हो कि भाजपा एकतरफा चल रही है, लेकिन पूरे देश में नजर डालेें तो पाएंगे कि भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए दूसरे भी ऐसे कईं क्षत्रप हैं, जो कांग्रेस के किसी भी प्रत्याशी से अधिक ताकत रखते हैं।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की बात करें चाहें पश्चिमी बंगाल में तृण मूल कांग्रेस और पंजाब तथा दिल्ली में आम आदमी पार्टी, इन पार्टियों ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी है। कुछ सीटें तो ऐसी भी हैं, जहां भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पाएगी। इसके अलावा दक्षिण और पूर्वोत्तर में अपनी जगह तलाश रही भाजपा को भी कड़ी चुनौती मिल रही है।

ऐसा नहीं है कि भाजपा या उसके सहयोगी दल इन हालात से अनभिज्ञ है। उनके ‘वार-रूम’ ने पहले चरण के चुनावों में कम मतदान को मुद्दा बनाकर पन्ना प्रमुखों तक को खंगाल लिया है कि आखिर गड़बड़ कहां रही। भाजपा में पन्ना-प्रमुख एक ऐसी योजना है, जिसमें बड़े से बड़े पदाधिकारी या नेता का इन्वाल्वमेंट होता है। इस योजना के तहत यह पता लगाया जा सकता है कि अगर वोटर मिस हुआ है तो उसका कारण क्या है। यहां तक कि वह वोटर भाजपा है का है या किसी दूसरे दल का समर्थक।

पहले चरण के मतदान के बाद आए मतदान-प्रतिशत के बाद से भाजपा इस मामले में बड़ी गंभीर है, क्योंकि मामला लगभग 102 सीटों का है। जिन सीटों पर भाजपा अपनी जीत मान रही थी, उन सीटों पर मतदान प्रतिशत गिरने के कारण प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी उत्साहित हैं। उलट-फेर के अनुमान शुरू हो गए हैं। ऐसे में भाजपा बची हुए सीटों पर न सिर्फ मतदान का प्रतिशत बढ़ाने को लेकर सक्रिय हो चुकी है बल्कि अपने वोटर को भी किसी भी सूरत में मतदान करवाने को लेकर गंभीर है।

जिस तरह के हालात पहले चरण के बाद देखने को मिले हैं, अगर यही ट्रेंड दूसरे चरण में रहा तो भाजपा संकट में आ सकती है। इस संकट से समय रहते बदलने के लिए एक तरफ जहां भाजपा ने पन्ना-प्रमुखों को एक्टिव-मोड पर रहने के निर्देश दे दिए हैं तो दूसरी ओर आक्रामक-शैली भी अख्तियार कर ली है। कोई बड़ी बात नहीं है कि आने वालेे समय में कुछ और स्टार-प्रचारकों को भी चुनाव अभियान में ढंग का काम दिया जाए। इससे पहले भले ही स्टार-प्रचारकों की लंबी-चौड़ी सूची बना दी गई हो, लेकिन अधिकांश को रिजर्व-मोड पर रखा गया है। संभव है कि उन्हें भी मैदान में उतार दिया जाए।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।