हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
लोकसभा चुनाव में इलेक्टोल बॉण्ड का मुद्दा अभी पुराना नहीं पड़ा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी होने के बाद विपक्ष के पास नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला करने के लिए एक और मुद्दा आ गया है। इलेक्ट्रोल बॉण्ड के संबंध में जानकारियां सामने आने के बाद हालांकि सिर्फ भाजपा की कठघरे में नहीं है, दूसरी राजनीतिक पार्टियों को दिए गए चंदे की भी जानकारी मिली है, लेकिन भाजपा पर यह आरोप तो है कि एसबीआई ने भाजपा के दबाव में जानकारियां प्रस्तुत की। बाद में सुप्रीम कोर्ट को ही सख्त होना पड़ा।

इधर, अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी होने के साथ ही ईडी के दुरुपयोग का  मुद्दा भी उठ खड़ा हुआ है। आबकारी नीति से जुड़े इस मामले में हालांकि अब तक सोलह गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री भी हैं और उन्होंने न सिर्फ कई बार ईडी के समन का जवाब नहीं दिया बल्कि गिरफ्तारी की आशंका के चलते अपने पद से इस्तीफा भी नहीं दिया, बल्कि गिरफ्तारी के बाद जेल से सरकार चलाने की बात भी कही है, जिससे उन्हें राजनीतिक रूप से चर्चा तो मिलेगी ही।

यह अलग बात है कि देश की अधिकांश जनता को यह लग रहा होगा कि नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार बहुत मजबूत है, लेकिन हकीकत दूसरी है कि विपक्ष के पास कोई ऐसा मुद्दा ही नहीं है जिससे नरेंद्र मोदी को घेर सके। इलेक्ट्रोल बॉण्ड और अरविंद केजरीवाली की गिरफ्तारी के प्रकरण इस दिशा में विपक्ष के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। लिहाजा, केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से ही विपक्ष हमलावर है। विपक्ष का गठबंधन ‘इंडिया’ इस संबंध में देशभर में प्रदर्शन भी कर रहा है ताकि दबाव बन सके, लेकिन सवाल यह है कि सरकार पर दबाव बनाने से पहले क्या जनता की सहानुभूति लेने में विपक्ष कामयाब हो सकेगा।
यह सवाल इसलिए है कि देश में विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा जिसे माना जाता है, उस राहुल गांधी को लेकर भी जनता में उत्सुकता नजर नहीं आ रही है। राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा  को उस तरह का समर्थन मिल ही नहीं रहा है, जिस तरह का समर्थन कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेता को मिलना चाहिए।

ऐसे में सिर्फ दिल्ली और पंजाब में सरकार बना लेनी वाली आम आदमी पार्टी देशभर में कैसे माहौल बना सकेगी। इन दोनों प्रदेशों के अलावा आम आदमी पार्टी की किसी अन्य स्टेट में ऐसी भी स्थिति नहीं है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी उतार सके। ऐसे में अगर केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन भी होता है तो उसका बड़ा असर जाने की संभावना कम है। इसका एक बड़ा कारण नेटवर्क है तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन में पहले से ही बिखरे हुए नेताओं की अरविंद केजरीवाल से जुड़ी भावना का भी सवाल है। अरविंद केजरीवाली इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े घटक कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहा है तो कांग्रेस उसे चर्चा में रहने का अवसर क्यों देगी। इन स्थितियों में यह साफ नजर आ रहा है कि अरविंद केजरीवाल को अपनी लड़ाई स्वयं ही लडऩी होगी। अगर इंडिया गठबंधन के घटक दलों से सहयोग चाहिए तो फिर केजरीवाली को कईं समझौते करने होंगे, जिसमें सबसे बड़ा समझौता होगा पंजाब और दिल्ली में घटक-दलों से समझौता, जो वे करने के लिए तैयार नहीं हैं।

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