हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
देश में चुनाव-महोत्सव शुरू हो चुका है। कई बार जब हम सुनते हैं कि अनेकता में एकता, हिंद की विशेषता तो कई बार लगता होगा कि यह तो एक जुमला भर है। बहुत सारी चीजों को जबर्दस्ती जोड़ा गया है, लेकिन ऐसा है नहीं। प्राचीन भारत की एक राष्ट्र के रूप में बात करें तो हमारे पास ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिससे हमारे रीति-रिवाज, परंपराएं और खान-पान में विभिन्नता होते हुए भी एकता के दर्शन होते हैं।
आधुनिक भारत में हम इस एकता के दर्शन चुनाव में कर सकते हैं।

आज से समूचे देश में जो चुनाव-महोत्सव शुरू हुआ है, उसमें समूचा देश एक माला में गूंथा नजर आ रहा है। देश की राजनीतिक पार्टियां इस लोकतांत्रिक अनुष्ठान में पूर्ण समर्पण के साथ संविधान के प्रति पूर्ण निष्ठा रखते हुए भागीदारी कर रही है। नियमों को मानते हुए चुनाव में प्रत्याशी अपना प्रचार कर रहे हैं। जिस तरह आज 102 सीटों पर चुनाव हुए हैं, 26 को फिर चुनाव होंगे। इस तरह जाता हुआ अप्रैल और पूरा मार्च देशभर में चुनाव-महोत्सव का आयोजन होगा, जिसके लिए चुनाव आयोग स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव करवाने की जिम्मेदारी उठाई है।

यह एक ऐसा समय होता है जब बड़ी से बड़ी ताकत वाले राजनेता भी चुनाव आयोग के सामने गौण होते हैं। देश की शक्तियां स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए कटिबद्ध होकर एक साथ काम करती है ताकि देश को एक जवाबदेही सरकार मिल सके। जो सरकार नहीं बनाते, वे निसंकोच विपक्ष में बैठते हैं।
लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका अपरिहार्य है। बगैर विपक्ष के स्वस्थ लोकतंत्र की परिकल्पना भी नहीं कर सकते। आजादी के बाद जब से देश में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली लागू हुई है, विपक्ष के सदस्यों को हमेशा ही सम्मान की दृष्टि से देखा गया है। हम क्यों भूलते हैं कि ऐसे ही प्रारंभिक दिनों में एक बार जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से सांसद अटल बिहारी वाजपेयी की चर्चा हुई तो वे बड़े प्रभावित हुए और उनमें देश के प्रधानमंत्री बनने के गुण देखे। अगर देश में लोकतंत्र नहीं होता तो ऐसा संभव नहीं था, लेकिन कालांतर में देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बने और इसी प्रक्रिया में एक बड़ा नाम नरेंद्र मोदी का जुड़ा, जिन्होंन अपने कौशल से देश-दुनिया को चमत्कृत कर रखा है।

ऐसे अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं, जिन्होंने इस चुनाव-महोत्सव में भागीदारी की और फिर देश या प्रदेश की सरकार के मुखिया भी बने, मंत्री भी रहे। और यह किसी एक हिस्से की बात नहीं हो रही है। समूचे देश की हो रही है, जिसे हम अपनी राष्ट्रीय एकता कहते हैं। निसंदेह हमारे पास देश में होने वाले आम चुनाव हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साथ-साथ व्यक्ति मात्र, नागरिक मात्र को दिए जाने वाले नागरिक अधिकारों का प्रमाण है कि हम समानता की सिर्फ बात ही नहीं करते बल्कि प्रत्येक नागरिक को देश, भाषा या मजहब से परे जाकर एक व्यक्ति के रूप में देखते हैं। सबके लिए समान रूप से न्याय है, व्यवस्था है और सारा देश है।

इसी रूप में हमें इन चुनावों को देखना चाहिए। लोकतंत्र का यह बड़ा महोत्सव है, इसमें हम सभी अपने-अपने स्तर पर सुनागरिक बनने का संकल्प लेकर देश की बड़ी सेवा कर सकते हैं।

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