हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

शुक्रवार का दिन सारा देश इस बात पर बहस करता रहा कि आखिर क्या कारण हो सकते हैं कि प्रियंका गांधी ने रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ा। बहस का यह विषय भी रहा कि राहुल गांधी अमेठी छोड़कर रायबरेली से चुनाव लडऩे का क्यों मन बनाया? कहीं से एक शगूफा आया कि राहुल गांधी वायनाड़ से हार सकते हैं, अमेठी से हारे हुए हैं। इसलिए नया निर्वाचन क्षेत्र चुना है। इस बीच एक बात और खड़ी हुई कि अगर दोनों ही लोकसभा सीटों से राहुल गांधी जीत गए तो जिस सीट को भी छोड़ेंगे, नुकसान में रहेंगे?
मतलब, शुक्रवार का पूरा दिन इसी बहस में व्यस्त रहा। इस सारे प्रकरण से स्वयं को किनारे किए राहुल गांधी ने शांत चित्त होकर रायबरेली से पर्चा दाखिल किया और किसी को भी किसी भी सवाल का उत्तर देना उचित नहीं समझा।

सच भी है कि राहुल आखिर कब तक जवाब देते रहे। उन पर परिवारवाद का आरोप लगा तो कांग्रेस की अध्यक्षी छोड़ दी। पिछले चुनाव में अमेठी से हार नजर आई तो वायनाड़ से पर्चा भर दिया। और इस बार वायनाड़ में भी चुनौती दिखी तो रायबरेली से लडऩा तय किया। प्रियंका गांधी चुनावी राजनीति में उतरने के लिए नहीं मानी तो मानी ही नहीं। सोनिया गांधी पहले से ही राज्यसभा के रास्ते को पकड़ चुकी है। मतलब, जो परिवारवाद का आरोप गांधी परिवार पर लगाया जा रहा था, वह लागू नहीं हो रहा तब भी एक बहस शुरू।
इस पूरे प्रकरण को देखते हुए अगर आपको सहसा ही वह कहानी याद आ गई हो, जिसमें एक एक पिता अपने पुत्र को लेकर कहीं जा रहा होता है, साथ में गधा होता है। गधे पर पुत्र को बिठा देता है तो लोग यह कहते हैं कि देखो, पिता तो पैदल चल रहा है, बेटे को बिठाए चल रहा है। पिता बैठ जाता है तो लोग कहते हैं, देखो क्या जमाना आया है, बच्चे को बिठाने की जगह पिता खुद बैठ गया। कहानी का अंत इस तरह होता है कि पिता-पुत्र दोनों ही गधे पर बैठ जाते हैं और एक पुल से गुजरते हुए संतुलन बिगडऩे पर पिता-पुत्र सहित गधा भी नदी में गिर जाता है।

लगता है कि भले ही कांग्रेस इन दिनों बहुत बुरी स्थिति से निकल रही हो, लेकिन उसने इस मामले में संयम से काम लिया और मुर्गे लड़ाने में माहिर इस देश के लोगों की मानसिकता से परे अपने खुद के फैसले और जरूरत पर ध्यान दिया। पहली जरूरत है कि राहुल गांधी लोकसभा में रहें, इस तरह की युक्ति लड़ाई और रायबरेली का चयन किया। संभव था कि अमेठी की जनता अपनी केंद्रीय मंत्री के प्रभाव में हो, लेकिन रायबरेली की जनता की सहानुभूति बिना शर्त मिल सकती है।

देश चाहे कुछ भी कहे, लेकिन कांग्रेस ने यह फैसला सही किया है, क्योंकि चुनाव गंभीरता से लड़े जाने चाहिए। लक्ष्य जीत होना चाहिए। राहुल गांधी जितनी अच्छी लड़ाई लोकसभा में रहते हुए लड़ सकेंगे, बाहर रहकर नहीं लड़ सकते। इसलिए पहला लक्ष्य जीत होना चाहिए। इस रणनीति के चलते इस बात को लेकर आश्वस्त हुआ जा सकता है कि राहुल गांधी किसी न किसी सीट से जीत जाएंगे। अगर दोनों ही सीटों से राहुल जीते तो न सिर्फ यह चमत्कार होगा बल्कि रायबरेली की सीट से प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ाने का ठोस आधार भी होगा। अभी तक के संकेतों से लग रहा है कि अगर राहुल गांधी दोनों सीटों से जीत गए तो रायबरेली को छोड़ेंगे और इस सीट पर प्रियंका गांधी को चुनाव लड़वाया जाएगा।

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