हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
आखातीज के दिन नजदीक आने के साथ ही बीकानेर में पतंगबाजी का दौर शुरू हो गया है। कहते हैं यहां पतंगबाजी की परंपरा बीकानेर नगर की स्थापना  से चली आ रही है। कामना यह है कि जितना लंबी उड़ान राज्य की ख्याति भी उतनी ही दूर तक। आजादी के बाद राजे-रजवाड़े तो रहे नहीं, लेकिन व्यक्तिगत स्पर्धाएं हावी हो गई। पतंगबाजी इस तरह की व्यक्तिगत स्पर्धा का खेल हो गई। हर छत पर दूसरी छत से उड़ी पतंग को काटने का एक ऐसा खेल चला कि परिंदों से लेकर आदमी तक जान की कोई कीमत नहीं रही।
पहले आखातीज के दौरान शहर की शहरों पर कटे हुए परिंदों को मिलना स्वाभाविक था। दो दिन पहले राकेश नाम के एक युवक की जान चली गई। चायनीज मांझे जानलेवा साबित हुआ। निश्चित रूप से जिसे चायनीज मांझा कहा जा रहा है, वह पंख लगाकर तो आया नहीं होगा। कोई न कोई वैध या अवैध तरीके से लाया ही होगा। जो लाया होगा, उसे यह भी पता होगा कि इन दिनों बाजार कहां है। वरना वह बीकानेर के बाजार में क्यों उतारता ?

बीकानेर के बाजार में भी उतारता तो क्या होता अगर यहां के लोग भी गला काट प्रतिस्पर्धा में नहीं उतरते। कभी सूते का मांझा या बरेली का तागा पतंगों के पेच लड़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता था। खुद को संपन्न और बड़ा बताने की होड में चायनीज मांझे ने आसानी से जगह बना ली। उल्लास का  पर्याय पतंगबाजी की ‘बोय काट्या’ में हिंसा हावी हो गई। चायनीज मांझे की बड़ी खरीद होने लगी। गले कटने लगे और इस बार तो आखातीज से 15 दिन पहले ही एक मौत भी पतंगबाजी की भेंट चढ़ गई।

क्या, इसके लिए बाजार को दोषी ठहराना ही पर्याप्त है। माना कि यह बाजार की देन है, लेकिन हम खरीदते ही नहीं तो बाजार क्या कर लेता। क्यों नहीं मानते कि हम संवेदनहीन ही नहीं अमानवीय होते जा रहे हैं। जानते-समझते कि इसके क्या नुकसान है, धड़ल्ले से खरीद रहे हैं। दुकान में इस तरह से मौत का सामान बिकना गलत है और इस पर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन खरीदना जो सरासर गलत। दुकानों में तो जहर भी बिकता है, हम खरीदते तो नहीं-क्योंकि जानते है यह मौत का सामान है। लेकिन चायनीज मांझे में हमें अपनी जीत का अवसर दिखाई देता है। इस अवसर को हथियाने की अंधी दौड़ में हम यह भूल जाते हैं कि यह गला काट मांझा है। इस मांझे से जिस राकेश की मौत हो गई, वह उस परिवार का कतई नहीं था, जिसने चायनीज मांझे से पतंग उड़ाई थी।

 

लेकिन उस तक यह खबर तो पहुंची ही होगी कि वह एक मौत का जिम्मेदार है। हर एक व्यक्ति जो चायनीज मांझा खरीद रहा है राकेश की मौत का जिम्मेदार है। हर वह व्यक्ति जो सड़क पर पैदल, साइकिल या बाइक पर चल रहा है-राकेश हो सकता है। संभलें। दो दिन का उल्लास किसी परिवार में शोक की वजह बने तो ऐसे उल्लास को तिलांजलि दे देनी चाहिए। बाजार कुछ नहीं कर सकता अगर हमने तय कर लिया है कि क्या खरीदना है और क्या नहीं खरीदना। चायनीज मांझे को नहीं खरीदने का संकल्प लें। पतंगबाजी को उल्लास का पर्व बनाएं। हिंसा का तांडव नहीं रचाएं। पुलिस या प्रशासन की कार्रवाई का इंतजार किये बगैर खुद के स्तर पर संकल्प करें कि चायनीज मांझा उपयोग में नहीं लाएंगे।