राहुल गांधी से जन्मदिन पर अपेक्षा

आज भी देश भरोसा करने को तैयार है, निराश न करें…

-हरीश बी.शर्मा

मैं जिस देश में रहता हूं, उस देश में राहुल गांधी जैसे लोग सदा संभावनाशील बने रहने के वरदान से लबरेज हैं। हमारे इधर के इतिहास में जहां सत्ता के लिए वंश की श्रेष्ठता सर्वोपरि मानी गई है, वहीं चन्द्रगुप्त मौर्य का उदाहरण भी आता है, जिसे चाणक्य ने राजा बना दिया। चन्द्रगुप्त जैसे कुछ उदाहरणों के अलावा इस देश के शासन का आधार वंश ही रहा है, राहुल अपनी तमाम अक्षमताओं, निर्णयहीनताओं और हास्यास्पद आक्रामकताओं के बावजूद अगर ट्रेंड में हैं, तो उसकी सबसे बड़ी वजह सोनिया गांधी का वात्सल्य भाव है, जो हमारे इधर लगभग सभी माताओं में एक-जैसा पाया जाता है।
कांग्रेस के जन-मन में बसे विश्वास और गांधी सरनेम के लिये श्रद्धा के अलावा व्यक्तिगत रूप से अगर राहुल गांधी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को देखा जाए तो जब-जब देश ने उन पर भरोसा करना चाहा है, उन्होंने निराश ही किया है। कलावती का उल्लेख, मनमोहन सिंह के सामने बिल फाड़ देना, मिली हुई अध्यक्षी को वापस कर देना, जैसे इतने विमझिकल-मूवमेंट मिल जाएंगे, जहां वे ‘ऐसा करने की क्या जरूरत थी’ जैसे सवालों से घिरे मिलेंगे और इन सवालों को दोनों हाथ से धकियाते हुए आगे बढ़ते दिखाई देंगे।
लेकिन यह आगे क्या। कहां जा रहे हैं राहुल गांधी। उनका विजन क्या है, अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। कभी वे वोटों की राजनीति के लिए झुग्गी-झोंपडिय़ों में बैठे दिखते हैं। नोट बंदी जैसी नीति पर आम जन को पानी पिलाने के लिए उतरते हैं तो दूसरी ओर वे विचारकों जैसी बातें करते हुए यह जताने की कोशिश करते हैं कि उनका वैचारिक स्तर भी कमजोर नहीं है। इस संतुलन साधने की हड़बड़ी में वे गड़बड़ा जाते हैं और स्मृति ईरानी से हार जाते हैं। यह वही युक्ति होती है, जो उनके पिता ने अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से उतार कर हेमवंती नंदन बहुगुणा को हराने के लिए काम ली थी। भाजपा राहुल को स्मृति से हरा देती है।
ऐसे में यह सवाल लाजि़मी है कि आखिर देश उन में संभावना क्यों देख रहा है, इसका पहला जवाब तो कांग्रेस और वंश है ही, लेकिन दूसरा जवाब यह भी है कि इस देश में आज ऐसा कोई भी नेता नजर नहीं आ रहा, जो नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सके। ऐसे में कृत्रिम ही सही राहुल गांधी खम ठोके नजर आ रहे हैं। यह कम नहीं है। मुर्गों की लड़ाई और घोड़ों की रेस के शौकीन मानसिकता वाले देश में राहुल लोगों की यह इच्छा तो पूरी कर ही रहे हैं।
यही नहीं अपने आपको ‘पप्पू’ साबित होने देने की भाजपा साजिश को सफल बनाने के अपयश के भी राहुल भागीदार बने हैं। इस एक पप्पू शब्द में उनके पिता ‘मैं भी एक नौजवान हूँ, मेरा भी एक सपना है’ के भाव की जो मिट्टी-पलीद की है, इतिहास माफ नहीं करेगा। आज का युवा पप्पू बना हुआ बगले झांक रहा है।
अगर राहुल को लगता है कि यह गलत हुआ है तो सबसे पहले उन्हें देश के युवाओं को समझना होगा। इसके लिए उन्हें जमीन पर उतरना होगा। राजीव गांधी जैसा सच्चा और सहज बनना होगा। उन्हें समझना होगा कि वंश ही उनकी यूएसपी है। अकेला बीकानेर उदाहरण है कि यहां की जनता ने वंश के प्रति अपनी कृतज्ञता के लिए पहले करणीसिंह को 5 बार लोकसभा में भेजा। तीन बार उनकी पौत्री सिद्धि कुमारी को भेज चुका है।
आजादी के बाद सबसे अधिक सत्ता में रही कांग्रेस का अपदस्थ राजकुमार अगर सड़क पर उतरता है तो जनता उसे भी राजा बना सकती है, लेकिन उतरना तो पड़ेगा। राहुल को यह समझना चाहिए कि भारत में राजनीति करने का पहला और आखिरी हथियार भावना है। देश यह जानता है कि गांधी परिवार ने कितना बलिदान दिया है। इसके अलावा अगर कोई भी दूसरी बात राहुल गांधी इस देश को समझाने का प्रयास करेंगे तो कांग्रेस का नुकसान करेंगे। इस जन्मदिन पर भी यही कहा जा सकता है कि अभी भी राहुल गांधी पर से देश का भरोसा पूरी तरह से टूटा नहीं है। आज भी देश भरोसा करने को तैयार है।