लॉयन न्यूज,बीकानेर। राजस्थानी कविता राजस्थान की तासीर ही नहीं, यहां के अभावों में जूझते मनुष्य में बचे जीवन मूल्य का भी प्रगटीकरण है। राजस्थान विविधताओं का प्रांत है। यहां धोरे भी हैं तो पहाड़-मैदान भी। यहां के उपजाऊ खेत सोना निपजाते हैं तो पश्चिमी राजस्थान के टीले भूगर्भ से तेल निकालकर हमें सौंपने का ख्वाब रखते हैं। यही विविध-रूप आधुनिक राजस्थानी कविता में हैं और यह पक्ष आधुनिक राजस्थानी का उज्जवल पक्ष है।
उक्त विचार भारत सरकार की साहित्य अकादेमी में राजस्थानी भाषा के परामर्श मंडल संयोजक मधु आचार्य ने साहित्य अकादेमी द्वारा कोरोना काल में मंगलवार शाम को आयोजित वेबलाइन लिटरेचर सीरिज में राजस्थानी पोइट्री रीडिंग के आयोजन में व्यक्त किए।
राजस्थानी कविता-पाठ के आयोजन में कोटा के वरिष्ठ राजस्थानी कवि मुकुट मणिराज ने अपने लोकप्रिय गीतों के माध्यम से रंग जमाया तो वहीं जोधपुर की ख्यातनाम कवयित्री डॉ. सुमन बिस्सा ने परिवार के मूल स्वरूप को जड़-फूंगी के रूप में बिंब बांधकर पक्षियों के चहचहाने को मन में चहचहाने का ख्वाब बुनते हुए कविताएं पढ़ीं। वहीं चूरू की डॉ. कृष्णा जाखड़ ने स्त्री की संवेदनाओ ं के स्वर को मुखरता से काव्य में रखते हुए गांव, घर के बाड़े, फिरांस और बू ंदी के पेड़ों के बिंब के माध्यम से दादी के संघर्ष को प्रतीक बनाया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के साहित्य-संपादक ज्योतिक ृष्ण वर्मा ने भागीदार साहित्यकारों का परिचय करवाते हुए साहित्य अकादेमी के वेबलाइन आयोजन और कोरोना काल के पक्ष को व्याख्यायित किया तथा कहा कि इन आयोजनों का सकारात्मक पक्ष यह है कि ये स्थानीय, राष्ट्रीय दायरों से आगे विश्व-मंच की पहुंच में आए हैं। वर्मा ने कहा कि साहित्य अकादेमी के ऐसे आयोजन की निरंतरता ही सक्रियता है।