त्वरित टिप्पणी
इसकी वजह से ही भाजपा को मिल पाया अपने विचार-परिवार से विधायक
– हरीश बी. शर्मा
बीकानेर में नवसंवत्सर के प्रारंभ को वर्ष-प्रतिपदा उत्सव के रूप में मनाना आज की बात नहीं है। इस दिन घट-स्थापना और नवरात्र भी शुरू हो जाते, इसलिए इस दिन का आनुष्ठानिक महत्व भी रहा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख छह उत्सवों में यह दिन शामिल है, क्योंकि इस दिन संघ के संस्थापक डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन भी होता है, लेकिन संघ क्योंकि व्यक्तिनिष्ठा की बात नहीं करता है तो इस दिन को वर्ष-प्रतिपदा उत्सव के रूप में ही मनाया जाता रहा। शहर की सड़कों पर संघ के स्वयंसेवक नीम और मिश्री वितरित करते। फिर तिलकार्चन प्रारंभ हुआ। संघ के कहीं-कहीं घोष-वादन और पथ-संचलन और एकत्रीकरण के कार्यक्रम भी होने लगे। कहीं-कहीं इस दिन धर्म-यात्राएं भी होने लगी। नरेंद्र मोदी के देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद बने माहौल का असर बीकानेर में भी पड़ा।

 

बीकानेर के संघनिष्ठ लोगों ने तय किया कि वर्ष-प्रतिपदा के दिन सामूहिक कार्यक्रम होना चाहिए। हालांकि, इस कार्यक्रम में सीधा संघ का दखल नहीं रहा, लेकिन संघ से शिक्षित-दीक्षित लोग ही इस आयोजन की रचना में थे। किसी ने गीत लिखे, तो किसी ने वाहनों की व्यवस्था की, कहीं से रास्ते में चलने वालों के लिए जल-पान की व्यवस्था हो गई। हर साल कार्यक्रम होने लगा और फिर तो जैसे इस शहर के युवाओं को इस कार्यक्रम का इंतजार रहने लगा। 2016 में पहली बार बड़े स्तर पर धर्मयात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग अपने-अपने दुपहिया वाहनों पर थे।

 

इस दौरान एक हिंदु जागरण मंच अस्तित्व में आया, जिसके आज भी संघ के आनुषांगिक संगठन होने या नहीं होने पर संशय है, लेकिन इस संगठन के संयोजक के रूप में जैसे ही जेठानंद व्यास का मनोनयन हुआ, बहुत सारे लोगों ने यह मान लिया कि यह संघ का ही कार्यक्रम है, क्योंकि जेठानंद व्यास की पहली और आखिरी पहचान होना उनका संघनिष्ठ होना ही है। बचपन से ही संघ की शाखाओं में जाना शुरू कर चुके जेठानंद व्यास को ऐसे-ऐसे स्थानों पर शाखाएं शुरू करवाने का श्रेय जाता है, जहां लोग शाखा लगाने से डरते थे, लेकिन जेठानंद व्यास की इन सुदीर्घ सेवाओं को देखते हुए संघ ने उन्हें कईं दायित्व दिए और फिर एक दिन वे हिंदु जागरण मंच के संयोजक के रूप में भी सामने आए और लगभग वही दिन था जब राजनीतिक हलकों में यह कह दिया गया था कि भाजपा का अगला टिकट जेठानंद व्यास को मिलेगा, लेकिन पिछले 15 सालों से चल रही इस तरह की बात पर गत विधानसभा से डेढ़ महीने पहले मोहर लगी, जब जेठानंद व्यास ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और उनके भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही बीकानेर विधानसभा (पश्चिम) से भाजपा की टिकट के लिए दावेदारी करने वालों के तोते उड़ गए। लगभग तय हो गया कि टिकट जेठानंद व्यास ही लेकर आएंगे, मिला भी उन्हें और जीत भी उन्हें हासिल हुई।

 

लेकिन इन सभी का अगर क्रिटिकल-एनालिसिस करेंगे तो पाएंगे कि यह धर्मयात्रा ही वह आयोजन था, जिसने जेठानंद व्यास को पब्लिक-फिगर बनाया, क्योंकि इससे पहले वे भले ही लोगों के बीच रहने के लिए मशहूर थे, लेकिन चर्चा और सुर्खियों में आने की छटपटाहट उनमें कभी नहीं देखी गई। अखबारों में नाम छप जाएगा, इसलिए कुछ करने वाले नेताओं जैसा उनका व्यवहार कभी नहीं रहा। अलबत्ता, वे एक हिंदुवादी-नेता के रूप में जरूर पहचान बनाते नजर आए, जिसकी वजह भी यह धर्मयात्रा ही थी। इस धर्मयात्रा के लिए गठित हिंदु जागरण मंच की गतिविधियों में  सिर्फ धर्मयात्रा ही नहीं निकालना था बल्कि धर्मांतरण रोकना और मंदिरों की सार-संभाल करना भी शामिल था, जिसके कारण एक पूरी टोली जुटने लगी। इस टोली में कई नेता भी निकले। कुछ असहमतियां भी सामने आई, लेकिन इन सबसे परे धर्मयात्रा के मुद्दे पर सारे एक थे और जेठानंद व्यास चूंकि सभी का फोन उठाते, बात करते और मौके पर पहुंच जाते, इसलिए चर्चा में रहने लगे। हालांकि, आज भी जेठानंद व्यास को सोशल मीडिया से जुडऩा नहीं सुहाता, लेकिन उनके बढ़ते हुए फैंस और फॉलोअर इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने एक दिन में यह सब नहीं पाया है।

 

लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि जेठानंद व्यास ने सार्वजनिक जीवन में मेहनत खूब की, यह भी कहा जा सकता है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी। उन्होंने हमेशा यही कहा कि संघ से निर्देश आएगा तब ही कोई बात होगी। हालांकि, उन्हें टिकट देने का विरोध भी खूब हुआ, लेकिन संघ का भरोसा तो पहले से ही था। इसके अलावा उनका पुष्करणा  ब्राह्मण समाज से होना वह यूएसपी थी, जिसके चलते वे प्रबल दावेदार थे, लेकिन धर्मयात्रा का आधार उनके लिए तुरूप का पत्ता साबित हुआ और वे बीकानेर विधानसभा (पश्चिम) से भाजपा के ऐसे पहले विधायक बने, जिसे भाजपा अपने विचार-परिवार का कहते हुए कत्तई आशंकित नहीं हो सकती थी। इससे पहले चाहे नंदलाल व्यास ने भाजपा को जीत दिलाई या डॉ.गोपाल जोशी ने, दोनों ही विचार-परिवार से जुड़े नहीं थे।

 

संघ की भाषा में यह ‘विचार-परिवाद’ का अर्थ बहुत गूढ़ है। इसे समान-गोत्रीय या समान डीएनए से समझा जा सकता है। इसे और अधिक साफ शब्दों में समझना हो तो पिछले दिनों देश के गृहमंत्री अमित शाह के बयान को देखा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा कि किसी दूसरे राजनीतिक दलों से भाजपा में आने वालों की वजह से किसी भी मूल-भाजपा वाले का हक नहीं मरने वाला। जेठानंद व्यास इस विचार-परिवार से निकले हैं। अब विधायक हैं। उन्होंने एक लंबा जीवन बतौर शिक्षक व्यतीत किया। जरूरतों को अपने पर हावी नहीं होने दिया है। संभवतया इन सभी को देखते हुए ही संघ ने अपने एक स्वयंसेवक को राजनीति में भेजा है।

 

लेकिन यह नहीं भूलना होगा कि नवसंवत्सर के मौके पर निकलने वाली इस रैली ने भी जेठानंद व्यास को पब्लिक-फिगर बनाने में ही नहीं बल्कि उन्हें जीताने में बड़ी भूमिका निभाई है, तो इस बात से भी किसी को इंकार नहीं होना चाहिए कि जेठानंद व्यास ने भी इस धर्मयात्रा के लिए खूब मेहनत की। आरोप लगे तो परवाह नहीं की और निडर होकर आगे बढ़े। आज इस कार्यक्रम की वजह से बीकानेर में जाम के हालात रहे। यही नहीं, गृहमंत्री अमित शाह का बीकानेर-दौरा पहले आज तय था, लेकिन रद्द किया गया, क्योंकि आज धर्मयात्रा है। अब अमित शाह 14 को बीकानेर आएंगे। इससे अधिक एक छोटे से शहर से निकलने वाली धर्मयात्रा से क्या हासिल हो सकता है।

 

आज जब जेठानंद व्यास धर्मयात्रा में चल रहे थे तो लोगों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। संभवतया उन्हें यह अहसास हो कि इस आयोजन की उनके विधायक बनने में बड़ी भूमिका रही वरना, शहर में संघनिष्ठ भी बहुत थे और पुष्करणा ब्राह्मण होने के बगैर तो बीकानेर विधानसभा (पश्चिम) से  दावेदारी को सोचा भी नहीं जा सकता। बहरहाल, इस धर्मयात्रा की जरूरत को लेकर बहस हो सकती है, लेकिन राजनीति में परिणाम देखे जाते हैं। परिणाम सामने हैं।