–  शशांक शेखर जोशी

कोविड की लहर ने देश की शीर्षस्थ अस्पताल श्रृंखलाओं के अर्थशास्त्र को लगभग उलट सा दिया है। अस्पतालों ने कोविड काल के दौरान लोगों को अट्रैक्ट करने की अपनी शक्ति को खो दिया है और लगातार इनकी कमाई में गिरावट देखी जा रही है, जबकि छोटे शहरों के अस्पतालों में मुनाफे के तौर पर तेजी से सुधार हुआ है। कोरोना की दूसरी लहर अस्पताल श्रृंखलाओं को अनिश्चित भविष्य के लिए सुधार करने पर मजबूर कर रही है।

भारत में कोरोना जैसी महामारी ने शुरुआत से ही देश की स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को सीमित कर दिया था हालांकि हेल्थकेयर इंडस्ट्री से जुड़े हुए लोग भी यह देख नहीं पाए थे कि यह महामारी अस्पताल व्यवसाय को पूरी तरह से बदल देगी। हेल्थकेयर उद्योग की दुही जा सकने वाली गाय के तौर पर देखी जाने वाली महानगरों की शीर्षस्थ अस्पतालों के राजस्व में गिरावट होने लगी जबकि पहले इन अस्पतालों की सफलता का राज किसी से छुपा हुआ नहीं था। इन सभी अस्पतालों ने बाहरी देशों के साथ-साथ छोटे शहरों और कस्बों के रोगियों को अपनी बेहतर तकनीक प्रतिभा, उन्नत सर्जरी करने में विशेषज्ञता तथा हाई प्रोफाइल सुविधाओं के कारण हमेशा आकर्षित किया था।

अत्यधिक मुनाफे का प्रतिफल बन चुकी बड़ी अस्पताल श्रृंखलाओं पर मार्च 2020 से सितंबर 2020 तक भारत की कोविड-19 की पहली लहर ने विराम सा लगा दिया था जहां अंतरराष्ट्रीय यात्राएं रोक दी गई थी, यहां तक कि देश के भीतर के लोग भी बड़े शहरों की यात्रा करने से हिचकिचाने लगे थे। वैकल्पिक सर्जरी को रोक दिया गया और इन अस्पतालों में उपलब्ध कुल बिस्तरों के एक बड़े हिस्से पर कोरोना रोगियों का कब्जा हो चुका था तथा इनकी उपचार की कीमत राज्य सरकारों द्वारा तय की जाने लगी थी। इससे इन अस्पतालों के मुनाफा में तुरंत उछाल जरूर आया परंतु अगर हम सालाना राजस्व को देखें तो वहाँ अच्छी गिरावट नोटिस की गई।

आंकड़े बताते हैं कि विश्व की 5 सबसे बड़ी अस्पताल श्रृंखलाओं में से एक नारायणा हेल्थकेयर जिसका मुख्यालय बेंगलुरु जैसे बड़े शहर में है उसने इस गिरावट को सबसे पहले अनुभव किया। नारायण हेल्थ केयर की श्रृंखला में कुल 23 अस्पताल और कार्डियक सेंटर है जिनमें से आठ तो देश के महानगरों में ही स्थित है। श्रृंखला के कुल राजस्व में से 80% का योगदान इन महानगरों में स्थित सेंटर्स का ही होता है। अस्पताल के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर वीरेन शेट्टी का कहना है कि उनका EBITDA मार्जिन प्रतिवर्ष 25% तक बढ़ जाता है, जबकि कोविड काल ने 2020 में नारायणा हेल्थ केयर के राजस्व और कमाई पर प्रतिकूल असर डाला।

रिसर्च टीम ने देशभर में छः अस्पताल श्रृंखलाओं, डॉक्टर-उद्यमियों और निवेशकों के वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा की। वे सभी इस बात से सहमत थे कि जहां प्रमुख अस्पतालों को कोविड के शुरुआती चार पांच महीनों में ही नुकसान होने लगा, वहीं छोटे शहरों के अस्पतालों में ऐसा नहीं हुआ। इन इकाइयों ने पारंपरिक रूप से मरीजों, चिकित्सा प्रतिभा या निवेशकों को बड़े पैमाने पर आकर्षित करने के लिए सदैव संघर्ष जरूर किया है परंतु वर्तमान परिस्थिति में बड़े अस्पताल अब तक जूझ रहे हैं और शुरुआती कुछ महीनों के बाद में छोटे अस्पतालों ने तुरंत बाजार में अपनी वापसी की।

जो मरीज उपचार के लिए दूसरे शहरों की यात्रा नहीं करना चाहते थे उन्होंने स्थानीय विकल्पों के तौर पर अपने शहर में स्थित छोटे अस्पतालों का चुनाव किया। कोविड की पहली लहर काफी हद तक बड़े शहरों तक ही सीमित थी छोटे शहर और गांव उससे लगभग अछूते ही रहे फलस्वरूप श्रृंखला पर आधारित हॉस्पिटल्स के छोटे शहरों में स्थित सेंटर्स ने जरूर कमाई की किन्तु कुल राजस्व में उनका योगदान न के बराबर ही रहा।
देश के अन्य बड़े अस्पताल श्रृंखला में से एक मणिपाल हॉस्पिटल ने अपने गैर मेट्रो अस्पतालों जैसे उडुपी, पटियाला और विजयवाड़ा में इसी तरह के उदाहरण देखे। मणिपाल हॉस्पिटल्स के प्रबंध निदेशक और सीईओ दिलीप जोस के अनुसार पश्चिम बंगाल के कुछ छोटे अस्पतालों ने वास्तव में अपने राजस्व में बेतहाशा वृद्धि की है क्योंकि जो मरीज आमतौर पर इलाज के लिए वहां से दक्षिण भारत भारत की यात्रा करते थे उन्होंने इस समय में दूसरे राज्यों में जाने की बजाय अपने आसपास की सुविधाओं का उपभोग करना अधिक श्रेष्ठकर समझा। ठीक इसी तरह राजस्थान के मरीज उच्च स्तरीय सर्जरी विकल्पों अथवा उच्च स्तरीय उपचार विकल्पों के लिए अपना रुख जयपुर तथा दिल्ली की ओर हमेशा से करते आए हैं किंतु कोरोना के इस विकट काल में यह देखा गया कि मरीजों का उपचार संबंधी ट्रांसपोर्टेशन जयपुर और दिल्ली की बजाय स्थानीय अस्पतालों की तरफ अधिक बढ़ा। अंतर्राष्ट्रीय आवागमन पर रोक तथा इस समय भारतीय उपमहाद्वीप में यात्रा करने का जोखिम उठाने से डरने वाले विदेशियों के कारण मेडिकल टूरिज्म भी बहुत अधिक प्रभावित हुआ, जो इन श्रेष्ठतम अस्पताल श्रृंखलाओं के राजस्व घाटे का एक विशेष कारण माना जा सकता है। कुल मिलाकर टियर 2 और टियर 3 शहरों में 50 से 100 बिस्तरों की संख्या वाले अस्पतालों ने बड़े शहरों के चकाचौंध वाले अस्पतालों की तुलना में कहीं बेहतर प्रदर्शन किया।

महामारी की चपेट में आने से पहले का अगर चलन देखा जाए तो भारत में आंकड़े इसके बिल्कुल विपरीत मिलेंगे। 2020 की शुरुआत में टीयर 2 और टियर 3 शहरों पर केंद्रित अस्पताल श्रृंखलाएं हमेशा से संघर्षरत थी। उदाहरण के तौर पर बताएं तो वात्सल्य नामक अस्पताल श्रृंखला 2004 में स्थापित हुई जिसका मुख्यालय बेंगलुरु में है। इसने कुल 17.5 मिलियन डॉलर जुटाए और 2013 तक 17 अस्पतालों का निर्माण किया। किंतु बाद में यह देखा गया कि छोटे शहरों में अधिकतर अस्पताल संचालन करने के चक्कर में इन्हें अपनी ज्यादातर शाखाओं को बंद करना पड़ा और आज इनके केवल 6 अस्पताल ही संचालन में है। दूसरी ओर बड़े शहरों में स्थित अस्पताल श्रृंखलाएं प्रतिष्ठित ब्रांड नेम से जुड़ी थी। 2019 का अंत आते-आते केकेआर समर्थित रेडिएंट लाइफ केयर ने मैक्स हेल्थ केयर की 14 अस्पतालों की श्रृंखला का अधिग्रहण कर लिया था। रेडियंट के संस्थापक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अभय सोई ने मैक्स को इसलिए चुना क्योंकि यह केवल बड़े शहरों पर ही केंद्रित थी। उनका मानना था कि मेट्रो शहरों के बाहर हब बनाने वाले कुछ अस्पतालों से परे यह एक ऐसा अस्पताल है जो राजस्व और मुनाफे को दुगना करने की संभावना रखता है। महामारी से पहले फोर्टिस हेल्थकेयर, मणिपाल हॉस्पिटल और नारायणा हेल्थकेयर सहित भारत में अधिकांश शीर्ष अस्पताल संस्थाओं द्वारा इसी भावना को प्रतिध्वनित किया गया था।

पिछले वित्त वर्ष में गिरते हुए राजस्व आंकड़ों को देखने के बावजूद चालू वित्त वर्ष में बड़ी अस्पताल श्रृंखलाएं बेहतर मुनाफे की उम्मीद कर रही थी क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि आखिरकार वैकल्पिक सर्जरी और अंतरराष्ट्रीय रोगियों की जरूरत उनका मुनाफा पुनः लौटा सकेगी। किंतु कोरोना की दूसरी लहर अधिक घातक होने के चलते उनकी इन आशाओं पर भी पानी फिर गया है। हालांकि अप्रैल में भारत के बड़े और छोटे शहरों और कस्बों में फैली कोविड-19 की दूसरी लहर ने उन्हें भविष्य की तैयारी में छोटी और लंबी अवधि के लिए अपनी रणनीति विकसित करने के लिए मजबूर जरूर कर दिया है। जहां अधिकांश अस्पताल समूह टेलीकंसल्टेशन, प्रायमरी केयर क्लिनिक, डायग्नोस्टिक्स श्रृंखला और ड्रग डिलीवरी जैसे आयामों में नए रूप से निवेश करने का प्लान कर रही है, वहीं कुछ अस्पतालें अभी भी अपने पारंपरिक बिजनेस मॉडल पर कायम है।

कुलमिलाकर कोरोना संक्रमण की इस त्रासदी ने बड़ी अस्पताल श्रृंखलाओं को अपने व्यापारिक गणित की फिर से जांच करने पर मजबूर अवश्य कर दिया है। जबकि भविष्य की ओर देखा जाए तो पूरे देश में छोटे शहरों, कस्बों और गांवों तक मेडिकल सुविधा को उचित रूप से मुहैया करवाना निवेश के नए विकल्प के तौर पर भी देखा जा रहा है, जिससे निवेशक समूह अपने राजस्व को कई गुना तक बढ़ा सकते हैं।