उदयपुर। ऑटोट्रांसफ्यूजन तकनीक है शानदार। इससे सर्जरी के दौरान निकला ब्लड दोबारा मरीज को चढ़ाया जा सकता है। न डोनर की जरूरत होगी, न खर्च करने पड़ेंगे पैसे…

कूल्हे या एक घुटने के प्रत्यारोपण में करीब 300-400 एमएल ब्लड बेकार हो जाता है। इसकी भरपाई के लिए मरीज को ब्लड चढ़ाना पड़ता है लेकिन  ऑटोट्रांसफ्यूजन तकनीक से अब अतिरिक्तब्लड की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इस तकनीक से सर्जरी के दौरान निकला ब्लड दोबारा मरीज को चढ़ाया जा सकता है। इसे अपनाकर सर्जरी में होने वाले ब्लड के नुकसान को रोका जा सकता है। देश के चुनिंदा हॉस्पिटल और विदेशों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।

यह है ऑटोट्रांसफ्यूजन तकनीक : ऑटोट्रांसफ्यूजन में सर्जरी के दौरान मरीज के शरीर से निकले ब्लड को फिल्टर कर वापस उसको चढ़ा दिया जाता है। इस तरह सर्जरी के दौरान हुई ब्लड की कमी पूरी हो जाती है।

डोनर की जरूरत नहीं : बड़ी सर्जरी में तीन से चार यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है। ऐसे में अगर फैमिली में डोनर नहीं है तो समस्या बढ़ जाती है। इस तकनीक मेें डोनर की जरूरत नहीं पड़ती साथ ही खर्च भी बचता है। एक यूनिट ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर करीब दो हजार रुपए खर्च आता है। इससे रेयर ब्लड ग्रुप

वाले मरीजों को राहत मिलेगी। क्योंकि कई बार जरूरत पडऩे पर रेयर ब्लड ग्रुप नहीं उपलब्ध हो पाता है।

इंफेक्शन के खतरे से मुक्ति : 

ब्लड ट्रांसफ्यूजन से हेपेटाइटिस, एचआईवी जैसी बीमारियां व एलर्जी की आशंका रहती है। लेकिन ऑटोट्रांसफ्यूजन तकनीक में मरीज को इन दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता।

कम समय में रिकवरी : दूसरे का ब्लड चढ़ाने पर मरीज की रिकवरी थोड़ी स्लो हो जाती है। ऐसे में इस मेथड से पोस्ट सर्जरी रिकवरी तेजी से होती है।