हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
भाजपा को इस बार राजस्थान में अपना लक्ष्य-25 मुश्किल लगने लगा है। जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं, भाजपा अपने संतुलन साधने में नाकामयाब रही है। कईं जगहों से भाजपा को बड़ी चुनौती मिल रही है, जिसके चलते सभी सीटें मिलना मुश्किल नजर आ रहा है। इसे देखते हुए  भाजपा की रणनीति कमजोर सीटों पर केंद्रित हो गई है और जहां प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत मानी जा रही है, वहां के प्रत्याशियों को अपने ही बूते चुनाव निकालने के लिए कहा गया है ताकि कमजोर सीटों पर ज्यादा फोकस किया जा सके। हालांकि, यह सही है कि कांग्रेस के पास अंतिम समय तक जहां प्रत्याशी नहीं मिले वहीं भाजपा के पास प्रत्याशियों की भरमार थी, लेकिन यह भी सही है कि कांग्रेस के पास जहां गंवाने के लिए कुछ नहीं है वहीं भाजपा के सामने एक-एक सीट कीमती है, जिसे नहीं बचाने का अर्थ है प्रदेश में किरकिरी होना। एक भी सीट कम होने का अर्थ होगा कि भाजपा का प्रदर्शन कमजोर, जिसे न सिर्फ राजस्थान में नई सरकार से जोड़ा जाएगा बल्कि यह भी संदेश जाएगा कि राजस्थान में नरेंद्र मोदी की लहर वहीं चली, जहां गैर-भाजपा का प्रत्याशी कमजोर था।

इस तरह की आशंकाओं के चलते आनन-फानन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के दौरों का भी कार्यक्रम बना है। अमित शाह राजस्थान में पहुंच चुके हैं। उनके दो दिन राजस्थान में सघन कार्यक्रम हैं। इसके बाद दो अप्रैल को नरेंद्र मोदी पहुंच जाएंगे, जिससे माहौल बनने की संभावना है। नरेंद्र मोदी का दौरा तो हालांकि नपा-तुला रहने वाला है, लेकिन इससे पहले अमित शाह के दौरे को नेताओं में डर बैठा हुआ है।
दिल्ली में इस तरह की रिपोर्ट जाने के बाद कि राजस्थान में भाजपा अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगी, राज्य के नेताओं की भी नींद हराम है। अमित शाह ने साफ कह दिया बताते हैं कि चुनाव लडऩे की रणनीति को बदलो ताकि लक्ष्य हासिल किया जा सके। भाजपा के लिए हनुमान बेनीवाल, रवींद्रसिंह भाटी, राहुल कस्वां जैसे नाम परेशानी का सबब बने हुए हैं। इन प्रत्याशियों के अलावा भी दो-तीन लोकसभा ऐसी है, जहां भाजपा को शिकस्त का सामना करना पड़ सकता है। अगर इन सीटों पर भाजपा ने गौर नहीं किया तो उसे लक्ष्य नहीं मिल पाएगा और इसका सबसे बड़ा अर्थ यह निकाला जाएगा कि वसुंधराराजे से शक्तियां छीनने के बाद भाजपा सभी सीटों पर जीतने में असमर्थ रही, जिसे भाजपा स्वीकार नहीं करना चाहती।

सिर्फ यही नहीं, यह भी कहा जाएगा कि राजस्थान में नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चला, जिसे स्वीकारना आसान नहीं होगा। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए भाजपा ने अभी से हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए हैं। शक्ति का संचयन करके कमजोर सीटों पर फोकस करने की रणनीति इसी को देखते हुए बनाई जा रही है, लेकिन जिस तरह से प्रदेश में जाटों का ध्रुवीकरण और कुछ गैर-भाजपाई प्रत्याशियों के लिए माहौल देखा जा रहा है, लगता है भाजपा पूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति करने में पिछड़ चुकी है। देखना यह है कि अमित शाह की सीख और नरेंद्र मोदी का प्रभाव नतीजों को बदल पाते हैं या नहीं।

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