हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

राजस्थान में नई भाजपा में जिस तरह से वसुंधराराजे के गुट को किनारे रखने की एक योजनाबद्ध रणनीति अपनाई गई, उसी तरह की कोई नीति किरोड़ीलाल मीणा के संदर्भ में भी अपनाई जा रही है। अब ऐसा नजर आने लगा है कि भाजपा से बगावत करके अपनी अलग राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी बनाने वाले किरोड़ी मीणा को बहुत ज्यादा देने के मूड में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्त्व नहीं लगता। यह बात पहले मंत्रिमंडल के गठन के दौरान सामने आई जब चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रबल दावेदार बल्कि एक बार तो सीएम पद के भी दावेदार रहे डॉ.किरोड़ीलाल मीणा को पंचायत राज विभाग ही दिया गया। दूसरी बार मीणा गुट के विरोध के बाद भी दौसा का टिकट कन्हैयालाल मीणा को दे दिया गया है। इस सीट पर भाजपा ने लगातार फैसला टाल रही थी। इससे यह समझा जा रहा था कि किरोड़ी मीणा का दबाव होगा, लेकिन इस सीट से न तो जसकौर मीणा को टिकट दिया गया और न किरोड़ी मीणा के भाई को टिकट दिया गया बल्कि बस्सी से विधायक कन्हैयालाल को टिकट दिया गया है, जिससे किरोड़ी मीणा के समर्थक नाराज हैं, लेकिन भाजपा ने इस नाराजगी का नजर-अंदाज किया है, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि किरोड़ी मीणा के साथ भी भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं है।

उन्हें संघनिष्ठा के कारण उतना ही मिला है, जितना उन्हें पार्टी के नियमानुसार पार्टी छोड़कर गए नेता की वापसी से मिलना चाहिए। कोई बड़ी बात नहीं है कि लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें और भी अप्रिय-स्थितियों का सामना करना पड़े। खासतौर से तब, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे के साथ पार्टी का रवैया काफी सख्ती रहा है। उनकी टिकट या बेटे दुष्यंतसिंह को टिकट देना और उनके खास लोगों का टिकट कटना हो चाहे किरोड़ी मीणा के भाई को टिकट नहीं दिया जाना हो, एक जैसे फैसले लगते हैं। मतलब साफ है कि हम आपको तो स्वीकार कर लेंगे, लेकिन आप अगर किसी की सिफारिश करेंगे तो स्वीकार्य नहीं होगी।

एक सामान्य कार्यकर्ता को सूबे का सर्वोच्च पद देने के बाद बड़े-बड़े दिग्गजों का आईना दिखाने की यह रणनीति कितनी कारगर होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन जिस तरह से भाजपा छोड़कर जाने वाले नेताओं से राजे को जोड़ा जा रहा है, आने वाले समय में राजे के लिए मुश्किल हो सकता है। इस बात में कोई संशय नहीं है कि भाजपा के लिए यह समय अनुकूल है। यह भी सच है कि समय कभी एक-सा नहीं रहता। ऐसे में वर्तमान हालात को देखते हुए किरोड़ी मीणा को चाहिए कि न सिर्फ वे शांत रहे बल्कि अपने समर्थकों को भी शांति से रहने की अपील करे। वरना, कहीं ऐसा नहीं हो जाए कि आने वाले समय में राजस्थान के कई नेता भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में वैसे ही शामिल हों, जैसे लालकृष्ण आडवाणी या मुरलीमनोहर जोशी हैं। लालकृष्ण आडवाणी को तो फिर भी भारत-रत्न मिल गया। राजस्थान के नेताओं को ऐसा कुछ भी नहीं मिलने वाला। अलबत्ता, शांत भाव से अपने समय का इंतजार करेंगे तो संभव है कोई संवैधानिक पद भी मिल जाए। इस समय में भाजपा द्वारा किनारे कर दिए गए सभी नेताओं को शिवराजसिंह चौहान को याद रखना चाहिए। यह भी याद रखना चाहिए कि भाजपा ऐसी पार्टी है जो न तो भूलती है और न भूलने देती है।

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