दिलीप शर्मा/अजमेर। उम्र के 91 वर्ष के पड़ाव में भी शारीरिक रूप से तंदरुस्त। खुद कार चलाते हुए क्रिश्चियनगंज पुलिस चौकी के पास स्थित निवास से ब्यावर रोड स्थित सेंट फ्रांसिंस नर्सिंग होम अस्पताल जाना और लौटना।प्रतिदिन केवल एक समय भोजन। महीने में करीब 20 ऑपरेशन अब भी करते हैं फिर भी हाथ नहीं कांपते। जरूरतमंद व ग्रामीण क्षेत्रों से आए मरीजों की नि:शुल्क चिकित्सा सेवा। मरीजों की दुआओं व सेवा समर्पित भाव ने ही शायद इस मुकाम पर पहुंचाया अजमेर के वयोवृद्ध सर्जन डॉ. जी. एस. झाला को।डॉ. झाला मानते हैं कि एक अच्छा चिकित्सक वही होता है जो अपना हुऩर आगे युवा चिकित्सकों को दे। तभी शल्य क्रिया उपचार का स्तर बना रहेगा। ईश्वर पर भरोसा रखते हुए सेवाभाव के उद्देश्य से ही चिकित्सक को व्यवसाय करना होगा। युवा चिकित्सकों को अधिकाधिक व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। इसके लिए वार्ड में मरीजों से अधिकाधिक मिलना चाहिए। उन्होंने अपने 65 साल से चिकित्सकीय पेशे में उन्होंने कभी भी सिर्फ फीस के लिए इलाज नहीं रोका।

सेवाभाव सर्वोपरि

डॉ. झाला के अनुसार सर्जरी (शल्य क्रिया) अंतिम उपाय है। चिकित्सक को इससे पहले अन्य उपचार अपनाने चाहिए। ईश्वर ने बुद्धि दी है और चिकित्सक ने शिक्षा ग्रहण कर पद्धति सीखी है। चिकित्सक को कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए, अंतिम रूप से सफलता ईश्वरीय शक्ति दिलाती है। सर्जरी करने से पूर्व ईश्वर का स्मरण करना जरूरी है। चिकित्सक के लिए सेवाभाव सर्वोपरि होना चाहिए। अभी चिकित्सक कई मशीनों से टेस्ट कराते हैं इससे बेहतर है वह स्वयं गहन अध्ययन करें। शल्य क्रिया करने से पूर्व भी किताबें पढ़ कर ऑपरेशन करने चाहिए।

सभी बीमारियों से दूर

डॉ. झाला को रक्तचाप, मधुमेह या अन्य कोई बीमारी नहीं है। पिछले 35 सालों से वह एक समय दोपहर का ही भोजन करते हैं। रात्रि में केवल दूध व फल ग्रहण करते हैं। शायद यही उनकी सेहत का राज है।

चिकित्सकीय जीवन का सफर

– 9 सितम्बर 1925 को कुशलगढ़ (बांसवाड़ा) में जन्म

-1951 में मुंबई से एमबीबीएस, 1959 में जयपुर से पीजी

-1981 में जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय से शल्य क्रिया विभाग प्रमुख व अस्पताल अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त

– अब तक 10 हजार से अधिक ऑपरेशन

– लेप्रोस्कोपी में विश्वास नहीं, ओपन सर्जरी के विशेषज्ञ

– चेस्ट सर्जरी विशेषज्ञ, फेफड़ों की सर्जरी में विशेषज्ञता

– पेट की सभी प्रकार की बीमारियों के ऑपरेशन