हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
पांच सौ सैंतीस साल का बीकानेर हो चुका है। लेकिन यहां रहने वालों से पूछ लो चाहे, आज भी आजादी से पहले के दिन ही अच्छे दिन थे। आजादी के बाद तो बीकानेर लगातार पिछड़ते हुए देश के ऐसे शहरों में शुमार हो चुका है, जिनकी गिनती ही नहीं होती। फिर चाहे वह हैप्पीनेस इंडेक्स हो चाहे आद्योगिक क्रांति की बात। सुविधाओं का आलम तो यह है कि शहर के बीच से निकलने वाली रेल की पटरियां नेशनल मीडिया की सुर्खियां बनी हुई है। रेल फाटक के बंद होने के बाद लगने वाले जाम की समस्या से दादा भी परेशान था और पोता भी परेशान है। हो सकता है कि पोते के बच्चे हैरान होकर पूछें कि आखिर आप इस शहर के नागरिक होने के नाते करते क्या रहे। जवाब आएगा उदासीन रहे।

और इस उदासीनता का ठीकरा फोड़ते रहे नेताओं पर। पांच बार के सांसद करणीसिंह से लेकर चौथी बार जीतने की संभावना लिए भले ही अर्जुनराम मेघवाल कीर्तिमान रचें, लेकिन इन दोनों के सहित सभी सांसदों पर एक ही आरोप है-बीकानेर के लिए क्या किया? लेकिन फिर भी इतिहास साक्षी है कि हमने नेताओं को एक-एक बार नहीं, दो-दो बार बल्कि हर बार वोट दिया और फिर मांगने आए तो फिर वोट दे दिया।

और इस सहृदयता को हमने बीकानेरियत का नाम दे दिया। किसी भी नेता को यह नहीं पूछा कि आपने हमारे लिए क्या किया। इस बीच बीकानेर बढ़ता रहा और बढ़ते हुए ऐसे हालात आ गए कि परकोटा तो सिमट गया, शहर जयपुर रोड तक निकल गया। इस शहर को नापने निकलें कभी, सांस भर जाएगा शहर खत्म नहीं होगा। यही वजह है कि बीकानेर विधानसभा पूर्व और पश्चिम के बाद अब एक विधानसभा क्षेत्र उत्तर और बनने वाला है। लेकिन एक शहर के तीन-तीन विधानसभाओं के विभाजन के बाद अगर यह देखा जाए कि इस शहर को मिला क्या तो सिवाय गंदगी और अपराध के फैलने के अलावा विस्तार के नाम पर कुछ भी नहीं मिलेगा, लेकिन आप नगर स्थापना दिवस पर होने वाली संगोष्ठियों में बोलने वाले वक्ताओं को देखिये, वे इस शहर को एज्यूकेशन हब बनाने पर आमदा लगते हैं। भुजिया, पापड़ से आगे नहीं बढ़ पाए इस शहर को सोलर-हब बनाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन इस संगोष्ठियों से बाहर निकलते ही वही शहर मिलता है जहां गंदगी है, सीवरेज ब्लॉक है, गंदगी के ढेर हैं। बढ़ते गैंगस्टर हैं। नशे का कारोबार है, चोरियां हैं, बलात्कार है।

वजह साफ है कि राजनेता नहीं, यहां के नागरिक उदासीन है। नागरिकों को लगता ही नहीं कि कुछ करने से कुछ हो भी जाएगा। इसलिए विरोध नहीं करते। इस शहर के जाये-जन्मे को भी जब अपने शहर के प्रति यह भाव नहीं है तो बाहर से आए लोग क्यों तो अपना माथा दुखाएंगे। उनके लिए तो वैसे भी यह शहर एक पड़ाव है। पड़ाव डालने वालों को भला किसी भी शहर से लगाव कहां रहा है। यही वजह है कि भले ही आज भी बीकानेर रियासत की हद में आने वाले गंगानगर-सूरतगढ़ तब और बीदासर-सुजानगढ़ तक आखाबीज के दिन खीचड़ा बनता हो, लेकिन जिसे बीकानेर शहर कहते हैं, वहां रहने वालों को नहीं पता कि आखाबीज और आखातीज को खिचड़ा बनाने के पीछे क्या वजह है। हम भले ही बीकानेरियत पर इतराते रहें, इस शहर से अपणायत कम होना चिंतनीय है। इसे समझना होगा ताकि नगर की स्थापना दिवस पर हम आत्मविश्लेषण के लिए तत्पर हो सकें।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।