कोटा।.   कोटा का नाम सुनते ही देश के एक नामी पत्रकार मुंह से सुसाइड पाइंट निकलना। इसका दर्द शहरवासी के मन में होना और फिर पत्रकार का अपनी गलती स्वीकार करना। एक छोटी घटना ने बड़ी बहस छेड़ दी।

बहस यह कि क्या किसी शहर में होने वाली कुछ घटनाओं से उस शहर की पहचान तय की जा सकती है। क्या किसी शहर को वहां हो रहे सुसाइड के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

इस विषय पर राजस्थान पत्रिका ने एक टॉक शो का आयोजन किया, जिसमें बाहर से कोटा पढऩे आए छात्र, छात्र राजनीति का हिस्सा रहे युवा, राजकीय क्षेत्र के शिक्षक, चिकित्सक और स्वतंत्र सोच रखने वाले कुछ लोगों को शामिल किया गया।

चर्चा में मुख्यरूप से जो बात सामने आई वो यह थी कि किसी भी शहर को वहां हो रही घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता।

चिंतन, अध्ययन, चर्चा और एक्शन होना चाहिए लेकिन शहर और सिस्टम में सुधार के लिए न कि किसी शहर को बदनाम करने के लिए। देश को हजारों आईआईटीयन और डॉक्टर देने वाले शहर को इस तरह बदनाम करना सही नहीं है।

छात्रों की बात

हम कोटा आए, यहां आकर हमें वही मिला जो सुनकर आए थे। किसी तरह की कोई शिकायत नहीं है। हां, सिस्टम में कुछ सुधार हों तो और अधिक बेहतर बनाया जा सकता है। किसी भी सुसाइड के लिए किसी शहर को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।

जब भी पढ़ते हैं तो हमें बहुत दु:ख होता है, लगता है क्या यही ऑप्शन रह गया था। शिक्षकों के साथ-साथ पेरेन्ट्स को समझना चाहिए। अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए। कोचिंग क्लास में यदि छात्रों की संख्या सीमित हो तो पढ़ाई बेहतर हो सकती है।

ओरियन्टेशन सेशन में हमें एनर्जी मिलती है। मोटिवेशनल बातें पढऩे से आत्मविश्वास बढ़ता है। वहीं नकारात्मक पढऩे से दु:ख होता है।

समझना जरूरी

यह सही है कि सिस्टम में बदलाव आया है। तकनीक का उपयोग बढऩे से छात्रों की मानसिक स्थिति बदली है। अब इसी के अनुसार आगे बढऩा होगा। मैं मानता हूं शहर का सिस्टम सुधरेगा तो नकारात्मकता थम जाएगी।

ताजमहल की तरह

मेरा शहर ताजमहल की तरह सुंदर और बेहतर है। ये शर्म की बात है कि इसे नकारात्मक रूप में प्रचारित किया जा रहा है। छात्रों के वेलफेयर में कोचिंग संस्थानों को और अधिक काम करना चाहिए।

एप्टीट्यूड पहचाने

पहली जिम्मेदारी अभिभावकों की है, बच्चे का एप्टीट्यूड देखकर ही आगे बढ़ाना चाहिए। मैं तो कहता हूं कोटा में भी बच्चों के साथ पेरेन्ट्स रहें। कोटा को बदनाम करना गलत है।

शहर नहीं, माहौल जिम्मेदार

जो अनहोनी हो रही है, उसके लिए शहर नहीं माहौल जिम्मेदार है, जो कि नकारात्मक बनाया जा रहा है। डिप्रेशन किसी भी बात का हो सकता है। हमें माहौल सकारात्मक बनाए रखना होगा।

हमें भी बदलना होगा

कोचिंग स्टूडेंट्स की दिनचर्या में खेलकूद जैसा कुछ नहीं है। क्लास में छात्रों की संख्या बहुत अधिक है। ऐसे में हमें कुछ बदलाव लाने होंगे, जिससे सिस्टम बेहतर हो और छात्रों में आत्मविश्वास आए।

यह सोचें, ऐसा हुआ क्यों

सवाल यह है कि वरिष्ठ पत्रकार के मुंह से ऐसा क्यों निकला। यह इमेज वाकई शहर के लिए अच्छी नहीं है। हमें छात्रों के फेल्योर को जांचते हुए उन्हें आगे बढऩे के लिए प्रेरित करना चाहिए।

कोटा क्यों जिम्मेदार

पहली बात तो कोटा किसी बात के लिए जिम्मेदार नहीं है। हां, परीक्षा प्रणाली में सुधार की दरकार है। एक ही टेस्ट पर क्यों निर्भर हो, कई चरणों में प्रक्रिया हो सकती है। कोचिंग में काउंसलर्स होने चाहिए।

स्टूडेंट ब्लैंक चेक नहीं

कोचिंग नगरी होने के साथ शहर में व्यावसायीकरण तो हुआ है। स्टूडेंट को ब्लैंक चेक नहीं माने। कोचिंग ही नहीं, समाज, शहर का हर व्यक्ति उनके प्रति जिम्मेदारी निभाए। अच्छे के लिए प्रयास करे।

शिफ्टिंग क्यों हो

तनाव के कारणों पर जाएं तो कोचिंग के स्तर पर होने वाले टेस्ट के नम्बर, बैच के बदलाव भी हैं। नम्बर नहीं पता लगे और बैच भी बार-बार नहीं बदलना चाहिए। माता-पिता ज्यादा जिम्मेदार हैं।

कमिटमेंट नहीं, सुविधा दें

हमारा शहर बेहतर शिक्षा दे रहा है और आगे भी बढ़ रहा है। मेरा मानना है कि यहां आने वाले स्टूडेंट्स को मल्टीकॅरियर

मेहनत होती है कोटा में

मैंने कोटा कोचिंग का सिस्टम समझा है, यहां छात्रों के साथ मेहनत की जा रही है। शहर किसी अनहोनी के लिए जिम्मेदार नहीं। ये जरूर है कि कोचिंग को छात्र हित में सुविधाएं बढ़ानी चाहिए।