नेशनल हुक
लोकसभा चुनाव 2024 जब शुरू हुआ तो दोनों ही दलों ने विकास, योजनाओं को आगे रखा। भाजपा ने मोदी की गारंटियों को सामने रखकर चुनाव का बिगुल बजाया था। वहीं कांग्रेस ने न्याय पत्र के जरिये अपना चुनाव अभियान आरम्भ किया था। राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार में वचन पत्र को सामने रखकर वोट मांगने शुरू किये थे। तब लगा था कि इस बार आम चुनाव के लिए अलग ट्रेंड बन रहा है।
मगर पहले चरण की 102 सीटों पर जैसे ही मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में घटा तो राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ गई। तब भाजपा व कांग्रेस ने चुनावी मुद्धों में थोड़ा बदलाव आरम्भ कर दिया। मगर दूसरे चरण की 88 सीटों पर भी मतदान प्रतिशत अपेक्षा के अनुरूप नही बढ़ सका। दलों व नेताओं की चिंता ज्यादा बढ़ गई। फिर तो मुद्धों को ही बदलने का सहारा इनको दिखाई दिया।
तीसरे चरण के मतदान से पहले तो चुनावी मुद्दे पूरी तरह से बदल गये हैं। पहले चरण की शुरुआत के समय राजनीतिक दलों ने जिन मुद्धों की शुरुआत की थी वे तो अब पूरी तरह से नेपथ्य में चले गये हैं और उनका स्थान नये मुद्धों ने ले लिया है। ये बदलाव देखकर वोटर चकित है। राजनीतिक विश्लेषक भी चिंतित है।
अब तो चुनाव मंगलसूत्र, हिन्दू मुसलमान, संपत्तियों का बंटवारा, राम मंदिर, आदि मुद्धों पर आ गया है। नेताओं के बयान भी ध्रुवीकरण पर ही आने शुरू हो गये हैं। जातिगत समीकरणों के आधार पर न केवल बयान दिए जा रहे हैं अपितु नेताओं को भी सक्रिय किया जा रहा है। जिस सीट पर जिस जाति के अधिक मतदाता है उस सीट पर सभी दल अपने उसी जाति के नेताओं को प्रचार में उतार रहे हैं। ये ध्रुवीकरण का बड़ा प्रयास है।
यदि पार्टियां अपने अपने घोषणा पत्रों के आधार पर ही चुनाव लड़े तो ही सही जन प्रतिनिधि का चुनाव सम्भव है। लोकतंत्र भी उसी से मजबूत हो सकता है। मगर ये बात तो अब गौण हो गई। सामने तो केवल जीत आ गई। चुनाव कैसे जीता जाये, बस यही ध्येय रह गया है।
भारतीय मतदाता भावुक है और भावुकता में वो जल्दी बहता है। इसी कारण जाति, धर्म, सम्प्रदाय को अब सामने रखने का काम हो रहा है। जिसकी छांव में मूल मुद्दे तो अब गायब ही हो गये हैं। जाति, धर्म तो व्यक्तिगत मसले है, मगर उनको ही चुनावी मसला बनाया जा रहा है। ये लगभग सभी नेता कर रहे हैं। लोकतंत्र के लिए ये चिंता की बात है। इस माहौल में समझदारी तो मतदाता को ही दिखाने की जरूरत है। लोकतंत्र को मजबूत करने और बचाने की जिम्मेवारी मूलतः मतदाता पर ही है। उसे सजग होने का समय आ गया है। छोटे स्वार्थ छोड़कर उसे सर्वहित, लोकतंत्र के बारे में सोचकर ही निर्णय करना पड़ेगा। यदि मतदाता ने चूक कर दी तो नुकसान उसका व लोकतंत्र का होगा।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘