अजमेर।   हर साल टेक्नोक्रेट्स तैयार करने वाला इंजीनियरिंग कॉलेज ‘तकनीकीÓ संसाधनों में पिछड़ा हुआ है। यहां विद्यार्थियों के लिए स्मार्ट क्लासरूम नहीं है। पारम्परिक चॉक या मार्कर वाले ब्लैक बोर्ड का इस्तेमाल हो रहा है। कॉलेजों में कक्षाओं और प्रयोगशालाओं के आधुनिकरण की योजनाएं ठप हैं। उच्च और तकनीकी शिक्षण संस्थानों में पिछले कई दशकों से अध्ययन-अध्यापन का तौर-तरीका नहीं बदला है।लेक्चरर्स के कक्षाएं लेने, विद्यार्थियों के नोट्स बनाने और रटने की पद्धति कायम है। देश के लिए टेक्नोक्रेट्स तैयार करने वाला बड़लिया स्थित राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज भी इनमें शामिल है। यहां कक्षाओं में विद्यार्थियों को पारम्परिक चॉक या मार्कर वाले ब्लैक बोर्ड से पढ़ाया जा रहा है। हाइटेक दौर में भी विद्यार्थियों को स्मार्ट क्लास रूम की सुविधा नहीं मिल रही।

टेक्यूप बजट का नहीं उपयोग

तकनीकी संस्थानओं में कक्षाओं, प्रयोगाशालाओं के आधुनिकरण, विद्यार्थियों के बेहतर संसाधनों के लिए तकनीकी संस्थानों को टेक्यूप योजना में बजट मिलता है। राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज भी इसमें शामिल है। इसे टेक्यूप योजना में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से 10 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए है। इसमें से करीब 1 करोड़ रुपए मिल चुके हैं, लेकिन इसका उपयोग संसाधन बढ़ाने में नहीं हुआ है। यहां बीते दो साल में व्याख्याताओं के विदेशों में पेपर प्रजंटेशन, सेमीनार, लेपटॉप खरीदने में बजट का ज्यादा उपयोग हुआ है। मालूम हो कि यहां के एक पूर्व प्राचार्य के कार्यकाल में टेक्यूप बजट के दुरुपयोग पर सवाल भी उठ चुके हैं।

स्कूल भी कॉलेज से आगे

स्मार्ट क्लासरूम के मामले में छोटे और बड़े स्कूल भी इंजीनियरिंग कॉलेज से आगे हैं। मौजूदा दौर में सीबीएसई से संबद्ध अधिकांश सरकारी और निजी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम में कम्प्यूटर, लेपटॉप, प्रोजेक्टर, टीवी अथवा अन्य ई-माध्यमों से बच्चों को पढ़ाया जाता है। खुद को अग्रणीय तकनीकी संस्थान समझने वाला इंजीनियरिंग कॉलेज स्कूलों से भी पिछड़ा है।

वाई-फाई कैंपस दूर की कौड़ी

इंजीनियरिंग कॉलेज में स्मार्ट रूम की कमी को देखते हुए कैंपस का वाई-फाई होना दूर की कौड़ी है। जबकि यहां शोधार्थियों, विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिहाज से यह सुविधा बहुत आवश्यक है। इसके चलते कॉलेज ‘कॉरपोरेट सोशल रेस्पोंसबिलिटीÓ में भी पीछे है। स्मार्ट क्लासरूम, उच्च स्तरीय प्रयोगशाला और अन्य सुविधाएं होने पर वह ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों तक तकनीकी संसाधन पहुंचा सकता है।