बांसवाड़ा। जनजाति बाहुल्य बांसवाड़ा जिले में आदिवासी विद्यार्थी इन दिनों वेद, गीता व रुद्री के ज्ञान में पारंगत हो रहे हैं। 10 से करीब 15 वर्ष की उम्र के बीसियों जनजाति विद्यार्थी जब श्रीमद् भागवत गीता के पहले अध्याय के पहले श्लोक धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:, मामका पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय…।संस्कृत में कंठस्थ उच्चारण शुरू करतेे हैं तो यह सिलसिला गीता के कई अध्यायों के उच्चारण के बाद थमता है। इस अभिनव सीख का माध्यम बांसवाड़ा जिले के भारत माता मंदिर रातीतलाई में संचालित महर्षि वाल्मीक वेद पाठशाला बनी है। जहां पिछले 9 माह से जनजाति विद्यार्थी कक्षागत ज्ञान के साथ धर्मग्रंथों को कंठस्थ करने में जुटे हुए हैं।

वेशभूषा के साथ आसन

वेद पाठशाला में वेद ज्ञान के दौरान सफेद धोती-कुर्ता और गले मे भगवा दुपट्टा बच्चों का पहनावा होता है। माथे पर तिलक और आसन लगाने के बाद बच्चे गीता व रुद्राष्टाध्यायी का उच्चारण शुरू करते हैं। इन्हें यहां धनपतराय झा की ओर से शिक्षा दी जा रही है। विद्यार्थी पहले अध्याय के 47 श्लोक के साथ ही दूसरे अध्याय तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम…, आठवें अध्याय में किंत तदब्रह्म…., 15वें अध्याय के ऊध्र्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम…., सहित तीसरे, आठवें आदि अध्यायों के श्लोकों का कंठस्थ उच्चारण करते हैं तो इसे सुनकर हरकोई प्रशंसा करने से नहीं चूकता है। इसके अलावा रुद्राष्टाध्यायी के पहले अध्याय की शुरुआत श्री गणेशाय नम: से शुरू होती है तो इसके ज्ञान में भी जनजाति बच्चे पूरी तरह से रम से जाते हैं। नौ माह पूर्व 20 विद्यार्थियों से शुरू पाठशाला में इस वर्ष 20 नए विद्यार्थियों को जोड़ा गया है। ये सभी विद्यार्थी प्रारंभिक कक्षाओं के है।

एेसे हुई शुरुआत

बांसवाड़ा भारत माता मंदिर परिसर में गोकुलम योजना चलाई जा रही है। इसमें एेसे परिवार जिनमें तीन से अधिक बच्चे हैं, उनमें से एक को गोद लिया है। इनको निशुल्क शिक्षा देकर सेवा, संस्कार आदि की सीख भी दी जाती है। वर्तमान में इसमें 226 जनजाति विद्यार्थी अध्ययनरत है। विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय अध्यय अशोक सिंघल की मंशा थी कि भील समाज के बच्चों को वेद व अन्य धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान हो।