• डॉ.कविता शर्मा

किसी युवा फिल्मकार ने कहा था “ये प्यार व्यार और कुछ नहीं केमिकल लोचा ( केमिकल इंबैलेंस ) है।” तो जब प्यार एक केमिकल इंबैलेंस है तो फिर क्रोध, तनाव तथा चिड़चिड़ापन क्या है?
हमारा शरीर एक रहस्यमयी संरचना है। इसे और जटिल बनाता है शरीर और मन का तारतम्य। यह तो नहीं कहा जा सकता कि तन या मन में से रूलिंग कौन है? किंतु यह अवश्य ही सिद्ध है कि तन के विकार , मन को और मन के विकार तन को बीमार कर देते हैं।

बढ़ती दौड़ भाग, प्रतिस्पर्धा, रिश्तो में खटास, पढ़ाई व कैरियर की चिन्ता यह सब बाह्य कारक धीरे-धीरे हमारे आंतरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगते हैं। और इससे पनपता है तनाव या स्ट्रेस।इसके लिए जो मुख्यतः जिम्मेदार हार्मोन है वह है कॉर्टिसोल ।
किसी भी प्रकार का खेल, स्टेज परफॉर्मेंस या मुख्य इवेंट से पूर्व जब हमें शारीरिक तथा मानसिक तनाव महसूस होता है, तब हमारे मस्तिष्क में उपस्थित हाइपोथैलेमस सक्रिय हो जाता है जिससे एक रसायन स्रावित होता है । यह रसायन किडनी पर उपस्थित एड्रिनल ग्रंथि से कॉर्टिसोल हार्मोन स्रावित करवाता है।
कॉर्टिसोल तनावपूर्ण स्थितियों में शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए ग्लूकोज के स्तर को बढ़ाता है, जिससे हमें तुरंत प्रतिक्रिया करने की क्षमता मिलती है। हालांकि, इसका संतुलित स्तर शरीर के लिए लाभकारी होता है।

कॉर्टिसोल एक प्रकार का स्टेरॉइड हार्मोन है जिसे हमारे शरीर में एड्रिनल ग्रंथियों (adrenal glands) द्वारा उत्पन्न किया जाता है। इसे सामान्यतः “स्ट्रेस हार्मोन” के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह शरीर की तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करने में मदद करता है। कॉर्टिसोल का स्राव हाइपोथैलेमस, पिट्यूटरी ग्लैंड और एड्रिनल ग्रंथियों के बीच के जटिल संपर्क द्वारा नियंत्रित होता है, जिसे हाइपोथैलमिक-पिट्यूटरी-एड्रिनल (HPA) ऐक्सिस कहा जाता है।
किंतु इस तरह का केमिकल बैलेंस या हार्मोनिक संतुलन यदि प्रतिदिन शरीर में होता रहे तो यह विकारों को जन्म देता है। बार-बार कॉर्टिसोल के अधिक स्रावित होने से कुछ मुख्य अंगों पर कुप्रभाव पड़ता है ।आइए जाने ये कौन-कौन से अंग है।

मांसपेशियो पर प्रभाव –
कॉर्टिसोल रक्त से जब मांसपेशियों में पहुंचता है तो यह उसमें संग्रहित प्रोटीन को तोड़ने लगता है। इससे एक ओर जहां मांसपेशियां क्षीण होती है, वहीं दूसरी ओर फ्री अमीनो एसिड (प्रोटीन के घटक) रक्त में अधिक हो जाते हैं।अमीनो एसिड के चयापचय से यूरिया का निर्माण होता है।बार-बार मांसपेशीयों के क्षीण होने से वजन घटता है तथा कमजोरी बनी रहती है।

लीवर पर प्रभाव –
कॉर्टिसोल हॉरमोन लीवर की कोशिकाओं में संग्रहित ग्लाइकोजन को तोड़कर ग्लूकोस बनता है तथा यह ग्लूकोज सभी कोशिकाओं तक पहुंच जाता है।
रक्त में उपस्थित अतिरिक्त अमीनो एसिड तथा फैटी एसिड भी अंत में लिवर में ही आते हैं।तात्पर्य है कि जैसे-जैसे कॉर्टिसोल का स्त्रावण बढ़ता है वैसे-वैसे इन पोषक तत्वों के अपघटक लीवर की कोशिकाओं में जमा होने लगते हैं।इन सभी अपघटकों का भार लीवर की कोशिकाओं में विकार लाने लगता है।सबसे मुख्य अपघटक है। युरिया जो कि प्रोटीन के चयापचय से बनता है।

त्वचा के नीचे जमे वसा ( एडिपोज टिशु) पर प्रभाव –
शरीर इमरजेंसी के लिए त्वचा के नीचे कुछ अतिरिक्त वसा जमा करके रखता है ।कॉर्टिसोल हार्मोन का अधिक स्त्रावण इस वसा को तोड़कर फ्री फैटी एसिड में बदलता है।कुछ स्तर तक ऊर्जा उत्पन्न करने के बाद यह फ्री फैटी एसिड रक्त में पड़े रहते हैं तथा रक्त के स्वास्थ्य को खराब करते हैं।इनके चयापचय से जो कीटोन बॉडीज बनती है वह भी रक्त के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।इस हार्मोन के प्रभाव से अचानक वजन घटने या बढ़ने लगता है।

अग्नाशय पर प्रभाव –
यह हम जान चुके हैं कि कॉर्टिसोल लीवर से ग्लाइकोजन को तोड़कर ग्लूकोज बनाकर रक्त में लाता है। रक्त में जमे इस ग्लूकोज को कोशिकाओं तक पहुंचाने का कार्य इंसुलिन हार्मोन करता है। यह इंसुलिन हार्मोन अग्नाशय से ही स्रावित होता है।बार-बार कॉर्टिसोल की वजह से रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ता है व इंसुलिन की कमी हो जाती है । यह स्थिति डायबिटीज को निमंत्रण देता है।

किडनी पर प्रभाव –
सामान्यतः किडनी रक्त को साफ करने का कार्य करती है। हम यह जानते हैं कि रक्त में अधिक कॉर्टिसोल अधिक फ्री अमीनो एसिड, युरिया तथा फैटी एसिड की मात्रा को बढ़ा देती है ।जिसे शरीर से बाहर निकलने का भार किडनी पर होता है।बार-बार इन रसायनों के किडनी में पहुंचने पर किडनी की कोशिकाओं में विकार आने लगता है।

हृदय पर प्रभाव –
यह तो हम देख ही चुके हैं कि कॉर्टिसोल कई तरह के अपघटक पदार्थ व रसायनों को रक्त में ले आता है ।ऐसा रक्त जब बार-बार हृदय से गुजरता है तो यह हृदय के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। रक्त में उपस्थित फ्री फैटी एसिड या वसा हृदय की वाहिनियों में यदि जमा हो जाए तो हृदय रोग का कारण बनती है ।यह अतिरिक्त कॉर्टिसोल ब्लड प्रेशर तथा हार्टबीट को बढ़ाता है।

मस्तिष्क पर प्रभाव –
कॉर्टिसोल का अत्यधिक स्राव मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, विशेषकर याददाश्त और एकाग्रता पर।कॉर्टिसोल का अधिक श्रवण नींद को भी कम कर देता है, जिससे बेचैनी व एंजायटी बढ़ती है।
अब बात यह आती है कि इस कॉर्टिसोल की मात्रा को शरीर में कैसे कम करें?

कॉर्टिसोल की मात्रा को नियंत्रित करने का प्रमुख हल तो यही होगा कि जिस कारण की वजह से तनाव हो रहा है उससे दूरी रखें।इसके अलावा शरीर में होने वाले परिवर्तनों को कम करने के लिए अपनी जीवन शैली के साथ-साथ अपने भोजन शैली को भी परिवर्तित करें। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे आप आहार विकल्पों के माध्यम से शरीर में कोर्टिसोल स्राव को कम कर सकते हैं :

1. विटामिन C का सेवन बढ़ाएं।आंवला ,संतरा, मौसमी, स्ट्रॉबेरी, आलू बुखारा और शिमला मिर्च जैसे विटामिन C युक्त खाद्य पदार्थ खाएं, जो तनावपूर्ण समय में कोर्टिसोल को कम करने में मदद करते हैं।

2. विटामिन डी की मात्रा को बढ़ाएं।इसका सबसे सुगम हाल है सुबह की ताजी सूर्य की रोशनी का सेवन करें। विटामिन डी युक्त भोज्य पदार्थ जैसे की खमीर युक्त पदार्थ ( इडली, ढोकला, खमन) साबुत अनाज तिलहन व मेवों का भजन में समावेश करें।

3. मैग्नीशियम युक्त खाद्य पदार्थ खाएं।पालक, काले व सफेद तिल, अखरोट, बादाम, काजू जैसे मेवों का सेवन करें, क्योंकि मैग्नीशियम कोर्टिसोल को कम करता है और तनाव सहनशीलता में सुधार करता है।

4. संपूर्ण अनाज चुनें।साबुत अनाज जैसे ज्वार, जौ, मक्का, जई, ब्राउन चावल और क्विनोआ को अपने आहार में शामिल करें, जो रक्त शर्करा को स्थिर करते हैं और कोर्टिसोल के उछाल को रोकते हैं।

5. प्रोबायोटिक युक्त खाद्य पदार्थ खाएं।दही या योगर्ट, सौकरक्रौट और किमची जैसे खाद्य पदार्थों से आंतो के स्वास्थ्य में सुधार करें, जो कोर्टिसोल को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

6. ग्रीन टी पियें।ग्रीन टी में थियोनिन होता है, जो विश्राम को बढ़ावा देता है और तनावपूर्ण घटनाओं के बाद कोर्टिसोल को कम करता है।

7. कैफीन का सेवन सीमित करें। कॉफी, एनर्जी ड्रिंक और सोडा जैसे कैफीन के सेवन को कम करने से कोर्टिसोल का स्तर नियंत्रित रहता है, खासकर तनाव के समय में।

8. पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।दिन भर में पर्याप्त पानी पिएं, क्योंकि निर्जलीकरण से कोर्टिसोल का स्तर बढ़ सकता है।

9. एवोकाडो खाएं।सुनने में बहुत आधुनिक लगता है किंतु एवोकाडो में स्वस्थ वसा, फाइबर और पोटेशियम की भरपूर मात्रा होती है, जो कोर्टिसोल को नियंत्रित करता है और रक्तचाप को कम करता है।

10. हर्बल चाय का उपयोग करे। कैमोमाइल, अश्वगंधा और तुलसी की चाय शांत प्रभाव देती हैं, जो कोर्टिसोल को कम करती हैं।

11. अलसी के बीजों का सेवन करें।अलसी के बीज अच्छा फैट जैसे की ओमेगा-3 और पॉलिसैचकेराइड, लिग्नन से भरपूर होते हैं। यह सूजन को कम करते हैं और कोर्टिसोल के स्तर को नियंत्रित करते हैं।

12. हल्दी को प्रतिदिन के भोजन में शामिल करें ।हल्दी में पाया जाने वाला करक्यूमिन सूजन-रोधी गुणों वाला होता है, जो कोर्टिसोल से संबंधित तनाव प्रतिक्रिया को कम करता है।

13. प्रोसैस्ड खाद्य पदार्थों से बचे। प्रसंस्कृत और तले हुए खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें, जो सूजन को बढ़ावा देते हैं और समय के साथ कोर्टिसोल के स्तर को बढ़ाते हैं।

थोड़ी मात्रा में उत्साह, तनाव व बेचैनी हमें जीवन में आगे बढ़ाने में मदद करती है तथा कठिन परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति देती है।किंतु जब इस तनाव व बेचैनी की शरीर को आदत हो जाती है तो यह हमारे तन व मनको खाने लगती है।इस उत्साह तनाव बेचैनी की अति से बचे।योग प्राणायाम तथा स्वस्थ जीवन शैली को अपनाए।संतुलित सोचे, संतुलित खाएं व स्वस्थ रहें।

  • लेखिका खाद्य एवं पोषण विशेषज्ञ व गृह विज्ञान व्याख्याता है।

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