भाजपा विधायकों की खुलेआम शिकायतें करने लगे हैं कार्यकर्ता


हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
राजस्थान की भाजपा सरकार और संगठन के बीच बढ़ रही दूरियां आने वाले दिनों में सरकार के लिए चुनौती बन सकते हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री भजनलाल और प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ के बीच समन्वय की खबरें आ रही हैं, लेकिन संगठन के निचले स्तर पर कार्यकर्ता, नेता और विधायकों के बीच समन्वय की कमी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
हालात यह हो गए हैं कि भाजपा के कार्यकर्ता अपनी शिकायतें बजाय प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़, प्रभारी राधामोहन दास या मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के पुराने क्षत्रपों के पास लेकर पहुंचने लगे हैं। फिर भले ही वह नाम वसुंधराराजे हों, चाहे राजेंद्र राठौड़ और सतीश पूनिया। किरोड़ीलाल मीणा के विरोध को हालांकि हल्का करने में सरकार सफल रही है, लेकिन इस बात से किसी को इंकार भी नहीं है कि उनका किसी को पता नहीं है।
दरअसल, सारा मामला राजस्थान की विधानसभाओं से चुनकर गये विधायकों से जुड़ा है, जिनपर आरोप है कि कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही है। पहले-पहले तो यह दलील दी गई कि अनेक विधायक नये हैं, इन्हें समझने में देर लगेगी। जल्द ही सब ठीक हो जाएगा, लेकिन सरकार बनने के डेढ़ साल होने के बाद भी जब स्थितियां नहीं सुधरी तो कार्यकर्ता ही नहीं नेताओं ने भी शिकायतें शुरू कर दी है। कहा भी जाता है कि अगर किसी झूठ को बार-बार कहा जाता है तो वह सच हो जाता है। नेता लोग तो अपनी बातों को तथ्यपूर्ण तरीके से और इतने विश्वास से कहते हैं कि झूठ भी झूठ नहीं लगता है, ऐसे में अगर नेता भी पहुंचे हुए हों और जिन नेताओं को कह रहे हों, वे भी सुनने में रुचि-संपन्न हो तो कहना ही क्या।
लिहाजा, विधायकों की शिकायतों के चटखार लिए जाने लगे हैं। रिपोर्टें बनने लगी है। हर क्षेत्र से जाने वाली शिकायतों में यहां तक उल्लेख है कि पार्टी के लोगों को छोड़कर विधायक किस तरह के लोगों को प्रश्रय देते हैं। पार्टी के कार्यकर्ताओं के कितने काम अटके हुए हैं, लेकिन जहां-जहां काम हो रहे हैं, उनकी वजह क्या है।
भाजपा के बारे में एक बात अच्छी है कि यहां संगठन को तरजीह मिलती है और इसी बात के चलते कार्यकर्ताओं में यह भरोसा है कि उनकी सुनवाई होगी। इन सभी के बीच रोचक तथ्य यह है कि कार्यकर्ता न सिर्फ अपनी बात को भाजपा के दिग्गज नेताओं तक पहुंचा रहे हैं बल्कि आपस की बातों में भी साझा करने लगे हैं। इन बातों के चर्चे कांग्रेस में भी है। पिछले दिनों दिल्ली में कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की हुई बैठक के दौरान भी यह विषय आया था कि सरकार की असफलताओं को ही नहीं बल्कि छोटी-छोटी ‘अज्ञानताओं’ को भी ट्रोल करे। पिछले दिनों मुख्यमंत्री को श्रीमाधोपुर की बजाय सवाई माधोपुर कहने पर ट्रोलिंग सहनी ही पड़ी है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में भाजपा के स्थानीय नेता-कार्यकर्ताओं के भाजपा के बड़े नेताओं से होने वाले मेल-मिलाप को भी सोशल मीडिया पर ‘उजागर’ किया जा सकता है। भाजपा के अंदर बढ़ रहे असंतोष को अंतर्कलह बनने से नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में सरकार के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।
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