सचिन पायलट आज जो भी हैं अशोक गहलोत की वजह से हैं


हस्तक्षेप
हरीश बी. शर्मा
राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट अभी पांच जिलों की यात्रा पर निकले भी नहीं हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ‘कंपकंपी’ छूट गई है। आनन-फानन कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा का बयान आ गया है कि सचिन पायलट का दौरा पार्टी का कार्यक्रम नहीं है। सचिन अभी तक नागौर से बीकानेर होते हुए पीलीबंगा भी नहीं पहुंचे, तब तक घोषणा हो गई है कि गहलोत श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ आयेंगे।
हमने कल ही इस कॉलम में कह दिया था कि सचिन पायलट के इस दौरे का असर अशोक गहलोत की प्रतिक्रिया में मिलेगा। वही हुआ, एक बयान में गहलोत जहां नेताओं से ही पेपर-लीक प्रकरण के असली गुनहगारों के नाम पूछते सुने गए हैं तो दूसरी ओर राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल होने के लिए पठानकोट जाने के बाद श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ की योजना भी बनाई गई है ताकि सचिन पायलट से हुए डेमेज को कंट्रोल किया जा सके।
लेकिन, अब यह संभव नहीं लगता। सचिन पायलट ने जो कुछ हासिल किया है, वह अशोक गहलोत की वजह से ही किया है। अगर अशोक गहलोत वसुंधरा राजे की पिछली सरकार के दौरान निष्क्रिय नहीं होते तो सचिन पायलट को कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता। सचिन को जब अध्यक्ष बना दिया गया तो उन्हें परफॉर्म करना ही था, परिणामस्वरूप सरकार आ गई।
यहीं से वर्चस्व का संघर्ष शुरू हुआ। स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री बनने का हक सचिन पायलट का था, लेकिन यह सीट अशोक गहलोत को मिली, जिसके बाद जो कुछ हुआ, सभी जानते हैं।
अशोक गहलोत यह साबित करने में सफल रहे कि जोड़-तोड़ कोई और नहीं कर सकता, इसलिए सरकार उन्हें ही चलाने दी जाए। चार साल में बार-बार उन्होंने यही साबित करने के उपक्रम किए।
लेकिन इन उपक्रमों का लाभ सचिन पायलट को हुआ। वे हर बार अधिक चर्चा और सहानुभूति प्राप्त करते हुए उस जगह पहुंच गए जिसे आज अशोक गहलोत की बराबरी से समझा जा सकता है। आज उन्हें कांग्रेस में अशोक गहलोत के मुकाबले का एकमात्र नेता अगर कहा जाता है तो इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ अशोक गहलोत है।
राहुल गांधी तो दोनों को ‘एसेट’ बताकर यह स्पष्ट कर देते हैं कि राजस्थान कांग्रेस में इन दोनों को ही नजर अंदाज करना कठिन होगा। अशोक गहलोत के लिए यह बड़ी बात नहीं है, लेकिन सचिन पायलट के लिए यह महत्वपूर्ण है, जिसे वे समझ चुके हैं।
राहुल गांधी के इस बयान के बाद वे अधिक सक्रिय हैं और उन स्थानों पर पहुंच रहे हैं, जहां कांग्रेस के कार्यकर्ता किसी न किसी रूप में सत्ता या संगठन से खफा हैं। यह ‘एक पंथ दो काज’ की रणनीति है, जिसे अशोक गहलोत भी समझ रहे हैं और वे डेमेज कंट्रोल करने को कोशिश में लगे हैं, यह डेमेज कंट्रोल बजट से करने का आखिरी प्रयास होगा।
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