संशय की क्या बात, दोनों दिन मनाएं दीपावली


हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
इस बार दीपावली के लिए संशय है, कोई आज मनाएगा, कोई कल। हालांकि, राजस्थान सरकार ने एक नवंबर की छुट्टी कर दी है, ऐसे में कोई चाहे तो दोनों दिन दीवाली मना सकता है। एक दिन खुद के लिए और एक दिन उनके लिए जिनका कोई नहीं है।
ऐसे लोग जिन्हें आपकी जरूरत है, उन तक पहुंचने का यह दिन एक सुनहरा अवसर होगा। पिछले कुछ सालों से एक ट्रेंड यह भी चला है कि लोग अपने जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ और यही नहीं अपने पूर्वजों की पुण्यतिथियों पर बेसहारा, अनाथ और इसी तरह की श्रेणी में आने वाले लोगों तक भोजन आदि पहुंचाते हैं। अपने घर-परिवार में होने वाले ऐसे अवसरों पर उन लोगों को याद करना वास्तव में आपके अंदर होने वाले करुणा का प्रतीक है, जिसकी वजह से मानव देह मिली है।
इस दीपावली पर एक दिन अपने परिवार के साथ मनाएं। लक्ष्मी पूजा करें और घर में सकारात्मक ऊर्जा के वास के लिए संकल्प करें। बचा हुआ एक दिन, चाहे वह तारीख 31 अक्टूबर हो या 1 नवंबर। इस दिन उन लोगों तक पहुंचें, जिनका कोई नहीं है और अगर कोई है भी तो उनके पास इतनी व्यवस्था नहीं है कि हमारी तरह दीपावली मना सकें।
देश में वास्तव में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जिनके लिए दीपावली आने और जाने का अर्थ कोई बड़ा नहीं है। दो दिन से देख रहा हूं, लोग दीपावली पर मिठाइयां, कपड़े और आतिशबाजी पर ही नहीं परस्पर दिए जाने वाले उपहारों पर भी खूब पैसा खर्च कर रहे हैं। छोटे-मोटे गिफ्ट देकर अपने रिश्तों को तरोताजा बनाए रखने की यह युक्ति सफल भी हो रही है। कुछ घरों में तो ऐसे लोगों का इंतजार दीपावली आने के साथ ही शुरू हो जाता है।
एक खबर है कि राजस्थान सरकार ने दिल्ली में खूब सारे उपहार दीपावली पर बांटे हैं। अनेक कार्पोरेट घराने उपहार बांटते हैं। हो सकता है यह सब व्यावसायिक नजरिये से हो रहा हो, लेकिन एक सामान्य परिवार इतना तो कर ही सकता है कि किसी एक जरूरत मंद परिवार तक मिठाई, कपड़े, आतिशबाजी आदि पहुंचाए। ऐसे लोगों की अपेक्षा तो कुछ होगी नहीं, लेकिन अगर आप किसी एक परिवार तक ऐसी सामग्री पहुंचाने का संकल्प करेंगे तो निश्चय ही वहां उत्सव हो जाएगा।
अगर इस तरह देश का हर परिवार किसी एक परिवार के लिए ऐसा करने का मन बनाए। रैन बसेरों, अनाथालय, वृद्धाश्रमों या ऐसे ही स्थानों तक पहुंचें और दीपावली की शुभकामनाएं दें। कोरोनाकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था संकट में अवसर देखना चाहिए। दीपावली की दो तिथियों का संकट है तो अवसर देखिये। लक्ष्मीपूजन निर्धारित समय पर कीजिये, लेकिन दीपावली दो दिन मनाएं। लक्ष्मी पूजन के बाद परिवार के साथ आतिशबाजी करें और इसके अलावा जो भी तारीख बचती है, उस तारीख पर ऐसे लोगों के बीच पहुंचें, जहां आपकी जरूरत है, प्रतीक्षा है।
अगर ऐसा करेंगे तो कोई संशय नहीं रहेगा। जरा सोचें, क्या यह अच्छा लगेगा कि हमारे घर में दीप जले और पड़ौस में अंधियारा हो? अगर नहीं तो जोत से जोत जलाते चलें। इन छोटे-छोटे कार्यों से अगर करुणा जागने लगी तो फिर देश में कोई भी निराश्रित और असहाय नहीं रहेगा। क्या पता दीपावली का यह संशय इसी कारण हो।
‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।