हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

कोरोना-काल में कांग्रेस ने जिस रणनीति के साथ भाजपा पर हमला बोला था, उसी रणनीति पर कांग्रेस के होली मिलन समारोह में कांग्रेसी नेता दिखे। फर्क इतना भर था कि इस होली वे सरकार में नहीं थे। विपक्ष में थे और कहने वाले अशोक गहलोत नहीं थे, जिन्होंने सचिन पायलट पर आरोप लगाते हुए ऐसे संकेत दिए कि सरकार खतरे में है और खतरे का कारण सचिन पायलट हैं। इस प्रसंग में इसके बाद जो हुआ, वह सभी को पता चल चुका है। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा इस बीच राष्ट्रीय राजनीति तक चर्चा में हैं। सचिन पायलट के साथ जो हुआ उसके संबंध में सभी को जानकारी है। वैसे ही हाल हैं। कांग्रेस वाले खुद ही अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे को आरोपित कर रहे हैं।

ठीक उसी तरह का माहौल इन दिनों कांग्रेस वाले बना रहे हैं। उनके कहने का अभिप्राय यह है कि कांग्रेस तो मजबूत है, लेकिन भाजपा कांग्रेस के विधायक और नेताओं को तोडऩे की कोशिश कर रही है। अब इस आरोप को साबित तो कैसे करें। ऐसे में कहा यह जा रहा है कि जो भी नेता भाजपा के साथ मिलीभगत करेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।

मिलीभगत का आरोप लगाते हुए भाजपा के प्रभारी सुखजिंदरसिंह रंधावा जब अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात करते हैं तो सहसा ही गोविंदसिंह डोटासरा और टीकाराम जूली पर शक की सुई जाती नजर आती है। टीकाराम जूली पर इसलिए कि उन्होंने विधानसभा में डोटासरा के किये की माफी मांगी। मतलब साफ है कि जूली को ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से यह संदेश गया कि वे भाजपा से मिल गए, लेकिन ऐसा आरोप किसी ने नहीं लगाया है।

इधर, शक की सुई गोविंद डोटासरा पर भी है, क्योंकि कुछ मामलों में उन्हें जिस तरह से घसीटा जा रहा है। कोई बड़ी बात नहीं है कि उन्हें ‘डर’ भी लगने लगा हो। कुछ अंटशंट नहीं निकल जाए मुंह से, इसलिए विधानसभा में नहीं जा रहे हैं।
लेकिन सही बात तो दोनों ही जानें। आखिर उस दिन ऐसा क्या हुआ कि जूली को माफी मांगनी पड़ी या के डोटासरा उसके बाद विधानसभा में जाने के लिए तैयार ही नहीं हुए। उस पर तुर्रा यह कि वे जब भी जाएंगे, मीडिया को सारी बात बताकर जाएंगे।

कहीं इसका आशय यह तो नहीं कि गोवंद डोटासरा अपना बतौर अध्यक्ष एक और कार्यकाल चाहते हैं। इस बात में दम इसलिए भी है कि उन्होंने यह दर्शा दिया है कि लीडरशिप करने का उन्हें अनुभव भी है। यहां तक कि उन्होंने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के बोलने के समय को भी नहीं रहने दिया।
लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि गोविंद डोटासरा को एक बार और मौका मिलेगा, क्योंकि कांग्रेस में अब स्थितियां अशोक गहलोत के मुख्यमंत्रित्व काल वाली नहीं रही है। सचिन पायलट पूरी फार्म में है। टीकाराम जूली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनकर बड़े खुश हैं। देखना यह है कि गोविंद डोटासर अगर अध्यक्षी के जाने के बाद सिर्फ विधायक भर ही रह जाते हैं तो उन्हें कौन सुनता है।

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