बीकानेर। सन् 1885 ई. में बीकानेर में एकमात्र सार्वजनिक अस्पताल सेन्ट्रल जेल के पास था। बादमें महाराजा गंगासिंह के प्रयासों से 1895 ई. में चूरू के सेठ भगवानदास बागला द्वारा 60 हजार की लागत से कोटगेट दरवाजे के अंदर दूसरा अस्पताल बनवाया गया था।  1907 में इसका विस्तार करते परिसर में ही अलग से महिला अस्पताल की व्यवस्था की गई थी। राज्य की बढ़ती हुई जनसंख्या व बढ़ते बीमारियों के प्रकोप को देखते हुए महाराजा गंगासिंह ने 11 मार्च 1937 को प्रिंस बिजय सिंह मेमोरियल अस्पताल का निर्माण करवाया था। जिसे आज पीबीएम अस्पताल के नाम से जाना जाता है। उस वक्त अंग्रेज वॉयसराय लॉर्ड लिंनलिथगो ने इस अस्पताल का अवलोकन किया था और वास्तुकला  व चिकित्सा सुविधाओं के हिसाब से इसे सर्वश्रेष्ठ अस्पताल बताया था। इस अस्पताल को 14 लाख 41 हजार की लागत से, 137 पुरुष व 107 महिला बेड और कोटेजयुक्त बनाया गया था। अस्पताल में सर्जन, डेन्टल सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट, फिजिशियन, एनेस्थिसिया व लैबॉरेट्री  सहित सभी तरह की सुविधाएं मुहैया करवाई गई थी। अस्पताल को साफ-सुथरा रखने के लिए मैट्रेन (मुख्य नर्स) मिस. बैरेल जार्ज को 900 रुपए प्रतिमाह के वेतन पर नियुक्त किया गया था। उस जमाने में यह अस्पताल पूरे उत्तर-भारत में अपने संसाधनों व विशेषज्ञता के कारण पहले स्थान पर था। पास-पड़ौस के राज्यों से भी यहां पर मरीज ईलाज कराने आते थे। गरीब के ईलाज कराने की मुफ्त व्यवस्था थी। अस्पताल में 1897-98 में यहां के रोगियों की संख्या 1724 थी, जबकि राज्य के बाहर के रोगियों का यह आंकड़ा 78708 था। परकोटे के अंदर के रोगियों को पीबीएम अस्पताल में लाने के लिए निशुल्क बस व्यवस्था थी। महाराजा की ओर से 1940 में बीकानेर में टीबी अस्पताल, लालगढ़ पैलेस अस्पताल और सार्दुल मिल्ट्री अस्पताल का निर्माण करवाया गया था। उस वक्त राज्य की लगभग सभी तहसीलों व कस्बों में डिस्पेन्सरिया खुलवा दी थी। 1897-98 में जहाँ डॉक्टरों व नर्सो की संख्या 17 थी, वह 1935-36 तक आते-आते 84 पर पहुंच गई थी।

चिकनपोक्स, मलेरिया, प्लेग व अन्य मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए महाराजा ने 1928 में वैक्सीनेशन एक्ट पारित किया था, जिसके  तहत सभी बच्चों को वैक्सीन का टीका लगवाना अनिवार्य था।  खेतीहर किसानों को मलेरिया से बचाव के लिए कुनैन दवाई फ्री बांटी जाती थी। 1931 में वेटेरनरी विभाग की स्थापना के साथ गोगा दरवाजे के पास पशुओं के ईलाज के लिए बड़ा पशु अस्पताल खोला गया था।

“उस जमाने में गांव व कस्बों में संचालित होने वाली डिस्पेन्सरियों का समय पर समय पर महाराजा खुद निरीक्षण करते थे। निरीक्षण के दौरान जो दोषी पाया जाता, उसे दंडित किया जाता था।”

-डॉ. महेंद्र खडग़ावत, निदेशालय राज्य अभिलेखागार बीकानेर।