नेशनल हुक

कल नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले ली, मगर इस बार एनडीए के नेता के रूप में। काफी कशमकश व मान मनुहार के बाद सहयोगियों को अपनी शर्तों पर अड़ने ने रोका गया। एनसीपी अजीत से फिर भी बात नहीं बनी, हालांकि वे शपथ समारोह में जरूर उपस्थित रहे। मोदी की बॉडी लैंग्वेज भी आज थोड़ी बदली हुई थी और उसी से अंदाजा लगा कि वे खुद को बदलने की पूरी कोशिश में है। ये स्थिति अनवरत रही तो शायद ये बड़ा गठबंधन आसानी से धीरे धीरे ही सही, चल लेगा।
मगर एक बात बहुत स्पष्ट है। अरसे बाद देश में फिर से गठबन्धन की सरकारों का दौर शुरू हुआ है। गठबन्धन तो 2014 व 2019 में भी था, मगर उस समय भाजपा के पास अपना भी पूरा बहुमत था। उस स्थिति में सहयोगियों के पास अड़ने का लेश मात्र भी अवसर नहीं था। वे दबाव में ला ही सकते थे।
इस बार परिस्थिति विपरीत है। भाजपा के पास अपना बहुमत नहीं है। उसे सहयोगियों पर ही हरहाल में ही निर्भर रहना है। क्योंकि खुद का बहुमत तो बन नहीं सकता। झटके सहयोगी देंगे, ये तो साफ हो ही गया है। नीतीश की जेडीयू ने तो शपथ से पहले ही दो बयान देकर भाजपा को सचेत कर दिया कि वो अपना एजेंडा लागू नहीं करें, सहयोगियों के विचारों को भी तव्वजो दे। जेडीयू के नेता के सी त्यागी ने शपथ से पहले ही कह दिया कि अग्निवीर योजना की समीक्षा होनी चाहिए। इस योजना से एनडीए को नुकसान भी हुआ है। ये स्पष्ट संकेत था कि इस योजना से जेडीयू सहमत नहीं। त्यागी ने दूसरा बयान समान नागरिक संहिता पर दिया। उनका कहना था कि सभी दलों की सहमति और राज्य सरकारों की सहमति के बिना इसे लागू नही किया जाना चाहिए। जबकि ये दोनों योजनाएं भाजपा के कोर एजेंडे में है और इस पर उन्होंने अपना पक्ष रखा हुआ है। अब भाजपा को इन पर विचार करना होगा। त्यागी के बयान पर प्रतिक्रिया न देकर एकबारगी तो भाजपा ने गठबन्धन की मैच्योरिटी दिखाई है। ये अनवरत न रही तो टकराहट निश्चित है।
सरकार की शपथ से पहले दूसरे साथी टीडीपी ने भी दो बयानों से भाजपा को सकते में डाला है। चंद्रबाबू के पुत्र ने पहला बयान देकर भाजपा को सकते में डाल दिया। आंध्रा में दोनों गठबन्धन से लड़े हैं, फिर भी टीडीपी ने कहा है कि आंध्रा में मुस्लिमों को 4 प्रतिशत आरक्षण जारी रहेगा। जबकि भाजपा ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया था। नायडू के बेटे ने दूसरा बयान ये दिया कि फोन टैपिंग कांड की जांच होगी। जबकि जगन रेड्डी राष्ट्रीय मुद्धों पर भाजपा के साथ रहे हैं और उनके सांसदों पर भी पार्टी की नजर है। मगर इन दोनों बयानों पर भी भाजपा ने चुप रहकर समझदारी दिखाई है। ये कब तक रहेगी, उससे काफी तय होगा।
कुल मिलाकर सहयोगी लगातार इस पर बोलेंगे, क्योंकि उनके क्षेत्रीय हित पहले हैं। इस हालत में नरेंद्र मोदी को स्व अटल बिहारी वाजपेयी को याद रखे रखना होगा। उनकी तरह का धैर्य होना नेता में जरुरी है। वे सब को साथ लेकर चले थे और उनसे अड़े भी नहीं थे। मोदी जी को अटल बनना होगा। लचीलापन भी उनकी तरह लाना होगा।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘