हस्तक्षेप/– हरीश बी. शर्मा
बीकानेर नगर स्थापना दिवस पर शहर में पतंगबाजी का दस्तूर है। देशभर में अलग-अलग मौकों पर पतंगें उड़ाने की परंपरा है। इस परंपरा में किसी भी क्षेत्र की एकता, खुशहाली और मनोरंजन तो निहित है ही, लेकिन यह एक ऐसा खेल है, जिसमें प्रतिस्पर्धा भी जबर्दस्त होती है। इसी के चलते पतंगबाजी देशभर में एक बड़ा खेल है। जिन शहरों के आसपास आज भी लंबे-चौड़े मैदानी भाग बचे हुए हैं, वहां पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं होती हैं। हालांकि, यह एक बड़ा ही रईस खेल है, लेकिन बीकानेर में इस खेल के बहुत शौकीन हैं, जो सर्दी-गर्मी की परवाह किये बगैर मैदानों में डटे रहते हैं और पतंगबाजी करते हैं।

इस शौक के चलते बीकानेर पतंगों का बड़ा बाजार है। बीकानेर में भी पतंगें बनने लगी है और माझों की सुताई भी होने लगी है, लेकिन पिछले दस सालों से यहां पतंगबाजी में चायनीझ मांझे का उपयोग होने लगा है जो न सिर्फ पतंगबाजी की स्पर्धा के नियमों के विपरीत है बल्कि आम जन के स्वास्थ्य के प्रतिकूल भी है। पतंगबाजी में जो मांझा बनता है वह सूत से ही निर्मित होता है, लेकिन चायनीझ मांझे में सूत का इस्तेमाल नहीं होता। इसे बनाने में रासायनिक प्रक्रिया का इस्तेमाल होता है। यह कहा जा सकता है कि यह कृत्रिम मांझा है, जो न तो पतंगबाजी के नियमों के अनुकूल है और न जनस्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त। राजस्थान सहित कईं राज्यों में इसे बैन किया गया है, क्योंकि यह खतरनाक है।

पतंग कटने के बाद यह धागा जब नीचे गिरता है तो राह चलते लोगों के चेहरे, गले और हाथ को जख्मी कर देता है। यह जख्म इतना गहरा हो सकता है कि टांके भी लगाने पड़े। आखातीज के अवसर पर शहर में बढ़े चायनीझ मांझे के प्रचलन से लोगों की जान को खतरा बढ़ गया है। हर बार बड़ी संख्या में इस मांझे से जख्मी लोग अस्पताल पहुंचते हैं।

नायलोन और मैटेलिक पाउडर से बनाए जाने वाले इस मांझे में सूत नहीं होता इसलिए इसे प्लास्टिक मांझा भी कहते हैं। इस वजह से इसे तोड़ा नहीं जा सकता और कईं बार तो इसे खींचने पर लंबा भी हो जाता है। एल्युमिनियम ऑक्साइट और लेट बनाकर इस मांझे को मजबूती दी जाती है और फिर इस पर कांच का चूरा लगाया जाता है ताकि धार बनी रहे।

यह धार राह चलते और खासतौर से टू-व्हीलर या साइकिल पर सवार लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। चोरी-छिपे बीकानेर के बाजार में मिल रहे इस मांझे से जन-जीवन आशंकित है, लेकिन प्रशासन की कार्रवाई नाकाफी है। हालांकि, कुछ समाजसेवी लोगों ने चायनीझ मांझे के विरुद्ध अभियान शुरू कर रखा है, लेकिन इस मांझे का उपयोग करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। हालांकि, पतंगों की स्पर्धाओं में तो इसका उपयोग नहीं होता, लेकिन दस्तूर के तौर पर पतंग उड़ाने वालों ने अपनी शेखी के लिए इस मांझे का उपयोग करना शुरू कर दिया है ताकि उनकी पतंग नहीं कटे और इस वजह से न सिर्फ आखातीज पर पतंगबाजी की परंपरा को खराब किया जा रहा है बल्कि जन-स्वास्थ्य के साथ हिंसा और क्रूरता बरतने वालों की एक लापरवाह टीम तैयार हो रही है।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।