मनोज रतन व्यास
उदारीकरण के शुरुआती दौर में जब बॉलीवुड पर डॉलर की बरखा होने लगी,उसमें फिल्मी गीत-संगीत का बड़ा योगदान था। प्रवासी भारतीयों को बॉलीवुड देशी फिल्मी गीतों से इतना लगाव हो गया कि उनके सभी फैमिली आयोजनों में बॉलीवुड धुनों पर लोग थिरकते थे। धीरे धीरे सैटेलाइट टीवी चैनल्स और एफ एम रेडियों की बाढ़ ने बॉलीवुड गीतों को और भी लोकप्रियता दी। इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही नई फिल्मों की प्रमोशन एक्टिविटी फि़ल्म के रिलीज होने से लगभग दो महीने पहले ही शुरू करने का ट्रेंड चलन में आ गया। फिल्मकार, पीआर एजेंसीज और म्यूजिक लेबल हर नई फि़ल्म के विभिन्न गीतों के 30 से 1 मिनट के टीजर रिलीज करने लगे। फि़ल्म के थियेटर तक पहुंचने से पूर्व मूवी की मार्केटिंग टीम गीतों के कुछ अंश सेटेलाइट चैनल पर शो कर फि़ल्म की हाइप क्रिएट करने का प्रयास करते थे। ट्रेड विशेषज्ञ भी फि़ल्म के हिट होने की भविष्यवाणी म्यूजिक के हिट होने के साथ ही कर देते थे। अतीत में ऐसा कई बार साबित हुआ है कि अनेक फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में फि़ल्म के सुपरहिट संगीत ने बड़ा सहारा दिया है।

इन दिनों के फिल्मों के बॉक्स ऑफिस नम्बर्स उम्मीद के मुताबिक नही आ रहे है। फिल्मों के लगातार फ्लॉप होने के लोग अलग-अलग कारण गिनवा रहे है। कुछ लोग बॉयकॉट ट्रेंड को फिल्मों के फेलियर का कारण बता रहे है। कईयों का मानना है कि बॉलीवुड फिल्मों का कंटेंट ही आउटडेटेड हो गया है। कुछ का मत है साउथ सिनेमा का हैंगओवर हिंदी भाषी दर्शको पर ज्यादा हो गया है। उपरोक्त सभी कारणों को स्वीकारते हुए भी कोई संगीत की क्वालिटी पर बात ही नहीं कर रहा है।

गत दिनों अक्षय कुमार की रक्षाबंधन, आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा और रणबीर कपूर की शमशेरा टिकट खिड़की पर कोई कमाल नही दिखा सकी। ये फिल्में क्यों दर्शकों को लुभा नही पाई, इसके बहुतेरे कारण गिनाए जा सकते है, लेकिन एक कारण तीनों मूवी में कॉमन था,वो था इन फिल्मों का बोझिल संगीत। अक्षय कुमार की फि़ल्म में अरसे बाद हिमेश रेशमिया का म्यूजिक था,हिमेश का एक भी गीत फि़ल्म रक्षाबंधन की बज्ज् नही बना पाया। आमिर की फि़ल्म में बॉलीवुड के इस वक्त के नम्बर वन कम्पोजर प्रीतम का संगीत था,प्रीतम के गीत भी लाल सिंह ब्रांड को बिल्कुल भी स्थापित करने में नाकाम रहे। शमशेरा में सरल और मिनिमम ओर्केस्टा का प्रयोग करने वाले संगीतकार मिथुन का म्यूजिक था। असल में तो शमशेरा का विषय मिथुन के टेस्ट के ही विपरीत था,हुआ भी वही,शमशेरा के गीत भी स्टैंडआउट कर ही नहीं पाए।

बॉलीवुड फिल्में बिना गीत-संगीत अधूरी है। कर्णप्रिय गीतों के बिना फिल्में यूं ही फ्लॉप होती जाएगी। गुजरे दौर के तीन सुपरस्टार राजेश खन्ना, शम्मी कपूर और देव आनंद के पूरे करियर में उनकी फिल्मों की सक्सेस में गीतों का बड़ा योगदान था। शाहरुख-सलमान-आमिर के पीक दौर में उनकी फिल्मों के गीतों को याद कीजिए,आज वैसे गीत नही बन रहे है, तो फिल्मों का हश्र सबके सामने है। कभी शो मैन राज कपूर ने “राम तेरी गंगा मैली” और महेश भट्ट ने “आशिकी” जैसी फिल्मों को महज उपलब्ध गीतों के आधार पर कहानी गढ़ कर सुपरहिट सिनेमा दर्शकों को परोस कर वाहवाही लूट ली थी,जाने वो इरा पुन: कब लौटेगा,बाकी उम्मीद कायम है।