इस धारणा को बदलना होगा कि ‘सेफ-जोन’ है सरकारी नौकरी


हस्तक्षेप
– हरीश बी.शर्मा
गतांक से आगे
यह सब सिर्फ इसलिए कि देश का नागरिक सुरक्षित रहे, देश की नागरिक सेवाएं सुरक्षित रहे। क्योंकि नागरिक ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। उसे शंाति, सुरक्षा और व्यवस्था देना राज्य का दायित्व है। लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा इसी से जुड़ी है। अगर ऐसा नहीं होगा तो नागरिकों में असंतोष उभरेगा और धीरे-धीरे अराजकता का कारण बनेगा।
जैसा कि हो रहा है। अगर कोई डंके की चोट पेपर-लीक करवाता है और फिर पकड़े जाने के बाद भी इस बिना पर छूट जाता है कि जो प्रश्न पत्र सामने अए, उसमें से अधिकांश तो प्रश्न-पत्र में थे ही नहीं, इसलिए पेपर-लीक नहीं माना जाएगा, तो आम जन को लगता है कि न सिर्फ साजिश बड़ी है बल्कि बचाने वालों के हाथ भी काफी लंबे हैं। इससे समाज में न सिर्फ असंतोष बल्कि अराजकता बढ़ती है, लेकिन इसके कारणों पर गौर करें तो समाज या नागरिकों की लिप्तता भी इसमें कम नहीं है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकताञ। अब तो यह ट्रेंड बन गया है कि अगर रेंडम उठाकर किसी युवा के अभिभावक से पूछ लिया जाए कि उसके बच्चे को सरकारी नौकरी लगाने की एवज में रिश्वत देनी है तो वह तैयार हो जाएगा बशर्ते की रिश्वत लेने वाला विश्वसनीय हो, इस क्षेत्र में ‘साहूकारीÓ का यह खेल अपेक्षाकृत अधिक बढ़ गया है। साहूकारी की यह शर्त किसी एक के कमिटमेंट से पूरी होनी संभव ही नहीं है, जिसका सीधा अर्थ है कि कुएं में भी भांड पड़ी है।
ऐसे में अगर वास्तव में कोई सरकार इस प्रवृत्ति का समाधान चाहती है तो उसे बहुत ही विश्वसनीय तरीके से प्रयास करने होंगे बल्कि व्यवस्था में सुधार भी करने होंगे। उसे यह साबित करना होगा कि यह सब करते हुए वह इमानदार भी है। सरकार को चाहिए कि वह सरकारी नौकरी चाहने वालों को परीक्षाओं के जंजाल से मुक्ति दे। वास्तविकता यह है कि स्नातक या स्नातकोत्तर परीक्षाएं देने के बाद शुरू हुई प्रतियोगी परीक्षाओं ने सारे पाठ्यक्रम का तो कबाड़ा किया ही है, इसकी प्रासंगिकता को भी खत्म कर दिया है। लोग डिग्रियों को सिर्फ औपचारिकता के रूप में ग्रहण करते हैं, जिससे क्लास-रूम कल्चर खत्म हो गया है। किसी को पता ही नहीं है कि पाठ्यक्रम में क्या है, सभी यह जानते हैं कि करंट-अफेयर्स क्या है। क्योंकि यही जीके के पेपर में काम आने वाला है। इस नये युग के सच को जानने के बाद बच्चा दसवीं के बाद से ही अपने पाठ्यक्रम से दूर होकर सामान्य-ज्ञान या ऐसे ही प्रतियोगी परीक्षाओं में पास करवाने वाले विषयों में उलझ जाता है। जरूरत इस बात की है कि डिग्री कोर्स को मजबूत बनाया जाए और जैसे ही यह कोर्स पूरा हो, काउंसलिंग के माध्यम से हर बच्चे को पूछा जाए कि उसे देश की सेवा के लिए क्या करने का मन है।
सबसे पहले बच्चे के मन में यह भाव ही जगाया जाए कि अगर तू सरकारी सेवा में आना चाहता है तो मान ले देश-सेवा के लिए तत्त्पर है। फिर भले ही वो शिक्षक बनना चाहे या लेखाकार। लिपिक बने या प्रशासनिक अधिकारी। एक लाइन का संदेश यही होना चाहिए कि अगर वह देश की सेवा के लिए तैयार है तो अवसरों की भरमार है।
ऐसे लोगों को उनकी क्षमता और प्रतिभा के आधार पर अलग-अलग विभागों में काम करने का अवसर दिया जाए ताकि उसे न सिर्फ काम समझ आ सके बल्कि निष्पादन करते हुए अपनी सक्रियता और लगन भी दर्शाए। यह लगन ही उसका कैरियर बने। उसे अपनी प्रतिभा को तराशने का अवसर मिले न कि उसे लगे सरकारी नौकरी पाने का अर्थ ‘सेफ-जोनÓ पा लेना है। इस दृष्टि से अगर सरकार अपनी योजनाओं को लागू करे तो सिर्फ पेपर-लीक प्रकरण से ही नहीं समाज और देश से भी भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है।
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