आप के नेताओं का हौसला तो नहीं टूटा, लेकिन जनता के भरोसे का क्या
हस्तक्षेप
हरीश बी. शर्मा
17 महीने बाद मनीष सिसोदिया के जेल से बाहर आने के साथ ही एक बार फिर से दिल्ली में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। प्रारंभिक रूप से यह तय हो गया है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में होने वाले आम चुनाव अब बगैर किसी गठबंधन के लड़ेगी। आम आदमी पार्टी के दिग्गज और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया को सरकार में अब नये सिरे से क्या जगह मिलेगी इस पर अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है। उनके बाहर आने के बाद दिल्ली के सरकार के मुख्य समारोह के झंडारोहण करने संबंधी पूर्व में प्रचारित संदेश में भी अभी तक कोई संशोधन नहीं हुआ है। अभी तक की जानकारी के अनुसार आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी मार्लेना सिंह ही झंडारोहण करेगी, जबकि इस बात की संभावना अभी तक भी बाकी है कि मनीष सिसोदिया के नाम नया संशोधित संदेश भी जारी हो सकता है।
इस बीच सिसोदिया ने सरकार में किसी भी तरह के पद या प्रतिष्ठा से संबंधित सवाल को अरविंद केजरीवाल पर छोड़ दिया है और पार्टी के कार्यों में लग गए हैं। सोमवार को उनका आम आदमी पार्टी के विधायकों और पार्षदों से मिलने का कार्यक्रम है। इसके साथ ही पद-यात्रा पर भी निकल रहे हैं ताकि लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि आम आदमी पार्टी के सारे नेता एक हैं, उन्हें जेल भी अलग नहीं कर पाई है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रति जनता का समर्थन एक चमत्कार है। यहां विधानसभा चुनाव में जिस तरह से आम आदमी पार्टी आती रही है, इसलिए भी हैरत करने वाला रहा है कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अपना वैसा प्रदर्शन नहीं दोहरा पाती। यहां से जीतने वालों में सर्वाधिक भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी होते हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी जीतती रही है।
इस बार चूंकि आम आदमी पार्टी के नेताओं पर बड़ा आरोप है। शराब नीति घोटाले में गंभीर आरोप लगने के बाद आम आदमी के बड़े-बड़े नेताओं को जेल जाना पड़ा है, जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हैं। जेल जाने के बाद केजरीवाल ने पद नहीं छोड़ा। हालांकि, सिसोदिया ने पद छोड़ दिया था। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि क्या जनता इन आरोपों के चलते जेल में जाकर आए नेताओं के प्रति अपना विचार बदलती है या नहीं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में प्रस्तावित है। ऐसे में पार्टी के पास अभी चार महीने हैं, जनता को अपने निर्दोष होने का सबूत देने के लिए। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह का जनादेश मिला है, उसके बाद आम आदमी पार्टी के सामने भाजपा कोई बड़ी चुनौती नहीं है बशर्ते ही जनता इन आरोपों को नकार दे। दिल्ली में कांग्रेस पार्टी वैसे ही कमजोर है। शायद यही वजह है कि इंडिया गठबंधन में होने के बाद भी आम आदमी पार्टी राज्य के स्तर पर किसी भी तरह का गठबंधन नहीं करेगी। आम आदमी पार्टी के अकेले दिल्ली का चुनाव लडऩे की मंशा इस बात को तो जाहिर करती है कि उनके नेताओं का हौसला नहीं टूटा है, लेकिन इस बीते समय में जनता का भरोसा कितना कायम है, इसे देखने के लिए विधानसभा चुनाव के परिणामों तक इंतजार करना होगा। हालांकि, छोटे-छोटे संकेत मनीष सिसोदिया की पदयात्रा के दौरान ही मिलने लगेंगे।
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