तबादलों की आखिरी तारीख इसलिए बढ़ी, क्योंकि संगठन वालों को लगा परायों की भरी जा रही हैं डिजायरें
हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
सरकार के पास तबादला नीति नहीं होने की वजह से बीते दस दिन इसी पशोपेश में निकल गए कि आखिर तबादले करने का आधार क्या हो। इस विषय पर निकले अनेक विचारों में से कोई भी ऐसा विचार नहीं था, जिस पर एकमत हुआ जा सके। भाजपा नेता अधिकारियों के तर्कों से संतुष्ट नहीं हो सके। लिहाजा, पांच दिन और बढ़ा दिए। अब बहाना यह बनाया जा रहा है कि भाजपा नेता संगठन चुनावों में व्यस्त हो गए जबकि संगठन में जिन लोगों को नियुक्तियां हुई हैं, उनके लिए कहा जा रहा है कि संगठन के पदाधिकारियों की सिफारिशों पर ध्यान ही नहीं दिया गया है।
इससे भी कड़वी सच्चाई यह है कि अनेक नेता इस तबादले की प्रक्रिया में ऐसे उलझे रहे कि उन्हें संगठन या समाज के कार्यक्रम ही याद नहीं आए। बीकानेर में हुए ऊंट में अधिकारी तो दिखते रहे, लेकिन जनप्रतिनिधियों के गायब होने से जनता चटखारे लेती रही कि ट्रांसफर कराने के लिए नेता लगे हुए हैं, क्योंकि शुक्रवार को आखिरी तारीख थी। दस तारीख तक ही तबादले होने थे, लेकिन हालात ऐसे बने कि तारीख पांच दिन और बढ़ानी पड़ी। अब 15 तारीख तक तबादले होंगे, लेकिन सवाल यह है कि जब यह कार्य दस दिन में नहीं हो सका तो बचे हुए पांच दिन में कैसे हो जाएगा।
हमने इस कॉलम में पहले ही कहा था कि इतना आनन-फानन तबादलों पर से बैन हटाने की बजाय सरकार को चाहिए था कि पहले योजना बनाते। तबादलों का आधार क्या होगा, यह सामने लाते। तबादले पर बैन हटाने के निर्णय के बाद यह बात जरूर आई कि एक बार किसी का तबादला कहीं कर दिया गया तो दो साल तक नहीं हटाया जाएगा, लेकिन तबादला क्यों किया जाएगा, यह कारण सामने नहीं आया। ऐसे में सारा का सारा मामला उलझ गया और तबादलों का एक मात्र आधार विधायक व मंत्रियों की डिजायर हो गया। जिसे तबादला-सुख दिलाने के लिए मंत्री या विधायक लग जाएं, उसका तबादल तय। शुरू-शुरू में तो यह चला, लेकिन सातवें दिन ही इस संबंध में शिकायतें पहुंचने लगी।
तबादलों की तिथियां बढ़ाने की असली वजह जो सामने आई है, उसमें भाजपा से जुड़े संगठनों का विरोध है कि तबादलों में उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। मंत्री और विधायक ऐसे लोगों की डिजायर भर रहे हैं, जिनका पार्टी के लिए कोई काम नहीं है। दरअसल, यह एक पेच है कि सरकारी विभागों में सरकार के पक्ष और विपक्ष के संगठन बने हुए होते हैं। कांग्रेस के शासन में कांग्रेस से जुड़े कर्मचारी संगठनों की पौ-बारह रही। ऐसे में भाजपा से जुड़े संगठनों की आस है कि उनकी सुनी जाए। नहीं सुनी गई तो उन्होंने संबंधित लोगों तक अपनी बात पहुंचा दी और तबादलों पर फिर से मंथन शुरू हो गया है, जिसमें यह भी देखा जाएगा कि जिस कर्मचारी के तबादले की अर्जी आई है, उस पर संगठन की क्या नोटिंग है।
लेकिन यह भी पुराना ढर्रा ही है। अगर सरकार कोई नई इबारत लिखना चाहती है कि भले ही तबादलों पर फिर से रोक लगा दे और छह महीने बाद नई तारीख घोषित करे लेकिन तब तक एक पारदर्शी तबादला नीति जरूर बना ले ताकि तबादला-उद्योग चलाने का आरोप इस सरकार पर तो कम से कम नहीं लगे।
‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।