हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली लगातार सरकार पर हमलावर हैं। गुरुवार को तो उन्होंने कुलतियों को लेकर दिए बयान में सरकार का मर्मबेधन कर डाला। उन्होंने आंकड़ों के साथ विधानसभा में कहा कि राजस्थान के 32 विश्वविद्यालयों में सिर्फ चार ही ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जहां राजस्थान के कुलपति हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि अधिकांश कुलपति उत्तर प्रदेश के मिलेंगे और एक मेडिकल विवि के हाल तो यह है कि वहां गैर डॉक्टर को ही कुलपति बना दिया है, ऐसे में अगर कुलपति का नाम कुलगुरु कर भी देंगे तो क्या होगा।

दरअसल, राजस्थान के विश्वविद्यालयों में यह आज की समस्या नहीं है, पहले से ही यही ढर्रा चला आ रहा है कि राजस्थान में उत्तर प्रदेश से ही कुलपति आते हैं, जिनके लिए सरकारी सुविधाएं आदि पद के अनुरूप होने के कारण यह भी मांग उठती रही है कि आखिर क्या वजह है कि राजस्थान के विद्वानों को कुलपति क्यों नहीं बनाया जाता। सिर्फ बीकानेर के विश्वविद्यालयों की बात करें तो यहां ऐसा कोई भी विवि नहीं है, जिसमें राजस्थान का जाया-जन्मा कुलपति हों। टीकाराम जूली का यह कथन भी सही है कि अधिकांश कुलपति उत्तर प्रदेश से आते हैं।

यह कहते हुए टीकाराम जूली ने हंसी-हंसी में सरकार के काम करने के तरीके पर जमकर प्रहार किये। ये प्रहार लगातार जारी है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने एक बार जरूर जूली का समय खाया, लेकिन इसके बाद जो घटनाक्रम बना उसमें अब विधानसभा में डोटासरा दिखाई नहीं दे रहे हैं और जूली जम कर खेल रहे हैं। वे विधानसभा में पूरी तैयारी के साथ आते हैं और चुटकियां लेते हैं।

अगर गोविंद डोटासरा को पुराना नेता मान लिया जाए तो टीकाराम जूली इन दिनों कांग्रेस के वो नये रंग-रूट हैं, जिन्होंने विपक्ष में जान भर दी है। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस के नेताओं के पास जहां कहने के लिए कुछ नहीं है। पूछने के लिए सवाल नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जैसे नेताओं द्वारा सवाल नहीं उठाए जाने की खबरें बन रही है, वहीं टीकाराम जूली छाये हुए हैं। उनके लिए बनने वाली अनुकूलताओं का आलम देखिये कि गोविंद डोटासरा विधानसभा में नहीं जाने पर अड़े हुए हैं जबकि कहा तो यहां तक जा रहा है कि डोटासरा पर गंभीर कार्रवाई करने पर भी अंदरूनी सहमति बन चुकी थी, जिसके बाद जूली ने माफी मांगकर मामले को रफा-दफा करवा दिया।

हालांकि, डोटासरा ने भी मर्यादाओं को लांघ दिया था जबकि एक समय में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी और गोविंद डोटासरा के बीच अच्छे रिश्तों के चर्चे थे। लेकिन फिर दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे। डोटासरा और किरोड़ीलाल मीणा के बीच भी जुबानी जंग काफी दिनों तक जारी रही, जिसका उन्हें राजनीतिक लाभ नहीं मिला जबकि टीकाराम जूली के बयान राजनीतिक रूप से उनका महत्व बढ़ा रहे हैं। वे विषयों को समझकर अपनी बात रखते हैं, जिससे इस बात में संदेह नहीं रह गया है कि टीकाराम जूली के रूप में कांग्रेस ने एक सही नेता प्रतिपक्ष का चयन किया है।

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