बिहार का मुकाबला होगा चिराग वर्सेज तेजस्वी


हस्तक्षेप/– हरीश बी. शर्मा
कांग्रेस ने बिहार चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी है। तेजस्वी यादव से पिछले दिनों राहुल गांधी की मुलाकात को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि बिहार में लालू यादव की आरजेडी के साथ कांग्रेस वैसा नहीं करेगी जैसा दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ हुआ। फिर यह इसलिए भी है कि बिहार में कांग्रेस या आरजेडी की सरकार भी नहीं है और इस राज्य में एनडीए को तोडऩे के लिए कांग्रेस को कई परतों को हटाना होगा। नितीश कुमार से लेकर चिराग पासवान तक भाजपा के साथ एनडीए के रूप में ऐसे चेहरे हैं, जिनके मुकाबले के लिए कांग्रेस को सबसे पहले अपनी जमीन को मजबूत करना होगा और कुछ भी कह लें, लालू यादव का परिवार का प्रभाव वहां कांग्रेस के किसी भी दूसरे नेता से ज्यादा ही है, इसलिए राहुल गांधी को रणनीतिक तौर पर भी लालू यादव को साथ रखना होगा।
कांग्रेस के लिए यह लड़ाई इसलिए भी महत्वपूर्ण होती जा रही है कि एनडीए इस बार बड़ा दावं चिराग पासवान पर लगाती हुई दिख रही है। भाजपा की रणनीति रही है कि राहुल गांधी के सामने नरेंद्र मोदी को नहीं रखा जाए और ऐसा चेहरा रखा जाए, जिसके हारने पर भले ही हल्ला नहीं मचे, जीतने पर माहौल बन जाए। अमेठी में स्मृति ईरानी याद ही होगी, जहां हार के बाद राहुल गांधी अरसे तक उबर नहीं पाए। एनडीए इसी जुगत में है कि इस बार नितीश कुमार को भले ही नाराज करना पड़े, लेकिन चिराग को फ्रंट-फुट पर रखेंगे।
चिराग की ‘बॉडी-लेंग्वेजÓ इस बात को लेकर आश्वस्त भी करती है वे नेतृत्त्व संभालने के लिए तैयार भी हैं। सधी हुई बात करते हैं। जुबां फिसलती नहीं है। बिहार में रामविलास पासवान के समर्थकों ने चिराग को स्वीकार भी कर लिया है और नरेंद्र मोदी का वरद-हस्त पहले से ही मिला हुआ है। चिराग के बढ़ते प्रभाव का ही परिणाम है बिहार से एनडीए में लंबे समय तक साथ रहे पशुपतिनाथ पारस ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है। पशुपतिनाथ पारस पहले भाजपा-एनडीए के बहुत खास रहे। केंद्रीय मंत्री भी रहे, लेकिन चिराग के बढ़ते कदमों के बाद पारस के पर कतरे जाने लगे। लोकसभा चुनाव के साथ ही उनकी उपेक्षा होने लगी और चिराग पासवान का प्रभाव बढऩे लगा, जिससे आहत होकर पशुपतिनाथ ने आखिरकार एनडीए छोड़ दिया है।
पशुपतिनाथ के लालू यादव से भी रिश्ते बुरे नहीं हैं। बतौर विधायक उनका सफर तीस साल का है, जिसमें लालू सरकार में भी मंत्री रहना शामिल है। ऐसे में बड़ी संभावना इस बात की है कि वे फिर से लालू यादव के खेमे में जा सकते हैं। राहुल गांधी इन सारी संभावनाओं को देखते हुए ही तेजस्वी यादव की तरफ बढ़ रहे हैं, क्योंकि बिहार के हालात अलग है। यहां कांग्रेस अभी इस स्थिति में नहीं है कि इतने वोटों को अपनी तरफ खींच सके, जिससे कोई प्रत्याशी हार या जीत सके, जैसा दिल्ली में हुआ था।
ऐसी स्थिति में उसे लालू यादव के साथ गठबंधन धर्म निभाना होगा। इसका बड़ा फायदा यह होगा कि राहुल गांधी की बजाय बिहार में तेजस्वी लड़ेगा और अगर भाजपा अपनी रणनीति के अनुसार चिराग को फ्रंट-फुट पर रखती है तो कम से कम राहुल सीधी लड़ाई से बच जाएंगे। देखना यह है कि चिराग की आक्रामक-भूमिका के लिए एनडीए नीतिगत रूप से सहमत होता है या नहीं।
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