हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नागपुर प्रवास को मीडिया इस तरह से प्रचारित कर रहा है, जैसे वे अमेरिका या चीन जा रहे हों। बुद्धि का दिवालिया भी इस कदर का है कि इसे यात्रा कहा जा रहा है। अगर एक बार के लिए यह मान भी लिया जाए कि यह यात्रा है, जो वस्तुत: प्रवास ही है तो इस बात से किसे इंकार होगा कि यह पहला प्रवास नहीं है। फिर यह लीकेज जैसा कोई मामला भी नहीं है। इस बात से भी इंकार नहीं होना चाहिए कि नरेंद्र मोदी अगर नहीं चाहे तो इस तरह की कोई भी खबर लीक भी नहीं हो सकती। खासतौर से तब, जब मिलने की बात आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने का मसला हो।

ऐसे में अगर इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं कि नरेंद्र मोदी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम लेने के लिए दो दिन के प्रवास पर नागपुर जा रहे हैं तो वाकई यह अटकल के अलावा कुछ भी नहीं है। नरेंद्र मोदी को यह अच्छे से पता है कि संघ के बगैर उनकी तो क्या समूची भाजपा का ऐसा अस्तित्व नहीं है कि वह देश पर शासन कर सके। और इस बात से भी किसे इंकार है कि बहुत सारे चेहरों के बीच से अगर नरेंद्र मोदी को देश की बागडोर सौंपने का फैसला किया जाता है तो यह संघ के चाहे बगैर होना संभव नहीं था। यह जितना संघ जानता है, उतना ही नरेंद्र मोदी और दोनों ही यह मानते हैं कि फिजूल की खींचतान में पडऩा ही नहीं।

जिन लोगों के लक्ष्य बड़े होते हैं, वे वैसे भी छोटे-छोटे विवादों में पड़ते नहीं हैं और यही वास्तविकता है संघ और नरेंद्र मोदी के बीच के संबंधों में। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी रिमोट से नहीं चल रहे हैं, यह संदेश अगर देश में गया है तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि संघ नरेंद्र मोदी को नहीं चला रहा है। कम से कम संघ की बदनामी तो नहीं हो रही है और यही तो  संघ चाहता होगा कि उसकी बदनामी नहीं हो।

कौन भला चाहता होगा कि उसकी बदनामी हो। राजनीति में तो वैसे भी नहीं। ऐसे मे अगर यह खबर ‘लीकÓ होती है या करवाई जाती है तो इसके दूसरे मानी है और वह यह है कि देश-दुनिया की नजर इस प्रवास पर रहे। संघ आरंभ से ही प्रेस और मीडिया से दूरी बनाए रखने की नीति पर चलता रहा है।  संघ की यह विशेषता है कि उसने अपनी नीतियों में सबसे महत्वपूर्ण शर्त महत्वाकांक्षाओं से दूरी बनाए रखी है। बहुत सारी बातों में प्रेस से दूरी भी इसी  शर्त में शामिल हैं। ऐसे में अगर मोदी और भागवत के मिलने की संभावना खबर बनती है तो साफ जाहिर है कि इस दौरान कम से कम इन रिश्तों के बीच में कुछ भी खास नहीं होने वाला है। अध्यक्ष का नाम, आगामी चुनाव और संगठन महामंत्रियों की नियुक्ति जैसे सवालों पर अगर मोदी और भागवत बैठने लगे तो फिर चल गया देश।

यह एक शिष्टाचार बैठक है, क्योंकि इससे पहले बगैर किसी हो-हल्ले के कईं बार दोनों के बीच बात हो चुकी है, होती रहेगी। होती रहनी भी चाहिए। हो सकता है इन बैठकों में कई बार दोनों मीडिया में आने वाली बातों पर चर्चा करते हुए मुस्काए भी हों। यह इसलिए दावे के साथ कहा जा सकता है कि दोनों ही तरफ से कभी कोई खंडन नहीं आया। खंडन क्या प्रतिक्रिया तक नहीं। इसी से जाहिर होता है कि प्रेस-मीडिया को सरकार और संघ कितनी गंभीरता से लेता है।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।