• मनोज रतन व्यास

जो विचार या व्यक्ति पब्लिक डोमेन में मौजूद है आम जन उस पर ही संवाद करते है, निज अन्वेषण कर भूले-बिसरे हीरोज की गाथाओं को जग-चर्चा में लाने की जुगत आज की जेन नेक्सट करें, ऐसा आमतौर पर प्रतीत नहीं होता है। जाने क्यूं जो हमें पहले से पता है, जिसकी हमें बरसों से खबर है, हम उस पर ही पूरी ऊर्जा लगाकर हमारी बैठकी को पूर्णता देने का स्वांग रचते जाते है। जो था कालजयी, जो था समय से आगे, जो था अभूतपूर्व, बस उसे उतना माइलेज नही मिल पाया,जितने का वो हकदार था,इसलिए गुजरते वक्त के साथ वो विचार और व्यक्तित्व लोगों के जेहन से बहुत दूर जाकर बस गए और पुनः वक्त से ही आस लगाए बैठे रहते है कि कल कोई आएगा और उन यादों को पुनः जीवंत करेगा।

ऐसा ही एक अनूठा प्रयोग जीनियस फिल्ममेकर इम्तियाज अली ने किया है। फिल्मकार इम्तियाज अली जिन्होंने जब वी मेट, हाईवे, रॉकस्टार, लव आज कल जैसी दार्शनिक फिल्में बनाई है, अब यही जुनूनी शख्स सारे बॉक्स ऑफिस प्रलोभनों को छोड़कर एक नई फ़िल्म लेकर हाजिर हुए है जिसका नाम है अमर सिंह चमकीला।

अमर सिंह चमकीला सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होगी। यह एक बायोपिक फ़िल्म है जिसमें मुख्य भूमिकाएं दिलजीत दोसांझ और परिणीति चोपड़ा ने निभाई है। दिलजीत मूवी “चमकीला” में स्वयं चमकीला बने है और परिणीति चमकीला की पत्नी अमरजोत बनी है। फ़िल्म का संगीत ए.आर रहमान ने तैयार किया है। फ़िल्म के गीत इरशाद कामिल ने लिखें है। गीतों का पार्श्वगायन मोहित चौहान, परिणीति और स्वयं दिलजीत ने किया है।

इम्तियाज अली की बारम्बार तारीफ होनी चाहिए क्योंकि उनकी वजह से आज की युवा पीढ़ी को चमकीला के बारे में जानने को मिलेगा। महज 27 साल की उम्र में ही चमकीला और उनकी पत्नी अमरजोत की पंजाब में हत्या कर दी गई थी। चमकीला मिट्टी का कलाकार था, जितने उसके शोज पंजाब के बड़े शहरों में होते थे, उतने ही पंजाब के देहाती इलाकों में भी होते थे। चमकीला स्वयं ही अपने गीतों को कलमबद्ध करता था, म्यूजिक भी खुद ही कम्पोज करता था और स्वर भी खुद के ही यूज करता था। फीमेल पार्ट के लिए उनकी पत्नी अमरजोत उनका साथ निभाती थी।

चमकीला अस्सी के दशक में सबसे लोकप्रिय पंजाबी गायक था। साल 1988 में 8 मार्च को चमकीला की हत्या हुई थी। चमकीला के बारे में शोध करते हुए यह भी पता लगा कि एक साल में चमकीला ने 366 शोज किए थे।
चमकीला ने अनैतिक रिश्तों, नशे और यूथ के मुद्दों पर खूब लिखा, जितनी उसे अपने गीतों से शोहरत मिली उतना ही उसका विरोध भी हुआ।

अगर इम्तियाज अली चमकीला के व्यक्तित्व पर फ़िल्म बनाने का साहस नही करते तो यह आलेख भी नही लिखा जाता। चमकीला के विचार और उसका संगीत जो आज की पीढ़ी विस्मृत कर गई थी,उसे पुनः नई साँसे इम्तियाज अली ने दी है। दिल्ली में शिक्षित इम्तियाज ने पंजाबी लोक गायक के जीवन पर रिसर्च कर फ़िल्म बनाई है। तमिल मूल के रहमान ने पंजाबी फ्लेवर को पकड़ कर इस फ़िल्म का संगीत बनाया है। उर्दू के शायर इरशाद कामिल ने चमकीला के पंजाबी गीतों को रिडिजाइन किया है।
चमकीला जैसी अनेक कहानियां हमारे देश के सैंकड़ो हिस्सों में गुमनामी की जिंदगी जी रही है। जो दिख जाए और जो पढ़ने में आ जाए वही इतिहास है, यह मानना अक्लमंदी की बात नही होगी। इतिहास को फिर से रिविजिट करने की जरूरत है। अतीत के विचार और व्यक्ति अब भी जग में अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे है, बस ज़रूरत है हर अंतस में एक इम्तियाज सा भाव और कमिटमेंट हो…