उज्जैन/इंदौर। सिंहस्थ में 11 मई को समरसता स्नान और शबरी स्नान रखा गया है। ये स्नान दलितों के लिए रखे गए हैं। इसकी ऑर्गनाइजर है आरएसएस समर्थित संस्था दीनदयाल विचार प्रकाशन। लेकिन स्नान से पहले दो शंकराचार्यों और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष सहित कई संतों ने इसका विरोध कर दिया है। उधर, डॉ. भीमराव आंबेडकर के पोते आनंदराज आंबेडकर ने ऐसे इवेंट को बाबा साहेब के विचारों के खिलाफ बताया है, जबकि बीजेपी स्टेट प्रेसिडेंट नंदकुमार सिंह चाैहान इसे पार्टी का एजेंडा बता रहे हैं।
क्या है पूरा मामला, शंकाराचार्य स्वरूपानंद ने क्या कहा…
 – समरसता और शबरी स्नान के नाम पर देशभर से दलित संतों को सिंहस्थ में बुलाने और उनके साथ अलग से स्नान करने को जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने बीजेपी की नौटंकी बताया है।
– उज्जैन में ही मौजूद पुरी पीठ के शंकराचार्य अधोक्षानंदजी तो यहां तक कह रहे हैं कि सिंहस्थ में दलितों के साथ नहाने के इस दिखावे से भेदभाव बढ़ेगा।
– अमरकंटक से आए एक अन्य प्रमुख संत कल्याणदासजी महाराज ने कहा- मैं लगातार छह सिंहस्थ से उज्जैन आ रहा हूं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। दलित स्नान का आयोजन बकवास है। कोई भी साधु से उसकी जाति या वर्ण नहीं पूछता है।
– निरंजनी अखाड़ा प्रमुख आनंदगिरि महाराज ने कहा, साधुओं का राजनीतिक लाभ लेने का काम बंद होना चाहिए। हम इस आयोजन का विरोध करेंगे क्योंकि साधु दलित नहीं होता वह तो सिर्फ साधु है। आयोजन हुआ तो काले झंडे दिखाएंगे।
– महामंडलेश्वर गुरुमुखानंदजी महाराज बोले- आपके दरवाजे पर कोई साधु आया तो क्या आप उससे जात पूछेंगे?
 दलित संतों को भेजे पीले चावल
 – उधर, संघ और भाजपा ने समूचे देश के दलित संतों को सिंहस्थ में शामिल होने के लिए पीले चावल भेजे हैं।
– कई बड़े संतों की आने की संभावना जताई जा रही है साथ ही मालवा-निमाड़ से भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी पार्टी कार्यकर्ताओं को सौंपी गई है।
– इसके लिए मेला क्षेत्र में दीनदयालपुरम बसाया जा रहा है।
 ये है पूरा मामला
 – बता दें कि आरएसएस से जुड़ी संस्था ‘पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन’ ने 11 मई को समरसता स्नान और शबरी स्नान का आयोजन किया है।
– इसका आयोजन कुंभ के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए अलग से किया जा रहा है।
– इसी को लेकर कुछ सामाजिक संगठनों की ओर से यह बहस तेज हो गई है कि सिंहस्थ में दलितों के लिए अलग से स्नान की व्यवस्था क्यों?