– मनोज रतन व्यास

लाॅयन न्यूज, नेटवर्क। सोशल मीडिया की रीच की एक बानगी देखिए कि एक 31 वर्षीय हिंदुस्तानी गायक पिछले एक साल में कई मर्तबा ग्लोबली यूट्यूब टॉप ट्रेंड की सूची में आ चुका है। दो दिन पहले ही रिलीज हुआ उसका नया गीत ‘बेदर्दी से प्यार का’ 21 मिलियन व्यूज के साथ फिर वैश्विक स्तर पर यूट्यूब पर नम्बर एक के पायदान पर है।
आगामी 14 जून को उस पहाड़ी गायक जुबिन नौटियाल का जन्मदिन है। जीवन के चैथे दशक का आगाज जुबिन ने पिछले साल लॉकडाउन काल में किया। सिनेमाघरों पर ताले लगे थे और जुबिन ने इसी कालखंड में अपनी ताल से युवावर्ग को मंत्रमुग्ध कर दिया। जुबिन की सफलता दूजे बॉलीवुड गायकों से थोड़ी सी मुख्तलिफ है। देहरादून के सभ्रांत कुनबे से ताल्लुक रखने वाले जुबिन के खाते में फिल्मी हिट्स पिछले साल मार्च तक इकाई की संख्या तक ही थे। रेडियो स्टेशन, म्यूजिक चैनल्स पर तो गत वर्ष तक जुबिन के दो ही गीत ज्यादा सुने और देखे गए थे। अब एक साल बाद जुबिन एक दर्जन से ज्यादा ब्लॉकबस्टर गीत दे चुके हैं। जुबिन की सफलता के मायने इसलिए भी क्योंकि इन गीतों में एक भी सॉन्ग किसी फिल्म से नहीं था। अधिकतर म्यूजिक वीडियो में बतौर मॉडल जुबिन खुद ही फीचर हुए है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि और बिजनेस फैमिली से राब्ता रखने वाले जुबिन का रियलिटी शो ‘एक्स फैक्टर’ के लिए ऑडिशन देना और फिर नेशनल टेलीविजन पर ह्यूमिलेशन सहन करना जुबिन के व्यक्तित्व की सच्ची तस्वीर हमारे सामने उभारती है। उत्तराखंड और देहरादून के लोकल रॉकस्टार ने मुम्बई के मीठीबाई कॉलेज में अध्ययन करते हुए संगीत में पहचान बनाने के लिए मुम्बई में संघर्ष किया। किसी की कॉपीकैट आवाज न होने के कारण जिंगल्स और छोटे मोटे स्क्रैच भी गाने को मिलने लगे। फिर संयोग से म्यूजिक माइस्ट्रो ए.आर.रहमान से एक औचक भेंट ने जुबिन के करियर को नई दिशा दे दी। रहमान ने जुबिन के वॉकल कोड को पसंद करते हुए कहा कि अभी फिल्म संगीत में स्वयं को न झोंको थोड़ा और अपना गला तैयार करो। जुबिन अपने होमटाउन देहरादून लौट आया, अपने सुरों को और भी पॉलिश करने लगा। बनारस जाकर पंडित छैन्नूलाल मिश्र से शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखी। मद्रास जाकर वेस्टर्न म्यूजिक एक संगीत स्कूल में जाकर अपने भीतर समेटा और फिर ‘कुछ तो बता जिंदगी’ गीत के साथ जुबिन की स्वर सरिता बह निकली जो अब सात समंदर पार भी किसी परिचय की मोहताज नहीं है।

जुबिन की कामयाबी संगीत के इस कर्कश दौर में उम्मीद जगाती है। जुबिन के साथ अरिजीत सिंह हमें किशोर-रफी वाले गोल्डन इरा की फीलिंग करवा सकते है। सुरों का आसमां निकट भविष्य में मीका सिंह जैसे ऑटोट्यूनर गायकों के कान फाड़ू गीतों से आच्छादित नही होगा,ऐसी आस तो जुबिन की सफलता से कर ही सकते है। अकेला जुबिन म्यूजिक में वो बदलाव नही ला सकता,जिसकी संगीत के बौद्धिक श्रोताओं को होप है। जुबिन को भी शैलेन्द्र जैसा गीतकार चाहिए,साथ में लता-आशा जैसे फीमेल सिंगर्स की जुगलबंदी की भी जरूरत है। श्रेया घोषाल और सुनिधि चैहान वो कल्ट क्लासिक संगीत जुबिन के साथ रचने की योग्यता भी रखते है। एस डी बर्मन और मदन मोहन जैसी कम्पोजिशन भी चाहिए, तभी जुबिन सरीखे और भी सिंगर भारत के इंटीरियर से हमारे सामने आएंगे। ऐसे ही तो संगीत का उत्तरोत्तर विकास भी होगा और म्यूजिक की लेगेसी और रेट्रो फील भी बरकरार रहेगा।